(दिनांक: 9 जुलाई, 1973)
विषय: सर्वश्री एस.एम. कुमार मंगलम, एम.आर.एस. गोलवलकर, सूरज ना. सिंह, दासू सिंह, जीतू राम और जे. रहमान के निधन पर शोक-संवेदना व्यक्त करते हुए।
श्री कर्पूरी ठाकुर: अध्यक्ष महोदय, इसके पूर्वू कि आपके द्वारा, सभा-नेता द्वारा और विरोधी दल के नेता द्वारा दिवंगत आत्माओं के प्रति जो श्रद्धांजलि अर्पित की गई और जो तकरीरें व्यक्त की गई, उनके प्रति कुछ कहा जाए, मैं एक महत्त्वपूर्ण बात का उल्लेख करना चाहता हूँ। आज जिनके- जिनके प्रति इस सदन में श्रद्धांजलि अर्पित करना है, उनमें श्रीमती प्रभावतीजी का नाम भी आपको शामिल करना चाहिए था। कहना नहीं होगा कि प्रभावतीजी इसी बिहार की मिट्टी में जनमीं, पलीं और इसी बिहार की मिट्टी में मरीं। कहना नहीं होगा कि प्रभावतीजी एक महान् बाप की बेटी थीं। कांग्रेस के संगठन को जिस व्यक्ति ने सारे प्रदेश में फैलाया था और आजादी की लड़ाई की, सन् 1920-21 ई. के असहयोग आंदोलन की जब दुंदुभी बजी थी, तो जिस व्यक्ति ने उसमें जबरदस्त हिस्सा लिया था, जिसका संबंध सिर्फ सारण से ही नहीं था, दरभंगा से भी था, वे केवल उस बाप की बेटी ही नहीं थी, बल्कि इस देश के महान् स्वतंत्रता सेनानी जयप्रकाशजी की धर्मपत्नी तो थी हीं, इसके साथ-साथ स्वयं प्रभावतीजी ने आजादी की लड़ाई में बहुत बड़ा हिस्सा लिया था। महात्मा गांधी के आश्रम में रहकर और अलग रहकर वे बार-बार जेल जाती थीं। इन्होंने अनेक राजनैतिक कार्यों में हाथ बँटाया, रचनात्मक कार्यों में न केवल भाग लिया था, बल्कि इन्होंने अनेक रचनात्मक संस्थाओं को जन्म भी दिया था। उनकी मृत्यु हो गई, लेकिन इस सदन में उनके प्रति शोक-प्रस्ताव नहीं आया। मैं मानता हूँ कि यह भूल हुई है, किसी ने जानबूझकर ऐसा किया हो, ऐसी बात नहीं है।
अध्यक्ष: आज नहीं आया, इसका मतलब यह नहीं है कि फिर नहीं आए। किसी ने यह सुझाव भी नहीं दिया था।
श्री कर्पूरी ठाकुर: मैं मानता हूँ कि ऐसा जानबूझकर नहीं हुआ है, छूट गया है। मैं समझता हूँ कि आज नहीं आया, तो इसे कल आना चाहिए आपकी ओर से और उनके प्रति भी इस सदन में श्रद्धांजलि अर्पित करनी चाहिए और उनकी सेवाओं का समर्थन करना चाहिए।
अध्यक्ष महोदय, देश के उद्भट विद्वान्, महान् विधि वेत्ता, कुशल अधिवक्ता, साहसी राजनीतिज्ञ एवं प्रगतिशील विचारक श्री कुमार मंगलम की आकस्मिक एवं असामयिक मृत्यु, दुःखद मृत्यु पर मैं अपनी ओर से तथा अपनी पार्टी की ओर से शोक व्यक्त करता हूँ, उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। इस मुल्क में आज जो शान-शौकत है, जो ठाठ-बाट है और जो दिखावा है प्रशासन में और अन्य जगहों में, इन सबकुछ के बाबजूद गुरु गोलवलकर ने जो उदाहरण उपस्थित किया है, वह अनुकरणीय है। उनका जीवन सादगी का था, उनका जीवन संयम का था और उनका जीवन अनुशासित था। उनका जीवन न