(दिनांक: 10 मार्च, 1953)
विषय-राज्य की शासन व्यवस्था पर परिचर्चा के क्रम में श्री कर्पूरी ठाकुर का भाषण।
श्री कर्पूरी ठाकुर-अध्यक्ष महोदय,
I beg to move;
"That the item for Rs.-2,34,000 for Minister be reduced by Re.1"
(To discuss the general aadministration of the State.)
शासन का महकमा एक ऐसा महकमा है, जो न सिर्फ सरकार के लिए, बल्कि सूबे की जनता के लिए भी बहुत महत्व रखता है, जो समय निश्चित है, उतने समय में शासन की विस्तृत आलोचना करना संभव नहीं है। मैं समझता हूँ कि यह एक ऐसा विषय है, जिस पर सदन के सभी सदस्य अपनी राय रखना चाहेंगे। इसलिए जो समय आपने निर्धारित किया है, उसके अंदर ही मैं अपनी बातों को कहने की कोशिश करूँगा। शासन की कार्यकुशलता, उसकी पवित्रता तथा उसकी सुव्यवस्था पर सरकार के कार्यों की सिर्फ सफलता और असफलता ही नहीं निर्भर करती है, बल्कि उसकी (सरकार की) लोकप्रियता भी निर्भर करती है।
हम लोग चाहे विरोधी दल के लोग हों या टेªजरी बेंच के लोग हों, सरकार की आलोचना करते हैं, सिर्फ इसलिए कि सरकार के शासन का स्तर ऊँचा हो, सरकार के नाना प्रकार के कार्यों के ऊपर जनता का जो भाग्य और भविष्य निर्भर करता है, वह उज्जवल हो। श्री राम चरित्र सिंह: सरकार का स्तार ऊँचा हो, इसका क्या मतलब है?
The Chair should give a ruling on the point
अध्यक्ष: इसको आप उठा लें, क्योंकि इसका मतलब है कि सरकार का स्तर नीचा हैे।
Shri Srish Chandra Banerjee: Sir, I rise on a point of order. Is the Hon'ble the Irrigation Minister in order in using the word 'should' with reference to the Chair?
अध्यक्ष: इसको मैं प्वाॅइंट आॅफ आर्डर नहीं मानता हूँ।
श्री श्रीश चंद्र बनर्जी: क्या आप ‘शुड’ बोलने पर भी इसे चेयर पर फ्लिेक्शन नहीं मानते हैं?
अध्यक्ष: ‘शुड’ का माने कंटेक्स्ट के साथ लगाना होगा। अगर वे शुड नहीं कहें तो क्या कहें?
Shri Srish Chandra Banerjee: Is it not a reflerection on the chair that a Minister should ask the Chair to act in a particular way?
Speaker: There are various matters on which members have to express their opinions. Take for instnace, a point of order. One member says that the Chair should decide it in a particular way while another member says that the member says that the Chair should decide in another way. So, my ruling is that the word 'should' apart from the context cannot be held as objectionable.
श्री कर्पूरी ठाकुर: अध्यक्ष महोदय, मैंने ‘स्तर’ शब्द का व्यवहार अच्छी नीयत से किया था, यदि सरकार को अपने शासन के मौजूदा स्टैंडर्ड का फख्र है और अपने स्तर को ऊँचा नहीं करना चाहती, तो मैं उसे उठा लेता हूँं। मैंने इस शब्द का शासन के लिए व्यवहार किया है, मैंने सरकार के शासन स्तर के बारे में इसका व्यवहार किया है।
अध्यक्ष: तब इसमें कोई आपत्ति नहीं है।
The Hon'ble member used the word in respect of the level of administration.
