(दिनांक: 23 मार्च, 1961)
विषय: माननीय मंत्री श्री अंबिका सिंह द्वारा लाए गए प्रस्ताव ‘बिहार एप्रोप्रिएशन (नं. 2) बिल, 191’ पर वाद-विवाद के क्रम में।
श्री कर्पूरी ठाकुर: अध्यक्ष महोदय, जो एप्रोप्रिएशन बिल सरकार की ओर से सदन के सामने पेश किया गया है, उसका विरोध करने के लिए मैं खड़ा हुआ हूँ। इसके विरोध का कारण यह है कि सरकार को इस राज्य (स्टेट) में जो समृद्धि, खुशहाली, सुख और सुविधा पहुँचानी चाहिए, इस ओर सरकार को सफलता नहीं मिली है और ऐसी हालत में इस सरकार को कोई हक नहीं है कि इस एप्रोप्रिएशन बिल के जरिए लगभग 911 अरब रुपए की माँग कर उसे खर्च करे। समयाभाव के कारण सभी विभागों को भी नहीं ले सकता हूँ, लेकिन कुछ विभागों की खामियों को आपके जरिए सरकार के सामने रखना चाहता हूँ, जिसमें यह दिखलाने का प्रयास करूँगा कि सरकार के कारनामे और काररवाइयाँ ऐसी हुई हैं, जिनकी वजह से सरकार की नाकामयाबी हुई है और जिनके कारण इस माँग की कोई औचित्यता नहीं प्रतीत होती है कि सरकार एक साल के अंदर 911 अरब रुपए खर्च करके यहाँ के लोगों को आगे बढ़ाने में समर्थ हो सके। इसलिए सदन के समक्ष थोड़े में अपने विचार को प्रस्तुत करने की अनुमति चाहता हूँ। 11 बज गए हैं और इसलिए प्रशनोत्तर के बाद अब मैं अपना विचार सदन के सामने रखूँगा।
मैं आपसे कह रहा था कि आज अपने देश की क्या स्थिति है और प्रांत की जनता की क्या स्थिति है। इस अवसर पर तुलसीदासजी की कवितावली और विनय पत्रिका में लोक दशा का जो उन्होंने वर्णन किया है, उसका उद्धारण प्रस्तुत करने का लोभ सँवरण मैं नहीं कर सकता हूँ। तुलसीदासजी ने कहा है-
‘‘खेती न किसान को, भिखार को न भीख बलि,
बनिक को न बनिज, न चाकर को चाकरी।
जीविका विहीन लोग सीधमान साच बस,
कहैं एक एकन सों कहाँ जाई का करी।
बेद हूँ पुरान कहीं लोकहू बिलोकियत,
साकरे समैं पै राम रावरे कृपा करी।
दारिद दसानन दबाई दूनी, दीनबंधु,
दुरित दहन देखि तुलसी हहा करी।’’
जैसे उस समय देश की दशा को देखकर तुलसीदासजी के हृृदय में हाहाकार मचा हुआ था, विकलता थी, बेचैनी थी, उसी तरह जितने विचारशील व्यक्ति आज हैं, जिनको देश की चिंता है, सचमुच उनके हृदय में भी आज आँधी है, तूफान है और शासक वर्ग को इस जिम्मेदारी से वंचित नहीं किया जा सकता है। जिस तरह तुलसीदास जी ने कहा है-
‘‘नृप पाप परायन धर्म नहीं। करि दंड विडंब प्रजा नितहीं।’’
अर्थात् राजा में प्रजा के प्रति धर्म का खयाल होना चाहिए। राजा को प्रजा के प्रति अपने धर्म का पालन करना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं करके वह प्रजा को दंड देकर अपने वश में रखता है। उनके लिए आगे चलकर तुलसी दासजी कहते हैं-
‘‘राज करत बिनु काज ही, करें कुचालि कुसाज।
तुलसी ते दसकंध ज्यों, जद्दहैं बारह बाट।।’’
हम समझते हैं कि कांग्रेस सरकार आज प्रांतों को जिस ढंग से चला रही है और प्रांत में जो आज स्थिति है, अगर कायम रही, उसमें जल्द-से-जल्द अगर सुधार नहीं किया गया, तो कोई ताकत नहीं है, जो इस सरकार को कायम रख सके।
