(दिनांक: 26 फरवरी, 1973)
विषय: स्व. सी. राजगोपालाचारी, स्व. अब्दुल क्यूम अंसारी, स्व. हृदय नारायण चैधरी, स्व. लक्ष्मी नारायण सिंह, स्व. गजेंद्र बाबू, स्व. शिव चंडिका प्रसाद, स्व0 जयदेव प्रसाद एवं स्व. जिया लाल मंडल के प्रति शोक संवेदना व्यक्त करने के क्रम में।
श्री कर्पूरी ठाकुर: अध्यक्ष महोदय, भारतीय राजनीति के आधुनिक पितामह, स्वतंत्रता संग्राम के महान् सेनापति, सुयोग्य एवं कुशल प्रशासक, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के निधन से न केवल अपने राज्य की क्षति हुई है, बल्कि सारे विश्व की क्षति हुई हैं गुलामी के खिलाफ में बगावत करना उनका जन्मजात गुण था। महात्मा गांधी के आह्वान पर उन्होंने आजादी की लड़ाई में भाग लिया था। 1922 ई. में अपने देश से जब सुधार एवं विधानवाद और कौंसिल-प्रवेष की हवा बह रही थी, तो उन्होंने आंदोलन की आग को प्रज्वलित किया कि कौंसिल-प्रवेश का बहिष्कार किया जाए।
वे शासन में जब भी रहे, चाहे मुख्यमंत्री के रूप में रहे हों, चाहे गवर्नर जनरल या राज्यपाल के रूप में रहे हों, उन्होंने प्रशासन पर अपनी एक छाप छोड़ रखी है। बहुत से लोग उनकी कुछ बातों पर सहमत नहीं रहते थे, लेकिन उनके अंदर जो विचार और विश्वास का साहस था, वे जो सही समझते थे, उसी प्रकार वे अपना काम करते थे। महात्मा गांधी जैसे महान् नेता, उनसे अपने विचारों को प्रकट किया करते थे। आजादी मिलने के कुछ वर्षों के बाद जवाहरलाल नेहरू के शासन के विरूद्ध, उनकी सत्ता के विरूद्ध बगावत खड़ी की थी। वे किसी के सामने झुकने के लिए तैयार नहीं थे। वे अंग्रेजी और तेलुगू भाषा के महान् विद्वान् थे। वे सिर्फ प्रशासक ही नहीं थे, बल्कि एक महान् साहित्यिक भी थे। उनका साहित्य देश और विदेश की अनेक भाषाओं में छपा है। वे कुशाग्र बुद्धि रखते थे। उस समय की कांग्रेस की कार्यसमिति उनकी बुद्धि का लोहा मानती थी। इतना ही नहीं, कांग्रेस के अंदर, सारे संसार के अंदर, उनके एक महान् नेता, महान् राजनीतिज्ञ और महान् साहित्यकार के रूप में माना जाता था। हम उनकी आत्मा के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
स्व. अब्दुल क्यूम अंसारी को हम सभी लोग बहुत ही निकट से जानते थे। स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के फलस्वरूप इन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। वे इस राज्य के एक महान् प्रवर्तक थे। अंग्रेजों के समय में जो आंदोलन देश और प्रदेश में चल रहा था, उसके साथ वे सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए कूद पड़े। अंसारी साहब हिंदू-मुसलिम एकता के लिए सतत प्रयत्नशील रहे। उन्होंने मुसलिम लोगों की सांप्रदायिकता के प्रभाव को दूर करने के लिए मोमिन-आंदोलन चलाया और वे बिहार प्रांतीय जमायत-उल-मोमिन के 1938 से 1947 ई. तक अध्यक्ष थे और उसके बाद अखिल भारतीय मोमिन कांग्रेस के अध्यक्ष हुए। दलितों के उत्थान के लिए अंसारी साहब सतत प्रयत्नशील रहे। मैं इनकी दिवंगत आत्मा के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। भगवान् इनकी दिवंगत आत्मा को चिर-शांति दें और इनके शोक विह्वल परिवार को धैर्य प्रदान करें।
स्व. हृदय नारायण चैधरी हमारे जिले के नेता थे। आजादी की लड़ाई में उनसे हमें प्रेरणा मिली थीं। वे सादगी की प्रतिमूर्ति थे। वे गाँव-गाँव घूम-घूमकर रचनात्मक कार्य करते थे। वे बराबर भूदान, ग्रामदान के कार्य में लगे रहे। वे सदैव गांधीवादी रहे। कुछ-न-कुछ करते रहना उनकी आदत थी। जब वे मद्यनिषेध के बारे में अनशन करने के लिए सोच रहे थे कि 30 जनवरी, 1973 ई. को वे चल बसे। आजादी के महान् सेनानी, गांधीवाद और सादगी की प्रतिमूर्ति चैधरीजी थे। मैं इनकी दिवंगत आत्मा के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ एवं भगवान् से प्रार्थना करता हूँ कि इनकी दिवंगत आत्मा को शांति दें और उनके शोक-विह्वल परिवार को धैर्य प्रदान करें।
