(दिनांक: 16 सितंबर, 1953)


विषय- श्री रमेश झा द्वारा दिनांक 9 सितंबर, 1953 ई. को लाए गए प्रस्ताव ‘दि बिहार सेटेनेंस आॅफ पब्लिक आर्डर बिल, 1953 पर समर्थन के क्रम में श्री कर्पूरी ठाकुर द्वारा दिया गया भाषण।

Shri Ramesh Jha : Sir, I beg to move;
"The Bihar Maintainance of Public order (2nd Amendment) bill, 1953 be circulated for the purpose of eliciting Public opinion there on be the 9th October 1953."

श्री कर्पूरी ठाकुर: अध्यक्ष महोदय, मैं बिहार मेंटेनेंस आॅफ पब्लिक आर्डर बिल का विरोध करने के लिए खड़ा हुआ हूँ और इसके मुतल्लिक जो श्री रमेश झा का प्रस्ताव है, उसका समर्थन करने के लिए मैं खड़ा हूँ। इस बिल की धारा और उपधारा के ऊपर विचार व्यक्त करने के पहले हम उन बातों का जवाब दे देना चाहते हैें, जिनका जिक्र हमारे रेवेन्यू मिनिस्टर ने परसों किया था। उनका कहना था कि इस बिल के खिलाफ न तो अखबारों में हलचल है और न जनता में घबराहट ही है और न इससे रुकावट होने से किसी को सभा मंच से व्याख्यान ही देने में बाधा पड़ती है। इस बिल का विरोध केवल विरोधी पक्ष की ओर से केवल दिखलाने के लिए हो रहा है, जो बिल्कुल निराधार है। उनका विरोध तथ्यहीन है और उनका यह प्रयास केवल बकवास है। उनकी बहस में कोई दलील नहीं है। मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि ब्रिटिश सरकार के जमाने में जब इस तरह का बिल आता था तो हमारे रेवेन्यू मिनिस्टर उसका विरोध करते थे और वे केवल बाहर हीं नहीं बल्कि इस सदन के भीतर भी उसका घोर विरोध करते थे। लेकिन आज जब उनकी हुकूमत है, तो वे भी इस तरह के दमनकारी बिल को लाकर यह कहते हैं कि इसके चलते न जनता में कोई हलचल है और न अखबारों में घबराहट है! हमको इस बात को सुनकर आश्चर्य होता है कि अंग्रेजों के जमाने में जनता की स्वतंत्रता के लिए लड़नेवाले किस मुँह से इस तरह का बिल यहाँ पर पेश करते हैं और इस तरह की बात करते हैं। उनका कहना है कि ‘देशबंधु’ के परंपरा के अखबारों की तरफ से इस बिल का कोई विरोध नहीं है और न सभा मंच से इसका कोई विरोध ही प्रकट किया जा रहा है। मैं समझता हूँ कि उनका यह कहना बिल्कुल गलत है और उसको मानने के लिए मैं कभी तैयार नहीं हूँ। इस बिल का विरोध उन्हीं लोगों के द्वारा होता है, जिनके दिल में जनता की स्वाधीनता की भावना है। हेरल्ड लास्की का यह कहना है कि आजादी के लिए लड़नेवालों की संख्या हमेशा कम होती है।

"FRIENDS OF LIBERTY ARE ALWAYS IN MINORITY IN HUMAN SOCIETY."
अगर हम लोग आज अल्पसंख्यक हैं, तो इसके लिए हम लोगों को गौरव है कि जनता की आजादी के लिए हम लोग अल्पसंख्यक होते हुए भी लड़ रहे हैं और इस तरह के दमनकारी बिल का विरोध कर रहे हैं। उनका यह कहना कि जनता इस बिल के खिलाफ है, एक थोथी दलील है। यह तभी ठीक हो सकता है, जब वे अपने पिछले जमाने के लिए कामों और व्याख्यानों से इनकार करें। दूसरी बात उन्होंने एक किस्सा कहकर सुनाया था।


(अंतराल)


अध्यक्ष महोदय, मैं कह रहा था कि मौजूदा बिल अगर जनता के कानों तक नहीं पहुँचा है, तो इसका कारण यह नहीं है कि इस बिल के विरुरूद्ध जनमत नहीं है, बल्कि इसका कारण यह है कि नागरिक की स्वतंत्रता पर आघात के प्रति सक्रिय रूप सेे कुछ करनेवाले सेंसेटिव लोगों की संख्या में कमी है, जैसाकि हर समाज में हुआ करती है। आज से वर्षों पहले पश्चिमी देश के बारे में लिखते हुए पं. नेहरू ने जो कुछ कहा था, उसे मैं पढ़ने के लोभ को सँवरण नहीं कर सकता हूँ। पश्चिमी देश में ऐसी बातें हुई हैं और वहाँ इसका प्रतिरोध काफी होता है। उन्होंने कहा है-

"In western countries a strong public opinion has been built up in favour of civil liberty and any limitation of them is resented and opposed. There are large numbers of people who though not prepared to participate in strong and direct action themselves, they are enough for the liberty, for speech and writing, assembly and organization, persons and press do agitate for them seriously, thus helping to check the tendency of the State to encroach upon them."

