(दिनांक: 18 मार्च, 1968)


विषय: माननीय श्री कर्पूरी ठाकुर द्वारा लाए गए मंत्रिमंडल के विरूद्ध अविश्वास के प्रस्ताव पर चर्चा के क्रम में।/p>

श्री कर्पूरी ठाकुर: अध्यक्ष महोदय, मैं प्रस्ताव करता हूँ कि-

‘‘यह सभा वर्तमान मंत्रिपरिषद् में अविश्वास प्रकट करती है।’’

अध्यक्ष: एक बात जरा सुन लीजिए। अभी 3 घंटा 15 मिनट समय है। सरकार उत्तर देने में कितना समय लेगी?

श्री जगदेव प्रसाद: 45 मिनट समय दिया जाय।

अध्यक्ष: 3 घंटा 15 मिनट में से 45 मिनट से काटकर दोनों पक्षों को सवा-सवा घंटा समय मिलेगा।

श्री विंध्येश्वरी प्रसाद मंडल: उस दिन माननीय सदस्य श्री कर्पूरी ठाकुर से हमने कहा था कि एक दिन में अविश्वास प्रस्ताव का डिसपोजल कभी नहीं हुआ है। इस पर उन्होंने कहा था कि वो जितना समय लेंगे, उसके बाद उनकी ओर से कोई नहीं बोलेंगे, बाकी समय कांग्रेस को तथा इधर दिया जाएगा।

श्री कर्पूरी ठाकुर: अध्यक्ष महोदय, मैं आशा करता हूँ और करता था कि मुख्यमंत्री की याददाश्त इतनी कमजोर नहंीं होगी। मैंने कहा था कि 18 तारीख को अविश्वास के प्रस्ताव पर बहस होगी तो उन्होंने कहा था कि बजट कैसे पास होगा? बजट के लिए 18 और 19 तारीख तय थी। मैंने कहा था कि 18 को सरकार उलट जाएगी तो बजट पास करने का प्रशन नहीं आता है। अगर आप समझते हैं कि नहीं उलटेंगे तो 19 को बजट पर जो बहस होगी, उस बहस में इधर से केवल एक आदमी बोलेंगे और निर्धारित समय में बजट पारित कर दिया जाएगा। मैंने आज के बारे में यह नहीं कहा था कि सारा समय उन्हीें लोगों को मिलेगा, हम लोगों को नहीं। आपने सवा-सवा घंटा समय दिया है, लेकिन कायदे के मुताबिक विरोधी पक्ष को ज्यादा समय मिलना चाहिए। फिर 45 मिनट निकालकर समय देने का आपका जो निर्णय हुआ है, वह सदन में अब तक जो परंपरा रही है, उसके अनुसार उचित नहीं है। सदन में जो परंपरा रही है, उसके अनुसार काम होगा या नई परंपरा के अनुसार काम होगा?

अध्यक्ष: नई परंपरा बचाने की हमारीे कोई इच्छा नहीं है। जो सदन की परंपरा है, वही रहेगी कोई नई परंपरा नहीं है।

श्री कर्पूरी ठाकुर: अध्यक्ष महोदय, इस सरकार में हमारा विश्वास और बिहार की जनता का विश्वास कतई नहीं है। कारण यही है कि सरकार का गठन सचमुच मंें एक ऐसे तरीके से हुआ है, जो जनतंत्र के इतिहास में अनोखा है और अभूतपूर्व है। अध्यक्ष महोदय, यह जनतांत्रिक नियम है और जनतंत्र की ही स्वस्थ परंपरा है कि जिस दल को बहुमत होता है, उसी दल की सरकार प्रतिष्ठित होती है। जब 25 जनवरी को राज्य के संयुक्त मोरचे की सरकार को अपदस्थ किया गया था तो कायदे-कानून के मुताबिक और जनतांत्रिक नीति के मुताबिक सरकार गठन करने का अधिकार कांग्रेस दल को था, किसी अन्य दल को नहीं था, लेकिन उस परंपरा का खात्मा करके एक ऐसे दल का सरकार गठन का अधिकार दिया गया, जिसके बारे में आप और हम जानते हैं कि उस दल के पास न आज तक कोई विधान है और न कोई सिद्धांत है, न कोई नीति है और न कोई कार्यक्रम ही है।

(सरकारी बेंच से आवाज आती है)


