(दिनांक: 3 सितंबर, 1962)


विषय: राजर्षि पुरूषोत्तम दास टंडन, डाॅ. विधान चंद्र राय तथा मौलाना हफीजुर्ररहमान, एम.पी. की मृत्यु पर शोक-संवेदना व्यक्त करने के क्रम में।

श्री कर्पूरी ठाकुर: माननीय अध्यक्ष महोदय, आपने और सभा-नेता ने स्वर्गीय राजर्षि टंडनजी के बारे में जो कुछ भी व्यक्त किया, उन बातों से मैं भी सहमत हूँ। जहाँ तक टंडन जी का सवाल है, यह निर्विवाद है कि वे स्वतंत्रता संग्राम के बहुत बड़े महारथी थे। दुर्भाग्यवश, हमारे महारथी एक-एक कर उठते जा रहे हैं। विगत 15 वर्षों के अंदर हमारे सैकड़ों सेनानी (स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी) इस संसार से उठ गए। गांधीजी चले गए, पंतजी चले गए, आचार्य नरेंद्र देव चले गए और यहाँ बिहार के हमारे श्री बाबू और अनुग्रह बाबू चले गए। टंडनजी का निधन समस्त भारतवर्ष के लिए एक दर्दनाक घटना है, यह कहना व्यर्थ नहीं होगा। वे सेवा के, अपनी विचारधारा के, निर्भीकता के और उदारता के स्वरूप थे। उनके जीवन की यह विशेषता थी कि उनकी प्रतिभा केवल राजनैतिक क्षेत्र में नहीं रही, बल्कि सामाजिक क्षेत्र में भी उन्होंने अपना कमाल दिखाया।

वे ‘हिंदी राष्ट्रभाषा हो’, इसके लिए हिंदी की बहुत बड़ी सेवा की। हिंदी राष्ट्रभाषा के पक्के पुजारी थे वे। ‘हिंदी राष्ट्रभाषा हो’ इसके लिए वे बराबर सतर्क रहते थे। हिंदी को, राष्ट्रभाषा के स्थान पर आसीन किया जाए, इसके लिए टंडनजी ने बहुत प्रयत्न किया। इसके लिए शायद ही किसी दूसरे नेता ने ऐसा प्रयत्न किया होगा। सेवा के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों मेेें हमें उनकी प्रतिभा मालूम होती है। सभी क्षेत्रों में उनका प्रवेश था। अनेकानेक शिक्षण संस्थाओं में और सामाजिक संस्थाओं में उनका हाथ रहता था। किसी भी क्षेत्र में बड़ी सच्चाई से और बड़ी लगन से उन्होंने काम किया। ऐसे नेता को खोकर, हमारा देश लुट गया। उनकी शांति के लिए, उनकी आत्मा की शांति के लिए उनके परिवार को, शोक-संतप्त परिवार को, इस दुःख को सहन करने की शक्ति मिले, इसके लिए मैें ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ।

हमारे दूसरे नेता, जिनका सुयश केवल भारत में ही नहीं, बल्कि संसार के भिन्न-भिन्न भागों में फैला हुआ था, विधान बाबू के निधन से न केवल राजनीतिक क्षेत्र के लिए, बल्कि चिकित्सा जगत् के लिए भी बहुत बड़ी घटना है। वे संसार के यशस्वी चिकित्सकों में एक थे। उनकी प्रतिभा बहुमुखी थी। जहाँ उन्होंने चिकित्सा के क्षेत्र में अपना एक स्थान बना लिया था, वहाँ हमने देखा कि राजनीति के क्षेत्र में भी उनका स्थान उतना ही ऊँचा था। सन् 1920-21 ई. से लेकर मृत्युपर्यंत वे राजनीति में न केवल दिलचस्पी ही लेते रहे, बल्कि राजनीति को सँवारते भी रहे। हम उन्हें स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी के रूप में जानते हैं। साथ-ही-साथ वे एक सफल शासक भी थे।

सभा-नेता ने कहा है कि बंगाल की पेचीदगी को देखते हुए, उनकी समस्याओं को देखते हुए यदि विधान बाबू के जैसा कुशल राजनीतिज्ञ वहाँ नहीं होता तो आज कहा नहीं जा सकता कि बंगाल की क्या स्थिति होती! ऐसे महान् नेता, चिकित्सक और शासक को खोकर, सचमुच आज हमारा देश दीन हो गया है। मैं इस दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करता हूँ।

अध्यक्ष महोदय, हमारे दूसरे नेता राष्ट्रीयता के कट्टर पुजारी थे। जिन्होंने सांप्रदायिकता की लहर के समय में, जब देश में सांप्रदायिकता का समुद्र लहरा रहा था, उस समय भी राष्ट्रीयता का टापू बनकर राष्ट्रीयता की पूजा की। आज उनके निधन से हमारी राष्ट्रीयता निर्बल हो गई है। हम उन्हीें को अपने सिद्धांत का पुजारी कहते हैं, जो कठिनाई के समय में भी, जंग के समय भी अपने सिद्धांत पर अटल रहते हैं। चाहे लाखों परेशानियाँ हों, लाखों गोलियाँ बरसती रहे, परंतु जो अपने सिद्धांत के झंडे को लेकर आगे बढ़ता रहे और अपने मार्ग पर अग्रसर होता रहे, उसी को हम सिद्धांत का पुजारी कहते हैं। ऐसे व्यक्ति के लिए प्रत्येक आदमी के हृदय में आदर का भाव उत्पन्न हो जाता है। मौलाना हफीजुर्र रहमान साहब ऐसे ही व्यक्ति थे। वे अपने प्रभावशाली भाषण से हजारों लोगों को प्रभावित करते थे। उनकी सेवाएँ अमूल्य रही है। वे किसी समय भी राष्ट्रीयता से नहीं हटे हैं। हम ऐसे यशस्वी नेता के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और ईश्वर से दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं।