(दिनांक: 15 मार्च, 1963)
विषय: श्री कर्पूरी ठाकुर द्वारा पेश किए गए सहकारिता विभाग के अनुदान की माँग पर कटौती प्रस्ताव पर चर्चा के क्रम में।
श्री कर्पूरी ठाकुर: मैं प्रस्ताव करता हूँ कि-
"The Item of Rs. 15,600 for "Direction Registrar" be omitted. To discuss the Co-operation policy of Government."
उपाध्यक्ष महोदय, जैसाकि को-आॅपरेटिव मिनिस्टर श्री कृष्ण बल्लभ सहाय ने बताया कि सहकारिता आंदोलन का विकास अपने देश में को-आॅपरेटिव की सफलता के लिए आवश्यक है, यह ठीक ही है कि किसी भी जनतांत्रिक और समाजवादी आंदोलन सहकारिता का एक अभिन्न और महत्त्वपूर्ण अंग हैं। सहकारिता आंदोलन उतना सबल और सशक्त होगा, जितना ही उसे कारगर किया जाएगा और वह ऐसा करने से बड़े पैमाने पर जनता की सेवा कर सकेगा, और उसी अनुपात से अपने देश और संसार के किसी भी देश के समाजवाद और जनतंत्र की सफलता हो पाएगी। पर दुर्भाग्यवश, वर्षों से कांग्रेस सरकार की ऐसी नीति रही है कि अपाने देश में सहकारिता आंदोलन को सफल बनाएँ, पर सरकार इसमें असफल रही है। आर्थिक जीवन और सामाजिक जीवन का क्षेत्र सहकारिता का विस्तार करके ही किया जा सकता है, किंतु इसके केरने में यह सरकार बुरी तरह असफल रही है। यह ठीक है कि माननीय मंत्री ने भिन्न-भिन्न सहकारिता समितियों के संबंध में आँकड़े प्रस्तुत किए हैं और जैसा उन्होंने बतलाया है कि बिहार राज्य के ग्रामों में पिछले वर्षों में जिस प्रकार से उन्नति हुई है, उस पर अगर हम तुलनात्मक दृष्टि से विचार करते हैं तो ऐसा लगता है कि बिहार में सहकारिता आंदोलन बहुत पीछे है। शायद हिंदुस्तान में जितने बड़े राज्य है, सबों में बिहार राज्य ही पीछे हैं। उपाध्यक्ष महोदय, मैं आपके सामने कुछ आँकड़े पेश करना चाहता हूँ।
श्री रामानंद सिंह: मेरा प्वाॅइं्रट आॅफ आर्डर है। वह यह है कि उप-मंत्री श्री कमल देवनारायण सिंह मुख्यमंत्री की सीट पर बैठे हैं। उपाध्यक्ष: माननीय उप-मंत्री उस सीट को छोड़कर बैठे हैं।
श्री कर्पूरी ठाकुर: उपाध्यक्ष महोदय, रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया की ओर से हर वर्ष एक स्टेटिकल स्टेटमेंट निकलता है, रिलेटिंग टू को-आॅपरेटिव इन इंडिया। 1962 ई. के अंत में यह स्टेटमेंट प्रकाशित किया गया था और उसके बाद फिर प्रकाशित नहीं किया गया। इसलिए मैं 1962 ई. के ही स्टेटमेंट से कुछ अंश उद्धृत करना चाहता हूँ।
नंबर आॅफ प्राइमरी सोसाइटीज आंध्र प्रदेश 33 लाख 38 हजार, गुजरात 17 लाख 77 हजार, मध्य प्रदेश 12 लाख 12 हजार, मद्रास 41 लाख 73 हजार, महाराष्ट्र 40 लाख 81 हजार, मैसूर 24 लाख 18 हजार, पंजाब 19 लाख 85 हजार, यू.पी. 68 लाख 69 हजार, वेस्ट बंगाल 18 लाख 36 हजार और बिहार 17 लाख 19 हजार।
मैंने दस राज्यों का आँकड़ा आपके सामने प्रस्तुत किया और उसको आप देखेंगे तो पता चलेगा कि एम.पी. को छोड़कर बिहार राज्य मैंबरशिप में बहुत पीछे है।
प्राइमरी सोसाइटी ने जो लोन एडवांस किया है, उसका भी आँकड़ा प्रस्तुत करना चाहता हूँः-
आंध्र प्रदेश 25 करोड़ 44 लाख 17 हजार, गुजरात 37 करोड़ 34 लाख 63 हजार, मध्य प्रदेश 19 करोड़ 20 लाख 35 हजार, मद्रास 46 करोड़ 62 लाख 14 हजार, महाराष्ट्र 89 करोड़ 60 लाख 33 हजार, मैसूर 26 करोड़ 40 लाख 20 हजार, पंजाब 12 करोड़ 78 लाख 59 हजार, यू.पी. 32करोड़ 20 लाख 87 हजार, बेस्ट बंगाल 28 करोड़ 11 लाख 60 हजार और बिहार 5 करोड़ 16 लाख 3 हजार सिर्फ।