श्री यदुनंदन सहाय हमारे घर के निकट के थे। जिस तरह स्व. हृदय नारायण चैधरीजी से आजादी की लड़ाई में प्रेरणा मिली थी, उसी तरह स्व. यदुनंदन सहाय जी से भी। वे विधानसभा में भी थे। जब-जब आजादी की लड़ाई में हम लोगों ने भाग लिया था, श्री सहायजी बराबर आगे रहे। उनकी मृत्यु 83 वर्ष्र की उम्र में हुई। मैं उनकी दिवंगत आत्मा के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ और भगवान् से प्रार्थना करता हूँ कि इनकी दिवंगत आत्मा को चिर-शांति दें और उनके शोक-विह्वल परिवार को धैर्य प्रदान करें।
स्व. लक्ष्मी नारायण सिंह इस सदन के सक्रिय सदस्य थे। जब-जब विधेयक आता था, तो वे दर्जनों संशोधन पेश करते थे। विधानसभा वाद-विवाद में, कार्यकलाप में वे सक्रिय रूप से भाग लेते थे। आजादी की लड़ाई में वे एक सिपाही थे। वे भी श्री हृदय नारायण चैधरी के ऐसे सादगी की प्रतिमूर्ति थे। उनके जैसे सादा जीवन बितानेवाले और निश्छल व्यक्ति विरले ही मिलते हैं। आजादी की लड़ाई में उन्होंने अपनी हड्डी पकाई। जब सत्ता कांग्रेस के हाथ में आई, तब भी वे सादगी से रहकर और बिना प्रचार के जनता की सेवा में लगे रहे। मैं स्व. श्री सिंह की दिवंगत आत्मा के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ और भगवान् से प्रार्थना करता हूँ कि उनकी दिवंगत आत्मा को चिर-शांति दें और शोक-विह्वल परिवार को धैय प्रदान करें।
गजेंद्र बाबू उर्फ पन्ना बाबू से मेरा निकट का संबंध नहीं था। वे एक कांग्रेस कर्मी थे। राज्यसभा तथा बिहार विधान-परिषद् के सदस्य की हैसियत से और कांग्रेस कर्मी की हैसियत से भी उन्होंने इस राज्य की बड़ी सेवा की थी। मैं उनका कायल हूँ। उनके प्रति भी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।
श्री चैधरी ए. मुहम्मद साहेब से मेरा निकट का संबंध नहीं था। जैसाकि सभा-नेता ने बताया, उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लिया था। वे दुनिया में नहीं रहे। उनके प्रति मैं अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।
श्री शिव संडिका प्रसाद 1952 से 1957 ई. तक विधानसभा के सदस्य थे। उसके बाद वे लोकसभा के सदस्य रहे। वे बड़े लोकप्रिय थे। वे बड़े नेक मिजाज के थे और वे सभी लोगों को अपनाना चाहते थे। यह उनकी हाॅबी थी। वे मधुरभाषी सदस्य थे और वे बराबर कोशिश करते थे कि अधिक-से-अधिक जन-सेवा की जाय। उनके निधन से एक श्रमिक नेता दुनिया से चला गया। मैं उनके प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।
श्री जयदेव प्रसाद बिहार विधान-परिषद् के पुराने सदस्य थे। उनकी भाषा हम लोगों को बहुत पसंद थी। वे भी मीठे स्वभाव के सदस्य थे। उनसे बातें केरने में बड़ा मजा आता था। वे कोशिश करते थे कि किसी से बिगाड़ न हो और वे सब लोगों से मिलते रहते थे। वे दलित वर्ग से आते थे। सदन में उनकी आवाज बराबर गूँजती रहती थी। सदन के बाहर भी वे दलित वर्ग के लिए बातें कहने में कसर नहीं रखते थे। वे न केवल सोचनेवाले सदस्य थे, बल्कि एक अच्छे बोलनेवाले सदस्य भी थे।
इन सभी दिवंगत आत्माओं के प्रति मैं अपनी हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ और भगवान् से प्रार्थना करता हूँ कि उनकी दिवंगत आत्माओं को चिर-शांति दें और उनके शोक-संतप्त परिवार को धैर्य प्रदान करें। इनके साथ ही मैं स्व. जिया लाल मंडल के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँै।