(दिनांक: 12 दिसंबर, 1960)
विषय: चौकीदारों का वेतन
श्री कर्पूरी ठाकुर: क्या मुख्यमंत्री यह बताने की कृपा करेंगे कि (1) यह बात सही है कि बहुत जमाने से गाँवों के चैकीदार अपराधों और दंगे-फसाद को रोकने में सहायता करने के काम से लेकर जोखिम उठाने तथा गाँवों के संबंध में थाना को आवश्यक सूचना देने का काम करते रहे हैं? (2) क्या यह बात सही है कि अत्याधिक आवश्यक सेवा करनेवाले चैकीदारों का वेतनमान केवल 15 रुपए महीना हैं यदि हाँ, तो क्या इस महँगाई के जमाने में जो बहुत की कम है और वो भी उन्हें समय पर भी नहीं दिया जाता है। (3) क्या यह बात सही है कि सरकार चैकीदारी प्रथा उठाने के प्रश्न पर विचार कर रही है? (4) यदि उपर्युक्त खंडों के उत्तर स्वीकारात्मक हैं तो इसको कायम रखने और चैकीदारों का वेतन बढ़ोने के प्रश्न पर सरकार कौन सी कारवाई करना चाहती है?
श्री कृष्ण सिंह: (1) उत्तर स्वीकारात्मक है, (2) चैकीदारों को पहले ज्यादा-से-ज्यादा 6 रुपए वेतन मिलता था। दिनांक 1 अप्रैल, 1950 से उन्हें 10 रुपए प्रतिमाह वेतन दिया जा रहा है। इसके अतिरिक्त 7 रुपए प्रतिमाह अस्थायी जीवनयापन भत्ता दिया जा रहा है। इस प्रकार जहाँ पहले उन्हें 6 रुपए वेतन मिलता था, वहाँ अब 7 रुपए प्रतिमाह दिया जा रहा है।
चौकीदार अंशकालीन सरकारी कर्मचारी हैं। चैकीदार का काम करते हुए वे खेती, कुटीर उद्योग, मजदूरी आदि काम करते हैं। इन कामों के चलते उन्हें अपने गाँव में ही रहना पड़ता है। उन्हें प्रति दो वर्ष पर चैकीदार की वरदी दी जाती है और प्रति 3 वर्ष पर एक कंबल या ऊनी जर्सी सरकारी खर्च पर दी जाती है। चैकीदारों का वेतन साधारणतः समय पर ही भुगतान किया जाता है। सरकार द्वारा उनका हिस्सा उन्हें ठीक समय पर ही मिल जाता है। सरपंचों द्वारा कर-वसूली से जो अंश मिलता है, उसमें विलंब होने पर चैकीदार हस्तक के नियम 102-121 के अनुसार बकाया वसूल किया जाता है और चैकीदारों का वेतन भुगतान कर दिया जाता है। (3) ग्राम पंचायतों के वर्तमान स्वायत्त (Autonomous) रूप तथा देहातों में फैले हुए अपराधों को देखते हुए पुरानी चैकीदारी प्रथा को पुनर्गठित करने के विचार से सरकार इस समय एक योजना पर विचार कर रही है। इस योजना की वर्तमान रूपरेखा अभी विचाराधीन है। यद्यपि चैकीदारों का काम पहले जैसा ही रहेगा, किंतु उनका नाम बदलकर उप-दलपति कर दिया जाएगा। इस योजना को व्यवहारिकता की जाँच के लिए प्रयोगात्मक ढंग से इसे पहले चुने हुए कुछ ही क्षेत्रों में लागू किया जएगा। इस प्रकार चैकीदारी प्रथा को उठा देने का कोई प्रश्न नहीं है, बल्कि इसकी कार्य क्षमता को बढ़ाने के लिए इसे पुनः गठित कर ग्राम पंचायत से मिला देने का विचार है। (4) चैकीदारी प्रथा कायम रखने के संबंध में उत्तर के खंड (3) को ध्यान रखते हुए, यह प्रशन ही नहीं उठता। जहाँ तक चैकीदारों के वेतन बढ़ाने का प्रश्न है, तो उनके वेतनमान में 6 रुपए से 10 रुपए की जो वृद्धि की गई और इस वृद्धि के कारण जो विशेष खर्च होता है तथा अस्थायी जीवनयापन भत्ते के जो 7 रूपए दिए जाते हैं, वे दोनों राज्यकोष से ही दिए जाते हैं। चैकीदारों का वेतन और बढ़ाने का विचार अभी सरकार नहीं रखती है।