केवल विचार का था, बल्कि आचार का जीवन था। हमारा उनसे बहुत स्थानों में गहरा मतभेद रहता था, मगर सबकुछ के रहते हुए भी मुझे इसको मानने को बाध्य होना पड़ता है कि उन्होंने अपने विचार से अधिक आचार से जीवन में लाखोलाख लोगों को प्रभावित किया था। इस हद तक लोग प्रभावित हुए थे कि उनके इशारे पर लोग अपना जीवन देने को तैयार रहते थे। निस्संदेह, ऐसा व्यक्ति साधारण व्यक्ति नहीं हो सकता है, महान् व्यक्ति ही हो सकता है। उनकी मृत्यु के समय उनकी उम्र काफी थी, फिर भी अपनी ओर से आॅैर अपने दल की ओर से उनके प्रति मैं श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ औेर उनके निधन पर शोक व्यक्त करता हूँ।
अध्यक्ष महोदय, इस सदन के तीन माननीय सदस्य श्री दासू सिंह, श्री जियाउर रहमान एवं श्री जीतू राम के निधन पर अपनी ओर से तथा अपने दल की ओर से मैं शोक व्यक्त करता हूँ और इन लोगों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। मुझे उनके निकट रहने का, उनको सदन में और बाहर भी सुनने का सौभाग्य प्राप्त है। वे आज इस संसार से उठ गए, इसके लिए हम सबों को दुःख है।
जहाँ तक सूरज भाई का सवाल है, हम लोग शुरू से कह रहे हैं कि उनकी स्वाभाविक मृत्यु नहीं हुई, उनकी हत्या की गई। इस चीज को हम लोग शुरू से कहते आ रहे हैं और मैं आज इसे दोहराना चाहता हूँ कि जानबूझकर उनको मार दिया गया, और मार दिया बहुत बेरहमी के साथ, उन्हें थकूच-थकूचकर मार दिया गया। जिस तरह से जानवरों को लाठी से मारा जाता है, उसी तरह से उनको मार दिया गया। इसको कोई इनकार नहीं कर सकता है। वहाँ उनकी लाश को मैंने देखा। राँची अस्पातल में मैंने उनको देखा था। मैं कह सकता हूँ, और कह सकता हूँ बिना किसी शक-सुबहा के कि शायद उनके शरीर में कोई हड्डी नहीं थी, जो लाठी के प्रहार से बची हुई थी। जिनको स्वतंत्रता के सेनानी मानते हैं, जिनको सेनापति मानते हैं, जिनको देशभक्त मानते हैं, त्यागी मानते हैं और जिनको हम जान देनेवाला मानते हैं, ऐसे व्यक्ति को इस तरह से मार दिया जाए, यह कोई साधारण बात नहीं है, सचमुच असाधारण बात है। बाँस घाट पर उनकी लाश चिता पर जली, उनकी लाश ही नहीं जली, बल्कि प्रजातंत्र और समाजवाद चिता पर जला।
अध्यक्ष महोदय, जब देश में प्रजातंत्र और समाजवाद का डंका बज रहा है तो मजदूरों का संगठन करना जुर्म है? कहा जाएगा, नहीं क्या मजदूरों का आंदोलन करना जुर्म है? कहा जाएगा, नहीं? क्या शांतिपूर्ण ढंग से उनकी समस्याओं का समाधान खोजना जुर्म है? कहा जाएगा नहीं। क्या अनशन करना, जिसे महात्मा गंधी ने अपना अस्त्र मान लिया था, ऐसे अस्त्र का सहारा लेना, मजदूरों की समस्या का समाधान करने के लिए जुर्म है? कहा जाएगा नहीं। अगर कहा जाएगा कि जुर्म नहीं है, तो क्या अनशन पर बैठे हुए शांत और संकल्पशाील श्री सूरज नारायण सिंह को लाठी