समय बचाने के लिए मैं इसे और पढ़ना नहीं चाहता हूँ। जब अंग्रेज लोग नागरिक की स्वतंत्रता पर आघात करते थे, तो उस समय लिबरल लोगों को कोसते हुंए उन्होंने कहा था कि हमें सक्रिय रूप से कुछ करना चाहिए। आज माननीय राजस्व मंत्री अपने को डेमोक्रेट होने का दावा करते हैं। अगर सचमुच में वे डेमोक्रेट हैं, तो जनता से कहना चाहिए था कि इस बिल पर तुम्हारी क्या राय है? जनता में 15 अगस्त, 1947 ई. को जो उत्साह का नजारा देखने में आया था, वह आज बिल्कुल खत्म हो गया है और इससे फायदा उठाकर जनता की सरकार ऐसा बिल लाती है। अध्यक्ष महोदय, आपको यह अनुभव होगा कि आज जनता इस हालत में पहुँच गई है कि किसी मनुष्य या किसी पार्टी पर जनता का विश्वास नहीं है। आज वे कहते हैं कि-

कोई नृप होंहि हमें का हानी, चेरी छोड़ न होएब रानी।


आप इस भावना से फायदा उठाते हैं, मगर इसे दूर करने की कोशिश एकदम नहीं करते हैं। राजस्व मंत्री ने कहा है कि विरोधी पक्ष हर बिल पर जनमत जानने का एक प्रस्ताव पेश कर देते हैं। हमने यह देखा है कि विरोधी पक्ष ने सैंकड़ों पच्चीस बिल पर लोकमत जानने की माँग की है। अगर जनता में असंतोष है, तो हम क्यों नहीं लोकमत जानने की माँग पेश करेंगे? क्या जब श्री कृष्ण बल्लभ सहाय और डाॅ. श्री कृष्ण सिंह कौंसिल के मेंबर थे, तो इस प्रणाली को नहीं अपनाते थे? जब आपने इस प्रणाली को अपनाया, तब यह ठीक था, लेकिन आज के विरोधी दल अगर उस प्रणाली को अपनाता है, तो वह प्रणाली गलत है! क्या लौजिक है? किस तरह से आपका विचार बदल गया है, इससे साफ पता चलता है। आज डेमोक्रेसी का अर्थ यह नहीं है, जैसाकि एच.जी. वेल्स ने कहा है, रूल आॅफ दि मेजोरिटी नहीं है। उनका कहना यह है कि चुनाव के बाद पाँच वर्ष के अंदर जनता की राय जानने का कोई दूसरा तरीका नहीं है। उन्होंने ‘कन्टीन्यूइंग कान्सेंट आॅफ दि एलेक्टोरेट’ फ्रेज का व्यवहार किया है। ‘कन्टीन्यूइंग कन्सेंट आॅफ दि एलेक्टोरेट’ जानना जरूरी है। मगर लोकमत जानने की माँग एक सीमित माँग है। बिना पब्लिक ओपिनियन में भेजे कैसे ‘कंटीन्यूइंग कन्सेंट आॅफ दि एलेक्टोरेट’ ले सकते हैं? इसके अलावे दूसरा साधन हमारा कहाँ है? अध्यक्ष महोदय, आपने कहा था कि जनमत जानने की माँग प्लेबीसाइट नहीं है, यह चुनाव चुनौती नहीं है। चुनाव में बड़े पैमाने पर लोगों की राय जानी जाती है। मगर ‘कन्टीनयूइंग कन्सेंट आॅफ दि एलेक्टोरेट’ जानने की प्रणाली उसके अंदर सीमित है, फिर भी इस उचित प्रणाली को भी आप दमन करने के लिए तैयार हैं।

तीसरी बात, तो आपने कहीं, वह यह है कि बिना शांति के, प्रगति संभव नहीं है। मैं समझता हूँ कि इससे बढ़कर ऐतिहासिक गलत भावना और कुछ नहीं हो सकती है। मैं नहीं जानता हूँ कि माननीय राजस्व मंत्री को कौन सा इतिहास ने सिखाया है कि शांति बिना प्रगति संभव नहीं हैं, आप भारतीय इतिहास को देखें!। आप जानते हैं कि गुप्तकाल का भारतीय इतिहास में बहुत नाम है। उस समय शांति इसलिए थी कि गरीबी नहीं थी और देश समृद्धिशाली था। उस समय के भारत को सुनहला भारत कहा जाता है। पं. नेहरू ने ‘ग्लिंप्स आॅफ दि वल्र्ड हिस्टरी’ में फाहियान की रिपोर्ट को पेश करते हुए कहा है कि फाहियान का यह कथन है -

"He tells that the people of Magadha were happy and prosperous that justice was mildly administered and there was no death penalty. Gaya was waste and desolate and Kapilavastu had become a jungle but at Patiliputra people were rich and prosperious and virtuous."

