(दिनांक: 23 अगस्त, 1973)
विषय: राज्य के दलित, दुर्बल एवं पिछड़े वर्ग, विशेषकर हरिजन एवं आदिवासियों की समस्याओं पर लाए गए प्रस्ताव पर भाषण।
श्री कर्पूरी ठाकुर: उपाध्यक्ष महोदय, आज मैं जिन हरिजन, आदिवासी और पिछड़े वर्ग के प्रश्नों पर वाद-विवाद प्रारंभ कर रहा हूँ, उनकी समस्याएँ, असंख्य हैं और अभी उन समस्याओं पर बोलना संभव नहीं है। यदि कुछ कहा जा सकता है, तो अत्यंत संक्षेप में ही। आपने ठीक ही कहा है, उपाध्यक्ष महोदय कि अन्य माननीय सदस्यांे को भी इस प्रश्न पर बोलना है। मैं आपके आदेश का पालन करने का प्रयास करूँगा। यह निर्विवाद है कि हरिजन, आदिवासी और पिछड़े लोग आर्थिक दृष्टि से अत्यंत शोषित हैं, सामाजिक दृष्टि से अपमानित और लांछित हैं तथा शैक्षणिक और सांस्कृतिक दृष्टि से सर्वाधिक उपेक्षित हैं। स्वभावतः आर्थिक और सामाजिक कारणों से, प्रशासनिक पक्षपात से ये वर्ग प्रतिदिन अन्याय और अत्याचार के शिकार होते रहे हैं। उपाध्यक्ष महोदय, मैं भूमिका में नहीं जाना चाहता हूँ समयाभाव के कारण। मैं आपकी अनुमति से कुछ ऐसे उदाहरणों का उल्लेख करना चाहता हूँ, जो अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण हैं और साथ-ही-साथ, मुझको और आपको भी हैरत में डाल देनेवाला है। वे घटनाएँ आज भी घटती ही रहती हैं। मेरे पास कल वैशाली जिले के पातेपुर थाने से एक हरिजन आया था। उनका नाम था, श्री राजेश्वर पासवान। उन्होंने कल मुझे स्वयं बतलाया कि 30 जुलाई, 1973 ई. को उन्हें, उनके मालिक श्री शत्रुघ्न प्रसाद सिंह ने पकड़कर कहा कि सवा रुपया रोज पर मेरे खेत में काम तुम्हें करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि महँगाई बहुत है, दूसरे काश्तकार दो रुपए, ढाई रुपए, तीन रुपए दे रहे हैं, आप भी उतना ही दीजिए। उन्होंने मजदूरी देने से इनकार किया और श्री राजेश्वर पासवान को पकड़कर पीटना शुरू किया। 31 जुलाई, 1973 ई. को उन्होंने पातेपुर थाना में नालिष की। श्री राजेश्वर पासवान बतला रहे थे कि अभी तक थाना में कोई कार्रवाई नहीं की, न किसी मुद्दालय की गिरफ्तारी की और न उनके खिलाफ जो फरार हो गए, कुर्की-जब्ती की कार्रवाई की। किसी तरह की कार्रवाई पातेपुर थाना ने नहीं की। इतना ही नहीं, श्री राजेश्वर पासवान ने बतलाया कि वे रास्ता चलते उनको गाली देते हैं, उनके परिवार के लोगों को गाली देते हैं श्रीमती गंगिया देवी, जो श्री राजेश्वर पासवान की धर्मपत्नी है, को एक बार नहीं, दर्जनों बार भद्दी-भद्दी गालियों का शिकार बनाया गया। श्री चुल्हाई पासवान, जो श्री राजेश्वर पासवान के बूढ़े पिताजी हैं, उनको भी गालियों का शिकार बनाया गया। रास्ता चलते मारने-पीटने की धमकी दी जा रही है। मैं नहीं जानता हूँ कि उन पर क्या बीतनेवाला है? एक तो मालिक का अन्याय और दूसरा पुलिस प्रशासन का अन्याय। मालिक का अन्याय तो बिल्कुल अँधेर हैे, लेकिन पुलिस प्रशासन कोई कार्रवाई नहीं करे पीटनेवालों पर, मारनेवालों पर और कम मजदूरी देनेवालों पर, यह असह्य हैं।
