(दिनांक: 18 जुलाई 1967)
विषय: सरकार द्वारा 100.64 करोड़ के घाटे को पूरा करने के लिए लाए गए प्रस्ताव पर दिए गए वक्तव्य।
श्री कर्पूरी ठाकुर: अध्यक्ष महोदय, 15 मिनट का कम समय है, इस डिवेट के सिलसिले में कितनी बातें बतलाई गई हैं, जो आलोचनाएँ की गई हैं और अनुपूरक बजट के सिलसिले में जो टैक्स के प्रस्ताव लाए गए हैं, उनका जो विरोध किया गया है, सबका उत्तर देना मेरे लिए इतने कम समय में संभव नहीं है। इसीलिए मैं, जब एप्रोप्रिएशन बिल इस सदन के समक्ष उपस्थित होगा और उस बिल पर बहस के सिलसिले में जो बातें उठाई जाएँगी, उन बातों के उत्तर के साथ-साथ कल और आज जो विवाद हुए हैं, उनका भी उत्तर विस्तार से देना चाहूँगा। जो प्रश्न अभी विरोधी दल के नेता माननीय श्री महेश प्रसाद सिंह ने उठाया है माननीय श्री कामाख्या नारायण सिंह जी के संबंध में, मैं स्पष्ट रूप से उन प्रश्नों का भी उत्तर उसी दिन देना चाहूँगा जैसाकि उन्होंने उत्तर देने का आग्रह सरकार से किया है।
श्री हरिनाथ मिश्र: उत्तर संतोषजनक देंगे?
श्री कर्पूरी ठाकुर: संतोषजनक होगा या नहीं होगा, लेकिन सत्य और तथ्य के आधार पर जो सरकार को उत्तर देना चाहिए, वह उत्तर सरकार अवश्य इस सदन के समक्ष उपस्थित करेगी। बात यह है कि आप लोगों ने जो कुछ पिछले वर्षों में किया है, उनसे संतुष्ट हो जाना और उनसे संतुष्ट होकर उत्तर देना मेरे लिए असंभव है। मैं उत्तर दूँगा, वही जो सत्य है, तथ्य है। सत्य के आधार पर, तथ्य के आधार पर मैं जिधर-तिधर होनेवाला नहीं हूँ। संतोष मुझे होगा या आपको होगा, यह मैं नहीं कह सकता कि क्या होगा? फिर भी अध्यक्ष महोदय, चंद शब्दों के उत्तर के क्रम में निेवेदन करना चाहूँगा कि मैंने अपने बजट भाषण में यह बतलाया था कि 43.06 करोड़ का घाटा इस वर्ष होनेवाला है। मैंने विविध उपायों का उल्लेख करके यह सदन को बतलाया था कि 43.06 करोड़ का घाटा 13 करोड़ के घाटे में परिणत हो जाएगा और जो मितव्ययिता के उपाय हैं, जो फिजूलखर्ची के मदों को समाप्त करे देने का उपाय है, जो रूपए बचा-बचाकर अच्छे कामों में लगाने के उपाय है, उत्पादन बढ़ाने के काम में लगाने के उपाय हैं और साथ-ही-साथ जो नए करों से कुछ रूपए प्राप्त करने के उपाय हैं, उन पर संक्षिप्त में प्रकाश डाला है। जो थोड़ा सा नए कर लगने वाले हैं, उनके विरूद्ध विरोधी दल के नेता माननीय महेश बाबू ने अपनी आवाज उठाई है। मैं जानता हूँ कि वे ऐसे करों का विरोध करेंगे। जिस कांग्रेसी सरकार ने पिछले 20 वर्षों में जनता की कमर तोड़ने वाले कर अनेक बार लाया है और जनता को तबाह और परेशान किया। नए टैक्सों से कांग्रेसी सरकार ने 20 वर्षों में इस प्रांत की प्रगति का काम नहीं किया, बल्कि उन करों के जरिए प्रांत को प्रगति के काम में रोड़े अटकाने का काम किया। जनता को तंग, तबाह और बरबाद करने का काम किया। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं हैं कि श्री महेश प्रसाद सिंह ऐसे करों का विरोध कर रहे हैं। वह इसलिए कि उनके द्वारा लाए गए कर जनता को तंग और तबाह करनेवाले थे, लेकिन यह कर कुछ ऐसे वर्गों पर लगने जा रहा है, जिन्हें कुछ कष्ट में डाल सकता है, जिन वर्गों का प्रतिनिधित्व कांग्रेस पार्टी करती है और कांग्रेसी नेता करते हैं।