गुप्तकाल में भारत में बड़े-बड़े साहित्यिक पैदा हुए, बड़े-बड़े कलाकार पैदा हुए और कालिदास जैसे नाटककार पैदा हुए। ऐसी प्रगति इसलिए हुई कि देश समृद्धशाली था। जहाँ प्रगति है, वहाँ शांति अनिवार्य है, और जहाँ प्रगति नहीं है, वहाँ कभी शांति नहीं स्थापित हो सकती है। इसके अलावे आप अकबर के जमाने के इतिहास को देखें। पढ़ने में समय लेगेगा, इसलिए मैं पढ़ने का लोभ सँवरण कर रहा हूँ। अकबर के राज्यकाल के इतिहास को उद्धृत करते हुए पं. नेहरू ने कहा है कि अकबर उदार आदमी था, इसलिए देश प्रगतिशील था। धार्मिक दृष्टि में वे कट्टर आदमी नहीं थे और वे राजपूत को मिलाकर सभी काम करते थे, इसलिए काम में सफलता भी मिलती थी। अपने राज्यकाल में उन्होंने नया रेवेन्यू सिस्टम चलाया था। इस सब प्रगति के कार्यों को वे इसलिए कर सकते थे, क्योंकि देश में शांति थी। उनके राज्यकाल में तुलसीदास और सूरदास जेैसे महान् व्यक्ति का आविर्भाव हुआ। एलिजावेथ के इतिहास को आप देखें! उनके राज्यकाल में शेक्सपियर पैदा हुए और वाल्टर, रैले और डेªक जैसे आदमी पैदा हुए, जिन्होंने स्पेन के जहाज को लूटकर अपने देश को समृद्धशाली बनाया। हिंदुस्तान में ईस्ट इंडिया कंपनी आई। हिंदुस्तान को दरिद्र बनाया और इंग्लैंड को खुशहाल बनाया। चूँकि एलिजाबेथ के राज्यकाल में देश समृद्धशाली था, इसलिए प्रगति हुई और शांति रही। इसलिए साहित्य, कला और दूसरे क्षेत्र में प्रगति हुई। दूसरी तरफ आप ्रफ्रांस और रशिया की क्रांति के इतिहास को देखें!। इसका विपरीत इतिहास आपाको मिलेगा। वहाँ क्रांति क्यों हुई? इसलिए नहीं कि वहाँ प्रगति नहीं थी। देश के लोग नंगे थे और भूखे थे। फा्रंस के गवर्नर ने अपनी प्रजा पर इतना अन्याय और अत्याचार किया, जिसका एक नमूना मैं आपको देना चाहता हूँ। भूखी जनता से वे कहा करते थे कि ‘‘तुम घास खा लो और उससे जो ठहनियाँ मिलेंगी, उससे तुम्हारी तंदुरुस्ती ठीक हो जाएगी, तुम घास ही खाने के लायक हो।’’ इसी वजह से वहाँ क्रांति हुई। वाल्टर, रूसो और मौंटेस्कू जैसे क्रांतिकारी का जन्म हुआ। फ्रांस में लुई और रूस में जार जैसे बदमाश शासक थे, जो देश को पीछे खींचकर रखने की कोशिश हमेशा करते थे। उनका कहना था कि एजीटेटर लोग अशांति पैदा करते हैं, लेकिन यह बात गलत है। फ्रांस रिब्योलूशन के इतिहास में इस संबंध में जो कुछ लिखा हुआ है, उसके एक अंश को आपके सामने पढ़ देना चाहता हूँ:-

"The French Revolution burst like a volcano and yet revolutions and volcanoes do not burst out suddenly without reason or long evolution. We see the sudden burst and are surprised; but underneath the surface of the earth many forces play against each other for long ages, and the fires gather together, till the curst on the surface can hold them down no longer and they burst forth in mighty flames shooting up to the sky, and molten lava rolls down the mountain side. Even so, the forces that ultimately break out in revolution play for long under the surface of society. Water boils when you heat it, but you know that it has reached the boiling point only after getting hotter and hotter. Ideas and economic conditions make revolutions. Foolish people in authority, blind to everything that does not fit in with their ideas, imagine that revolutions are caused by agitators. Agitators are people who are discontented with existing conditions and desire a change and work for it. But when economic Conditions are such that their day to day suffering grows and life becomes almost an intolerable burden, then even the weak are prepared to take risks. It is then that they listen to the voice of the agitator who seems to show them a way out of their misery."