के प्रहार से मार देना अपराध नहीं है, पाप नहीं है, जुर्म नहीं है? कहना पड़ेगा कि यह अपराध है, यह पाप है और जुर्म हैं मगर अध्यक्ष महोदय, इस सरकार ने आज तक इसको अपराध नहीं माना, जुर्म नहीं माना और पाप नहीं माना। मैं शायद कोई रहस्य का उद्घाटन नहीं कर रहा हूँ, जब यह कहता हूँ कि सूरज नारायण सिंह और उनके साथियों पर आज भी खून का मुकदमा लगा हुआ है। वे इस दुनिया से चले गए, मगर इस सरकार के रिकाॅर्ड में इन पर मुकदमा है। इस सरकार को कोई्र शर्म नहीं है। यह बेशर्म सरकार है। इस सरकार के थाने में और कचहरी में इन लोगों पर खून का मुकदमा लगा हुआ है। आपको सुनकर आश्चर्य होगा कि इनके हत्यारों पर कोई मुकदमा नहंीं है। इतने दिन गुजर गए, मगर इस ओर सरकार का ध्यान नहीं गया। वर्तमान मुख्यमंत्री ने कहा कि सूरज भाई की विधवा पत्नी के लिए रुपया दिया गया। उनको शायद मालूम नहीं है कि जब हम अनशन पर बैठे हुए थे, मेरे पास बिहार सरकार के राजनीति विभाग के उप-सचिव गए थे और अनशन के बाद राजनीति विभाग के सचिव मुझसे मिले थे। 20 जून को राजनीति विभाग के सचिव से बात हुई थी। उन्होंने कहा कि सरकार कम-से-कम 15 हजार और अधिक-से-अधिक 30 हजार रुपया उनकी विधवा पत्नी को देगी। मैंने राजनीति विभाग के सचिव को कहा था कि उस बहादुर आदमी की धर्मपत्नी तथा जयप्रकाशजी से मेरी बातें हुई और हम लोगों की सम्मिलित राय हुई, सरकार जो रुपया देना चाहती हैे, उस रुपया को लेने से नामंजूर किया जाए, नकार दिया जाय। कितने दिनों की बात है, मगर वर्तमान मुख्यमंत्री कहते हैं कि यही उनका पहला बड़ा काम हुआ। अध्यक्ष महोदय, आपकी उपस्थिति की बात है, स्वतंत्रता सेनानी को तमाम सुविधा दी जा रही हैं, हम लोग केवल ये चाहते थे कि आपकी समिति द्वारा, जिसके आप अध्यक्ष हैं और जिसका सदस्य होने का सौभाग्य मुझे प्राप्त है, विरोधी दल के नेता श्री हरिहर प्रसाद सिंह और कई माननीय सदस्यों को उस समिति का सदस्य होने का सौभाग्य प्राप्त है, उस समिति द्वारा उनकी धर्मपत्नी को पेंशन देने के लिए सिफारिश की जाए और पेंशन की रकम में कुछ वृद्धि की जाय। यह फैसला पहले ही हुआ था कि 350 रुपया माहवारी परेंशन उनकी धर्मपत्नी को मिलेगी, जहाँ तक मकान देने की बात है, यह बात तय हुई थी और तत्कालीन मुख्यमंत्री ने कहा था कि सूरज बाबू की धर्मपत्नी को मकान उपलब्ध रहेगा, जब तक अन्य व्यवस्था नहीं हो।
यह हो, वह हो, सरकार जो है, उसे हम लोग जानते हैं। अभी हम विशेष्ज्ञ नहीं कहना चाहते हैं, जब इस पर विवाद होगा, तो इसके बारे में तफसील से बोलेंगे। अध्यक्ष महोदय, हमने इस सरकार के सामने सुझाव दिया, विरोधी दल के नेताओं ने भी कहा कि किन परिस्थितियों ने सूरज बाबाू को अनशन करने के लिए बाध्य किया। हमने इस संबंध में सरकार से कहा, तत्कालीन मुख्यमंत्री ओैर मुख्य सचिव से कहा कि