(दिनांक: 01 मार्च, 1956)
विषय: श्री कर्पूरी ठाकुर द्वारा दिनांक 01 मार्च, 1956 ई. को सामान्य प्रशासन पर चर्चा के क्रम में लाए गए कटौती प्रस्ताव ‘समाजवादी समाज के निर्माण की ओर अग्रसर होने हेतु सरकारी कर्मचारियों को अधिकतम और न्यूनतम वेतन का निर्धारण’ पर।
श्री कर्पूरी ठाकुर: अध्यक्ष महोदय, मैं प्रस्ताव करता हूँ कि-
‘‘मंत्रीगण के लिए 2,16,000 रु. की मद लोपित की जाए।’’
(समाजवादी समाज के निर्माण की ओर अग्रसर होने के संबंध में लोगों की आय के अंतर को कम करने के लिए अधिक-से-अधिक 1,000 रु. तथा कम से कम 100 रु. मासिक वेतन देने के संबंध में विचार-विमर्श करने के लिए।)
लक्ष्य का जहाँ तक प्रश्न हेै, कांग्रेस सरकार ने तथा कांग्रेस दल ने अपना लक्ष्य समाजवादी ढाँचे के समाज के निर्माण का निश्चय किया है। आए दिन जब कभी पहली पंचवर्षीय योजना के संबंध में या द्वितीय पंचवर्षीय योजना के संबंध में बोलने के लिए कोई मंत्री खड़े होते हैं, चाहे सदन के अंदर या सदन के बाहर, तो बहुधा कहा करते हैं कि वे समाजवादी ढाँचे का समाज निर्माण करना चाहते हैं, जो द्वितीय पंचवर्षीय योजना का प्रारूप देश के सामने आया है, उसमें स्पष्ट रूप से यह कहा गया है कि द्वितीय पंचवर्षीय योजना उस लक्ष्य की दिशा में एक बड़ा कदम है। अगर सरकार अपने उस लक्ष्य के प्रति सच्चा रहना चाहती है, तो यह ज्ञात है कि उसको एक कदम उस तरफ उठाना पड़ेगा। यानी समाजवाद कोई आम सिद्धांत नहीं है। अगर समाजवाद केवल एक आम सिंद्धांत होता, तो इसके पीछे करोड़ों लोग, जो आज देश-विदेश में पागल है, पागल नहीं होते। समाजवाद किसी कंक्रीट प्रोग्राम के आधार पर ही प्राप्त किया जा सकता है। अगर किसी निश्चित कार्यक्रम के आधार पर अमल नहीं किया जाए, तो सच्चा समाजवाद के प्रति हम और आप कितनी सही शपथ क्यों न खाएँ, उसकी प्रप्ति होनेवाली नहीं हैे। हमारे कृषि क्षेत्र में, उद्योग क्षेत्र में कारगर कदम उठा है या नहीं, इस पर बहुत बड़ा समाजवाद का भविष्य निर्भर करता है। आप और हम दोनों यह जानते हैं कि कृषि क्षेत्र में अपेक्षाकृत समता लोने के लिए कानून बन रहे हैं, लेकिन फिर भी निश्चित रूप से यह नहीं कहा जा सकता है कि इस क्षेत्र में क्यो होगा? कुछ प्रयास चल रहा हैे और उम्मीद है कि कुछ दिन के बाद हम लेागों को सफलता मिले। इसी तरह से औद्योगिक क्षेत्र का सवाल है। इस क्षेत्र में जो काम करते हैं, उनकी भी यह माँग है कि इस क्षेत्र में भी सरकार को प्रयास करना चाहिए। लेकिन मेरे जानते, सरकार की ओर से समता लाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया है। अगर इसमें कोई कठिनाई हो तो सरकार को चाहिए कि उसको वह हम लोगों के सामने रखे।
मैं यह कह रहा था कि औद्योगिक क्षेत्र में समानता लाने के लिए सरकार की ओरे से तुरंत ही कोई कदम उठाना चाहिए। जो वेतनभोगी समाज है, उसमें बहुत ही असमानता है। आज सचिवालय में इस असेंबली में, कलक्टेरिएट में, पुलिस विभाग में, स्कूल और विद्यालयों आदि जगहों में जो काम करनेवाले हैं और जो वेतनभोगी समाज है, उनमें समानता लाने के लिए सरकार की ओरे से अभी तक कोई कदम नहीं उठाया गया है। इससे बढ़कर आश्चर्य की बात क्या हो सकती है? असली सच्चाई की परख तो यही है कि एक तरफ तो इसी सरकार के बड़े-बड़े अफसर जैसे कमिश्नर और चीफ सेक्रेटरी तीन-तीन हजार वेतन पाते हैं और दूसरी तरफ इसी सचिवालय में काम करनेवाले चपरासी और पिऊन का वेतन पैंतालीस और उनचास रुपए है, जो अस्थायी है, वे पैंतालीस रुपए पाते हैं और स्थायी आदमी को उनचास रुपए मिलता है। जो यहाँ पर असमानता है, वह बहुत ही भयानक असमानता है। दोनों के वेतन में छियासठ गुणा का अंतर है। क्या ऐसी व्यवस्था समाजवाद कहला सकती है? यह सरकार, जो समाजवादी होने का दावा करती है, उसके अंदर 66 गुणा अंतर सरकारी नौकर और दूसरे सरकारी नौकर के वेतन में है। ऐसी भयानक विषमता होते हुए