(दिनांक: 2 अप्रैल, 1962)


विषय: महामहिम राज्यपाल महोदय के दिनांक 16.03.1962 ई. के अभिभाषण के पश्चात् श्री मिथिलेश्वर सिंह द्वारा धन्यवाद प्रस्ताव पेश किए जाने पर।

श्री कर्पूरी ठाकुर: अध्यक्ष महोदय, महामहिम राज्यपाल का जो अभिभाषण इस वर्ष हुआ, उसमें हम आशा करते थे कि नीति निर्देश का और कार्यक्रम का कुछ ऐसा उल्लेख रहेगा, जिसको पढ़कर बिहार की जनता के अरमान जागेंगे, हमारा मंतव्य ज्योतिर्मय होगा। जनता में जो निराशा और जो उदासीनता व्याप्त है, वह समाप्त हो जाएगी। हमारी राष्ट्रीय एकता का जीवन मूर्तिमान हो उठेगा। हम आर्थिक और सामाजिक दिशा में अग्रसर होते हुए असमानता की पुरानी चट्टानों को तोड़ गिराएँगे और यहाँ की जनता आशा और सफलता से तरंगित होकर, प्रेरणा पाकर समाज को समाजवादी साँचे में ढालने की ओर तेजी से बढ़ सकेगी। लेकिन बड़े दुःख के साथ कहना पड़ता है कि राज्यपाल के अभिभाषण में हमें ऐसे कार्यक्रम का और ऐसी नीतियों का उल्लेख नहीं मिला, बहुत गौर से पढ़ने पर भी, जिससे हमारे और बिहार के पौने पाँच करोड़ लोगों का अभीष्ट सिद्ध हो सके।

सबसे पहले अध्यक्ष महोदय, मैं तृतीय महानिर्वाचन के संबंध में आपके माध्यम से सदन की सेवा में निवेदन करना चाहता हूँ। मैं यह मानता हूँ कि हमारे देश में आम जनतांत्रिक पद्धति काम करती है, सारी दुनिया के लोग इससे सहमत है कि एशिया देशों में, अगल-बगल के देशों में आज जनतंत्र धराशायी हो रहा है। जहाँ संसार के बहुतेरे देशों में तानाशाही शासन, सैनिक शासन और दूसरे अधिनायकवाद का द्वैत हो रहा है, संसार के जनतंत्र के चिंतनशील व्यक्ति, संसार के जनतंत्र सेवी बहुत चिंतित हैं, वहाँ हिंदुस्तान में जनतंत्र का झंडा लहरा रहा है, यह हमारे लिए और दूसरे लोगों के लिए हर्ष का विषय है। लेकिन तृतीय महानिर्वाचन के अवसर पर, इस वर्ष जो कुछ भी हमारे कटु अनुभव हुए है, उनको याद करके केवल मैं चिंतित हूँ, यही नहीं, बल्कि जितने भी विचारक लोगों से बात होती है, वहाँ चर्चा होती है, वे सब भी चिंतित हैं। इस तृतीय महानिर्वाचन में सारे देश की बात मैं नहीं जानता हूँ, लेकिन जितने बड़े पैमाने पर पैसे ने प्रभाव डाला है, जितने बड़े पैमाने पर जातीयता ने इस निर्वाचन को प्रभावित किया है, जितने बड़े पैमाने पर लाठी का प्रयोग हुआ है, उससे ऐसा लगता है कि भले महा निर्वाचन हुआ और आगे भी होगा, लेकिन जनतंत्र समाप्त हो जाएगा। बिना पैसे के, बिना द्रव्य के आजकल चुनाव नहीं चल सकते, इससे सभी सहमत होंगे। लेकिन सीमित धनराशि के आधार पर अतुल धनराशि महानिर्वाचन में सफलता के लिए लगाना, बड़े पैमाने पर पैसे का दुरूपयोग, जनतंत्र की सफलता का कोई रूप हो सकता है, पर उससे ऐसा लगता है कि गरीब कार्यकर्ता शायद ही इस चुनाव में खड़े होने की हिम्मत करें। इससे जनतंत्र नहीं चलेगा, बल्कि धनतंत्र, मुझे ऐसा लग रहा है। उसी तरह हमने देखा कि जातिवाद का जो उपयोग हो रहा है और वेदों में, पुराणों में, शास्त्रों में, गीता और रामायण में हमने भी पढ़ा और आपने ने भी पढ़ा और सीखा है, उनमें सत्य नाम परमेश्वर है, न्याय नाम परेमेश्वर है, लेकिन तृतीय महानिर्वाचन में सत्य नाम परमेश्वर नहीं, न्याय नाम परमेश्वर नहीं, बल्कि जाति नाम परमेश्वर का मंत्रोच्चारण हुआ है और इसका प्रयोग इतने बड़े पैमाने पर हुआ है कि आज सोचने को आबद्ध हैं कि क्या होगा हमारे जनतंत्र का, क्यो होगा हमारे देश का? और ऐसा लगता है कि जातिवाद का यही सिलसिला जारी रहा तो जनतंत्र नहीं रहेगा, जातितंत्र चलेगा। इसी तरह लाठियों के प्रयोग हुए हैं। बहुत से मतदाता आर्थिक दृष्टि से, सामाजिक दृष्टि से पिछड़े हुए हैं, गरीब हैं, शोषित हैं, दुःखी हैं उन्हें मत देने का अधिकार हैय लेकिन आर्थिक जनतंत्र की स्थापना अभी नहीं हुई है, देष में सभी आर्थिक दृष्टि से संपन्न नहीं हैं, वे बहुत दुर्बल हैं, वे बहुत कमजोर हैं, इसलिए बहुत सारे क्षेत्रों में लाठीवाले उनके घर पर बैठा दिए गए। उन लोगों को कहा गया, मतदान केन्द्र पर न जाओ, आपका वोट मिल गया और इतना ही नहीं, कहीं गरीबों ने कोशिश की वोट देने की या पोलिंग बूथ पर जाने की या पोलिंग एजेंट के काम करने की तो उनको पीटा गया है, उनकी साइकिल छीन ली गई है’’’