जाँच के लिए जो आयोग गठित किया जाए, उसमें एक बात निश्चित रूप से जोड़ दी जाए कि किन कारणों से और किन-किन परिस्थितियों से सूरज बाबू को अनशन करने के लिए बाध्य होना पड़ा। लेकिन सरकार ने लिखित उत्तर दिया कि इस प्रश्न को नहीं जोड़ा जाएगा। अभी भूल को मानने से इनकार करते हैं। श्रम विभाग जिम्मेदार था, राजनीति विभाग जिम्मेदार था या श्रम विभाग बेकसूर और राजनीति विभाग कसूरवार था या दोनों कसूरवार थे, हम तो नहीं जानते हैं, सुनते हैं, लेकिन जानते तो नहीं और जब आयोग बैठेगी, तो ये सारी बातें आएँगी। दुनिया के सामने सारी बात आएँगी कि आखिर क्या हुआ, किन परिस्थितियों से मजबूर हुए थे सूरज बाबू अनशन करने को, लेकिन इस बात को नहीं जोड़ा गया। टर्म आॅफ रेफरेंस में मेरे सुझाव को नहीं जोड़ा गया। अभी भी यह सरकार इसे कर सकती है, अधिसूचना प्रकाशित करके इस बात को जोड़ने की जरूरत है, लेकिन सरकार ऐसा करने को तैयार नहीं है। बाद में सरकार कहेगी कि हमने तो कमाल कर दिया, बड़ा-बड़ा काम कर दिया। कहा गया कि सूरज बाबू के बेटे को सरकारी नौकरी दी जाएगी। अध्यक्ष महोदय, मेरा पक्का विश्वास है, मेरी बातचीत नहीं हुई उस परिवार के सदस्यों से इस मुद्दे पर, वह नौकरी करने को तैयार नहीं होगा। सरकार ने लाठियों का प्रहार किया है, प्रहार करवाया है, सरकार ने सूरज भाई की हत्या की है, यह मैं मानता हूँ। क्या इस सरकार को सुझाव नहीं दिया था श्री चतुरानन मिश्र ने, श्री कमलदेव नारायण सिंह ने, श्री भोला प्रसाद सिंह ने, श्री त्रिपुरारी प्रसाद सिंह ने, जनसंघ के परिषद् सदस्य श्री रामकृपाल सिंह ने और मुझको भी उसमें शामिल किया गया था, क्या इन सबों की कमेटी नहंीं बनी थी और क्या यह सुझाव नहीं दिया था कि हत्यारों पर मुकदमा चलाया जाए, खूनी लोगों पर मुकदमा चलाया जाय? क्या सुझाव नहीं दिया था कि जो पर्सनल मैनेजर है, उस पर मुकदमा चलाया जाय। श्रीमती रमणिका गुप्ता पर मुकदमा चलाया जाए, जो अंचलाधिकारी हैं खिजरी की, नामकुम के दारोगा और जमादार और जो सिपाही तैनात थे, उस पर मुकदमा चलाया जाय? क्या यह सुझाव हम लोगों ने नहीं दिया था? इस सदन के सदस्यों की एक समिति ने गैर-सरकारी ढंग से तथ्यों को जनजदीक से जाँच-पड़ताल करके एक प्रतिवेदन सरकार के सामने प्रस्तुत नहीं किया था, जो अखबार में आया था? केवल डाइंग डिक्लेरेशन के आधार पर मुकदमा चलाना मैं नाकाफी मानता हूँ। डाइंग डिउक्लेरेशन है कि लाठियाँ बरस रही थीं और वे उसे रोकने का काम कर रहे थे और जो चारों तरफ आदमी घिरे हुए थे, मारे जा रहे थे और उनके डाइंग डिक्लेरेशन को काफी मान लिया जाए, मैं ऐसा वाजिब नहीं मानता हूँ। इतने माननीय सदस्यों की जाँच करने के बाद जो प्रतिवेदन उपस्थित किया गया, सरकार को उसका खयाल करना चाहिए था और तमाम लोगों पर मुकदमा चलाने का आदेश देना चाहिए था। अध्यक्ष