हमने जो नए-नए टैक्स लगाने का प्रस्ताव रखा है, वह प्रस्ताव मजदूरों को, गरीब किसानों को, गरीब विद्यार्थियों को, गरीब जनता को नहीं स्पर्श करता। उनकी जेब को नहीं छूते हैं, उनकी जेब का रूपया निकालकर सरकार के कोष में नहीं डालते हैं, बल्कि हमारा जो प्रस्ताव है, उन प्रस्तावों से अमीरों की थैली जरूर कटेगी, अमीरों के ऊपर जरूर कुछ आघात करेगा और वैसे प्रस्ताव का विरोध विरोधी दल के नेता द्वारा होना स्वाभाविक है, मैं इसमें कोई अस्वाभाविकता नहीं देखता, मैं कोई आश्चर्य नहीं देखता। यह सब दुनिया को मालूम है कि बिहार सरकार ने यह अटल निर्णय किया है, जिसके फलस्वरूप मालगुजारी प्रथा का खात्मा 1 अप्रैल, 1967 ई. से हो चुका है। यह ठीक है कि इस सदन को कानून बनाना बाकी है। इस सदन को, जो बिहार सरकार का निर्णय है, उस पर बजाप्ता मुहर लगाना बाकी है। लेकिन यह हमारा निर्णय असंदिग्धपूर्ण है, यह निर्णय हमारा अटल है कि हम मालगुजारी प्रथा का खात्मा 1 अप्रैल, 1967 ई. से कर चुके हैं। यह सवाल ठीक है कि भूमि कर लगेगा। बिहार सरकार का निर्णय है कि भूमि कर लगेगा। भूमि कर का विरोध करना विरोधी दल के माननीय नेता के लिए बिल्कुल आवश्यक है। इसलिए आवश्यक है कि भूमि कर किन लोगों पर लगेगा? भूमि कर अगर लगेगा तो बहुत ज्यादा जमीन वालों पर लगेगा और जैसाकि विरोधी दल के नेता ने कहा है, वह ऐसा नहीं लगेगा कि 80 रूपया या 90 रूपया एकड़ के हिसाब से होगा। यह हम लोगों ने कभी सोचा भी नहीं है। आपको पता होगा कि कांग्रेसी सरकार द्वारा कृषि आय कर कानून लागू है। लेकिन यह भी ठीक है कि कृषि आय कर कानून से बिहार सरकार को कोई खास आमदनी नहीं होती। एक तरफ कृषि आयकर कानून है और दूसरी तरफ कृषि आय कर के जरिए सरकारी कोष में कोई खास आमदनी भी नहीं होती। मैंने पिछले कई वर्षों का हिसाब उठाकर देखा है, कृषि आय कर से कम-से-कम 49 लाख रूपया और ज्यादा-से-ज्यादा 78 से 80 लाख तक रूपए एक साल के अंदर आते रहे हैं। सरकारी कोष में जहाँ कृषि आय कर से करोड़ों रूपए की आमदनी बिहार सरकार की कोष में आनी चाहिए थी, वह आमदनी आती रही है कम-से-कम 49 लाख और ज्यादा-से-ज्यादा 78 से 80 लाख तक। इतनी कम आमदनी इससे क्यों आई? इसलिए आई कि कांग्रेसी सरकार ने कभी कृषि आय कर को ईमानदारी से लागू नहीं किया। कृषि आय कर इन लोगों ने ईमानदारी से लागू किया नहीं। अगर कहीं लगाया भी तो, जिनको कृषि आय-कर देनी चाहिए थी, उसने कम दिया। अगर यह ठीक से लगाया गया होता तो इससे सरकारी कोष को 5 लाख रूपया देना चाहिए था। लेकिन इन्होंने बड़े-बड़े काश्तकारों और जमींदारों को यह कर लगाया नाम मात्र का। पाँच से दस हजार तक ही लगाए। बड़े-बड़े काष्तकारों और जमींदारों को उनलोगों ने अपने स्वरूप के कारण, चरित्र के कारण कृषि आयकर नहीं लगाया और लगाया भी तो बहुत कम। उनकी नीति है कि बड़े-बड़े काष्तकारों को बचाएँ और छोटे-छोटे काश्तकारों को मारेंगे, मझोले को मारेंगे। हमारी सरकार का यह निर्णय है कि हम भूमि कर लगाएँगे और जो छोटे-छोटे काश्तकार हैं, मामूली काश्तकार हैं, जिनकी सालाना आमदनी साल भर मेहनत करने के बाद भी बहुत कम हुआ करती है, इतना कम कि वे अपने बाल-बच्चों को ठीक से पढ़ा-लिखा नहीं सकते, ठीक से दवा-दारू नहंीं करा सकते, ठीक से अपनी जिंदगी तथा उनके जीवनयापन नहीं कर सकते, ऐसे तमाम काश्तकारों पर भूमिकर नहीं लगेगा। यह बड़े-बड़े काश्तकारों पर लगेगा।
इस दृष्टि से हम मालगुजारी खत्म करके यह चाहते हैं कि अगर पूर्ण रूप से नहीं हो तो कुछ हमारा वादा पूरा हो जाए। आप इसका विरोध करते हैं, तो हम भी यह जानते हैं कि यह स्वाभाविक है। शराबबंदी के संबंध में, बावजूद इसके कि महात्मा गांधी ने यह कहा था कि शराबबंदी का आंदोलन चलाया जाए, मैं पूछता हूँ कि हमारे कितने माननीय सदस्य होंगे, जिन्होंने शराबबंदी के आंदोलन में भाग लिया था और जेल की यातनाएँ सही थीं? लेकिन जिन कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने आंदोलन में भाग लिया था, जब कांग्रेस राज्य हुआ, उनके समय में सिर्फ 25,50 नहीं, बल्कि हजारों नई दुकानें खुल गईं। कांग्रेस राज्य में शराबखोरी इतनी बढ़ गई, जिनमें अधिकतर मोटे और बड़े-बडे लोग ही शराब पीते, जिसको आप भी जानते हैं। अगर ऐसे लोगों के ऊपर हम टैक्स बढ़ा देते हैं और आमदनी होती है, तो हम अन्याय नहीं करते हैं। यह हमको अन्याय नहीं मालूम पड़ता है। उस पैसे से गरीब लोगों का काम होगा, जो लोग मामूली ढंग से शराब पीते हैं, अगर हमने उन लोगों पर, मोटे लोगांे पर थोड़ा बढ़ाया है और जब शराबखोरी चलती है तो कोई वजह नहीं हैे कि थोड़ा टैक्स वे नहीं देंगे और हम यह समझते हैं कि उस पैसे से गरीबों का काम करते हैं। गरीबा का कल्याण करते हैं, अच्छा करते हैं। दूसरी बात यह है कि टैक्सी के ऊपर हम कुछ टैक्स बढ़ोने जा रहे हैं। माननीय सदस्य श्री महेश बाबू ने कहा कि तीन आदमियों के बदले 6 आदमियों को चढ़ाने को कहते हैं।
श्री महेश प्रसाद सिंह: हमने कहा है कि चार आदमियों के बदले 6 आदमी चढ़ेंगे।
श्री कर्पूरी ठाकुर: पहले चार आदमियों को चढ़ाने के लिए था तो कितने लोग हैं, चढ़ते रहे, यह हम सब जानते हैं। इसलिए मैं कहना चाहता हूँ कि अगर वे 6 आदमियों को चढ़ाते हैं तो उनसे हमको लाखों रूपया मिल जाता है तो इसमें क्या बुराई है? बिहार में दो हजार टैक्सी ऐसे चलते हैं, जिनको लाइसेंस नहीं है। ऐसे 25,50 या 100 नहीं हैं, बल्कि हजारों हैं, जिनसे सरकार को एक पाई नहीं मिल रहा है। इसलिए हम यह चाहते हैं कि ऐसे लोगों से सरकार के कोष में रूपया मिले। हम यह बात बरदाश्त नहीं कर सकते हैं कि बिना लाइसेंस के, बिना रजिस्टेªशन के लोग चलाते रहें और उन पर प्रतिबंध नहीं रहे। हम बता देते हैं