(दिनांक: 10 मार्च, 1953)


विषय-श्री पाल दयाल स.वि.स. द्वारा कृषि के विकास में, कृषि विभाग की शिथिलता के लिए लाए गए कटौती प्रस्ताव पर श्री कर्पूरी ठाकुर का सुझाव।

Shri Pal Dayal: Sir, I beg to move;
"That the provision of Rs. 40,183 be reduced by Rs. 1 to discuss the failure of the Agriculture Department in bringing about improvement in Agriculture."

श्री कर्पूरी ठाकुर: अध्यक्ष महोदय, जिस सरकार की नीति सही और सुंदर योजना बनाकर जनता की भलाई करने की हकोगी, मैं निश्चयपूर्वक कह सकता हूँ कि वह सरकार जरूर सफलता प्राप्त करेगी। लेकिन मैं देखता हूँ कि मौजूदा सरकार केवल गलतबयानी कर लोगों को बरगलाने की कोशिश करती है, इसलिए उसको तो हमारे जानते कोई सफलता नहीं मिलेगी। कल आपको पता होगा कि इसी सदन में मेरे एक सवाल के जवाब में सरकार की ओर से यह जवाब दिया गया कि जितने ग्रो-मोर-फूड-अफसर हैं, वे सबके सब कृषि ग्रैजुएट हैं और सबको कृषि संबंधी बातों की पूरी-पूरी जानकारी प्राप्त हैे। इसके जवाब में सरकार की बनाई हुई सिविल लिस्ट के पेज 466, 467 और 468 की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ, जहाँ पर यह लिखा हुआ है कि किसी अफसर की क्या योग्याता है? इसको देखने से आपको पता चलेगा कि ग्रो-मोर-फूड के 52 अफसर में से 46 अफसर नाॅन-एग्रीकल्चर ग्रैजुएट हैं। हमारे राजस्व मंत्रीजी इतने जवाबदेह पद पर हैं, और इस तरह की गलतबयानी करते हैं, तो उनसे हम क्या उम्मीद कर सकते हैं? हम लोग जब प्रशन पूछते हैं तो यह उम्मीद करते हैं कि वे उसका मुनासिब और सही जवाब देंगे। लेकिन जब इस तरह की गलतबयानी होती है, तो हम क्या उनकी समालोचना कर सकते हैं और उससे सरकार को क्या फायदा होगा, इसे तो आप समझ सकते हैं। यह मैं किसी निराधार बात पर नहीं कह रहा हूँ, बल्कि उनकी ही बनाई और छपाई हुई पुस्तिका के आधार पर कह रहा हूँ। मैं समझता हूँ कि इस तरह की निराधार बातें कहकर सरकार इस प्रांत की उन्नति नहीं कर सकती है।

श्री वीरचंद पटेल: सरकार के जवाब में जो इम्प्रेशन, माननीय सदस्य का हो गया है कि सब ग्रो-मेोर-फुड अफसर कृषि ग्रैजुएट हैं, इसको मैं करेक्ट कर देना चाहता हूँ। सरकार की तरफ से जो जवाब दिया गया था, उसमें यह बात नहीं थी कि सबके सब ग्रो-मोर-फूड अफसर कृषि ग्रैजुएट हैं। उनकी जो धारणा हो गई है, वह गलत धारणा है।

श्री कर्पूरी ठाकुर: धारणा की बात नहीं, सरकार की तरफ से जो जवाब था, उसका साफ यही मतलब था। खैर, जो बात मुझे अब कहनी है, वह एक दूसरे विषय से संबंध रखती है। अब मैं आपका ध्यान और सदन के सदस्यों का ध्यान एक दूसरी चीज की तरफ ले जाना चाहता हूँ, वह यह है कि एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट के खर्च के ऊपर जब हम विचार करते हैं तो देखते हैं कि 1937-38 ई में इस विभाग पर 9,56,000 रुपए खर्च्र होते हैं।