अध्यक्ष: मैं स्पष्ट रूप से जानना चाहता हूँ कि ऐसी काररवाइयाँ हुई, वे सरकार के लिए की गईं या अपने लिए लोगों ने किया?

श्री कर्पूरी ठाकुर: सरकार को इस बात की सूचना दी गई, लेकिन सरकार की ओर से कोई कार्रवाई नहीं हुई, उम्मीदवारों ने सूचना दी, पोलिंग एजेंटों ने सूचना दी कि यह जो धाँधली होनेवाला है, उसको रोक दिया जाए, उसको बंद कर दिया जाए, लेकिन सरकार की ओर से कोई कार्रवाई नहीं हुई; इसलिए मैं जानबूझकर इस बात की चर्चा कर रहा हूँ। मुझे ऐसा लग रहा है कि लाठी का प्रयोग जिस तरह हो रहा है, जिस तरह आज जबरदस्ती हो रही है निर्वाचन में, जनतंत्र नहीं चलेगा, लाठीतंत्र चलेगा, और जनतंत्र न चले, धनतंत्र चले, लाठीतंत्र चले तो जनतंत्र की लाश निकलने वाली है और इसलिए अध्यक्ष महोदय, मैं आपके माध्यम से इस सदन की सेवा में यह निवेदन करना चाहता हूँ कि इसका हल निकालने के लिए बहुत गंभीरता पूर्वक सोचना है, बहुत गंभीरता से सोचना है कि किस तरह जनतंत्र को परिपुष्ट करें।

अध्यक्ष: मैं यह भी जानना चाहता हूँ कि जातिवाद के कारण हमारे यहाँ जो सामाजिक बुराइयाँ थीं, वे तो बहुत कुछ दूर हो गई हैं, अब राजनैतिक बुराइयाँ आई हैं, इसका समाधान कैसे हो, इस बात पर भी प्रकाश डालें।