हमारे कहने का मतलब है कि इस मामले में भी बिहार सबसे पीछे है। अब एमाउंट एडवांस्ड फाॅर मैंबर्स कितना है, उसको मैं कहना चाहता हूँ:- आंध्र प्रदेश 84 रू., गुजरात 229 रू., मध्य प्रदेश 171 रू., मद्रास 122 रू., महाराष्ट्र 231 रू., मैसूर 114 रू., पंजाब 70 रू., यू.पी. 64 रू., बेस्ट बंगाल 132 रू. और बिहार केवल 37 रू.।
इस मामले में भी बिहार सबसे पीछे है। उपाध्यक्ष महोदय, और भी सारे आँकड़ों को मिलाया जाए तो पता चलेगा कि बिहार राज्य सबसे पीछे है। अगर जनसंख्या के हिसाब से लें तो पता चलेगा कि आंध्र की जनसंख्या 3 करोड़ 59 लाख 80 हजार है तो नंबर आॅफ प्राइमरी सोसाइटी 74.26 है। मैंबरशिप पर वन थाउजेंड है 62.71 वर्किंग कैपिटल पर हेड है 36.32, जबकि वहाँ पर वर्किंग कैपिटल है 30 करोड़ 60 लाख 4 हजार। गुजरात, मध्य प्रदेश, मद्रास, महाराष्ट्र, मैसूर, पंजाब और बेस्ट बंगाल को देखें तो करीब-करीब ऐसा ही है; लेकिन जब बिहार को देखेंगे तो पता चलेगा कि बिहार राज्य सबसे पीछे है। मुझे थोड़ा समय लगेगा सभी आँकड़ों को सुनाने में, लेकिन मैं सुनाना चाहता हूँ, जिससे एक आइडिया हो जाए कि दरअसल में हम कहाँ पर खड़े हैं। गुजरात की जनसंख्या है 2 करोड़ 63 लाख, नंबर आॅफ सोसाइटी पर वन लाख 67.66, मेंबर पर वन थाउजेंड 66.08 वर्किंग कैपिटल पर हेड 74.32 वर्किंग कैपिटल इन 83 करोड़ 37 लाख 83 हजार। मध्य प्रदेश की जनसंख्या है 3 करोड़ 23 लाख 70 हजार, नंबर आॅफ सोसाइटी है 89.80 मैंबर पर वन थाउजेंड 38.10, वर्किंग कैपिटल पर हेड 21.87, वर्किंग कैपिटल इन करोड़ 23 करोड़ 94 लाख 86 हजार। मद्रास की जनसंख्या है 3 करोड़ 36 लाख 90 हजार, नंबर आॅफ सोसाइटी 54.76 मैंबरषिप 123.86, वर्किंग कैपिटल पर हेड 48.4 और वर्किंग कैपिटल इन करोड़ 30 करोड़ 12 लाख 80 हजार। महाराष्ट्र की जनसंख्या है 3 करोड़ 59 लाख 5 हजार, नंबर आॅफ सोसाइटी 79.81 मैंबर पर जनसंख्या थाउजेंड 103.20 वर्किंग कैपिटल पर हेड, 73.57, वर्किंग कैपिटल इन करोड़ 59 करोड़ 60 लाख 93 हजार। इस प्रकार से पंजाब, यू.पी. और वेस्ट बंगाल भी उससे कम नहीं है, लेकिन बिहार राज्य को देखें तो पता चलेगा कि वह पीछे है। जितने राज्यों का नाम मैंने लिया, उनमें यू.पी. को छोड़कर बिहार की जनसंख्या सबसे अधिक है, यानी बिहार की जनसंख्या 4 करोड़ 65 लाख है। नंबर आॅफ सोसाइटी 64.01, मैंबरशीप पर वन थाउजेंड 37.01, वर्किंग कैपिटल पर हेड 5.61, वर्किंग कैपिटल वन करोड़ 4 करोड़ 30 लाख 84 हजार हैं। उपाध्यक्ष महोदय, पेड-अप कैपिटल, स्टेचुटरी रिजर्व, फिक्स्ड डिपोजिट, और अपर डिपोजिट्स को देखें तो एक ही भाव है। ऐसा लगता है कि हमारे बिहार राज्य में सहकारिता आंदोलन कई वर्षों से पिछड़ा रहा है अगर आप आॅडिट की बात देखें तो 1960-61 ई. साल में आंध्र में पेंडिंग आॅडिट एट दि बिगनिंग आॅफ दो इयर 26, आॅडिटेड ड्यूरिंग दि इयर 26 है। मद्रास में 15 पेंडिग और 15 आॅूडिटेड, महाराष्ट्र में 35 पेंडिंग और 35 आॅडिटेड, मैसूर में 24 पेंडिंग और 24 आॅडिटेड, पंजाब में 46 पेंडिंग और 42 आॅडिटेड, उत्तर प्रदेश में 56 पेंडिंग और 56 आॅडिटेड, वेस्ट बंगाल में 30 पेंडिंग और 27 आॅडिटेड है। बिहार इसमें भी बहुत पीछे है। यहाँ 35 पेंडिंग और 27 आॅडिटेड हैं। हम नहीं जानते कि इस पिछले वर्षों से बिहार सरकार का सहकारिता विभाग क्या करता है। हमारे सामने जो आँकड़े हैं, उनसे स्पष्ट रूप से पता चलता है कि हमें भी दौेड़ना है और तेजी से दौड़ना है, तभी जाकर हम बिहार राज्य को कम-से-कम हिंदुस्तान के दूसरे राज्यों के मुकाबले में खड़ा कर सकते हैं। यों तो सहकारिता आंदोलन का खाका ही सारे देश में कुछ अच्छा नहीं है, यदि हम इसकी तुलना दूसरे देशों से करें, जो इस क्षेत्र में विकास करते रहे हैं, जैसे-इजराइल, डेनमार्क, नाॅर्वे, स्वीडन, फिनलैंड, इन देशों से कोई तुलना नहीं की जा सकती। हिंदुस्तान के सहकारिता विभाग में जो कुछ विकास हुआ है, उसे देखते हुए हम यह कह सकते हैं कि इसमें हमारा बिहार बहुत पीछे हैं। अगर हम इस खाई को दूर करना चाहते हैं तो बहुत तेज कदम से चलना पड़ेगा, दौेड़ना पड़ेगा।