अध्यक्ष: अब आप इसे छोड़िए।
श्री कर्पूरी ठाकुर: खैर, मैं इसे छोड़ रहा हूँ। पहली बात सामान्य प्रशासन के संबंध में मैं यह कहना चाहता हूँ कि आज जो शासन का ढाँचा अपने सूबे का है और जिसे आप अपने कंधो पर ढो रहे हैं, वह पिछले बहुत वर्षों से अंग्रेजी सरकार के समय में विराजमान था। जिस शासन को बदलने का स्वप्न आप देखा करते थे, वह अभी भी विद्यमान है। कांग्रेसी हुकूमत में भी शासन का वही ढाँचा रह गया, जो अंग्रेजी हुकूमत में कायम था। वे जो हमारे नेता कहलाते थे और दूसरे लोगों के भी नेता कहे जाते थे, उनके वक्तव्यों, उनके भाषणों को सुनने और समझने की हमने कोशिश की थी और उनको याद कर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि आज का जो शासन का ढाँचा है, वह कोई नया ढाँचा नहीं है। उस ढाँचे को अंग्रेजों ने कायम किया था और वह ढाँचा गुलामी का ढाँचा है। वह हिंदुस्तान के निर्माण का ढाँचा नहीं हो सकता। अगर आप अपने को देश का निर्माता कहते है, और निर्माता बनकर रहना चाहते हैं तो अंग्रेजी राज्य के पुराने ढाँचे को फेंककर नए ढाँचे का निर्माण करना होगा। लखनऊ यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्र विभाग के हेड आॅफ दि डिपार्टमेंट श्री धूर्जटी प्रसाद मुखर्जी ने एक किताब लिखी है-‘इकोनाॅमिक सिविल सर्विस।’ उसमें उन्होंने लिखा है कि सिविल सर्विस के पुरानें ढाँचे से हिंदुस्तान के आर्थिक निर्माण का काम नहीं हो सकता है। अगर हिंदुस्तान का आर्थिक पुननिर्माण आप करना चाहते हैं तो आपको नई इकोनाॅमिक सिविल सर्विस कायम करनी होगी। बिना ऐसा किए आपकी सारी योजनाएँ अधूरी रह जाएँगी, आपकी पंचवर्षीय योजना सफलतापूर्वक कार्यान्वित नहीं होगी। आप अपनी योजनाओं पर जितना खर्च करते हैं, वह सब जायज हैे, ऐसा तो विश्वास नहीं करता, मगर बहस के लिए मैं यह मान लेता हूँ कि यह जायज है। परंतु आपका जितना ज्यादा खर्च बढ़ रहा है, काम उतना आगे नहीं बढ़ रहा है। बहुत चीजों में तो आप पीछे पड़ गए हैं। इसलिए आर्थिक पुनर्निर्माण के लिए सबसे पहली बात आपको यह करनी है कि आप एक नई इकोनाॅमिक सिविल सर्विस कायम करें। आज हम देहातों में जाते हैं तो वहाँ जिस ढंग से आपके अफसरान काम बतलाते हैं, उससे पता चलता है कि उन देहातों का काम नहीं चलेगा। आपने बड़ा भारी पाराफरनेलिया कायम किया है, जिस पर अधिक-से-अधिक पैसा खर्च होता है। आप इनकी जगह पर रूरल सिविल सर्विस कायम करें, तभी आप जो काम करना चाहते हैं, वह काम हो सकेगा।
श्री कृष्ण बल्लभ सहाय: इकोनाॅमिक सिविल सर्विस और रूरल सर्विस की क्या व्याख्या है, इसको अगर माननीय सदस्य बतला देते तो बात समझ में आ जाती।
श्री कर्पूरी ठाकुर: दो तरह के सर्विस का जिक्र हमने किया है। उनसे मेरा मतलब यह हैे कि देहातों में काम करने के लिए वैसे आदमियों को रखना चाहिए, जिन्हें गाँव और खेतों की सारी बातों की जानकारी हो, जिन्हें यह जानकारी हो कि खेतों की तरक्की कैसे हो सकती है, उत्पादन की वृद्धि कैसे हो सकती है? खेतों में किस समय बीज लगाए जाएँ कि फसल अच्छी हो, जिनकी मनोवृत्ति नई हो, मनोविज्ञान जिनका नया हो, वैसे योग्य आदमियों को लेकर रूरल सिविल सर्विस कायम किया जाए। अपने ग्रो-मोर-फूड डिपार्टमेंट में ऐसे लोगों को रखा है, जिन्हें खेती के बारे में जानकारी कुछ भी नहीं है। वे एडमिनिस्टेªेशन चला सकते हैं, लेकिन खेतों की मिट्टी