श्री कर्पूरी ठाकुर: आपने बहुत ठीक ही कहा है कि सामाजिक बुराइयों को दूर कर सकें तो फिर जातिवाद के चलते जो राजनैतिक बुराइयाँ पैदा हो गई है उनको दूर कर सकें, इस प्रश्न पर गंभीरतापूर्वक विचार होना चाहिए। मैं तो यह निवेदन करना चाहूँगा कि चार-पाँच प्रकार के उपायों को काम में लाने की जरूरत हैे। सबसे पहला उपाय यह है कि जिस समय हमारे यहाँ किसी हिंदू जाति में जन्म होता है तो जाति का नाम लिखाया जाता है, थाने में जाकर रिपोर्ट दी जाती है, ग्राम पंचायत में जाति के बारे में लिखवाया जाता है तो सोचना पड़ेगा कि इसको हम बंद करें या नहीं! जब स्कूल में, काॅलेज में विद्यार्थी नाम लिखाने जाते हैं तो जाति का नाम लिखाया जाता है तो सोंचना पड़ेगा कि जाति का नाम लिखाना चाहिए या नहीं! जब हमारे यहाँ सेंसस होता है तो जाति का नाम लिखाया जाता है तो सोचना पड़ेगा कि जाति का नाम लिखाया जाए या नहीं! नौकरी के लिए आवेदन-पत्र देना होता है, उसमें जाति का नाम लिखा जाता है तो सोचना पड़ेगा कि जाति का नाम लिखाया जाए या नहीं! मैं तो मानता हूँ कि यह जो आज जाति है, यह बीमा कंपनी की तरह है, पर उस बड़े बीमा कंपनी का आधार जाति वाद है, इसका उल्लेख मिलता है, उसकी चर्चा होती है। शादी-विवाह में इसका नग्न रूप देखने को मिलता है, तिलक दहेज में उसका नग्न रूप देखने को मिलता है, तो हमें सोचना पड़ेगा कि संविधान के अनुसार हम ऐसा कानून बना सकते हैं या नहीं कि सरकारी नौकरी में जो लोग जाते हैं, अंतर्जातीय विवाह करना पड़ेगा। ऐसे एक-दो सुझाव नहीं हैं, बहुत गंभीरतापूर्वक विचार कर बहुत सारे सुझावों को अमल में लाकर जातिवाद को दूर कर सकते हैं। हमारा कहना है कि हम लोग वोट चाहते हैं तो वोटर्स इतने ईमानदार बन जाएँगे कि चार-पाँच साल के अंदर कि जातिवाद का प्रयोग नहीं करेंगे, पार्लियामेंट में जाने के लिए, असंेबली में जाने के लिए इसका प्रयोग नहीं करेंगे तो हो सकता है। वोट लेकर असेंबली में, पार्लियामेंट में आते हैं, मिनिस्ट्री में आते हैं, जिसमें जातिवाद का शोषण करें; लेकिन बुनियादी तौर पर कैसे जातिवाद पर प्रहार किया जाए, इसे निर्मूल करने की दिशा में सोचने की जरूरत हेै। मैं तो यह भी सुझाव देना चाहूँगा कि सरकार इसके लिए अच्छे-अच्छे लोगों को लेकर, अध्ययनशील लोगों को लेकर राष्ट्रीय जीवन को ओत-प्रोत करनेवाले हैं, जो लोग सचमुच में राष्ट्रीय एकता चाहते हैं, जो भावनात्मक एकता चाहते हैं, जो लोग नेशनल इंटिगरेशन चाहते हैं, ऐसे लोगों को लेकर सरकार एक कमेटी बनाए और उससे सुझाव माँगे कि किस तरह से हम मूल रूप में जातिवाद पर प्रहार कर सकते हैं और अपने समाज को राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत कर सकते हैं।

अध्यक्ष महोदय, हम देखते हैं कि तीसरे महानिर्वाचन में और कुछ 1957 ई. में देखा था, जिसे शायद आप भी भूले नहीं होंगे। 1957 के चुनाव के बाद मैंने सदन में बोलते हुए कहा था कि मुजफ्फरपुर चुनाव में जब श्री महेश प्रसाद सिंह की पराजय हुई तो मुजफ्फरपुर में नारा लगाया गया था-