उपाध्यक्ष महोदय, अब तक सहकारिता विभाग के आंदोलन में जो विफलता रही है, इसके कारण क्या हैं। इन कारणों का उल्लेख करते हुए रूरल क्रेडिट सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके तीन बड़े कारण हैं। पहली कैटगरी के जो हैं, उनका नाम है डिप्युटेड काॅलेज, दूसरी की डीपर काॅलेज और फंक्शनल बातों से संबंध रखते हैं। आॅर्गेनाइजेशनल बातों से संबंध रखते हैं, जो हमारे बिहार में, बल्कि हमारे देश में सोशियों इकोनाॅमिक कंडीशंस हैं, स्ट्रक्चर हैं, जो पुराने ढंग के गाँव हैं और गाँव में अमीर और गरीब का भेद है, जो गाँव के भीतर बिखरे हुए हैं और जो लोग बेकार रहते हैं, जिससे उद्योग-धंधा का विकास नहीं होता, इन सारी बातों से संबंध रखते हैं। हमारा ऐसा अनुभव है कि पिछले कई वर्षों में इन कारणों को दूर करने का कोई उपाय नहीं किया गया है, चाहे यह स्ट्रक्चरल हो या फंक्शनल ढंग की कठिनाई हो या आॅर्गेनिजेशनल ढंग की कठिनाई हो या सोशियो इकोनाॅमिक काॅलेज हो या डीपर काॅलेज हो, हम इसी नतीजे पर पहुँचते हैं कि कोई क्रांतिकारी कदम सरकार की तरफ से इस संबंध में नहीं उठाया गया है, जिससे इन कारणों का उन्मूलन कर सके और सहकारिता आंदोलन को सही साँचे में ढाल सके। ऐसे तो बिहार के सहकारिता आंदोलन के बारे में कहा जाता है कि यह बहुत एडमिनिस्टेªटिव है और अंडरफाइनेंस है। यहाँ के एडमिनिस्टेªटिव पोस्ट हाइएस्ट है, लेकिन परफाॅरर्मेंस लोएस्ट है। दूसरी योजना में जितने रूपए सहकारिता की मद में रखे गए, जितने रूपए का उपबंध किया गया था, हमारे सहकारिता मंत्री कबूल करेंगे कि उनका 24 परसेंट कम खर्च हुआ है। जहाँ तक सप्लीमेंटरी उपबंध की बात है, उन पर दृष्टिपात किया जाए तो पता चलता है कि 40 परसेंट बचा रह गया। अब तीसरी पंचवर्षीय योजना का हाल क्या है? इसमें सहकारिता के मद में जितने रूपए का उपबंध किया गया है, पिछले दो वर्षों मेें तीसरा वर्ष भी इस योजना का शुरू हो गया है, उसका 26 प्रतिशत खर्च करना था, लेकिन सहकारिता मंत्री इसे भी कबूल करेंगे कि यह भी खर्च नहीं हो पाया है। इसमें भी धीमी गति है, हम उतना काम नहीं कर पाए हैं, हम नहीं जानते हैं कि क्या काम हो रहा है? दूसरी योजना में जो रूपए रखे गए, लेकिन खर्च नहीं हो पाया है। इसमें भी धीमी गति है, हम उतना काम नहीं कर पाए हैं, हम नहीं जानते हैं कि क्या काम हो रहा है? और तीसरी पंचवर्षीय योजना में 26 प्रतिशत का उपबंध था तो वह भी नहीं खर्च कर पाए। आखिर इतनी धीमी गति से जो हम चल रहे हैं, इसका कारण क्या है? क्या सरकार मानती है कि अक्षम है, क्या सरकार कोई काम करने में बिल्कुल असमर्थ है, अयोग्य है, क्या है? कहीं तो आर्थिक संकट की बात कही जाती है, कहीं रूपए का अभाव बतलाया जाता है, कहीं कहा जाता है कि खजाना खाली है और जो रूपए की व्यवस्था होती है, उसे सरकार खर्च करने में असमर्थ रहती है। उपाध्यक्ष महोदय, एक सम्मेलन हुआ था सहकारिता विभाग के राज्य मंत्रियों का लगभग दो वर्ष पहले, उसमें निर्णय किया गया था कि हमारे देश के पूर्वी क्षेत्र जिसमें बिहार, बंगाल, आसाम और उड़ीसा पड़ते हैं, उन राज्यों में सहकारिता आंदोलन बहुत पीछे पड़ा हुआ है, यहाँ बहुत कम विकास हुआ है और इसमें सहायता देने की आवश्यकता है।
