(दिनांक: 4 सितंबर, 1962)
विषय: आचार्य शिवपूजन सहाय तथा विधान-परिषद् के सदस्य श्री कामता प्रसाद सिंह ‘काम’ के निधन पर शोक-संवेदना व्यक्त करने के क्रम में-
श्री कर्पूरी ठाकुर:अध्यक्ष महोदय, आचार्य शिवपूजन सहाय के संबंध में आपने जो कुछ कहा है, मैं उसके साथ हूँ। आपके एक-एक शब्द से, शत-प्रतिशत सहमत हूँ। सचमुच श्री शिवपूजन सहाय जी सेवा, साधना, त्याग और विनम्रता के प्रतिमूर्ति थे। हिंदी साहित्य के वे ऐसे शास्त्री थे, जिन्होंने विगत 45 वर्षों में हिंदी संसार में अपना नाम आलोकित किया। कृत्रिमता से बहुत दूर रहकर सच्चाई से सेवा करना, अध्यवसाय के द्वारा साहित्य रचना करना और सरस्वती की उपासना करना, वे अपना सबसे बड़ा कर्तव्य मानते थे। वे जहाँ एक ओर प्रकांड विद्वान थे, वहाँ साथ-साथ बेमिसाल लेखक भी थे। वे सफल पत्रकार और साहित्यिक थे। वे एक ऐसे शिक्षक थे, जिन्होंने न जाने कितने युवकों को साहित्यिक, कवि और कलाकार बनने में बहुत बड़ा सहारा दिया। जो कोई उनके संपर्क में आता था, उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होता था और अनायास ही उनकी ओर आकर्षित होता था। वे सुशिक्षित और सभ्य थे एवं संस्कृति के सच्चे मानी में एक मानव थे। उनके साहित्यिक गुणों की जितनी प्रशंसा की जाए, कम है। उनका जो मानवीय ज्ञान था, वह ऐसा था, जिनका वर्णन करना किसी के लिए भी बहुत कठिन है। आज की दुनिया दौलत की दुनिया है, लेकिन धन-लिप्सा उनको छू तक नहीं गया था। वे साधना करने में ही अपने को धन्य समझते थे। यही कारण है कि 70 वर्ष की लंबी जिंदगी जीते हुए भी और दीर्घकाल से साहित्य के क्षेत्र में इतनी बड़ी सेवा करते हुए भी वे दीन के दीन रह ही गए।
अध्यक्ष महोदय, वे सचमुच में एक महापुरूष थे। आज सही माने में हिंदी संसार ही नहीं बल्कि हमारा देश ऐसे व्यक्तित्व को खोकर दीन हुआ है। हम उनके प्रति अपनी ओर से तथा अपने दल की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं तथा उनके शोक-संतप्त परिवार के प्रति संवेदना प्रकट करते हैं। अध्यक्ष महोदेय, जहाँ तक स्वर्गीय श्री कामता प्रसाद सिंह ‘काम’ के जीवन का प्रश्न है और उनके संबंध में आपने जो कुछ कहा है, वह अक्षरशः सत्य है। उनमें राजनीति और साहित्य का सामंजस्य था। जहाँ एक ओर वे राजनीतिक कर्मी थे, वहाँ दूसरी ओर हिंदी साहित्य के भी सेवक थे। उनके संपर्क में जो आता था, उनसे बिल्कुल मिल जाता था। उनके संपर्क में आने से लोग आनंद-विभोर हो जाते थें उनकी सेवाएँ भी ऐसी हुई हैं कि हमारा प्रदेश और समाज भूल नहीं सकता है। ऐसे कर्मी के प्रति मैं अपनी ओर से तथा अपने दल की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ और उनके शोक-संतप्त परिवार के प्रति संवेदना प्रकट करता हूँ।
अध्यक्ष महोदय, मैं इन दोनों दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए भगवान् से प्रार्थना करता हूँ और शोक-संतप्त परिवार के प्रति संवेदना प्रकट करता हूँ।