आपको जानकारी हो, इससे काम चलता नहीं, जानकारी होनी चाहिए जनता को, जानकारी होनी चाहिए सदन को और जानकारी होनी चाहिए, दुनिया के लोगों को। लेकिन अब तक लोग अंधकार में हैं और अंधकार में सदन है और सचमुच में वह दल कुछ है नहीं। इतना जरूर हम जानते हैं कि भिन्न-भिन्न दलों से कुछ लोग चले गए, इकट्ठे हो गए और जैसाकि हमने अविश्वास के प्रस्ताव का उत्तर देते हुए कहा-‘‘कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा, भानुमति में कुनबा जोड़ा,’’ ऐसा एक दल जरूर है, यह दुनिया को मालूम हैे। इससे कोई भिन्न दल है, शोषित दल हम नहीं जानते है। ऐसे दल को सरकार बनाने का अधिकार दिया गया। मैं मानता हूँ कि जो सबसे बड़ा कारण है जनतंत्र की दृष्टि से, वह यह कि जनता का विश्वास और इस सदन का विश्वास इस सरकार पर नहीं है, वह सैद्धांतिक कारण हैं। दूसरा कारण है, वैधानिक। अध्यक्ष महोदय, संविधान के अनुसार जैसाकि लोकसभा में गृहमंत्री, श्री चव्हाण ने कहा था कि राजनैतिक औचित्य की दृष्टि से, न्याय की दृष्टि से और स्वस्थ जनतांत्रिक परंपरा की दृष्टि से बिहार में जो मुख्यमंत्री की नामजादगी हुई और वहाँ मंत्रिमंडल का गठन हुआ, उसका बचाव मैं नहीं कर सकता हूँ। बचाव के लिए मैं अपना मुँह नहीं खोल सकता हूँ। इस प्रकार की उक्ति श्री बदलदेव राव जसवंत राव चव्हाण की है, जो दर्ज्र है लोकसभा की कार्रवाई में। संविधान में स्पष्ट रूप से यह बात लिखी गई्र है कि राज्यपाल, बिहार विधान-परिषद् हो या बंगाल विधान-परिषद् हो या मद्रास विधान परिषद् हो, उसमें ऐसे हीं व्यक्तियों को मनोनयन करेंगे, जो व्यक्ति या तो कलाकार होगा, कलाकार का मतलब है कि चित्रकार हो गया नाटककार हो, नृत्यकार हो, कलाकार हो। दूसरा, ऐसे व्यक्ति का मनोनयन करेंगे, जो साहित्यकार हो, उपन्यास लेखक या कहानी लेखक हो, कवि या शायर हो, तीसरा लिखा हुआ है कि ऐसे व्यक्ति को मनोनयन करेंगे, जो सुप्रसिद्ध डाॅक्टर, वैद्य या हकीम हो, और चैथा सहकारिता आंदोलन से संबंध रखते हों और पाँचवाँ ऐसे व्यक्ति को मनोनीत करेंगे, जो सुप्रसिद्ध समाजवादी होंगे।

श्री जगदेव प्रसाद: अध्यक्ष महोदय, क्या इस सदन में किसी माननीय सदस्य को यह अधिकार प्राप्त है कि वे राज्यपाल के निर्णय के औचित्य को चुनौती दें?

अध्यक्ष: कर सकते हैं।

श्री कर्पूरी ठाकुर: मैं यह कह रहा था कि श्री बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल के मनोनयन में संविधान की धज्जियाँ उड़ाई गई हैं और जनतंत्र की हत्या की गई है। संविधान के अनुसार उनका मनोनयन विधान-परिषद् में होना चाहिए था, लेकिन इसलिए मनोनयन इनका हुआ कि इनको मुख्यमंत्री का पद दिया जाएगा। इसलिए मनोनयन नहीं हुआ कि ये कलाकार हैं, नाटककार हैं या कहानीकार हैं, उपन्यासकार हैं, सुप्रसिद्ध सहकारिता आंदोलन के नेता हैं, विख्यात समाजसेवक हैं, बल्कि इसलिए कि इनको मुख्यमंत्री के पद पर आना था।

अध्यक्ष महोदय, आपको पता है और सदन को पता है कि वे लोकसभा के सदस्य थे। आम जनता ने उनका चुनाव लोकसभा के सदस्य के रूप में कर दिया था, तो फिर उनको लोकसभा की सदस्यता को त्यागकर यहाँ चला आना, विधान-परिषद् में अपना मनोनयन करा लेना और मुख्यमंत्री के पद पर बैठ जाना, मैंने जैसा कहा, संविधान की और जनतंत्र की हत्या है। अध्यक्ष महोदय, मैं यह भी बतला देना चाहता हूँ कि कानून में कहीं रूकावट नहीं है, विधान में कहीं रूकावट नहीं है, लेकिन मैं आपको बता देना चाहता हूँ कि वैधानिक रूकावट है, विधान में जो कुछ कहा गया है, उसके विपरीत कार्य हुआ है। इसलिए इस सदन का विश्वास इस सरकार पर नहीं है। अध्यक्ष महोदय, यह मंत्रिमंडल ऐसा मंत्रिमंडल है, जिसके एक राज्यमंत्री श्री रामचंद्र प्रसाद के कथनानुसार, आदमी-आदमी के खिलाफ है, जाति-जाति के खिलाफ है, ग्रुप-ग्रुप के खिलाफ है और स्वार्थ के खिलाफ है।