कि अब वे बिना लाइसेंस के और बिना रजिस्टेªेशन के नहीं चला सकते हैं जो तथ्य है, सब के सामने है। उसको हम स्वीकार कर लेते हैं। हम केवल तथ्य को स्वीकार कर रहे हैं, अँेधेर नहीं कर रहे हैं। जितने ट्रक सड़कों के ऊपर चलते हैं, उनमें ज्यादातर पश्चिम बंगाल से ट्रक चलता है और बिहार की सड़कों पर होते हुए उत्तर प्रदेश चला जाता है। उस पर 11 टन माल रहता है, लेकिन कागज पर 6 टन लिखा रहता है।
यह काम आपका होना चाहिए था कि देखें कि पुल कमजोर है या मजबूत है, लेकिन इसको देखनेवाला कोई नहीं था कि पुल मजबूत है या कमजोर है। पश्चिम बंगाल से 10 टन या 11 टन माल लदा हुआ चलता था और वह ट्रक यू.पी. चला जाता था, लेकिन कागज पर रहता था 6 टन माल ही। हमने देखा कि यह बड़ा अन्याय है और इसलिए हमने यह फैसला किया 10 टन या 11 टन माल लदा हुआ चलता है, लेकिन कागज पर 6 टन माल ही लिखा रहता है; इसलिए एक्सचेकर को लाखों लाख रूपए का घाटा होता है और लाखोंलाख जो बरबाद होता है, हम इसको बरदाश्त करने के लिए तैयार नहीं है। हमने फैसला किया कि अगर 10 टन या 11 टन माल लादा जाएगा, जो बड़े-बड़े व्यापारी हैं या चोरबाजारी करनेवाले हैं या मुनाफाखोर है और जो लोग बिहार सरकार के पैसे की लूट कर रहे हैं और बड़े-बड़े व्यापारी चोरबाजारी करनेवाले या मुनाफाखाुेर, जो कांग्रेस राज्य में इस तरह की लूट करते थे, हमने फैसला किया कि हम उनको नहीं चलने देंगे और लाखों रूपए, जो ट्रक से माल लादकर ले जाते हैं, कमाते हैं, हम उनसे टैक्स वसूल करेंगे और उस पैसे को खजाने में हम जमार कर देंगे और उस पैसे से जनता के कल्याण का काम करेंगे। अध्यक्ष महोदय, जितने विरोध हैं, जितनी आलोचनाएँ हैं, उन सबों का उत्तर मैं ऐप्रोप्रिएशन बिल पर जो वाद-विवाद होगा, उस समय देने वाला हूँ। मैंने निश्चित रूप से और स्पष्ट रूप से जो कुछ कदम उठाया है, वह सही है। उन्होंने कहा है कि नए कर लगाए गए हैं, लेकिन हम इसके द्वारा छिद्रों को बंद करना चाहते हैं, बेईमानी को रोकना चाहते हैं और बिहार की जनता के हित के लिए योजना के काम को तेजी के साथ चलाना चाहते हैं। मैं योजना के संबंध में एक उत्तरा देने वाला हूँ, जिसको सुनकर विरोधी दल के दाँत खट्टे हो जाएँगे। हिंदुस्तान की किस कांग्रेसी सरकार ने कितने रूपए योजना पर खर्च किया है, इसके बारे में भी कहूँगा। हम नया कर नहीं लगाते, लेकिन हम परिस्थिति से घिरे हुए हैं और अकाल मेरे माथे पर है और लोगों को बचाना है। योजना में हम बहुत ज्यादा कटौती कर सकते थे, लेकिन जो इम्पोरटेंट योजना है, उस योजना म ें हमने बहुत ज्यादा कटौती नहीं किया है। इन सारी बातों को मैं जब ऐप्रोप्रिएशन बिल आएगा, उस समय फिर साबित करूँगा। मैं कहना चाहता हूँ कि बिहार सरकार, जो मौजूदा सरकार है, वह चाहे रहे या जाए, वह जानता के हित के लिए काम करेगी, क्योंकि जनता ही सर्वोपरि है और जो मैं कार्रवाई करूँगा, उसके लिए करूँगा। इन्हीें शब्दों के साथ मैं अपना वक्तव्य समाप्त करता हूँ।