(दिनांक: 8 फरवरी, 1963)
विषय: महामहिम राज्यपाल महोदय द्वारा दिनांक 05.02.1963 ई. को दिए गए अभिभाषण के पश्चात् वाद-विवाद के क्रम में।
श्री कर्पूरी ठाकुर:अध्यक्ष महोदय, महामहिम राज्यपाल ने अपने भाषण में प्रतिरक्षा के प्रयासों का उल्लेख करते हुए और उन प्रयासों के संबंध में विस्तृत प्रकाश डालते हुए जनता से यह अपील की कि किसी भी तरह से इसमें शिथिलता नहीं आने देना चाहिए, किंतु मुझे भय है कि चीनी आक्रमण के खतरे का स्वरूप जो एहसास होना चाहिए और उसका पूरा-पूरा विश्लेषण होना चाहिए, उसकी ओर राज्यपाल महोदय का ध्यान नहीं गया है। अध्यक्ष महोदय, आज से 13 वर्ष पहले सन् 1949 ई. में जब चीन में कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार कायम हुई तो भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महामंत्री ने जो ग्रीटिंग्स का संदेश माउ-त्से-तुंग के पास भेजा था, उसका उत्तर देते हुए माउ-त्से-तुंग ने लिखा था-"India State in the past and her path in the future are similar to those of China."माउ-त्से-तंुग ने जो उत्तर दिया, उससे स्पष्ट है कि जिस रास्ते से चीन गया, भारत के लिए वही रास्ता माउ-त्से-तुग बतलाते हैं और यदि भारत में वह प्रस्ताव किसी तरह से उचित न हो, तो फिर आक्रमण के द्वारा वह मार्ग भारत का प्रशस्त कराना चाहते हैं। आज जो चाइना कम्युनिज्म का स्वरूप है, वह कम्युनिज्म नहीं है, बल्कि एक्स्ट्रीमिस्ट इम्पीरियलिस्ट है, जैसाकि श्री एम.एन. राय ने आज से 10 वर्ष पहले कहा था कि चीन का जो साम्यवाद है, वह विशुद्ध राष्ट्रवाद है और उन्होंने यह भी बतलाया था कि जब तिब्बत को चीन ने खदेड़ा था, निगल गया था, तो उसके बाद समूचा दक्षिण-पूर्वी एशिया में, भारत में, हिमालय किंगडम्स में चीन के द्वारा खतरा उपस्थित होने जा रहा है, जो भविष्यवाणी श्री एम.एन. राय ने आज से 10 वर्ष पहले की थी, वह आज सत्य सिद्ध हो रहा है। हिमालय में बसे हुए देशों को किस तरह से चीन मिला रहा है। भारत के आक्रमण के बाद डर दिखलाकर, त्रास दिखलाकर किस तरह से अपने दृष्टिकोण के लायक बना रहा है, अपने काम के लायक उनको बना रहा है, अपनी नीतियाँ उनसे मनवा रहा है, यह हम स्पष्ट देख रहे हैं कि जो दक्षिण पूर्व एशिया के देश है, बर्मा हो, वियतनाम, इंडोचीन हो या थाइलैंड, मलाया, सिंगापुर आदि देशो के कम्युनिस्ट पार्टी को उत्तेजित कर उनकी सहायता करके, उनको गुप्त रूप से अस्त्र-शस्त्र देकर उन देखों में किस तरह से अशांति का वातावरण, एक अराजकता का वातावरण पैेदा किया जा रहा है, यह हम स्पष्ट रूप से देख रहे हैं। आज कम्युनिस्ट आक्रमण का जो स्वरूप है, उसकी ठीक-ठीक जानकारी हमें होनी चाहिए। भारत पर जो कम्युनिस्ट चीन का आक्रमण है, वह केवल सरहद के झगड़े को लेकर नहीं है। मैं मानता हूँ कि जो लोग केवल सरहद के झगड़े का नाम देते हैं, भारत-चीन के झगड़े को, वे भयंकर भूल कर रहे हैं। यह सरहद का झगड़ा नहीं है, यह समूचे भारत को कम्यूनिस्ट बनाने का झगड़ा है। यह भारत में जनतंत्र को कम्यूनिस्ट करने का झगड़ा है। आज जो भारत और चीन का झगड़ा चल रहा है, वह टौटेलिटेरियन का एक तरफ है और डेमोक्रेसी दूसरी तरफ है, दोनांे के सिद्धांतों के बीच का झगड़ा है, और यह भी सत्य है कि आज कम्युनिस्ट पार्टी के बारे में जो खयाल है भारत के अंदर, खासतौर से कांग्रेस पार्टी का खयाल तो ठीक हैे, लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी का जो खयाल है, वह वैसा ही गलत है, जैसा खयाल चीन के बारे में कांग्रेस पार्टी का रहा है। मैंने जैसाकि पहले ही आपको बताया है, एक वहम रहा है कम्युनिस्ट चीन के बारे में भारत सरकार का और वह वहम तो यही रहा है जैसा ओकासा ने 1930 ई. में एक पुस्तक ‘आइडियल आॅफ दि ईस्ट’ में लिखा था कि ‘एशिया इज वन’ं एक वहम रहा कि चीन और भारत एशिया में होने के नाते एक ही ओर दोनों मिलकर एशिया की प्रगति में हाथ बँटाएँगे। लेकिन यह नहीं होना चाहिए। 1953 ई. में मंचुरिया पर आक्रमण करके जापान ने यह दिखला दिया था और चीन पर आक्रमण करके यह प्रमाणित कर दिया कि एशिया एक नहीं है और फिर भारत पर चीन के आक्रमण करके यह प्रमाणित कर दिया कि एशिया एक नहीं है। आज चीन ने हिंदुस्तान के कुछ हिस्से को निगल करके यह प्रमाणित कर दिया है कि एशिया एक नहीं है। दूसरी बात यह थी कि हम लोग इस भ्रम में पड़े हुए थे कि चीन भारत पर आक्रमण करनेवाला नहीं है या चीन दूसरे देश पर आक्रमण करनेवाला नहीं है। आक्रमण करनेवाला देश तो साम्राज्यवादी देश होता है, लेकिन चीन ने भारत पर आक्रमण करके यह साबित कर दिया कि कम्युनिस्ट देश आक्रमणकारी होते हैं और वे युद्ध के जरिए साम्यवाद को बढ़ाना चाहते हैं। चीन ने पूर्वी देशों पर आक्रमण करके यह प्रमाणित कर दिया है कि चीन अपना सुपरमेसी (आधिपत्य) एशिया पर रखना चाहता है और भारत के जनतंत्र को नष्ट करना चाहता हैे। चीन यह जानता है कि अगर भारत समुन्नत होगा, भारत प्रगति की पी.एस.पी. 1967 ई. में नहीं आएँगे। मैं नहीं जानता कि भविष्यवाणी करने का उन्हें अधिकार है या नहीं। लेकिन एक ब्रह्मण होने के नाते भविष्यवाणी की घोषणा करने का अधिकार उन्हें हो सकता है।
श्री रामानंद तिवारी: ब्राह्मण के साथ नाई भी रहते हैं (हँसी)।
श्री कर्पूरी ठाकुर: मैं नहीं जानता कि ऐसा अधिकार उन्हें है या नहीं। लेकिन मैं जानता हूँ कि अगर हम नहीं रहेंगे तो आप जिंदा कैसे रहेंगे? पी.एस.पी. नहीं रहेगा तो आप बच कैसे सकते हैं? इससे मालूम होता है कि आप प्रोग्रेसिव अपोजीशन नहीं चाहते हैं, नेशनलाइज्ड अपोजीशन नहीं चाहते हैं, सेक्युलर आपोजीशन नहीं चाहते हैं, बल्कि आप टोटैलिटेरियन और रिएक्शनरी अपोजीशन चाहते हैं। मुझे एक कवि का शेर याद आता है, जिसे कहकर मैं बैठ जाता हूँ-
हमीं गर न रहेंगे तो क्या रंगे महफिल।
किसे देखकर आप शरमाइएगा।। (हँसी)