(उपाध्यक्ष महोदय ने लाल बत्ती दिखलाई)
अभी तो हम कुछ कह भी नहीं पाए हैं। वैसे आप कहें तो हम बैठ जाएँ, इसलिए कि हमें कोई ऐसी दिलचस्पी बोलने से नहीं है।
उपाध्यक्ष: जो माँग पेश की गई है, उससे अधिक नहीं जाएँ। यह केवल चेतावनी थी।
श्री कर्पूरी ठाकुर: नो वारर्निंग ऐट दिस स्टेज।
तो मैं कह रहा था, उस सम्मेलन में फैसला हुआ था कि सहायता दी जाएगी केन्द्रीय सरकार की तरफ से। हम सहकारिता मंत्री से उत्तर चाहेंगे कि दो वर्ष पहले जब सम्मेलन में निर्णय हुआ तो आपने क्या सहायता के लिए प्रस्ताव कभी भेजा, और यदि भेजा तो सहायता मिली या नहीं? उपाध्यक्ष महोदय, हमें सूचना है और मेरी जानकारी है कि आज से 3-4 महीने पहले तक एक भी प्रस्ताव बिहार सरकार की तरफ से नहीं भेजा गया, जबकि पूर्वी क्षेत्र में बिहार भी है। इसमें करोड़ों रूपए सहायता में मिल सकते थे, जिनसे सहकारिता आंदोलन को मजबूत बनाया जाता; लेकिन इससे बिहार राज्य वंचित रह गया। मैं जानना चाहूँगा कि बिहार क्यों सोया रह गया और आपने इससे लाभ क्यों नहीं उठाया? उपाध्यक्ष महोदय, सहकारिता मंत्री ने ठीक ही कहा है, बिहार में 29,729 सहकारिता समितियाँ है। मेरा अपना खयाल है कि लगभग 30,000 समितियों में 7,000 बिल्कुल डिफंड (defund) हैं, मुरदा हैं, कोई काम इनके द्वारा नहीं हो रहा है। इसके अलावे लगभग 50 प्रतिशत समितियाँ ऐसी हैं, जो नफे का काम नहीं करतीं, जैसे-तैसे वे समितियाँ भले ही काम करती हों, लेकिन कोई फायदा सदस्यों को नहीं पहुँचातीं। एक-चैथाई ऐसी समितियाँ हैं, जो घाटे पर चल रही हैं। अगर समितियाँ ऐसी है ं कि हजारोंझारों समितियाँ मुरदा हैं, या विभाग मुर्दा है तो क्या आपका विभाग उनमें जान नहीं ला सकता? अगर नहीं तो फिर ऐसी समितियों से लाभ क्या?
उपाध्यक्ष महोदय, एक बुनियादी बात यह है कि बिहार सरकार में या यों कहिए कि सारे देश में सहकारिता आंदोलन को अफसरों के हाथ में रखा गया है। आपने चेतावनी दी है, वरन् मैं आपको दिल्ली में जो को-आॅपरेटिव काॅन्फ्रेंस दो-तीन वर्ष पहले हुई थी और हमारे प्रधानमंत्री ने जो कंफेशन किया था, उनके शब्दों को आपके सामने रखता। उन्होंने कहा था कि हमारा जो सहकारिता आंदोलन है, वह अफसरों के हाथ में जा रहा है या चला गया है।
मूवमेंट को बिल्कुल आॅफिसियलाइज्ड कर दिया गया है। आज जरूरत इस बात की है कि मूवमेंट को डीआॅफिससियलाइज्ड कर दिया जाए। इस मूवमेंट का अराजकीयकरण किया जाए। लेकिन अराजकीयकरण के बदले इस सहकारिता विभाग का राजकीयकरण हो रहा है। यह आॅफिसियल के अंदर चला जाता है। रूरल क्रेडिट सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक यह हुआ था कि स्टेट पार्टनरशिप होगा। उपाध्यक्ष महोदय, स्टेट का पार्टनरशिप इस हद तक हो रहा है कि हमारे यहाँ जो मार्केटिंग बैंक है, वहाँ 6 साल पहले बोर्ड आॅफ डाइरेक्टर नोमिनेटेड हुआ और आजतक जितने शेयरहोल्ड्र्स हैं, उनकी एक भी ऐनुअल जनरल मीटिंग नहीं बुलाई गई। आपने क्यों मीटिंग नहीं बुलाई, इसका क्या कारण? बिहार राज्य में जैसा हुआ, वैसा देश के किसी राज्य में भी नहीं हुआ है। देश के किसी भी राज्य में नाॅमिनेटेड बोर्ड आॅफ डायरेक्टर नहीं हैं, लेकिन बिहार राज्य को शिवजी का त्रिशूल है। किसी भी राज्य में नोमिनेट बोर्ड आॅफ डाइरेक्टर्स नहीं है, लेकिन बिहार राज्य म ें है। 6 साल हो गया बैठक बुलाई गई। यह बहुत बड़ा अँधेर है। सारे को-आॅपरेटिव मूवमेंट को आॅफिसियलाइज्ड करने की कोशिश की गई है। अगर इस तरह से चला तो यह मूवमेंट आगे बढ़ने वाला नहीं है। 2 साल पहले रिवाइटलीजेशन स्कीम चालू की गई और रिवाइटलीजेशन के नाम पर केंद्रीय सरकार से जो भी सहायता मिलने वाली थी, उस काम का अभी तक प्रारंभ भी नहीं किया गया। मैं जानना चाहूँगा कि जो काम 2 साल पहले प्रारंभ होनेवाला था, वह बिहार राज्य में अभी तक क्यों नहीं प्रारंभ किया गया? अगर हुआ तो इसका नतीजा क्या हुआ? मैं इसको जानना चाहूँगा।