महोदय, मैं यह मानता हूँ कि जो कुछ हुआ हैे सूरज भाई को मामले में, वह कल उनके साथ हो सकता है, हमारे साथ हो सकता है और चैथे दिन श्री हरिहर प्रसद सिंह के साथ भी हो सकता है। किसी के साथ भी हो सकता है। माननीय सदस्यगण, यह आप जान लें कि जिन लोगों ने सूरज भाई की हत्या की है, वे ही श्री दारोगा प्रसाद राय की हत्या भी कर सकते है। खूनी का हाथ ऐसा होता है, जो किसी को नहीं छोड़ता है, आज हम खूनी के हाथ में जकड़े जा सकते हैं, कल दारोगाजी और गफेूर साहब भी पकड़े जा सकते हैं, इसलिए मैं आपको सावधान कर देना चाहता हूँ। अंग्रेजों ने उनकी हत्या नहीं की। अध्यक्ष महोदय, आप और वे दोनों एक ही इलाके के हैं। हम तो एक जिला के हैं, लेकिन आप और वे दोनों एक इलाके के हैं’’’।
अध्यक्ष: एक ही थाने के।
श्री कपू्र्ररी ठाकुर: आप जानते हैं कि वे अहिंसक क्रांतिकारी नहीं थे, वे हिंसक क्रांतिकारी थे। वे बम, पिस्तौल, राइफल, बंदूक के साथ भगत सिंह के साथ पंजाब की तरफ, बंगाल की तरफ, उत्तर प्रदेश की तरफ, भगत सिंह के साथ अंग्रेजों के खिलाफ काम किए, लेकिन अंग्रेजी राज ने उनकी हत्या नहीं की। अंग्रेजी राज ने उन पर गोली नहीं चलाई। अध्यक्ष महोदय, आपको पता है कि हिंदुस्तान का सबसे बड़ा जमींदार, दरभंगा महाराज के खिलाफ उन्होंने 1933 और 1938 इ्र्र. में सत्याग्रह आंदोलन संचालित किया, तो इतना बड़ा जमींदार अपने लठैतों से सूरज बाबू की हत्या नहीं करवा सका। हजारीबाग जेल से निकल भागने के बाद और नेपाल जेल को तोड़ने के बाद सूरज बाबू जब गिरफ्तार हुए, तो उस समय की खूँखार अंग्रेजी सरकार ने लाठी और गोली चलाकर उनकी हत्या नहीं की। उनके त्याग और बलिदान से ही इस देश को आजादी मिली और सूरज भाई की हड्डी की बनी इस कांग्रेसी सरकार ने उनकी जान ले ली। जैसाकि श्री हरिहर प्रसाद सिंह ने कहा कि मुझे शोक नहीं, ईष्र्या है कि उनको ऐसी मौत मिली।ं सूरज बाबू कहते थे कि मैं खाट पर नहीं मरूँगा, बीमारी से नहीं मरूँगा, बल्कि बहादुरी की मौत मरूँगा, जो उनको नसीब हुई। वे मर गए, लड़ते-लड़ते मर गए। उन्होंने देश के लिए लड़ाई लड़ी। वे मजदूरों के लिए मरे, समाजवाद के लिए मरे, फख्र है हम लोगों को, गौरव है हम लोगों को। शोक नहीं है, होश अवश्य है हम लोगों को। यहाँ एक चुनौती हेै, उस चुनौती को स्वीकार करने की तमन्ना जरूर है।ं उस महान् व्यक्ति को जितनी श्रद्धांजलियाँ अर्पित की जाएँ, वह थोड़ी होंगी। उनके शोक-संतप्त परिवार के लिए जो कुछ भी कहा जाए, थोड़ा होगा। सूरज भाई उस परिवार के लिए फिर नसीब नहीं होंगे, लेकिन चाहे जो हो, एक निष्कर्ष यह है कि सरकार ने उनकी हत्या की है। हमको, आपाको, सबको इस चुनौती को स्वीकार करना पड़ेगा और चुनौती का जवाब देना पड़ेगा, इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपना स्थान ग्रहरण करता हूँ।