(इस समय अध्यक्ष ने पुनः आसन ग्रहण किया।)
लेकिन इन दिनों जो बजट में 1952-53 इ का हिसाब पेश किया गया है, उसमें 1,63,62,000 रुपए खर्च हो रहे हैं। क्यों? इसलिए कि खेती की पैदावार बढ़े और खेती की तरक्की के लिए सिर्फ इतने ही रुपए नहीं खर्च किए जा रहे हैं। ग्रो-मेोर-फूड कैंपेन, माइनर इरीगेशन और मेजर इरीगेशन पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। माइनर इरीगेशन में 6,01,05,840 रुपए और मेजर इरीगेशन में 3,80,88,166 रुपए खर्च किए गए हैं 1947-48 ई. से लेकर 1951-52 तक। अगर आप मुकाबला करेंगे खर्चों का जो 1936 ई. से 1938 ई. तक हुआ और जो आज हो रहा है, तो आप देखेंगे कि 500 गुना खर्च बढ़ गया है। मैं जानना चाहता हूँ कि इतना खर्च बढ़ाने के बावजूद क्या दोगुना भी खेती की पैदावार बढ़ी है? क्या दोगुना भी खेती की तरक्की हुई है? कहा जाता है कि 12 लाख एकड़ जमीन धान की खेती में नई आई है, लेकिन जहाँ 1936 ई.-1937 ई. में 32 लाख 95 हजार टन धान पैदा होता था, वहाँ आज 12 लाख एकड़ धान की खेती की जमीन बढ़ जाने पर भी 1950-51 में 25 लाख 3 हजार टन धान पैदा हुआ। एक तरफ तो खर्च बेशुमार बढ़ता जा रहा है और दूसरी तरफ इतनी धन की खेती बढ़ने पर भी पैदावार घटती ही जा रही है।

मैं जानना चाहता हूँ, अगर यही सरकार का रवैया है, तो किस आधार या बुनियाद पर सरकार हमको विश्वास दिलाना चाहती है कि जो उसकी नीति जनता के प्रति बरती जा रही है, उससे किसानों को फायदा होगा? किसानों के लिए जो चार चीजें बहुत जरूरी हैं, वे ये हैं कि उनका क्राॅप (फसल), कैटल (पशु), लैंड (भूमि) और प्राइस (दाम) इनश्योर्ड (निश्चित) गारेंटेड है? क्या उनका क्राॅप इनश्योर्ड है? क्या उनकी पैदावार की कीमत गारेंटेड है, क्या उनका लैंड इनश्योर्ड है? 19 प्रतिशत जमीन की सिंचाई होती है, और बाकी 81 प्रतिशत जमीन आसमान के भरोसे पड़ी रहती है। जो आसामान ऐसा पगला होता है कि कभी इतना ज्यादा बरसता है कि खेत ढह जाता है और कभी इतना कम बरसता है कि खेत सूख जाता है! अगर वर्षा समय पर हुई भी और फसल लगी तो कीड़े-मकोड़े लगकर बरबाद कर देते हैं। सहरसा जिले में माननीय मंत्रियों को घूमने का मौका मिला होगा। मैंने वहाँ देखा है कि सुअर और बंदर उस इलाके की फसल को बरबाद कर देते हैं। वहाँ किसानों का फसल सुरक्षित नहीं है। दियारा के इलाके में, आरा से उधर सिताबदियारा में लोगों ने मुझे बतलाया कि जानवरों की चोरी (कैट्ल लिफ्टिुंग) होती रहती है।

अध्यक्ष: इन सब बातों का एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट के बजट से क्या संबंध है?

श्री कर्पूरी ठाकुर: मैं किसानों (एग्रीकल्चरिस्ट्स) की क्या मुसीबत है, उसकी तरफ इशारा कर रहा हूँ। जब जानवर बीमार पड़ते हैं, तो पशु-चिकित्सालय तथा पशु-चिकित्सकों के अभाव में देहाती इलाजों पर ही उन्हें निर्भर रहना पड़ता है। फलस्वरूप, अधिकतर जानवर मर जाया करते हैं। आज दूध की पैदावार इतनी कम हो गई है कि इस हालत पर गौर करके दंग रह जाना पड़ता है। किसानों के पशु (कैट्ल) भी इन्श्योर्ड नहीं हैं, उनकी पैदावार का दाम (प्राइसेस) गारंटेड नहीं है। खुद गवर्नमेंट की ग्रो-मोर-फूड इंक्वायरी-कमेटी ने जो सिफारिश की, उनको मैं पढ़कर सुना देता हूँ-

"Though we fell that prices of foodgrains are not likely to decline to uneconomic levels in the near future, we recommend that the Government of India should make a declaration accepting the principles of the gurantee of minimum prices, this will provide an incentive to agricultural production."

