(दिनांक: 26 मार्च, 1970)
विषय: भूदान यज्ञ के खर्च की उपादेयता से संबंधित कटौती प्रस्ताव पर भाषण।
श्री कर्पूरी ठाकुर: अध्यक्ष महोदय, बहुत ही संक्षेप में व्यक्तिगत जानकारी के आधार पर एक घटना का उल्लेख करना चाहता हूँ। 24 फरवरी को मेरा कार्यक्रम था बड़हिया थाने के फदरपुर ग्राम में। जब मैं बड़हिया पहुँचा तो देखा कि कुछ लोग, जो फदरपुर और सरोआ गाँव के थे, बड़हिया थाने में जाने के लिए दौेड़ रहे हैं। मेरे साथ श्री कपिलदेव सिंह, भूतपूर्व सदस्य भी थे। गरीब लोग श्री कपिलदेव सिंह को पहचानते थे। उनके निकट वे रूक गए। मैं तो वहाँ था ही। उन गरीबों ने अपना किस्सा सुनाया। 24 तारीख के प्रातःकाल में ही बड़हिया गाँव के एक बड़े भूमिपति श्री जमुना प्रसाद सिंह अपने टैªक्टर के साथ फदरपुर गाँव में पहुँचे। उस टैªक्टर पर उनके लठैत भी सवार थे। वे लोग केवल लाठी से ही नहीं, बल्कि लाइसेंस और बिना लाइसोंस की बंदूक से भी लैस थे। 15 बीघे जमीन 7-8 वर्ष पहले उन गरीबों में बाँट दी गई थी, जो जमीन भूदान की थी और जिस जमीन को श्री जमुना प्रसद सिंह द्वारा दान में दिया गया था और जो जमीन 5-7 वर्षों से उन गरीबों के कब्जे में थी, जिसपर वे लोग जोत का काम करते थे तथा उसमें फसल उपजाते थे। सारी की सारी जमीन में लगी फसल चना और मसूर को श्री जमुना प्रसाद सिंह के लठैतों ने लूट लिया। पहले तो उन गरीबों ने उन लठैतों का विरोध करने का साहस किया, लेकिन जब बंदूक लेकर श्री जमुना प्रसाद सिंह के बेटे खड़े हो गए, गरीब लोग जमीन पर से हट गए और फसल की रक्षा नहीं कर सके। थोड़ी देर बाद उसे टैªक्टर पर लेकर उनके बेटे और उनके लठैत लोग बड़हिया चले गए। श्री कपिलदेव सिंह ने बताया कि इस टैªक्टर पर श्री जमुना प्रसाद सिंह के बेटे और उनके लठैत हैं। मैं उसी दिन 3 बजे फदरपुर गाँव में पहुँचा। सरौआ के लोग भी वहाँ इकट्ठे थे और वहाँ पर एक सभा हुई। जैसे-जैसे कांड हुआ, सारा किस्सा मैंने सुना। बड़हिया थाने के दारोगा को खबर दी गई। यह 24 फरवरी की घटना है, 25 को जब मैं पटना पहुँचा तो पुलिस विभाग के सबसे बड़े पदाधिकारी आरक्षी महानिरीक्षक को सारा किस्सा टेलीफोन पर सुनाया। मैंने टेलीफोन पर मुख्यमंत्री को भी खबर दी। मैंने कहा कि सबसे दुर्भाग्य की बात यह है कि बड़हिया के दारोगा और जमादार और पुलिस के सिपाही बैठे रहे, लेकिन आजतक किसी की गिरफ्तारी उस कांड के सिलसिले में नहीं हुई (शेम, शेम) अध्यक्ष महोदय, इतना बड़ा कांड होता है, पुलिस के अधिकारियों को खबर दी जाती है, मगर गरीब के संरक्षण के लिए कोई कार्रवाई नहीं होती है। जो अन्याय करते हैं, अँधेर करते हैं, उनकी गिरफ्तारी नहीं होती है। ऐसी हालत में प्रशासन पर जनता का विश्वास कैसे कायम रह सकता है?
अध्यक्ष: अभी जो माँग प्रस्तुत है, उसी पर बोलें।
श्री कर्पूरी ठाकुर: भूदान पर जो बहस चल रही है, उसी पर मैं अपने को सीमित रखता हूँ। जो आवेदन-पत्र बाजाप्ते दिए जाते हैं, वे आवेदन-पत्र गरीबों, भूमिहीनों के पास मौजूद हैं। मैंने अपनी आँखों से देखा है और उसकी एक-एक प्रति देखी है, उनके पास वे दान-पत्र मौजूद हैं। 1967 ई. के अकाल के समय जब संयुक्त मोरचे की सरकार थी, बहुत सी जमीन वाले और बगैर जमीन वाले किसानों को कर्ज दिया गया था, उनके दान-पत्र पर लिखा हुआ था कि लोन पेड। मालगुजारी की रसीद भी उनके पास है। कर्ज मिला है, दान-पत्र मिला है। उनका कब्जा रहा है। फसल उगाए हैं। फसल काटे हैं। फिर भी लूटपाट होती है। लुटेरों की खबर नहीं ली जाती है। कागज पर मुकदमें दर्ज हैं। गिरफ्तारी नहीं होती है। ऐसी स्थिति में सरकार का जो अधिकार है, उसका पालन नहीं हो रहा है। जो भूदान ऐक्ट का उद्देश्य है, वह बहुत व्यापक है। भूदान कभी भी नहीं कहता है कि कानून के द्वारा जमीन का बँटवारा नहीं हो, बल्कि भूदान यही कहता है कि कानून के जरिए जमीन का बँटवारा हो, भूदान यही कहता है कि हिंसा के जरिए जमीन नहंीं छीनी जाए, जमीन तलवार के जरिए नहीं छीनी जाए। बल्कि कहता है कि हिंसा के जरिए जमीन नहीं छीनी जाए, जमीन तलवार के जरिए नहीं छीनी जाए। बल्कि भूदान कहता है कि कानून के जरिए जमीन का वितरण किया जाए, हमारा जीवन सामाजिक है और हमको समाज में रहना है। इसलिए लोगों के विचार में परिवर्तन लाना है, लोगों के हृदय में परिवर्तन लाना है। इस दृष्टिकोण से जमीन हासिल करनी है और उस जमीन को भूमिहीनों में बँटवारा करना है। यह निर्विवाद है कि लाखोलाख एकड़ जमीन गरीबों को मिली हुई है। यह भी निर्विवाद है कि लाखों एकड़ जमीन गरीबों को दान-पत्र में मिली हुई है, लेकिन वह उनके कब्जें में नहीं है। इसका कारण है कि सरकार कानून तो बनाती है, लेकिन उसका परिपालन नहीं करती है। जिस जमीन पर उनकी झोंपड़ी खड़ी है, जिस पर उन गरीबों को अधिकार है, उस जमीन के वे मालिक हैं। ऐसा 1947 ई. का कानून बना हुआ है। लेकिन आज तक गरीबों को अपनी झोंपड़ी पर अधिकार नहीं है। चकबंदी कानून 1950 ई. में बना हुआ है, लेकिन आज तक उसका पालन नहीं हो रहा है। गैर-मजरूआ जमीन हरिजनों, गरीबों और आदिवासियों को बाँटी जाएगी, यह कानून बना हुआ है, लेकिन उसका परिपालन नहीं हो रहा है। इसलिए मेरा कहना है कि जब तक भूदान का परिपालन नहीं हो जाए, इस सरकार को एक पैसा देना उचित नहीं है। यह सरकार बिल्कुल निकम्मी है, इसको पैसा माँगने का अधिकार नहीं है।