नहीं पहचान सकते हैं। खेतों में कब हल चलेगा, कब बीज बोया जाएगा, कब सिंचाई होगी, इन सब बातों को वे नहीं जानते हैं। ऐसे लोगों से उत्पादन की वृद्धि का काम नहीं हो सकता है। इसमें ऐसे लोगों को रखना चाहिए, तो उन सब समस्याओं की जानकारी रखते हों, उनसे अवगत हों, जो उन्हें नए ढंग पर करना चाहते हों, जो अपने देश को आगे बढ़ाना चाहते हों, ऐसे लोगों को आप सर्विसेज कायम करके देश को आगे बढ़ा सकते हैं। दूसरी बात, मैं कार्यक्षमता के बारे में कहना चाहता हूँ। आप इतना ज्यादा खर्च की बात कहते हैं, लेकिन हम कार्यक्षमता को बढ़ते हुए नहीं पाते हैं। आप व्यक्तिगत तौर पर एक चिट्ठी लिखकर देखिए, उसके जवाब आने में तीन-तीन महीना लग जाएगा। आप किसी बात के लिए सेक्रेटेरियट में चिट्ठी लिखें, उसका जवाब तीन महीना, छह महीना तक नहीं मिलता है। जब तक कि आप आॅफिस के दरवाजे पर न जाएँ, आॅफिस की खाक न छानें, तब तक आप का कोई काम नहीं हो सकता है। एक जमाना था, जब लिखा-पढ़ी से बहुत काम हो जाया करता था, लेकिन आज वह बात खत्म हो गई है। इसका तजुरबा हम समझते हैं और हममें से बहुतों को होगा। हम देखते हैं कि आपका खर्च बढ़ता है, लेकिन काम नहीं बढ़ता, टोटल आउटपुट काम का नहीं बढ़ता है। आपका खर्च जो बढ़ता जा रहा है, उसके लिए आप क्या (जस्टिफिकेशन) औचित्य दे रहे हैं, जबकि आपकी कार्यक्षमता घटती जा रही है।
अब मैं आपके न्याय-शासन के बारे में कुछ कहना चाहता हूँ। मसलन मशहूर है कि ‘जस्टिस डिलेड इन जस्टिस डिनाएड‘-। न्याय करने में कितनी देर की जाती है, उसके बारे में कुछ फिगर मै आपके सामने पेश करना चाहता हूँ। बिहार स्टैटिस्टिकल हैंडबुक, 1950 नामक किताब से मैंने फिगर इकट्ठा किया है। वर्ष 1936 ई. में 97,284 केस रिपोर्ट हुआ और उसमें से 72,712 का ट्रायल हुआ और 8,558 पेंडिंग रह गया। वर्ष 1941 ई. में 1,14,167 मामला रिपोर्ट हुआ, उसमें से 79,878 का ट्रायल हुआ और 20,348 पेंडिंग रहा। वर्ष 1947 ई. में 1,12,427 केस रिपोर्ट हुआ और उसमें से 74,079 का ट्रायल हुआ और 69,576 केस पेंडिंग रहा। इससे हम देखते हैं कि जहाँ 1936 ई. में 97,284 केस रिपोर्ट हुआ, उसमें से सिर्फ 8,558 केस पेंडिंग रहा, वहाँ 1947 ई. में 1,12,427 केस रिपोर्ट हुआ, उसमें से 69,576 केस पेंडिंग रहा। दोनों में बहुत अंतर है। वर्ष 1949 ई. में 1,47,456 केस रिपोर्ट हुआ और उसमें से 98,395 केस का ट्रायल हुआ और 66,686 केस पेंडिंग रहा। किसी भी डिपार्टमेंट के संबंध में अगर आँकड़ा पेश किया जाए तो मुझे उम्मीद है कि इसी तरह का नमूना आपको मिलेगा। एक और नमूना मैं आपके सामने पेश करना चाहता हूँ और वह है बरही यूनियन कमेटी के चुनाव के संबंध में। वहाँ का चुनाव 21 नवंबर, 1952 ई. को हुआ था और एक साल तक उसका गजट नहीं किया गया। इसके लिए बहुत लिखा-पढ़ी हुई (प्रोटेस्ट) विरोध-सभा की गई और उसमें प्रस्ताव पास किया गया। जब चारों ओर से आवाज बुलंद की गई तो 1952 ई. के दिसंबर में उसका गजट किया गया। यह इसलिए किया गया कि वहाँ सोशलिस्ट पार्टी की जीत हुई थी और अब उसको नोटिफाइड एरिया कमेटी बनाने का विचार सरकार कर रही है।
श्री कृष्ण बल्लभ सहाय: मेरा खयाल है कि जनरल एडमिनिस्ट्रेशन पर बोलने से जनरल तरीके से ही कुछ डिपार्टमेंट के बारे में रेफरेंस किया जा सकता है। जब यूनियन कमेटी के चुनाव के बारे में कहा जाता है तो जब तक उस डिपार्टमेंट की बात नहीं आती है, तब तक हम लोगों के पास उसका कागज नहीं आवेगा और हम लोग जबाव नहीं दे सकते हैं, क्योंकि जुडिशियल और यूूनियन कमेटी से दो डिपार्टमेंट संबंध रखता है।