मैं सबसे पहले कृषि विभाग के संबंध में दो शब्द कहना चाहता हूँ। कृषि विभाग में करोड़ों रुपए पहले से ज्यादा आज खर्च हो रहे हैं। प्रथम पंचवर्षीय योजना में 10 करोड़ रुपए खर्च किए गए और द्वितीय पंचवर्षीय योजना में 13.6 करोड़ खर्च किए गए। दोनों योजनाओं को मिलाकर 23.6 करोड़ रुपए सिर्फ कृषि विभाग में खर्च किए गए। अगर 1946-47 ई. से जब से कांग्रेस राज्य इस प्रांत में कायम हुआ और जितना रुपया कृषि में खर्च किया गया है, वह सब इसके साथ मिला दें तो 28-30 करोड़ रुपए होते हैं। इतने रुपए बिहार सरकार द्वारा 1946 ई. से लेकर आज तक कृषि विभाग में खर्च हुए। लेकिन इसका परिणाम बहुत ही असंतोषजनक हुआ। मैं कुछ आँकड़े उद्धृत करना चाहता हूँ। मैं सरकार के विभागों में जाकर पता लगाने का प्रयास किया है। क्राॅप सर्वे की जो 1911-12 ई. की रिपोर्ट है, उसमें दिया हुआ है बिहार में विंटर राइस का उत्पादन (प्रोडक्शन) 66,36,358 टन हुआ। यह याद रखने की बात है, उस समय बिहार और उड़ीसा एक साथ थे।
इसलिए मैंने उड़ीसा के पाँच जिलों को छाँट दिया है। 1911-12 ई. में बिहार का जाड़े का फसल (विंटर क्रौप) 66,36,358 टन था और जब 1959-60 ई. में 36-42,078 टन है, यानी लगभग 40 फीसदी की कमी हुई। आपके डिपार्टमेंट और बिहार एंड उड़ीसा क्रौप सर्वे रिपोर्ट से मैंने यह आँकड़ा (फिगर) लिया है।
श्री अंबिका सिंह: हुजूर, मेरा एक निवेदन है, हम उनके ज्ञान से लाभान्वित होना चाहते हैं। जैसाकि अभी इन्होंने 1911-12 ई. और 1959-60 ई. का फिगर कोट किया, वह ठीक ही होगा।
श्री कर्पूरी ठाकुर: मेरे पास बिहार स्टैटिसिटकल हैंडबुक है। यहाँ की लाइब्रेरी से हर साल का फिगर ले सकते हैं और हर साल के फिगर को देखने के बाद मैं दावे के साथ कहता हूँ कि जब से बिहार में कांग्रेस राज्य बना है, जैसाकि 1911-12 ई. में विंटर क्रौप का प्रोडक्शन यहाँ कभी नहीं हुआ। 1953-54 ई. में पीक प्रोडक्शन हुआ है और उस साल 45 या 46 लाख टन उत्पादन अनाज का हुआ था। पहले बिहार में काफी अनाज का उत्पादन हुआ करता था; लेकिन आज 28 से 30 करोड़ रुपये कृषि विभाग पर खर्च करने पर भी अनाज के उत्पादन में कमी हुई है, कोई वृद्धि नहीं हुई है। 1911-12 ई. में औटम राइस का प्रोडक्शन 10,19,941 टन था; लेकिन 1959-60 ई. में औटम सराइस का प्रोडक्शन 1,81,701 टन है। इसी तरह से गेहूँ का उत्पादन 1911-12 ई. में 5,56,047 टन था, लेकिन 1959-60 ई. में 3,48,879 टन है। मकई का उत्पादन पहले से कुछ बढ़ा है और 1911-12 ई. में जहाँ 5,48,201 टन था, वहाँ 1959-60 ई. में 2,39,551 टन आ गया है। इस तरह से देखने से मालूम होगा कि धान, गेहूँ, चना आदि के उत्पादन में कोई वृद्धि न होकर कमी हुई है, यद्यपि उत्पादन बढ़ाने के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। यू.एन.ओ. का एक पदाधिकारी (आॅफिसियल), जिन्होंने भारत का भ्रमण किया था और छानबीन करके लंदन ‘स्टेट्समैन ऐंड इन्फाॅरमेषन’ अखबार में एक लेख लिखा है कि 1890 ई. साल से 1945 ई. साल तक हिंदुस्तान में प्रति व्यक्ति अनाज की खपत में कमी हुई है। पहले जहाँ पर प्रति व्यक्ति पर 600 पौंड अन्न की खपत थी, वह 1945 ई. में घटकर 400 पौंड प्रति व्यक्ति पर आ गया है। योजना बनी और करोड़ों रुपए खर्च करने पर भी अनाज के उत्पादन में कोई वृद्धि न हुई है। उसने अपने लेख में यह लिखा है कि-
"Indian production of food-grains stagnated, or declined slightly, from 1890 to 1945; the annual quantity available per capita thus fell from 600 to 400 pounds. At the end of 1958, with 400 million inhabitants, there was an average of 410 pounds available at the end of a good year, as against scarcity 400 pounds for three previous years. In 1958, China had 800 pounds, twice as much per capita (on the assumption that the corrected figures of 26th August, 1959, were reliable)."