श्री जगदेव प्रसाद: माननीय सदस्य जो कह रहे हैं, अखबार में गलत बयान छपा है।

श्री कर्पूरी ठाकुर: आज श्री जगदेव प्रसाद कह रहे हैं कि बयान गलत छपा है। मैंने अखबार में श्री रामचंद्र प्रसाद का बयान पढ़ा है।

श्री जगदेव प्रसाद: चश्मा उतारकर पढ़े होंगे।

श्री कर्पूरी ठाकुर: मैंने लगाकर पढ़ा, आप चश्मा नहीं लगाते हैं, इसलिए दिन में नहीं दिखाई पड़ता, तो इसमें हमारा क्या कसूर है?

श्री सतीश प्रसाद सिंह: अध्यक्ष महोदय, ‘झूठा’ शब्द का प्रयोग जो माननीय सदस्य श्री कर्पूरी ठाकुर ने किया है, वह असंसदीय है।

श्री कर्पूरी ठाकुर: अध्यक्ष महोदय, किसी माननीय सदस्य को यह नहीं कहा जा सकता है कि झूठ बोलते हैं, लेकिन झूठा दावा कहा जा सकता है। यह दावा का विशेषण हैं अधिकार है और आपका भी अधिकार है कि इस शब्द का प्रयोग कर सकते हैं। अध्यक्ष महोदय, जिस तरह इनका दावा है कि वर्तमान मंत्रिमंडल में हरिजन, पिछड़ी जाति एवं आदिवासियों की संख्या अधिक है, उसी तरह इनका यह दावा झूठा है कि यह सरकार हरिजन, पिछड़ी एवं आदिवासी का कल्याण चाहती है। यह मंत्रिमंडल भानुमती का पिटारा है- जो मंत्रिमंडल नीतिविहीन है, उससे हरिजन एवं पिछड़े वर्गों का कल्याण नहीं हो सकता है। डाॅ. लोहिया ने कहा था कि स्वार्थी हरिजन, पिछड़े वर्ग एवं आदिवासी भी हरिजन, पिछड़े वर्ग एवं आदिवासी का कल्याण नहीं सोच सकते हैं। अध्यक्ष महोदय, यह सरकार ऐसी सरकार है कि इसके आते ही गंगा के पानी में आग लग गई। 5 हजार वर्षों के इतिहास में कितनी सरकार आई और कितनी सरकार गई, लेकिन गंगा के पानी में कभी आग नहीं लगी थी- इसका मतलब है कि भगवान इसको नहीं चाहते हैं। आज गंगा के पानी में आग लगती है, लेकिन अगर यह सरकार रही तो बिहार की जनता जलकर खाक हो जाएगी। इस सरकार पर अभियोग है कि गंगा में आग लगी, लेकिन इस सरकार ने ध्यान नहीं दिया। पेट्रोलियम मंत्री बोल रहे थे कि गंगा के पानी में आग लगी लेकिन बिहार की सरकार ने उतना ध्यान नहीं दिया, जितना ध्यान देना आवश्यक था। वहाँ के मुख्यमंत्री और विभागीय मंत्री को जो पत्राचार करना चाहिए था या टेलीफोन पर बात करनी चाहिए थी, वह यहाँ की सरकार ने नहीं की। यही कारण है कि मुंगेर में लोग रोग के शिकार हो गए हैं और छह व्यक्तियों की मृत्यु भी हुई है। वहाँ के लोगों के प्राण संकट में है और इसकी पूरी जिम्मेदारी वर्तमान सरकार पर है। इसलिए हमारा इस सरकार पर विश्वास नहीं है। इस सरकार के समय मंे प्रांत में अनेक जगहों में सांप्रदायिक दंगे हुए, राँची में, सुरसंड, बेलसंड आदि में और हमने कहा था कि इन दंगों के चलते हमारा सिर सचमुच झुक जाता है। हम एक ईमानदार राष्ट्रवादी होने के नाते यह मानते हैं कि यह जो कुछ हुआ, हम लोगों की सरकार की नीति के मुताबिक एक शर्मनाक बात थी। लेकिन आपके राज में जो दंगे हुए हैं, मैं बतलाना चाहता हूँ, पूरी जिम्मेदारी के साथ कि बिहार के इतिहास में कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि जाति के नाम पर इतने बड़े पैमाने पर दंगा हुआ हो (शेम, शेम की आवाज)। नवादा में जो दुंगा हुआ, जहानाबाद में जो दंुगा हुआ, यह जातिवाद के नाम पर हुआ (हल्ला)। अध्यक्ष