(दिनांक: 30 अगस्त, 1965)


विषय: सदस्य द्वारा वैयक्तिक स्पष्टीकरण के संबंध में दिए गए वक्तव्य।

श्री कर्पूरी ठाकुर: अध्यक्ष महोदय, चूँकि गांधी मैदान में 10 अगस्त को हम लोगों पर हुए लाठी-प्रहार के संबंध में मुख्यमंत्री ने 11 अगस्त को इस सदन में जो बयान दिया, उसमें कई गलतबयानियाँ हुई है, मैं आपकी अनुमति से निम्नलिखित स्पष्टीकरण अत्यंत संक्षेप में इस सदन के समक्ष उपस्थ्तिा कर रहा हूँ-

मुख्यमंत्री ने अपने बयान में उस दिन कहा था कि श्री रामानंद तिवारी, श्री कर्पूरी ठाकुर, श्री रामचरण सिंह एवं अन्य व्यक्तियों पर लाठी-प्रहार के परिणामस्वरूप जो जख्म आए थे, वे साधारण थे। अध्यक्ष महोदय, मुख्यमंत्री का उक्त बयान सच्चाई से कोसों दूर है। यह प्रमाणित तथ्य है कि श्री चंद्रशेखर सिंह के माथे पर इतना निर्मम प्रहार हुआ था कि वे अब तक पटना अस्पताल में जीवन और मृत्यु के झूले के बीच झूल रहे हैं। उनकी जिंदगी अभी भी खतेरे से खाली नहीं कही जा सकती है। श्री राम चरण सिंह, एम.एल.ए. पर, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के कार्यकर्ता श्री योगेन्द्र ठाकुर पर और मेरे ऊपर अंधाधुंध इतनी अधिक लाठी का प्रहार हुआ था कि दूसरे जख्मों के अलावे श्री राम चरण सिंह का दाहिना हाथ टूट (फ्रैक्चर) गया है। श्री योगेन्द्र ठाकुर के दाहिने हाथ का निचला हिस्सा टूट गया, फ्रैक्चर हो गया और मेरा बायाँ हाथ टूट गया, फ्रैक्चर हो गया। डाॅक्टरों के कथनानुसार उन जख्मों के ठीक होने में महीनों का समय लगेगा। श्री रामानंद तिवारी पर इतनी गहरी मार पड़ी कि जेल में कई दिनों तक उनके मुँह से खून आता था। अत्यंत दर्द के कारण वे अभी तक किसी दूसरे का सहारा लिये बिना ठीक से चलने-फिरने में असमर्थ हैं। कम्युनिस्ट नेता श्री रामावतार शास्त्री पर लाठियों के अलावे बंदूेक के कुंदों से भी मार पड़ी थी। उसके फलस्वरूप उनके पंजे और कमर में अभी तक दर्द बना हुआ है। चलने-फिरने में उन्हें अभी तक काफी तकलीफ होती है। श्री पृथ्वीनाथ तिवारी और श्री भगवत ठाकुर (उर्फ श्री भग्गु ठाकुर) पर भी जबरदस्त मार पड़ी थी, जिसका असर आज तक उनके बदन पर है और वे पहले की तरह अभी तक चलने-फिरने लायक नहीं हो पाए हैं।

अध्यक्ष महोदय, स्वयं डाॅक्टरी परीक्षा और एक्स-रे रिपोर्ट से यह साफ है कि हममें से कितनों के जख्म साधारण नहीं, बल्कि सख्त हैं। (सिंपुल नहीं, ग्रिवीयस हैं)।