श्री अंबिका सिंह: क्या उसने बिहार के बारे में ऐसा लिखा है?
श्री कर्पूरी ठाकुर: संपूर्ण भारत के लिए (इंडिया ऐज ए होल) लिखा है, लेकिन बिहार की हालत सारे हिंदुस्तान से और खराब है। आप प्रथम पंचवर्षीय योजना (फस्र्ट फाइव-इयर प्लान) ‘रिव्यू’ को उठाकर देखें तो मालूम होगा कि सारे हिंदुस्तान से बिहार की उपज 13 फीसदी कम है। जहाँ सारे हिंदुस्तान का प्रति व्यक्ति अनाज की खपत 400 पौंड थी, वहाँ पर बिहार में प्रति व्यक्ति आनाज की खपत और कम होगी, इसमें कोई संदेह नहीं है। मैं अपनी सरकार से यह जानना चाहता हूँ कि बिहार सरकार ने जो करोड़ों रुपया खर्च करके और विकास की और सिंचाई की योजना बनाकर, जो डाइरेक्टर और डिप्टी डाइरेक्टर का पद बढ़ाया, उससे कृषि को क्या फायदा पहुँचा है? मैं यह नहीं कहता हूँ कि कृषि विभाग के सभी अफसर अयोग्य हैं। हमारे मंत्री, उप-मंत्री योग्य व्यक्ति हैं, लेकिन फिर भी सरकार बतलाए कि क्या कारण है कि बिहार में अनाज का उत्पादन दिनोदिन घटता गया है और यहाँ के लोगों की हालत बिगड़ती गई है? मेरे जानते एकमात्र यही कारण हो सकता है कि यहाँ पर सिंचाई की समुचित व्यवस्था नहीं है। मैंने देहात में जाकर किसानों से पूछा है और उनका यही कहना है कि पानी की व्यवस्था हो जाने से यहाँ के किसान डेढ़ गुनी और दुगुनी अनाज के उत्पादन में वृद्धि कर सकते हैं। उस दिन हमारे कृषि मंत्री श्री वीरचंद्र पटेल ने मुझे चुनौती दी थी कि 1949-50 ई. में बिहार में जितनी जमीन में सिंचाई होती थी, उसमें आज बढ़ोतरी हुई है, कोई कमी नहीं हुई है। मैंने यह कहा था कि कमी हुई है और आज मेरे पास भारत सरकार द्वारा छपी हुई स्टेस्टिकल एबस्टेªक्ट आॅफ ब्रिटिश इंडिया 1930-40 ई. में 52 लाख एकड़ जमीन से सिंचाई होती थी, लेकिन आज उसमें कमी हुई है। इसका आँकड़ा इस प्रकार है-
सरकारी कैनल से | 7,30,000 एकड़। |
प्रोइवेट कैनल से | 9,16,000 एकड़। |
टैक्स से | 14,10,000 एकड़। |
वेल्स से | 5,55,000 एकड़। |
दूसरे सोर्सेंज से 16,32,000 एकड़ में और कुल मिलाकर सारे बिहार में 52,21,000 एकड़ में सिंचाई होती थी। 1941-42 ई. में 53,33,000 एकड़ में सिंचाई होती थी। इधर सिंचाई्र में बिहार में कमी हुई है और 1959-60 ई. में 44,64,067 एकड़ जमीन में सिंचाई हुई है। इतना खर्च होने पर भी, मेजर स्कीम, मेडियम स्कीम और माइनर स्कीम पर 49 या 50 करोड़ एकड़ जमीन में भी सिंचाई नहीं हुई है। पहले 1 करोड़ और 75 लाख रुपये खर्च कर देने से सिंचाई में कुछ-न-कुछ वृद्धि हो जाती थी, लेकिन इतना खर्च करने पर भी कोई वृद्धि न होकर ह्रास ही हुआ है। अनाज के उत्पादन में वृद्धि न होगी तो यहाँ के लोग भूखे और नंगे रहेंगे और आप उनको खाना और वस्त्र देने में असमर्थ रहेंगे। कांग्रेस सरकार के करोड़ों रुपए खर्च करने पर आज बिहार की यह हालत है।
अब मैं को-आॅपरेटिव विभाग पर आता हूँै। सारे हिंदुस्तान में इसकी हालत और गई गुजरी है। भारत सरकार की ओरे से जो पुस्तिका प्रकाशित हुई है, उसकी लेटेस्ट पुस्तिको को देखने से यह पता चलता है कि भारत में आंध्र प्रदेश, बंबई, मद्रास, मैसूर, पंजाब, यू.पी., वेस्ट बंगाल में बिहार को पोजीशन एक आंध्र को छोड़कर सबसे नीचे है।