उपाध्यक्ष महोदय, तृतीय पंचवर्षीय योजना में शार्ट टर्म लोन में 27,30 मीडियम टर्म के अंदर 10.70 और लाॅन्ग टर्म में 5 करोड़ रूपया बाँटना है, लेकिन जिस माध्यम से आप इसे कर रहे हैं, मेरा विश्वास है कि उनके रुपए पड़े रहे जाएँगे। द्वितीय पंचवर्षीय योजना में 20 करोड़ रूपए बाँटना था, लेकिन 20 करोड़ के बदले 9.10 करोड़ रूपए सिर्फ बाँट सके, बाकी रूपया पड़ा रह गया। तृतीय पंचवर्षीय योजना में इन दो साल के अंदर जितने रूपए बाँटे गए, टारगेट से कम ही किया गया है। मेरा विश्वास है कि रूपए पड़े रह जाएँगे। इस तरह आप जनता के प्रति विश्वासघात कर रहे हैं। हिंदुस्तान में प्रचार किया गया कि खेती की पैदावार को बढ़ाएँ सहकारिता के माध्यम से। अधिक कर्ज देना है। बीज देना है, एग्रीकल्चरल इम्पलीमेंट देना है; लेकिन खेद की बात है कि रूपए रहते हुए रूपए नहीं बाँटे जा सके। 2 वर्षों के अंदर इस तृतीय पंचवर्षीय योजना में आपने क्या किया है? यह मैं जानना चाहूँगा, सहकारिता मंत्री से कि क्रेडिट जो रूपए दिए जाते हैं, उनको लिंक-अप किया जाता है, प्रोडक्शन के साथ, मार्केटिंग के साथ? सहाकारिता चलानेवालों का कहना है कि एग्रीकल्चरल ऋण दिए गए, इसलिए कि उसको प्रोडक्शन से लिंक-अप किया जाए, इसलिए कि मार्केटिंग से लिंक-अप किया जाए। इस संबंध में कोई छानबीन नहीं हुई कि उसको प्रोडक्शन के साथ, मार्केटिंग के साथ लिंक-अप किया गया या नहीं या उस रूपए को शादी-विवाह में लगा दिया गया, जनेऊ में लगा दिया गया, श्राद्ध में लगा दिया गया, या उसको प्रोडक्शन से, मार्केटिंग से लिंक-अप किया गया।
लैं।ड मोरगेज बैंक के बारे में मैंने कहा कि इसका लाॅन्ग टर्म टारगेट है, लेकिन जो रूपए दिए गए थे, वे सब खत्म हो गए और आज उसमें के पैसा भी नहीं है, जो किसानों को दिया जा सके। आँकड़ा सहकारिता मंत्री बता सकते हैं, लेकिन मेरी जानकारी है, बिहार में 17 जिले हैं, आप किसी जिले में चले जाएँ, हर जिले में सैकड़ों दरखास्तें पड़ी हुई हैं, उन पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है, इसलिए कि उनके पास रूपए नहीं हैं। माननीय सदस्य श्री रमेश झा ने कहा है कि सहरसा जिले में एक आदमी को रूपया मिला है, जब से यह कायम हुआ है।
पोटैटो प्रोडेक्टिव एरिया है, उसमें 5 कोल्ड स्टोरेज स्थापित करने की बात है; लेकिन एक भी कोल्ड स्टोरेज अभी तक कायम नहीं किया गया है। दो साल गुजर गए, तीसरा साल भी शुरू हो गया है, इसलिए मैं जानना चाहूँगा, सहकारिता मंत्री से कि पोटैटो ग्रोइंग एरिया से आप क्यों पिछड़ गए हैं? आप कहते हैं कि खूब पौटैटो पैदा करो, इस इमरजेंसी के नाम पर तो और जोर लगाए हुए हैं, लेकिन यह योजना खटाई में डाल दी गई है। उपाध्यक्ष महोदय, हमारे सहकारिता मंत्री ने बताया, लेकिन मेरा अनुभव है और उसके आधार पर कहाता हूँ कि अभी तक बिहार में को-आॅपरेटिव का विकास हो ही नहीं पाया है। यहाँ जितने माननीय सदस्य हैं, वे अपने-अपने क्षेत्र की बात बता सकते हैं कि एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस का काम ठीक ढंग से हुआ और उसका उचित दाम किसानों को मिला? ये किसानों को