भी, क्या कोई आदमी समाजवाद की कल्पना कर सकता है? इसी को मद्देनजर रखते हुए, यह मेरा प्रस्ताव है कि पहले यहाँ के वेतनभोगी समाज में एक और दस का अंतर होना चाहिए और यह सरकार इसी को मान ले तो यह एक बहुत बड़ा कदम समाजवाद की ओर होगा। हमारे श्री गुप्तनाथ सिंहजी ने यह कहा है कि आपके समाजवाद की कल्पना में एक और दस का ही अंतर चाहते हैं। मेरा कहना यह है कि अगर आप इसको भी मानने के लिए तैयार नहीं हैं, तब किस समाजवाद पर आप को नाज है? क्या आपको उस समाजवाद पर नाज है, जहाँ एक और छियासठ गुणा का अंतर एक नौकर और दूसरे नौकर के वेतन में है? जहाँ पर ऐसी बात होगी, वह समाजवाद नहीं कहा जा सकता है। अगर उसकी जगह पर एक और दस का अंतर ही आपकी सरकार मान ले, तो यह भी उस दिशा में एक बहुत कड़ा कदम होगा। सच्चा समाजवाद तो वही है, जहाँ पर किसी तरह की विषमता न हों और है तो उसका नाश हो जाए। जब ऐसा होगा, तभी श्रम की प्रतिष्ठा होगी और हरेक व्यक्ति उसके मूल्य को महसूस करेगा। मनुष्य की आवश्यकता जहाँ पर पूरी होती है, आवश्यकता की पूर्ति की ओर ही सब का प्रयास रहता है और सब की आवश्यकता को समझकर समाज यह कोशिश करता है कि किस तरह से समाज की आवश्यकता को पूरा किया जाए। लेकिन अभी तो यहाँ पर इसका कोई खयाल नहीं है और भीषण विषमता है। इस परिस्थिति को सामने रखते हुए ही हमने यह प्रस्ताव पेश किया कि कम-से-कम सौ रु. और ज्यादा-से-ज्यादा एक हजार रु. वेतन होना चाहिए और अगर यह चीज हो जाए, तो हम तो मानेंगे कि सरकार की ओर से एक बहुत बड़ा कदम उठाया गया है। अगर आप लोग इतना भी मानने के लिए तैयार न होंगे, तब आप लोग किस बलबूते पर यह कह सकते हैं कि आपका लक्ष्य समाजवाद है? यह बात केवल मेरी मानसिक कल्पना के आधार पर नहीं है, बल्कि दुनिया के दूसरे मुल्कों की स्थिति को देखकर मेरी यह कल्पना हुई है। जो देश पूँजीवादी हैं, वहाँ पर भी वेतन के क्षेंत्र में इतनी भीषण विषमता नहीं है। डेनमार्क, स्वीडन और स्केनडेनेविया आदि मुल्कों में भी ज्यादा-से-ज्यादा एक और तीन का अंतर इस क्षेत्र में है, दूसरे क्षेत्र में इन देशों में ज्यादा-से-ज्यादा एक और पाँच गुना का अंतर है। आपको युगोस्लावाकिया में ही, जहाँ के प्रेसीडेंट मार्शल टीटो का हार्दिक स्वागत यहाँ पर हुआ था, ज्यादा-से-ज्यादा एक और बारह गुणा का अंतर है। इंग्लैंड के वेतनभोगी क्षेत्र में भी ज्यादा-से-ज्यादा दस से पंद्रह गुणा का ही अंतर है।
दूसरे राज्यों में भी विषमता है, लेकिन हमारे राज्य से बहुत कम है। हमारा देश जो इतना गरीब देश है, वहाँ पर इतनी विषमता नहीं रहनी चाहिए। इसको मिटाने के लिए आपके अंदर बेचैनी होनी चाहिए, लेकिन आपके अंदर बेचैनी कहाँ है? और न इसको मिटाने के लिए आप प्रयास ही कर रहे हैं। अगर आप इसको मिटाने के लिए आतुर हो जाएँ तो जो आपकी गाड़ी धीरे-धीरे चल रही है, यह मिट जाएगी, लेकिन आपकी गाड़ी तो इसकी तरफ एकदम धीरे-धीेरे चल रही है। न तो आपने प्रथम पंचवर्षीय योजना में ही इसको मिटाने के लिए कोई प्रोग्राम रखा है और न द्वितीय पंचवर्षीय योजना में ही इसका कोई आभास मिलता है। तो आपने इस दस गुणे से बहुत ज्यादा के अंतर को मिटाने के लिए क्यों नहीं कोई प्रोग्राम तैयार किया? इस साल के बजट में इसके लिए कोई प्रोग्राम आपने तैयार नहीं किया है, जिससे विषमता घटे। समाजवादी ढाँचे को बनाना यह कोई हमारी माँग नहीं है, और न हमारी पार्टी की माँग है, बल्कि यह युग की माँग है, इसे आपको तत्पराता के साथ पूरा करना चाहिए था।ं अगर आप सचमुच में विषमता को दूर करना चाहते हैं और समता लाना चाहते हैं, तो एक हजार से अधिक और एक सौ से कम किसी का भी वेतन नहीं रहना चाहिए। इसकी तरफ आपको कदम उठाना चाहिए। इन्हीं चंद शब्दों के साथ मैं अपने प्रस्ताव को पेश करता हूँ और आशा करता हूँ कि समाजवादी ढाँचे को बनाने के लिए जो हमारा प्रस्ताव है, उसका एक-एक माननीय सदस्य समर्थन करेंगे।