आज पूर्णिया और सहरसा के किसान रो रहे हैें। जूट और ऊख के उपजानेवाले किसान रो रहे हैं। सदन में सवाल पर सवाल पूछा गया, लेकिन गवर्नमेंट आॅफ इंडिया से आपने जूट और ऊख के दाम को बढ़ाने के लिए कोई कोशिश नहीं की। आज बेदखली का जो नंगा नाच हो रहा है और जमीन किसानों की जो सुरक्षित नहीं रह रही है, इस हालत में सरकार कैसे खेती की पैदावार को बढ़ाना चाहती है? अगर सचमुच ही सरकार चाहती है कि खेत की पैदावार बढ़े तो जो खेत जोतनेवाले हैं, उनके अंदर ऐसा विश्वास पैदा कर देना चाहिए कि खेत उनका है, उनकी हालत बदल रही है। उनको ऐसा मालूम होने लगे कि उनके लिए एक नई दुनिया आ रही है। सरकार यह कह दे कि जो टेनैंट्स ऐक्ट बिल है, जो बँटाईदार हैं, उनको टेनैंसी का, अकुपैंसी का अधिकार दे दिया जाएगा। उनको टेनैंसी का अधिकार गारंटी कर दीजिए और तब हम समझते हैं, सरकार एक बहुत बड़ा कदम आगे उठाएगी। अगर जमीन का बँटवारा हो जाए और खेत जोतनेवाला को’’।

एक सदस्य: आॅन ए प्वाॅइंट आॅफ आर्डर, सर, टीलर आॅफ दि स्वायल का सवाल एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट के बजट पर कैसे उठता है?

श्री कर्पूरी ठाकुर: कृषि की उन्नति के लिए जो उपाय हो सकता है, वह मैं बता रहा हूँ। अगर इस पर आपत्ति है तो, मैं नहीं कहूँगा।

अध्यक्ष: बात यह है कि जिससे एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट का संबंध है, उसी पर बोलना चाहिए।

श्री कृष्ण वल्लभ सहाय: हुजूर, रिलिवेंसी यह है कि जिस चीज का एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट के बजट में प्रोवीजन है, उसी पर बहस होनी चाहिए। माइनर इरीगेशन, रेवेन्यू डिपाटमेंट के बजट में आता है, लेकिन उन्होंने उस पर भी कहा।

श्री कर्पूरी ठाकुर: मैंने पासिंग रेफरेंस दिया था।

अध्यक्ष: जो एग्रीकल्चरल बजट में है और जिसका उस बजट से संबंध है, उसी पर बोलना चाहिए।

श्री कर्पूरी ठाकुर: तो मैं तो यही समझकर कह रहा था कि उन चीजों को जरूर कहना चाहिए, जिनसे खेती की तरक्की होगी। मैं यह कह रहा था कि टेनैंट्स ऐक्ट बिल की समस्या और जमीन के बँटवारे की समस्या हल होनी चाहिए। दूसरे देशों में जैसे डेनमार्क आदि में फोक हाई स्कूल हैं, जिनमें किसानों के लड़के थ्योरेटिकल (सैद्धांतिक) ज्ञान प्राप्त करते हैं और खेतों में व्यावहारिक ज्ञान खुद काम करके हासिल करते हैं। यहाँ भी यदि फोक हाई स्कूल जैसी संस्था कायम की जाए और खेती करनेवालों को शिक्षा प्रदान की जाए, तो मैं समझता हूँ कि एक बहुत बड़ा काम होगा।

अध्यक्ष: ऐसा क्यों नहीं कहते हैं कि जहाँ-जहाँ बेसिक स्कूल हैं, वहाँ इस नीति का अनुसरण किया जाए?