इसके द्वारा प्रोत्साहन देते, उनको उचित दाम मिले, इसके वास्ते मार्केटिंग को-आॅपरेटिव को प्रोत्साहन देते, यह अत्यावश्यक माना गया है, लेकिन ये मार्केटिंग को-आॅपरेटिव का काम नहीं कर रहे हैं। हमारे देश में जो किसान हैं, उनको उचित दाम नहीं मिल रहा है। जूट के बारे में माननीय मंत्री ने बताया कि जो काम हुए हैं, वे नगण्य है; लेकिन मैं पूछता हूँ कि काम क्यों नहीं हुआ? ये कहते हैं कि जूट काॅरपोरेशन से रूपया मिलने में देर हुई, इससे परेशानी हो रही है; लेकिन इसके लिए कौन दोषी है? इसके लिए किसान दोषी नहीं है। मेरा खयाल है कि अगर किसान बेचैन है और इनका प्लान भी बेचैन है, सुनियोजित विकास नहीं हुआ है, तो जरूरत है कि हर जिले में, हर क्षेत्र में ज्यादा-से-ज्यादा कार्रवाई इसके लिए करें। कुछ दिन पहले इस संबंध में निर्णय हुआ था, इस संबंध में मंत्रियों का एक सम्मेलन हुआ था, उसमें रजिस्ट्रार की भी मीटिंग हुई थी कि को-आॅपरेटिव को चलाया जाएगा, लेकिन इस संबंध में कोई कारगर कदम नहींु उठाया गया है। केन्द्रीय सरकार ने योजना चलाई थी कि को-आॅपरेटिव के माध्यम से वीकर्स सेक्शन में को-आॅपरेटिव चलाने के लिए 9 लाख रूपए की जरूरत होगी, लेकिन दो साल गुजर गए, कोई कारगर कदम नहीं उठाया गया। हाल में एक लिस्ट तैयार करके सहकारिता विभाग से केन्द्रीय सरकार को भेजी गई है, लेकिन रूल्स अभी तक फ्रेम नहीं किया गया है, इसलिए आजतक एक पैसा भी अनुदान वीकर्स सेक्शन को-आॅपरेटिव सोसाइटी को नहीं दिया जा सका। सहकारिता मंत्री कहते हैं कि क्रेडिट बैंक के जरिए सहायता करना चाहते हैं, लंेकिन दो साल हो गए, बिहार को एक पैसा भी नहीं मिला, यह रूपया तो इन्हें देना भी नहीं था, यह रूपया तो केन्द्रीय सरकार देती, लेकिन नहीं मिल सका। सहकारिता के माध्यम से खर्च होना चाहिए। सहकारिता की मदद देने के लिए रूल बनाया जाता है, लेकिन यह सिर्फ कागज पर ही रह जाता है। सहकारिता के द्वारा जिस वीकर सेक्शन को फायदा होता, उसको फायदा नहीं होता है, चूँकि ये पैसा नहीं देते हैं। सहकारिता सोसाइटी की जो बायलाॅज बनाया गया है, वह बिल्कुल अनडेमोक्रेटिक है। सहकारिता सोसाइटीज के जो चेयरमैन और सेक्रेटरी हैं, उनको सर्वे-सर्वा होना चाहिए था; लेकिन हम ऐसा नहीं देखते हैं। अगर आप सोसाइटी का विकास चाहते हैं, तो आप इसे जनतांत्रिक बनाने के लिए चेयरमैन, सेक्रेटरी और इसके सदस्यों को सर्वे-सर्वा मानिए। नन-आॅफिशियल के द्वारा ही इसके सभी काम किए जाएँ। हम देखते हैं कि इस क्षेत्र में जो काम भी हो रहा है, उसमें सारा अधिकार आॅफिशियल लेोगों को दे दिया गया है, जिससे वीकर सेक्शन को फायदा नहीं पहुँच पाता है। आपके यहाँ एग्रीकल्चर रीलिफ फंड क्रिएट किया गया है, लेकिन रूरल सर्वे के मुताबिक अभी तक कोई कार्य नहीं किया गया है। इसका काम भी ठप्प पड़ा हुआ है।
उपाध्यक्ष महोदय, तीसरी योजना में इरीगेशन को-आॅपरेटिव सोसाइटी बनाने की योजना थी और इसके लिए 4 करोड़ रूपए दिए जाने वाले थे, लेकिन अभी तक इस ओर भी कोई कदम सरकार की ओर से नहीं उठाया गया है। अपने भारत में इस तरह की कोई सोसाइटी अभी तक खड़ी हुई है या नहीं, यह मैं ठीक से नहीं जानता हूँ, लेकिन इतना जानता हूँ कि अगर इस तरह की कोई सोसाइटी खड़ी भी हुई है तो उसे एक पैसे की भी मदद नहीं दी गई है। आप जो योजना बनाते हैं, उसमें नीति का पालन नहीं किया जाता है। आपको चाहिए कि योजना बनाना चाहते हैं, वो, इसमें आपकी क्या राय है? उनके सुझाव लेने के बाद ही कोई योजना आपको बनानी चाहिए, तभी यह योजना सक्सेसफुल होगी। लेकिन हम देखते हैं कि आप किसी से पूछताछ नहीं करते हैं और आपके जो अफसर हैं, वहीं खुद बैठकर एक योजना बना लेते हैं और इसका नतीजा होता है कि वह कार्यान्वित नहीं हो पाती है।