मैं दूसरी घटना का उल्लेख करना चाहता हूँ, जो आदिवासियों के संबंध में है। बोआरीजोर थाना के अंतर्गत सुंदर बाँध डेम के कर्मचारियों ने दिनांक 5 मार्च, 1973 ई. को पाँच डेंफल गाड़ियों में हथियारों से लैस होकर राजमिट्ठा हटिया में, जो बहुत से आदिवासी आए हुए थे, उन्हें बुरी तरह पीटा। वहाँ के कर्मचारियों ने दिनांक 3 मार्च, 1973 ई. को बोआरीजोर थाना के पुरनांद साहु तथा वहाँ के ग्रामीणों को बुरी तरह पीटा। इस संबंध में सरकार को संपूर्ण सूचना दी गई, लेकिन आज तक कोई कार्रवाई उन लोगों के खिलाफ नहीं हुई।
राजमहल अनुमंडल के अंतर्गत बोरियों प्रखंड के बी.डी.ओ. के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। आदिवासियों पर होनेवाले जुल्म की लंबी सूची मेरे पास है, लेकिन मैं समयाभाव के कारण छोड़ देता हूँ। मैं चाहूँगा आपके माध्यम से उसे सदन की मेज पर रखना।
तीसरी घटना का जिक्र मैं करना चाहता हूँ। पूर्णिया में हम लोग आज से कुछ दिन पहले गए थे। आपको उपाध्यक्ष महोदय, यह सुनकर आश्चर्य होगा और सदन को भी आश्चर्य होगा। पुर्णिया में जो पुलिस द्वारा लाठीचार्ज किया गया, जिसको सरकार ने मानने से इनकार किया। उनस लाठीचार्ज में लगभग 85 आदमियों को पीटा गया। मगर 85 आदमियों में 100 फीसदी हरिजन, आदिवासी, मुसलमान और पिछड़ों को पीटा गया। मेरे पास नाम हैं। इस सदन के माननीय सदस्य श्री कमलदेव नारायण सिंह के पास नाम हैं और माननीय सदस्य श्री राजकिशोरजी के पास नाम है। एक-एक आदमी जो पीटे गए, उनमें हरिजन, आदिवासी, मुसलमान और पिछडे पीटे गए। 85 आदमियों का नाम सुनाने में बहुत वक्त लग जाएगा, इसलिए मैं आपकी अनुमति से इसको भी सदन की मेज पर रख दूँगा, जिससे पता चलेगा कि किस तरह से अन्याय पुलिस करती है, लगता है, चुन-चुनकर पीटा गया। 100 फीसदी हरिजन, मुसलमान और पिछड़ों को पीटा जाय, तो क्या कहा जाएगा?
उपाध्यक्ष महोदय, लगता है कि चुन-चुनकर सौ फीसदी जो हरिजन हैं, पिछड़े हैं, आदिवासी हैं, गरीब हैं, पुलिस के प्रशासन के लोग उन्हें पीटते हैं। उपाध्यक्ष महोदय, मैं पूछना चाहता हूँ कि इसका क्या अर्थ है? क्यों वे लोग चुन-चुनकर पीटे जा रहे हैं? बिंदेश्वरी प्रसाद को पीटने का साजिश जरूर किया जाता होगा, लेकिन पीटने की हिम्मत नहीं होती है-साजिश करने से तो लोग बाज नहीं आते होंगे।
उपाध्यक्ष महोदय, आप जानते होंगे, पूर्णिया जिला के फारबिसगंज के बाजार से श्रीमती रामदुलारी को पकड़कर कोप भवन में पुलिस ले गई और इसके साथ बलात्कार किया गया और इस पर जो सरकार का उत्तर हुआ, वह असंतोषजनक हुआ। उपाध्यक्ष महोदय, यह स्पष्ट था कि उनके साथ बलात्कार किया गया है। उपाध्यक्ष महोदय, मैं पूछना चाहता हूँ कि रिक्शा चलानेवालों की धर्मपत्नी क्यों पकड़ी गई, उसके साथ क्यों अभद्र व्यवहार किया गया, उसके साथ क्यों बलात्कार किया गया? महोदय, आए दिन इस तरह की घटनाएँ घटती रहती हैं कि जो गरीब हैं, आदिवासी हैं, पिछड़े हैं उनको पकड़ लिया जाता है और उनके साथ अत्याचार किया जाता है। महोदय, आपज स्वयं साक्षी हैं और इस सदन के अन्य सदस्य भी जानते हैं कि गहलोर में सौ फीसदी हरिजन और पिछड़ी जाति के लोग बसते हैं। महोदय, सदन के सामने रिपोर्ट आनेवाली