(दिनांक: 8 अप्रैल, 1953)


विषय- श्री रामानंद तिवारी द्वारा दिनांक 8 अप्रैल, 1953 ई. को लाए गए प्रस्ताव, मिनिस्टर्स सैलरीज बिल 1953, क्लाॅज-4 पर दिए गए संशोधन प्रस्ताव-

"That in clause 4 of the Bill, for the words" and upon such condition as the State Government may, by rules, determine" the words "as are admissiable to Government servants of the highest grade under the orders of the State Government" be substituted.

श्री कर्पूरी ठाकुर: अध्यक्ष महोदय, मैं इस क्लाॅज का विरोध इसलिए नहीं करता हूँ कि मंत्रियों या उनके परिवार के सदस्यों की दवा-दारू में कोई असुविधा पैदा हो। खुदा न करें कि मंत्री लोग या उनके परिवार वाले बीमार पड़े, परंतु जब वे बीमार पड़े तो उनको समुचित चिकित्सा न हो, ऐसी नीयत हम लोगों की नहीं है। आमतौर से आपने देखा होगा कि जब मिनिस्टर्स के सैलेरी, एलाउंस या टी.ए., वगैरह के संबंध में बहस होती है और बातें होती हैं तो उन बातों को पर्सनल (व्यक्तिगत) मान लिया जाता है। अभी-अभी एक माननीय सदस्य श्री पुरुषोत्तम चैहान ने अपने भाषण में कहा है -‘‘पोवर्टी आॅफ हार्ट एंड पोवर्टी आॅफ माइंड’’ यानी हम लोग इस क्लाॅज का विरोध करके हार्दिक आॅर मानसिक दरिद्रता का परिचय दे रहे हैं। आप उनकी बातों का विश्लेषण करें तो आप इस नतीजे पर पहुँचेंगे कि उनके विचार से संकीर्ण भावनाओं के चलते हम लोग इस क्लाॅज का विरोध करते हैं। यह बात बिल्कुल गलत है और हम लोग इस नीयत से विरोध नहीं करते। अध्यक्ष: उन्होंने कहा है कि वे अन्न्दाता हैं और आप बतलाते हैं कि अनुदार है!

अध्यक्ष: उन्होंने कहा है कि वे अन्न्दाता हैं और आप बतलाते हैं कि अनुदार है!

श्री कर्पूरी ठाकुर: उनकी दृष्टि से ये अन्नदाता हो सकते हैं। मैं कहता हूँ कि यह अनुदारता नहीं तो क्या है कि 13 आदमियों के लिए; जिन्हें 1500 वेतन मिले और जिन्हें सारी सुविधाएँ हांे, आप फ्री मेडिकल अटेंडेंस का बात करें’’।

अध्यक्ष: श्री रामानंद तिवारी ये सब कह चुके हैं आप इसे दोहरा क्यों रहे हैं?

श्री कर्पूरी ठाकुर: मैं यह कह रहा हूँ कि मंत्रिगण जिन्हें 1,500 मुशहरा मिले वे अपने परिवार का फ्री इलाज करा सकते हैं। हम क्लाॅज का अगर अच्छी नीयत से भी विरोध किया जाता है, तो इसे संकीर्ण माना जाता है, यह बात गलत है। प्राइमरी स्कूल के जो अनटेंªड टीचर्स हैं, उन्हें 5 रूपया मुशाहरा मिलता है, लेकिन उनकी दवा-दारू का कोई प्रबंध नहीं है और यही आपकी उदारता है कि 500 से 1,500 रुपए आपने मुशाहरा कर लिया।

अध्यक्ष: प्रांत में जितनी बातें हैं, उन सबका हवाला देने की जरूरत नहीं है।

श्री कर्पूरी ठाकुर: मैं यह कह रहा हूँ कि जो पहले दर्जे की संकीर्णता है, उसी को उदारता समझा जाता है। जहाँ आपको उदारता दिखलानी चाहिए, वहाँ आप अनुदारता दिखलाते हैं। आज आप जानते हैं कि जितने प्रभावशाली सदस्य हैं, वे बड़े डाॅक्टर जैसे डाॅक्टर टी.एन. बनर्जी और डाॅक्टर हई के यहाँ जाएँ तो उनका इलाज मुफ्त होता है।

अध्यक्ष: इतना व्यक्तिगत होने का काम नहीं था।

श्री कर्पूरी ठाकुर: मेरे कहने का मतलब यह है कि हम लोग अच्छी नीयत से भी विरोध करते हैं तो अनुदार समझे जाते हैं।

अध्यक्ष: नीयत की सफाई दीजिए, लेकिन तमाम बातों को क्यो ं मिला देते हैं?

श्री कर्पूरी ठाकुर: इसलिए मिला देते हैं कि उनका ध्यान इस तरफ नहीं जाता है। मेरे कहने का मतलब है कि आप हम लोगों की नीयत पर आक्षेप न करें और दूसरों पर दोष न डालें। आप शीशे के मकान में रहकर दूसरों पर ढेला फेंकते हैं। इस तरह आप किसी की आँख में धूल नहीं झोंक सकते हैं।

उस समय में हमारे चीफ मिनिस्टर, हमारे फाइनेंस मिनिस्टर और माल मंत्री विरोधी दल में थे और उनकी यह माँग थी कि किसी आदमी का वेतन 500 से ज्यादा नहीं हो।

अध्यक्ष: दवा-दारू के बारे में तो उस समय भी कोई झगड़ा नहीं था।

श्री कर्पूरी ठाकुर: मैं वेतन के बारे में कह रहा हूँ। यह सर्वसम्मपति से तय है कि किसी आदमी का वेतन 500 रुपए से फाजिल नहीं हो और उसमें आज की सरकार के दल के लोग, जो पहले विरोधी दल में थे, उनकी भी यही राय थी।

अध्यक्ष: कहाँ का बोखार आप कहाँ निकाल रहे हैं? यहाँ पर तो अभी दवा-दारू का सवाल है।

श्री कर्पूरी ठाकुर: श्री पुरुषोत्तम चैहान ने कहा है कि मंत्रियों को ज्यादा लेना चाहिए, जिसमें वे लोग चिंतामुक्त हो जाएँ।

अध्यक्ष: इस समय इस सवाल को उठाना यहाँ पर रिलिवेंट नहीं है। यहाँ पर दवा-दारू के अलावे किसी और बात पर कुछ कहना रिलिवेंट नहीं होगा।

श्री कर्पूरी ठाकुर: अगर उदारता दिखलाना है तो खुलेआम उदारता दिखलाइए, लेकिन हमारा यही काम है कि उसको सब लोगों के सामने रख दें। इन्हीं शब्दों के साथ मैं यह कहूँगा कि जो क्लाॅज-6 अभी हमारे सामने है, उनको पास नहीं होना चाहिए।