श्री कर्पूरी ठाकुर: इस सरकार की कार्रवाई जैसे चला करती है, शायद आपको मालूम नहीं है। मेरे कहने का मतलब यह है कि जो किसान हैं या जो उनके जवान बेटे हैं, उनके पढ़ने-लिखने का इंतजाम होना चाहिए। कृषि विद्या प्राप्त करने का प्रबंध इनके लिए अवश्य होना चाहिए। तीसरी चीज यह है कि छोटी-छोटी नदियाँ और बड़े-बड़े तालाब हमारे यहाँ काफी है। उनको ठिकाने से काम में लाया जा सकता है। उन्हें फिर से गहरा किया जा सकता है और बड़े पैमाने पर इनके पानी से पटाने का काम लिया जा सकता है। तिरहुत में नए तालाब और पोखरे को खोदने की जरूरत कम होगी। आज बड़े-बड़े पोखरे बेमरम्मत पड़े हुए हैं, उनकी अगर मरम्मत कर दी जाए, उन्हें गहरा कर दिया जाए, तो सिंचाई का काम बडे़ पैमाने पर हो सकता है।

छठी बात यह है कि हमारा सूबा कृषि प्रधान सूबा है। दुःख की बात यह है कि आपके काॅलेजों में बहुत सी चीजों की पढ़ाई होती है, मगर कृषि की पढ़ाई हर काॅलेज मंे नहीं होती। यहाँ के 86 प्रतिशत लोगों का जीवन निर्वाह करने का साधन कृषि है। अतः इस पढ़ाई की ओर सरकार का ध्यान अविलंब जाना चाहिए। हर काॅलेज में कृषि की पढ़ाई अनिवार्य्र (कम्पलसरी) कर देनी चाहिए, नहीं तो यहाँ की सारी पढ़ाई अधूरी रह जाती है।

सातवीं बात यह है कि गाँव में अन्न उत्पादन के साथ-साथ (दुग्धशाला) डेयरी और हाॅर्टिकल्चर की ओर भी सरकार का ध्यान जाना चाहिए। इसके अलावे मैं दो सुझाव और देना चाहता हूँ। एक है स्वायल कंजरवेशन का और दूसरा फिशरी एग्रीकल्चर में सिर्फ खेती हो या हाॅर्टिकल्चर ही नहीं आती है। आप जानते हैं कि उत्तर दरभंगा और उत्तर मुजफ्फरपुर में बड़े-बड़े पोखरे हैं। अगर उनमें हमेशा के लिए पानी का इंतजाम कर दिया जाए, तो मछली की पैदावार बढ़ जाएगी और इससे अन्नय के ऊपर अभी जितना भार है, वह कुछ हद तक कम हो जाएगा। स्वायल कंजरवेशन का काम आज एकदम नहीं हो रहा है। जिस जमीन पर पिछले साल पैदावार अच्छी हुई, अगले साल कम हो जाती है। वर्षा के बाद मिट्टी ढह-धोखर जाती है। अच्छे-अच्छे खेत इस तरह खराब होते जा रहे हैं। इसलिए स्वायल कंजरवेशन होना जरूरी है। अंत में मैं रूरल सिविल सर्विस की ओर सरकार का ध्यान खींचना चाहता हूँ। अभी राजस्व मंत्री यहाँ नहीं हैं। कल हमारे राजस्व मंत्री ने कहा था कि इस संबंध में वे जवाब देंगे, मैं जानता हूँ कि मैंने कोई गलत बात आपके सामने नहीं रखी थी। शायद यह चीज रूरल डेवलेपमेंट के डिमांड के समय फिर सभा में आएगी और उस वक्त मैं इस पर प्रकाश डालूँगा।

अध्यक्ष महोदय, अगर सरकार सचमुच पैदावार बढ़ाना चाहती है तो अपनी नीति में इसे परिवर्तन करना होगा। बड़े-बड़े विद्वानों ने जिन सुझावों को दुनिया के सामने रखा है और वर्षों से रख रहे हैं और हमारे अपोजीशन दल के दूसरे सदस्यों ने जिन सुझावों को आपके सामने रखा है, उन पर आपको गौर करना चाहिए। तभी पैदावार बढ़ेगी और लोगों का जीवन सुखमय होगा।