श्री कर्पूरी ठाकुर:अध्यक्ष महोदय, उदाहरण तो हमारे पास बहुत है, लेकिन जब मंत्री महोदय एक ही उदाहरण पर आपत्ति करने लगे तो मैं अब उदाहरण देना छोड़ देता हूँ। इसके लिए मैं उम्मीद करता हूँ कि आगे समय दिया जाएगा, ताकि मैं सारी बातों को आपके सामने रख सकूँ। मैं यह दिखलाना चाहता था कि नोटिफाइड एरिया के लिए एक कमेटी बनी है, जिसमें पच्चीस-तीस आदमी रखे गए हैं। उनमें सात मेंबर कांग्रेस पार्टी के, जो हार गए थे और दो मेंबर, तो जीत गए थे, यानी कुल नौ मेंबर ले लिये गए, लेकिन सोशलिस्ट पार्टी के सात मेंबर जो जीत गए थे, उन्हें नहीं लिया गया। दूसरी पार्टियों का पूछना ही क्या है! इस तरह आपके शासन में पक्षपात हो रहा है और आप यह दिखलाना चाहते हैं कि आप पक्षपाते से ऊपर हैं! एक दूसरी मिसाल आप समस्तीपुर के एस.डी.ओ. का देंखें। शादीपुर, थाना वारिसनगर के जमींदार ने दो दरखास्त दी कि कुछ लोग गड़बड़ मचाते हैं, उपद्रव करते हैं और फसल को लुटवाते हैं। दरखास्त में जिल लोगों के नाम थे, उनमें श्री वशिष्ठ नारायण सिंहजी, एम.एल.ए. का नाम नहीं था। लेकिन समस्तीपुर के एस.डी.ओ. ने जो न जाने कैसी आँखोंवाले और अक्लमंद थे, कि यह नहीं देख सके कि श्री वशिष्ठ नारायण सिंह का नाम दरखास्त में नहीं हैं। उनके नाम वार्निंग नोटिस जारी कर दी, कि आप सँभलकर रहें।
श्री कृष्ण बल्लभ सहाय: वार्निंग नोटिस में क्या है, जरा पढ़ दीजिए।
श्री कर्पूरी ठाकुर: नोटिस में यह है कि दरखास्त और पुलिस की रिपोर्ट से जाहिर होता है कि आप और आपकी सोशलिस्ट पार्टी इकट्ठा होकर, मजमा करके जायदाद को लूटपाट करते हैं और बरबाद करते हैं, जिसमें नुकसान होता है। आप इस तरह की वेजा हरकत नहीं करने जाएँगे, ताकीद जानिए।
अध्यक्ष महोदय, इस तरह की बेबुनियादी और गलत बात कही जाती है और इस पर भी हमारी सरकार की पार्टी शर्मिंदा नहीं होती
श्री रामचरित्र सिंह: लूटपाट आप करें और शर्मिंदा हम लोग हों।
श्री कर्पूरी ठाकुर: हमारी सोशलिस्ट पार्टी बुजदिलों की जमात नहीं है। हम अगर लूटपाट करेंगे तो बहादुरों की तरह इसे कबूल करेंगे कि हमने ऐसा किया है। खैर, अध्यक्ष महोदय, मैं यह दिखला रहा था कि लोग बैठे रहते हैं असेंबली में और उन पर वार्निंग नोटिस जारी हो जाती है समस्तीपुर में! इस चीज पर अगर आपत्ति की जाती है तो हम नहीं समझते हैं कि क्यों दूसरी पार्टी को नागवार गुजरता हैे।
अध्यक्ष महोदय, मैंने एक उदाहरण कार्यदक्षता के अभाव का पेश किया, दूसरी पक्षपात की और तीसरी यह है कि जो शासन का वर्तमान ढाँचा है, उसमें हम परिवर्तन करने की आवश्यकता महसूस करते हैं। मैं किसी बुरी नियत से या द्वेष से नहीं कहता, बल्कि सच्चे दिल से कहता हूँ कि अगर आप सचमुच कुछ करना चाहते हैं, तो अपने दिल को टटोलें, अगल-बगल देखें कि आपकी गाड़ी ठीक ढंग से चल रही है या नहीं। अगर आप समझते हैं कि गाड़ी ठीक चल रही है तो आपको मुबारकबाद, और अगर यह समझते हैं कि रास्ते में कुछ गड़बड़ी है और इसमें परिवर्तन करने की जरूरत है, तो आपको रास्ते साफ करके गाड़ी को आगे बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए। इन शब्दों के साथ मैं अपने कटौती प्रस्ताव को पेश करता हूँ।