ध्यक्ष महोदय, श्री रामानंद तिवारी और हम सभी लोगों पर गांधी मैदान में एक वित सामग्रियों में आग लगाने का भी आरोप मुख्यमंत्री ने लगाया है। मैं इस संबंध में इतना ही कह सकता हूँ कि उनका यह आरोप सत्य से उतनी ही दूर है, जितनी सूर्य से पृथ्वी। अध्यक्ष महोदय, मुख्यमंत्री ने उस दिन अपने बयान में कहा था कि जब हम लोग गांधी मैदान में सभा कर रहे थे तो पुलिस के पहुँचते ही भीड़ भागने लगी, किंतु हम लोग डटे रहे और स्ीाभा करने पर तुले रहे। इसलिए हम लोगों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने लाठियों का प्रहार किया। स्वयं मुख्यमंत्री के बयान को ठीक से पढ़ने से उनकी गलतबयानी हवा हो जाती है। मुख्यमंत्री के कथनानुसार जब पुलिस के पहुँचते ही भीड़ भागने लगी तो भला हम किसको लेकर सभा करते और जब हम आठ व्यक्तियों को छोड़कर वहाँ कोई्र भीड़ रह ही नहीं गई थी तो भीड़ को तितर-बितर करने के लिए लाठियों के प्रहार का प्रश्न ही कहाँ उठता है? सच तो यह है कि भीड़ को तितर-बितर करने के लिए नहीं, बल्कि हम आठ व्यक्तियों को बेरहमी के साथ वहाँ पीटने के लिए पुलिस पहुँची थी और एस.डी.ओ. के आदेशानुसार पुलिस ने हम लोगों को हिरासत में लेकर हम लोगों पर निर्दयतापूर्वक प्रहार किया। अध्यक्ष महोदय, मुख्यमंत्री का यह बयान भी सरासर गलत था कि हम लोगों ने जेल में दवा खाने से इनकार कर दिया था। इसमें सत्य यह है कि हम लोगों ने शुरू में ही माँग की थी कि हम लोगों को जख्म रिपोर्ट (इनजुरी रिपोर्ट) की एक-एक प्रतिलिपि अवश्य मिल जानी चाहिए। सिविल सर्जन का आश्वासन मिला था कि रिपोर्ट की प्रतिलिपि हमें दी जाएगी। हम 10 अगस्त की रात से 11 अगस्त की 9 बजे सुबह तक दवा लेते रहे, लेकिन जब सिविल सर्जन ने रिपोर्ट देने से इनकार कर दिया तो हमने भी दवा लेने से इनकार कर दिया। जब 12 अगस्त को आपने जेल में जाकर हम लोगों को देखने का कष्ट उठाया और आश्वासन दिया कि जख्म रिपोर्ट (इनजुरी रिपोर्ट) में गोलमाल नहीं होगा, तो हम लोगों ने दवा लेना शुरू कर दिया।

अध्यक्ष महोदय, मुख्यमंत्री ने उस दिन एक मजेदार बात यह कही थी कि जब तक हम लोगों ने कानून भंग नहीं किया था, वे हम लोगों को घर पर कैसे गिरफ्तार करते? इस संबंध में इतना ही कह देना काफी होगा कि मुख्यमंत्री ने सारे राज्य में सैकड़ों व्यक्तियों को कानून भंग करने के अपराध में गिरफ्तार नहीं किया है, बल्कि केवल इस संदेह पर गिरफ्तार किया है कि उनका बाहर रहना शांति और सुव्यवस्था के लिए खतरनाक होगा। अध्यक्ष महोदय, मुख्यमंत्री ने कहा है कि उस दिन पुलिस ने हम लोगोगं पर जो जुल्म ढाया, वह सर्वथा उचित था। हम इस मुख्यमंत्री से किसी दूसरी चीज की उम्मीद भी नहीं करते हैं। हमारा निश्ष्चित मत है कि इस मुख्यमंत्री से यह आशा करना कि वे असत्य को असत्य, अनुचित को अनुचित और अन्याय को अन्याय कहेंगे, उसी तरह व्यर्थ है, जिस तरह पानी को मथकर घी निकालने और बालू को पेरकर तेल निकालने की आशा करना व्यर्थ है।