(दिनांक: 28 जुलाई, 1965)


विषय: मंत्रिमंडल के विरूद्ध ‘अविश्वास का प्रस्ताव’ पर चर्चा के क्रम में।

श्री कर्पूरी ठाकुर: उपाध्यक्ष महोदय, मैं प्रस्ताव करता हूँ कि-

‘‘राज्य में खाद्यान्न तथा जीवनोपयोगी सामग्रियों की बढ़ती हुई मूल्य-वृद्धि तथा अभाव के कारण जो भूखमरी की भयावह स्थिति है, उसे रोकने में मंत्रिमंडल की असफलता के चलते सदन मंत्रिमंडल पर अविश्वास प्रकट करता है।’’

उपाध्यक्ष महोदय, सरकार पर मेरा यह अभियोग है कि इस सरकार ने योजनापूर्वक एवं सफलतापूर्वक बिहार राज्य को दुर्भिक्ष के द्वार पर लाकर खड़ा कर दिया है। आज बिहार राज्य की स्थिति इतनी भयावह है कि मेरे जानते इसकी व्यापकता की तुलना किसी दूसरे समय से नहीं की जा सकती है। जिस समय भारत की आजादी कैद थी, भारत की आर्थिक एवं सामाजिक दशा खराब थी, जिस समय उचित बातों के कहने और बोलने के लिए भारतीयों की जबान एवं कलम कैद थी, उस समय भी अपने देश में अन्न-संकट के कारण तबाही की जो स्थिति थी, वह उतनी भयावह नहीं हुआ करती थी, जितनी आज हैं। मैं यह तसलीम करता हूँ कि अंग्रेजी राज्य में 1800 ई. से 1825 ई. तक पाँच बार, सन् 1825 ई. से 1850 ई. तक दो बार, 1850 ई. से 1875 ई. तक 6 बार और 1875 ई. से 1900 ई. तक 18 बार भारत में अकाल पड़ा था, लेकिन यहाँ यह उल्लेखनीय है कि चाहे जितने भी अकाल पड़े हों, वे सीमित क्षेत्र में और सीमित दायरे में पड़ा करते थे। उसकी व्यापकता उतनी नहीं हुआ करती थी, जितनी व्यापकता आज के संकट की है। यह मैं हीं नहीं कहता, फूडग्रेंस इन्क्वायरी कमेटी के चेयरमैन, श्री अशोक मेहता ने अपने प्रतिवेदन के 101 पृष्ठ पर यह लिखा है कि अंग्रेजी राज्य के जमाने में जितने अकाल पड़े थे और जहाँ अकाल पड़ता था, उस तरह की बात अब आजाद भारत में संभव नहीं है। इसका कारण इन्होंने यह बताया है कि उस समय सड़कों का विकास, रेलवे का विकास और यातायात का विकास बड़े पैमाने पर नहीं हुआ था। देश में अनाज रहता था, लेकिन आवागमन की कठिनाइयों के कारण जो हिस्सा अभावग्रस्त होता था, वहाँ अनाज नहीं पहुँचाया जा सकता था। फलस्वरूप अकाल पड़ता था और लाखों लोग मौत के शिकार हो जाया करते थे, लेकिन अब देश में यातायात का विकास हुआ है, बड़े पैमाने पर हुआ है, न केवल रेल, न केवल ट्रक के द्वारा बल्कि अभावग्रस्त क्षेत्रों में हवाई जहाज के द्वारा अन्न पहुँचाया जा सकता है, तो इस प्रकार के अकाल का खतरा कतई नहीं है। बिहार में अकाल की संभावना अंग्रेजी राज्य के जमाने में रहती थी, वह अब नहीं है। यह सवाल ठीक है कि अन्न का संकट है, चीजों का दाम बहुत बढ़ा हुआ है, मगर हम दाम का मुकाबला सफलतापूर्वक कर रहे हैं, हम तो लाखोंझारों लोगों को मरने नहीं दे रहे हैं। इस तरह की बहस करना गलत होगा। प्रश्न यह है कि जो संकट हिंदुस्तान में पहले आता था, जो संकट पश्चिम बंगाल में 1943 ई. में आया था, उसके मुकाबले में आज का संकट व्यापक है या नहीं, उसके मुकाबले में आज की तकलीफें और तबाही बड़े पैमाने पर जनता भोग रही है या नहीं? यदि इस प्रश्न की जाँच सच्चाई के साथ की जाए तो इस निष्कर्ष पर हम निस्संदेह पहुँचेंगे कि उस जमाने के मुकाबले में आज की जनता का संकट, तकलीफ और तबाही व्यापक है, बहुत ज्यादा है। जहाँ तक चीजों के दाम का संबंध है, उपाध्यक्ष महोदय, फूड-एंड कमीशन ने उस समय अन्न के दामों के संबंध में उल्लेख किया था, जो कमीशन सरकार के द्वारा बहाल की गई थी, उसने अन्न के दामों का जो उल्लेख किया था, उसके मुकाबले में यदि आज के दाम को देखा जाए तो पता चलेगा कि उसके मुकाबले में आज दाम कुछ मामलों में ज्यादा बढ़ गया है। आज चावल 40 रू. से लेकर 45 रू., 55 रू. मन तक बिक रहा है। मकई 35 रू. से लेकर 38 रू. और 40 रूपए मन तक बिक रहा है। चना भी इसी दाम पर बिक रहा है। इस तरह आज जितनी भी चीजें हैं, उनके दामों को देखा जाए तो मालूम पड़ेगा कि सभी चीजों का दाम आज आसमान छू रहा है। मामूली अलुआ भी आज 15 रू. मन बिक रहा है। किरासन तेल, जो कुछ समय पहले 6 आने बोतल बिकता था, आज दस आने, बारह आने और एक रूपए बोतल बिक रहा है। आज सारे राज्य में अनाज की तरह किरासन तेल का अकाल भी व्याप्त हैं यह पूछा जा सकता है कि आखिर आज जो अन्न का अकाल है, इतना भयंकर अकाल है, इसका क्या कारण है? मैंने इसकी जाँच करने की कोशिश की है, विश्लेषण करने की कोशिश की है और मेरे जानते इसके कई कारण हैं। पहला कारण तो यह है कि अपने राज्य में आनाज की पैदावार जरूरत के हिसाब से कम होती हैं। दूसरा कारण यह है जो बड़े-बड़े सेठ और साहूकार हैं, वे करोड़ों रूपए खर्च करके, हजारों, लाखों मन गल्ला अपने गोदामों में जमा कर लेते हैं। तीसरा कारण यह है कि आज, जो सरकारी गल्ले की दुकानें हैं, उनमें आवश्यकतानुसार पर्याप्त गल्ले की आपूर्ति नहीं होती। चैथा कारण यह है कि जो कुछ सरकारी गल्ले की दुकानों में गल्ले की आपूर्ति होती है, वह गल्ला जिसको मिलना चाहिए, उसे सोलह आने नहीं मिलता। गल्ला चोर बाजार में चला जाया करता है। पाँचवाँ कारण यह है कि मुनाफाखोरी के लिए, चोरबाजारी के लिए और जिनको गल्ला नहीं मिलना चाहिए, सरकारी गल्ले की दुकान से उन्हें गल्ला प्राप्त हो जाता है। जब ये कारण हमारे यहाँ मौजूद हैं और सरकार इन कारणों को दूर नहीं कर पा रही है और कर भी नहीं सकती है, तो फिर आज जो अकाल की परिस्थिति है, उसका व्यापक होना स्वाभाविक है।