है। वहाँ सौ फीसदी हरिजन और पिछड़ी जाति के लोग हैं, इसलिए एक बजे, दो बजे रात को हमला किया गया और उनके घर में घुसकर महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया। उपाध्यक्ष महोदय, वहाँ सौ फीसदी हरिजन और पिछड़ी जाति के लोग नहीं होते, तो इस तरह की बात नहीं होती। महोदय, इतना ही नहीं, उन लोगों के ऊपर झूठा मुकदमा लाद दिया गया है। महोदय, ऊँची जाति के जो लोग हैं, उनका अत्याचार उन पर बढ़ता जा रहा है।
उपाध्यक्ष महोदय, 3 अगस्त को श्री उमाशंकर दीक्षित ने बताया कि 1971-72 ई. के 14 महीने के अंदर 1967 ऐसे मामले हुए हैं, जिस मामलों में हरिजनों की संख्या अधिक हेै, महोदय, श्री उमाशंकर दीक्षित ने स्वीकार किया है कि देश के अंदर हरिजनों पर, पिछड़े लोगों पर, आदिवासियों पर जुल्म बढ़ता जा रहा है। महोदय, जुल्म के खिलाफ प्रशासन को जो कार्रवाई करनी चाहिए, वह कार्रवाई करने को प्रशासन तैयार नहीं है। उपाध्यक्ष महोदय, आपको याद होगा कि पूर्णिया जिला के चंदवा गाँव के 35 संथालियों के घर जला दिए गए और 11 आदमियों की हत्या कर दी गई। महोदय, अभी मामला कोर्ट में चल रहा है। महोदय, पैसेवाले लोग मनोबल को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, गवाह के मनोबल को तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है, ताकि मामला खराब हो जाए। महोदय, प्रशासन का कर्तव्य नहीं है कि बड़े लोग जो अत्याचार कर रहे हैं, जुल्म कर रहे हैं और इसके साथ-साथ उनके मनोबल को तोड़ रहे हैं, डरा-धमकाकर गवाहों को आतंकित कर रहे हैं, उनके खिलाफ कुछ-न-कुछ कार्रवाई करे, लेकिन प्रशासन ऐसी कोई कार्रवाई नहीं करता है? प्रशासन कहता है कि एक भी गवाह नहीं मिला, तो क्या कार्रवाई की जाएगी? मैं आपसे पूछता हूँ कि क्या प्रशासन का कर्तव्य यहाँ ही समाप्त हो जाता है?
विषय: श्री लहटन चैधरी द्वारा लाए गए प्रस्ताव बिहार विशेषाधिकृत व्यक्ति वासभूमि, काश्तकारी विधेयक, 13, 1973 के उपस्थापन पर वाद-विवाद के क्रम में।
श्री कर्पूरी ठाकुर: उपाध्यक्ष महोदय, मैं इस विधेयक के संशोधन के समर्थन में खड़ा हूँ। इस विधेयक से संबंधित तीन-चार बातें ऐसी हैं, जो अकाट्य हैं। प्रथम यह है कि जिन व्यक्तियों को वासगीत जमीन का परचा दिया गया है, उनमें बहुत से ऐसे आदमी हैं, जिनको परचा मिलने के बावजूद कब्जा नहीं मिला है। दूसरे ऐसे लोग हैं, जिनको जमीन का परचा मिला है, उससे कम है।
तीसरा, यदि आज वर्षा के चलते या आँधी के चलते या किसी प्राकृतिक आपदा के चलते गिर जाता है, घर बे-मरम्मत हो जाता है और व्यक्ति विशेष अपने घर की मरम्मत करना चाहते हैं तो जो पहले के मालिक थे, वे मरम्मत नहीं करने देते हैं, फिर से नहीं बनाने देते हैं, और आखिरी बात कि बहुत से व्यक्तियों को जितनी जमीन मिली है, परचा में, वह जमीन इतनी कम है कि घर से बाहर जब वे निकलते हैं, तो दूसरे की जमीन में से निकलना पड़ता है। अकसर दरवाजा दूसरे की जमीन में है, कहीं चार पेड़ मकई नहीं लगा सकते हैं, कुछ तरकारी नहीं लगा सकते हैं, ऐसी स्थिति में उपाध्यक्ष महोदय, कहना नहीं पड़ेगा कि इस तरह मालिक