पंडितजी कहते हैं कि मूर्ख लोग जो आॅथोरिटी में रहते हैं, जिनका विचार विरोधियों के विचार से नहीं मिलता हैं, उनका खयाल है कि एजीटेटर्स पैदा हो गए हैं, गोलमाल करनेवाले पैदा हो गए हैं, अपराध करनेवाले पैदा हो गए हैं, दंगा-फंसाद करनेवाले लोग पैदा हो गए हैं, यह बात बिल्कुल गलत है। अध्यक्ष महोदय, मैं कहना चाहता हूँ कि आज यदि इस देश में, इस प्रांत में अशांति का बीज पाया जाता है, अशांति के कीटाणु फल-फूल रहे हैं तो गरीबी, भूखमरी, बेकारी, निरक्षरता, गंदगी आदि की वजह से ही फूल रहे हैं। उनको दूर करने और इनका इलाज करने का उपाय करने के बजाय आज इस तरह का बिल इस सदन में लाया जाता है। अध्यक्ष महोदय, मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि इस प्रांत में प्रगति आ जाए तो कोई भी अशांति पैदा नहीं कर सकता है। वह अगर चाहे भी तो नहीं कर सकता है। हमारे दोस्त श्री दारोगा प्रसाद राय ने पिछले मौके पर विरोधी विचारों का समर्थन किया था, लेकिन इस साल न मालूम कौन सी चाबुक इनकी पार्टी की पड़ी है कि वे बदल गए हैं!

अध्यक्ष: शांति, शांति। बदल गए हैं यह आप कह सकते हैं, मगर इसका कारण आप न कहंे। दल के भीतर बात नहीं कही जा सकती है। आप ‘‘लेकिन इस साल न मालूम कौन सी चाबुक इनकी पार्टी को पड़ी है। ’’ इन शब्दों को आप उठा लें।

श्री कर्पूरी ठाकुर: अच्छी बात है, मैं उन्हें उठा लेता हूँ और यह कहता हूँ कि मालूम होता है कि उनके कौंशेंस की चाबुक उन पर पड़ी है, इसलिए वे बदल गए हंै। इसलिए मैं उनकी दलील के बारे में नहीं कहना चाहता, परंतु राजस्व मंत्री के बारे में मैं यह अर्ज करना चाहता हूँ कि उस दिन उन्होंने बोलते हुए कहा था, कि हम लोग इस प्रांत में रिवोल्यूशन करना चाहते हैं और जनता के लिए सबकुछ कर रहे हैं। उन्होंने इंग्लैंड के टैªडीशन के बारे में कहा है कि वहाँ का ढंग दूसरा है। अध्यक्ष महोदय, अगर वे कुछ इसके बारे में जानते हैं, तो मैं भी कुछ जानकारी रखता हूँ। वहाँ का टैªडीशन यही है कि किंग जाॅर्ज, जो लोगों को अधिकार नहीं दे रहा था, उसे लोगों ने तलवार के जोर पर मजबूर किया और आख्,िारकार 12ः15 बजे मैगनाकार्टा पर दस्तखत कराया और उसे लोगों को पाॅलिटिकल अधिकार देना पड़ा। फिर चाल्र्स फस्र्ट की गरदन अलग कर दी गई और चाल्र्स सेकेंड को मजबूर किया कि उसे जनता को अधिकार देना पड़ेगा। इस तरह अंत में 1688 ई. में पीसफल रिवोल्यूशन हुआ और जनता को पार्लियामेंट में अधिकार दिया गया। आप देखें कि इस तरह जनता के नागरिक स्वतंत्रता का वहाँ टैªडीशन बनाया, सम्राटों से लड़कर बनाया। हम चाहते हैं कि जो टैªडीशन इंग्लैंड का है। उसे हम लोग भी आपनाएँ, लेकिन आप इसे नहीं चाहते हैं। हम चाहते हैं कि हर कदम पर सरकार से लड़कर, चाहे सरकार कांग्रेस पार्टी की हो, झारखंड पार्टी की हो या सोशलिस्ट पार्टी की हो, नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा करें। हम देश में ऐसी परंपरा बनाएँ, जिससे नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा करें। हम देश में ऐसी परंपरा बनाएँ, जिससे नागरिक स्वतंत्रता के लिए लोगों के दिल में आदर हो, गौरव हो। इसलिए हम इस बिल का विरोध करते हैं। अध्यक्ष महोदय, माननीय मंत्री के बिल के कुछ क्लाॅजों को पढ़कर सुनाया और बतलाया कि बहुत कम जुलूस बैन किए गए हैं और सिर्फ तीस दरखास्तें नामंजूर की गई हैं।