उपाध्यक्ष महोदय, सहकारिता के क्षेत्र में हम देखते हैं कि वित्त विभाग भी एक बहुत बड़ा बाधा उपस्थित कर देता है। सहकारिता विभाग से जब कोई योजना मार्च के पहले भेजा जाता है, उस पर भी वह विलंब लगा देता है और बिना वित्त विभाग की स्वीकृति की मोहर लगे, उसे कैसे कार्यान्वित किया जा सकता है? इसकी वजह से जहाँ 1 अप्रैल से कोई योजना कार्यान्वित होनेवाली रहती है, नहीं हो पाती है। उपाध्यक्ष महोदय, अभी सदन में हमारे वित्त मंत्री महोदय नहीं है, मुझे उनसे कहना था कि सहकारिता विभाग से जो योजना जाए, उसकी स्वीकृति यदि वे देना चाहें तो 31 मार्च के पहले ही दे दें।
उपाध्यक्ष: शांति-शांति। आप अपना भाषण संक्षेप करें।
श्री कर्पूरी ठाकुर: उपाध्यक्ष महोदय, हमारे सहकारिता विभाग में जो अफसर और अधिकारी हैं, उनके जिम्मे दो काम है। एक एक्जीक्यूटिव का कार्य औद दूसरा जुडिशियल का काम, लेकिन जूडिसियल की टेªनिंग उन्हें नहीं दी जाती है। हो सकता है कि एक-दो को जुडिशियल टेªनिंग मिली हो, लेकिन बहुत सारे अफसरों को नहीं मिली है। हमारा सुझाव है कि अपील सुनने का जो अधिकार रजिस्ट्रार का है, उसे छीन लिया जाए और वह अधिकार किसी जज को दिया जाय। असिस्टेंट रजिस्ट्रार को जुडिशियल टेªनिंग नहीं दी जाती है, जिससे बहुत से मामले में न्याय नहीं हो पाता है, पक्षपात होता है; इसलिए मेरा सुझाव है कि अपील सुनने का अधिकार जज को दिया जाए, जो को-आॅपरेटिव केसेज को सुने और उस संबंध में अपना फैसला दिया करें। हमारे यहाँ जो को-आॅपरेटिव फेडरेशन चलता रहा है, अभी तक उसके चेयरमैन मंत्री हुआ करते थे। खुशी की बात है कि बहुत कोशिश और दबाव के बाद यह फैसला हुआ कि कोई भी मिनिस्टर को-आॅपरेटिव इंस्टीट्यूशन का पदाधिकारी नहीं होगा। मैं कहना चाहता हूँ कि अभी भी को-आॅपरेटिव फेडरेशन का काम ठीक ढंग से नहीं हो रहा है। अध्यक्ष महोदय, अगर इसे कारगर और मजबूत बनानी है, काम करने लायक बनाना है, तो क्वालिटी लाने के लिए टेªनिंग और एजुकेशन को जो काम हुआ है, वह बिल्कुल ही अपर्याप्त है। इसलिए हमारा सुझाव है कि अगर को-आॅपरेटिव आंदोलन में क्वालिटी लानी है तो क्वालिटी आॅफ लीडरशिप बदलना पड़ेगा, इसे नन-आॅफिशियल के हाथ में सौंप देना पड़ेगा और अगर लीडरशीप की क्वालिटी को इम्प्रूव करना है तो बड़े पैमाने पर टेªंड पर्सनल तैयार करने के लिए आॅफिशियल और नन-आॅफिशियल में टेªनिंग और एजुकेशन का काम चलाना पड़ेगा।
जिन-जिन देशों में सहकारिता सुचारू रूप से चला है, वहाँ टेªनिंग और एजुकेशन का काम बहुत बड़े पैमाने पर किया गया है, सीरीज आॅफ सेमिनार्स करते हैं, डिस्ट्रिक्ट, सबडिवीजन, ब्लाॅक लेबल पर, वहाँ के विचारों का आदान-प्रदान करते हैं, अनुभव का आदान-प्रदान करते हैं, इसलिए टेªनिंग और एजुकेशन और सेमिनार के काम को फैलाया जाए। इन पर काफी महत्त्व दिया जाए।ं को-आॅपरेटिव फार्मिंग के बारे में नहीं कहना ही अच्छा होगा, इस सरकार से यह काम नहीं होनेवाला है। भले कागज पर इसका प्रोग्राम रख दिया गया है, लेकिन यह होगा, इसका विश्वास नहीं है। पूसा क्षेत्र में नन-आॅफिशियल ढंग से बड़े पैमाने पर काम करने के लिए तीन साल से हम लोगों ने अथक प्रयास किया, दर्जनों बार आपके को-आॅपरेटिव रजिस्ट्रार से मुलाकात की, चीफ मिनिस्टर से मुलाकात की और आखिरी मुलाकात वर्तमान मंत्री से भी’’’
श्री कृष्ण बल्लभ सहाय: हमसे कब मिले?