महोदय, मैं तो सुनना चाहूँगा कि वे ऐसी सूचना दें कि हमारे राज में भी जाति के नाम पर कोई ऐसा दंुगा हुआ, तो मैं उस सूचना से लाभ उठाऊँगा और अपनी गलती सहर्ष कबूल करूँगा। मैंने कहा कि जो हमारे राज में सांप्रदायिक दंगे हुए, वे हमारी असफलता के सूचक हैं। हम अपनी गलती कबूल करते हैं (बहुत जोरों का हल्ला), लेकिन मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि जो नवादा में दंुगा हुआ, जहानाबाद में दंगा हुआ, मुजफ्फरपुर में दंगा हुआ, हाजीपुर में दंगा हुआ, वे सभी दंगे जाति के आधार पर हुए और यह बहुत ही खतरनाक बात है। मैं सदन के माननीय सदस्यों का ध्यान आकृष्ट करना चाहता हूँ कि अगर हमारे नौजवान जातिवाद के आधार पर मरते जाएँगे, हमारे शिक्षक, पढ़नेवाले विद्यार्थियों में, जातीयता घर करती जाएगी, उनके अंदर जातीय भावना बढ़ती जाएगी तो समाज जातिवाद की बू से भर जाएगा और एक दिन सारा हिंदुस्तान टुकड़ों में बँटकर रहेगा। अध्यक्ष महोदय, इस राज में जातीयता का दंगा हो रहा है। हमारे पास प्रमाण नहीं है, लेकिन मैं बतलाना चाहता हूँ कि आपकी सरकार का गठन जिस बुनियाद पर हुआ है, जिस बुनियाद में आप सरकार का गठन करने के लिए मुख्यमंत्री बने, वह बुनियाद जातिवाद पर आधारित है, तो इतने बड़े पैमाने पर बिहार में जातीय दंगे हो रहे हैं। मुख्यमंत्री ने अपने भाषण में कहा है कि हमारे शासनकाल में सांप्रदायिक दंगे नहीं हुए हैं। लेकिन अध्यक्ष महोदय, मैं तो कहूँगा कि इस चंद दिनों के राज में भी हजारीबाग में होली के अवसर पर सांप्रदायिक दंगे हुए, खून की होली खुलकर हुई। लोगों के खून से होली खेली गई। भागलपुर में भी सांप्रदायिक दंगा होते-होते बचा। इस राज्य में सांप्रदायिक दंगे के साथ-साथ जातीय दंगे अगर नहीं हटेंगे तो बिहार की शांति भंग हो जाएगी। तो इस सरकार का गठन हुआ कांग्रेस के साथ गठबंधन करके और ऐसे कांग्रेस के साथ गठबंधन हुआ, जिस कांग्रेस के पीछे हमारे ये मंत्री कुछ महीने पहले पानी पीकर खेड़े हुए थे। आज जिस कांग्रेस के साथ इनका गठबंधन हुआ है, उनका, जहाँ आजाद हिंद फौज के नेता सुभाषचंद्र बोस का कहना था कि ‘‘कदम-कदम बढ़ाए जा, खुशी के गीत गाए जा, यह जिंदगी है कौम की, कौम पे लुटाए जा।’’ कहना है कि ‘कदम-कदम हटाए जा और भारतवर्ष की धरती को चीन और पाक को लुटाए जा।’ अध्यक्ष महोदय, मैं जानता हूँ कि आज जब वोट होगा तो इस सरकार का क्या भविष्य होनेवाला है, वह हम को भी मालूम है। सदन के बाहर जनता को भी मालूम है और आज पाँच बजते-बजते यह सरकार उलट के रहेगी, खत्म होकर रहेगी। आज जब हमारे मुख्यमंत्री रात में सोएँगे तो वे आहें भरेंगे, करवटें लेंगे, पछताएँगे कि उन्होंने श्री कृष्ण बल्लभ सहाय के साथ प्रीति करके, दोस्ती करके बहुत बड़ी गलती की। वे सोचेंगे-‘‘जो मैं ऐसा जानती प्रीति किए दुःख होय, नगर ढिढोरा पीटती प्रीति करें जनि कोई्र। ‘‘अध्यक्ष महोदय, मैं इन्हीं चंद शब्दों के साथ अपने अविश्वास के प्रस्ताव को सदन के समक्ष उपस्थित करता हूँ और मैं यह आशा करता हूँ और मुझे यह विश्वास है कि यह सदन निश्चित रूप से इस सरकार को फुटबाॅल की तरह किक कर देगा और बिहार की जनता का उत्थान करेगा।