भगवान् तेरे राज्य में भूमिहार जा रहा है,
युवराज के वियोग में महाराज जा रहा है।

इसी प्रकार जब माननीय सदस्य श्री कृष्ण बल्लभ सहाय की पराजय 1957 ई. में हुई थी तो पटना शहर में उनका जनाजा निकाला गया था और यह नारा लगाया गया था कि-

सहाय का जनाजा जरा धूम से निकले,
कदमकुआँ की गलियों को जरा चूम के निकले।

इस बार जब सकरा से चुनाव का फल प्रकाशित हुआ और श्री महेश प्रसाद सिंह की विजय हुई तो मुजफ्फरपुर में यह नारा लगाया गया-

टाउन का बदला, सकरा से,
1957 का बदला, 1962 से,
कायस्थ का बदला, कोइरी से।
यह बारात कहाँ जा रही है,
मंजे लाल के दरवाजे पर।

जब नेता के चुनाव में श्री विनोदानंद झा की जीत हुई तो मुजफ्फरपुर में नारा लगाया गया-

भूमिहार राज्य नहीं चलेगा, नहीं चलेगा।
वीर विनोदा जिंदाबाद, बीर सत्येंद्र जिंदाबाद।

यह बारात कहाँ जा रही है? महेश बाबू के दरवाजे पर।

मैं आपसे पूछना चाहता हूँ, यह क्या हो रहा है? यही सिलसिला चला तो मैं जानना चाहता हूँ कि क्या बिहार बचने वाला है? श्री कमलनाथ झा ने बड़े जोर और जोश के साथ जनतंत्र का नाम लिया है और उस दिन बजट पर भी भाषण देते हुए जनतंत्र का नाम लिया था। मैं कहना चाहता हूँ कि यह तो जनतंत्र के मूल पर कुठाराघात है। ग्राम पंचायत, जिला परिषद् का चुनाव हो प्रखंड विकास समिति का निर्माण हो, तीसरा निर्वाचन हो, उसमें बिहार में जो कुछ हो रहा है, सारे देश में कम या अधिक वही हो रहा है। दक्षिण भारत में डी.एम.के. का सांप्रदायिक संगठन हो रहा है। बिहार में जातिवाद का जो नंगा नाच चल रहा है, अगर यही सिलसिला चलता रहा तो हम लोग मिट जाएँगे, जनतंत्र की जड़ मिट जाएगी, फिर हिंदुस्तान में जनतंत्र नहीं रहेगा। हिंदुस्तान में कोई सैनिक शासक आएगा। हम और आप इस बात के लिए चिंतित हैं कि बिहार और भारत में वह दिन देखने को न मिले। इसलिए आज बहुत ईमानदारी के साथ गंभीरता के साथ सोच-विचारकर एक रास्ता निकलने की जरूरत है कि हमारा राष्ट्र जो क्षत-विक्षत हो रहा है, उसे कैसे बचाया जाय? हमारे यहाँ जो गरीब हैं और वर्षों तक रहनेवाले हैं, उनको भी स्वतंत्रता रहे। वे भी आजादी के साथ जिस उम्मीदवार को चाहें, वोट दे सकें।

अध्यक्ष महोदय, बिहार की प्रगति के बारे में कहा गया है कि बिहार बड़ी तेजी के साथ प्रगति कर रहा है। महामहिम राज्यपाल के अभिभाषण पर झाजी ने यह बताया है कि बिहार में तेजी के साथ प्रगति हो रही है। मैं कहना चाहूँगा कि तथ्य ठीक इसके विपरीत है। आँकड़े इसके विपरीत बताते हैं। मैं आपके सामने कुछ तथ्य रखना चाहता हूँ। श्री कमलनाथ झा ने अभी कहा है कि बिहार में चाहे हैवी इंडस्टीज हों, चाहे स्माॅल-स्केल इंडस्ट्रीज हों, हमारा बिहार और सारा देश बहुत ही प्रगति कर रहा है। मैं माननीय सदस्य श्री झाजी को बताना चाहता हूँ कि आँकड़े इसके विपरीत हैं।