श्री कर्पूरी ठाकुर: मैं नहीं, श्री रामशरण उपाध्याय, द्वारिका सिंह आदि आपसे मिले, लेकिन इसका बाइलाॅज अभी तक फाइनालाइज नहीं हुआ। वहाँ को-आॅपरेटिव फार्मिंग तैयार कर चुके, लेकिन आप काम को बढ़ाना नहीं चाहते हैं और अगर यही ढंग काम करने का है तो सहकारिता आंदोलन का विकास संभव नहीं है, जो कि मैं स्पेसिफिक इन्स्टांस देना चाहता हूँ कि किस तरह से उनके डिपाटमेंट का काम होता है। वारिसनगर थाने में एक व्यापार मंडल है। हमारे वशिष्ठ बाबू चार साल से इसके लिए अथम परिश्रम कर रहे हैं। इसका मकान बना हुआ है, तीन साल में 15 बार लिखा गया सी.एम. को, पुराने सहकारिता मंत्री को और को-आॅपरेटिव के रजिस्ट्रार को, जिलाधीश दरभंगा को, दो-तीन बार माननीय सहकारिता मंत्री को, हमारे श्री वशिष्ठ रारायण सिंह ने लिखा था, मैंने भी जो इसके पुराने मंत्री थे, उनको और मुख्यमंत्री को लिखा कि ग्रेन का स्टाकिस्ट व्यापार मंडल को नहीं बनाया गया और एक व्यक्ति विशेष को बनाया गया, जिससे यह मुनाफा उठा सके। उपाध्यक्ष महोदय, वारिसनगर थाने के मनिआरी में एक को-आॅपरेटिव सोसाइटी है, वह अपने गाँव के लोगों के लिए गल्ले की दुकान खोलना चाहती थी। वारिसनगर के बी.डी.सी. ने भी इसके लिए प्रस्ताव पास करके भेजा, लेकिन गल्ले की दुकान चलाने की स्वीकृति नहीं मिली। मैं जानता हूँ कि दर्जनों ऐसे को-आॅपरेटिव हैं, जिनका प्रयास हो रहा है कि उन्हें गल्ले की दुकान चलाने का जिम्मा दिया जाय, लेकिन उन संस्थाओं को अधिकार नहीं दिया जा रहा है। मैं पूछना चाहता हूँ कि यदि इस ढंग से आपका काम चलेगा तो काम कैसे आगे बढ़ेगा? जहाँ आप कहते हैं कि हम को-आॅपरेटिव के आंदोलन को बढ़ाना चाहते हैं, तेजी से आगे बढ़ाना चाहते हैं, तो जैसाकि पंजाब के एक रजिस्ट्रार ने को-आॅपरेटिव आंदोलन को कामयाब बनाने के लिए अपना एक सुझाव दिया है कि को-आॅपरेटिव का रजिस्ट्रार उसे होना चाहिए, जिसने कम-से-कम दस साल तक इस फील्ड का अनुभव प्राप्त किया हो। मैं किसी रजिस्ट्रार की शिकायत नहीं करता, लेकिन जो सुझाव यह है कि जब दस साल के फील्ड का अनुभवी व्यक्ति रजिस्ट्रार का काम करेगा तो आपका काम अच्छे ढंग से चलेगा। उपाध्यक्ष महोदय, मेरा सुझाव है कि इसके लिए सूट-बूट टेªडर्स एंड इंडिपेंडेंट टेªडर्स को बिल्ड-अप किया जाय और किस प्रकार के लोगों को इसमें रखा जाए, इस पर विचार किया जाय। आज नीचे से ऊपर के अफसर उसमें व्यक्तिगत अच्छे भी हो सकते हैं, काबिल भी हो सकते हैं; लेकिन यदि आप को-आॅपरेटिव के आंदोलन को एक नई दिशा देना चाहते हैं, को-आॅपरेटिव आंदोलन का तेजी से विकास करना चाहते हैं जो आॅफिशियल और नन-आॅफिशयल, जो इस काम के अनुभवी हों, उनको रखना चाहिए, ताकि यह आंदोलन सही ढंग से चल सके। उपाध्यक्ष महोदय, मैं आपका अधिक समय नहीं लूँगा। मैं कहना चाहता हूँ कि को-आॅपरेटिव आंदोलन को चलाने के लिए सही माने में डिआॅफिशियलाइज करने की जरूरत है। को-आॅपरेटिव आंदोलन में आप जीवन संचार करना चाहते हैं, उसे सबल बनाना चाहते हैं तो मैं कहना चाहता हूँ कि जिस ढंग से चल रहे हैं, उसको बंद करके नए रास्ते को अपनावें और ऐसे रास्ते को अपनाएँ जिससे काम हो सके। मेरा खयाल है कि सरकार का काम करने का, को-आॅपरेटिव फार्मिंग चलाने का जो तरीका या रंग-ढंग है, वह गलत है, इसलिए अगर सरकार को-आॅपरेटिव फार्मिंग को चलाने के लिए तैयार है और कंज्यूमर्स को-आॅपरेटिव सोसाइटी को सहूलियत देना चाहते हैं तो जनतांत्रिक पद्धति अपनावें। आपने कहा है कि स्टेट कैपटिल्जम नहीं चाहते हैं, कम्युनिज्म नहीं चाहते हैं तो आप जिस ढंग से चल रहे हैं, उससे स्टेट कैपटिलिज्म भी रहेगा और कम्युनिज्म भी कायम रहेगा। इसलिए मैं पूर्ण विश्वास के साथ यह कहना चाहता हूँ कि आप को-आॅपरेटिव के जरिए जनता को जो सुविधा देना चाहते हैं, समृद्ध बनाना चाहते हैं, आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं, तो आपकी इस आंदोलन को डिआॅफिशियलाइज करना होगा और जब ऐसा आप करेंगे तो आपको मालूम होगा कि हम सही दिशा में चल रहे हैं और जनता की माँग की पूर्ति करने में अग्रसर हो रहे हैं।
उपाध्यक्ष महोदय, अब एक बात और कहना चाहता हूँ, जो मैं भूल गया था। सीतामढ़ी का एक मामला, हमारे नवल बाबू भी, तो को-आॅपरेटिव से दिलचस्पी रखते हैं, उनको मालूम है कि पिछले दस-ग्यारह वर्षों से सीतामढ़ी को-आॅपरेटिव का विकास चल रहा है। अभी ाहाल ही में फैसला हुआ है और सीतामढ़ी को-आॅपरेटिव सोसाइटी के जो युगल बाबू हैं, उनकी सहमति से और बिहार सरकार की सहमति से बिहार सरकार ने एडवोकेट जनरल महावीर बाबू को पंच मुकर्रर किया था और उन्होंने फैसला दे दिया’’’