अब को-आॅपरेटिव सोसाइटीज के मेंबरों की संख्या (नवंबंर) एक हजार की आबादी पर क्या है, बिहार में, उसको आप देखें! मणिपुर, राजस्थान और अंडमान कैसे प्रांत है, उनको आप जानते हैं। मेरा कहना है कि बिहार का दर्जा मणिपुर तथा अंडमान और राजस्थान को छोड़कर सबसे नीचे है। पोपुलेशन का Average working capital in rupees per head मणिपुर को छोड़कर बिहार का सबसे नीचे है। बिहार का वर्किंग कैपिटल 3.69 फीसदी प्रति व्यक्ति (पर हेड) है। हमारे कहने का मतलब है कि बिहार का सहकारिता आंदोलन (को-आॅपरेटिव मूवमेंट) सबसे पीछे है। अब सड़क के संबंध में बिहार का क्या स्थान है, इसको आप देखें। 1956 ई. में रोड माइलेज Per million population का हिंदुस्तान में है 312 और बिहार में है 122, 1961 ई. में हिंदुस्तान का है 445 और बिहार का 1635 रोड माइलेज per thousand sq. mile के हिसाब से 1956 में हिंदुस्तान का आँकड़ा है 94.5; तो मेरा कहना है कि चाहे सिंचाई के मामले हों, चाहे को-आॅपरेटिव के मामले हों, चाहे रोड के मामले हों, बिहार का स्थान सबसे नीचे है। तो मेरा पूछना है कि बिहार का स्थान किस चीज में आगे है, जिस पर हम गर्व कर सकते हैं? सरकार भले ही इस पर गर्व कर ले, पर हम इस पर गर्व करने के लिए तैयार नहीं हैं। यहाँ का प्रशासन इस ढंग से चल रहा है, पर आप इसमें सुधार करने के लिए तैयार नहीं हैं। आप जानते हैं कि प्रशासन में इनएफिसिएंसी है, क्रप्शन है, फिर भी आप सुधार लाने के लिए तैयार नहीं हैं।
श्री भोला पासवान: अध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्य ने सड़क का फिगर देते हुए यह कहा है कि हिंदुस्तान में इतना और बिहार में इतना। तो हम पूछना चाहते हैं कि क्या बिहार का आँकड़ा उसमें इनक्लूड कर दिया है, या एक्सक्लूड कर दिया है? दूसरी बात यह है, अगर माननीय सदस्य को तुलना (कंपेरिजन) ही करना था तो दूसरे प्रांत से करते, लेकिन बिहार में इतना और हिंदुस्तान में इतना, कहना ठीक नहीं है, क्योंकि कि बिहार भी हिंदुस्तान के अंदर ही है।
कर्पूरी ठाकुर: जब माननीय मंत्री महोदय, स्पष्ट (क्लियर) नहीं है, तो हम क्या करें? यह जो फिगर मैंने दिया है, यह योजना आयोग द्वारा दिया हुआ आँकड़ा है। जब मैं बिहार के बारे में कहूँगा तो औसत आँकड़ा जो होगा, वही रखूँगा और उसमें बिहार का क्या स्थान है, वह कहूँगा।
श्री कर्पूरी ठाकुर: मेरे कथन से यह स्पष्ट है कि बिहार का road mileage per million population फीगर 122 था 1956 ई. और 1961 ई. तक वह हुआ 163। मैंने कहा कि अगर आप सारे हिंदुस्तान पर नजर डालें तो देखेंगे कि जहाँ कुल हिंदुस्तान का फीगर 1956 ई. में 312 था, वहाँ आज यह 445 है और बिहार प्रांत का 163 है। अब अगर माननीय मंत्री ने मेरे कथन को समझने का कष्ट नहीं किया तो इसमें मेरा क्या दोष है? इसी तरह 1956 ई. में road mileage per thousand sq. mile का आँकड़ा है 70.7 और 1961 ई. में 94.51। अब अगर पूरे हिंदुस्तान का फीगर देखें तो 1956 ई. में 104 है और 148 है 1961 में। मैं और भी प्रांत का फीगर देने को तैयार हूँ, लेकिन बार-बार समय का ध्यान दिलाया जाता है, इसलिए मैं सदन का अधिक समय लेना नहीं चाहता।