और असामी का रिश्ता, जो दासता और अर्धदासता का परिचायक था, खत्म होगा! यह कानून 1968 ई. में बना, परंतु उपाध्यक्ष महोदय, आप और हम देहात से आते हैं और उससे हम सभी अवगत हैं कि मालिक और दासता का रिश्ता आज भी बना हुआ है। आज भी असामियों का जो हिस्सा कहलाता है, उन पर दासता और अदासता हमारे देहातों में कामय है। मैं सरकार से कहना चाहूँगा कि अपने प्रचार विभाग के जरिए, लोकमत के जरिए इस दासता और अर्धदासता को खत्म करे।
उपाध्यक्ष महोदय, वैशाली जिला के महनार अंचल के अंतर्गत ग्राम परमानंदपुर थाना नं. 582 के निवासी श्री नथुनी साह और श्री नागेंद्र साह, पिता श्री बंगाली साह के नाम से खाता नं. 33, ख्रा नं. 298 में 4 डिसमिल (18 धूर) वासगीत जमीन का परचा महनार के अंचलाधिकारी द्वारा किया जा चुका है। श्री नथुनी साह और श्री नागेंद्र साह का परिवार लगभग तीस वर्षों से उक्त जमीन पर बसा हुआ है। किंतु जमीन मालिक श्री पलटन राय उन्हें बेदखल करने पर तुले हुए हैं। टट्टी की तीन झोंपड़ियों में से एक झोंपड़ी उजाड़ी जा चुकी है और शेष दो झोंपड़ियों पर भी खतरा है। श्री पलटन राय ने पुलिस को मिलाकर निर्दोष बारह व्यक्तियों पर 107 दफा के अंतर्गत मुकदमा भी चला रखा है। इस वर्षा ऋतु में जब श्री नथुनी साह और श्री नागेंद्र साह घर की मरम्मत करना चाह रहे हैं तो उन्हें मरम्मत करने से रोका जा रहा है। फलस्वरूप वर्षा के समय चूते हुए घरों में उनका पूरा परिवार भीगते हुए, अपना जीवन व्यतीत कर रहा है।
उपाध्यक्ष महोदय, यह एक उदाहरण नहीं है। ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं और मैं आपसे जो विधेयक हैं, उसके बारे में कहना चाहता हूँ कि इसकी प्रगति तेज होनी चाहिए। 1971 ई. के मार्च या अप्रैल में बिहार सरकार का एक सरकुलर निकला था। हम लोगों का मंत्रिमंडल था। अधिसूचित क्षेत्र में और नगरपालिका क्षेत्र में जो विशेषाधिकार प्राप्त व्यक्ति बसे हुए हैं, उनके द्वारा हरिजन, आदिवासी या गरीब पिछड़े, भूमिहीन लोगों को बेदखल नहीं किया जाएगा, उनके नाम दर्ज कर कब्जा दिलाया जाएगा। अधिसूचित या नगरपालिका क्षेत्र में जो हमेशा से बसे हुए हैं, जो विधेयक पास होनेवाला है, उस पर तेजी से और कड़ाई से कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि जो बसे हुए हैं, उनको अधिकार मिल जाए, ताकि उनके हाथ में जमीन हमेशा रहे।ं उपाध्यक्ष महोदय, अभी-अभी माननीय सदस्य श्री विनायक प्रसाद यादवजी ने स्मरण दिलाया। गाँव में अपनी स्वेच्छा से कोई आदमी बस जाए, अपनी राजी-खुशी से बसने के बाद वासगीत जमीन का अधिकार मिल जाएगा, परचा मिल जाएगा। तो मैं माननीय मंत्री से, उपाध्यक्ष महोदय, जानना चाहता हूँ कि क्या इस विधेयक के पारित होने के पश्चात् कोई व्यक्ति विशेष, जो भूमिहीन है, वह गाँव की तरह अधिसूचित क्षेत्र या नगरपालिका क्षेत्र में फिर से बसेगा?
तो, महोदय, मैं जानना चाहता हूँ कि उसको वही अधिकार प्राप्त होगा या नहीं, जो गाँव में बसनेवाले को प्राप्त होता है? मैं इसका स्पष्टीकरण चाहूँगा और इन्हीं शब्दों के साथ मैं इस विधेयक का समर्थन करता हूँ।