(दिनांक: 7 दिसंबर, 1977)


विषय: श्री दीपनारयण सिंह, पूर्व मंत्री के निधन पर शोक-संवेदना।

श्री कर्पूरी ठाकुर: उपाध्यक्ष महोदय, यह अत्यंत ही दुःख का विषय है कि आज हम लोगों के आदरणीय नेता माननीय श्री दीप नारायण सिंह का देहावसान हो गया। हाजीपुर के नेता माननीय श्री दीप नारायण सिंह का देहावसान हो गया। हाजीपुर अनुमंडल और समस्तीपुर अनुमंडल एक-दूसरे से सटे हुए हैं, इसलिए बहुत नजदीक से इन दोनों अनुमंडलों के स्वतंत्रता संग्राम के सिपाहियों एवं सेनापतियों को मुझे जानने का सौभाग्य प्राप्त रहा है। मुझे न केवल जानने का सौभाग्य ही प्राप्त हुआ है, बल्कि हमारे जैसे स्वतंत्रता-संग्राम में भाग लेने वाले उस समय जो भी थे और नौजवान थे, उनके ऊपर जबरदस्त प्रभाव भी पड़ता था। आदरणीय दीप बाबू को अत्यंत सम्मान की दृष्टि से जनतो के द्वारा देखा जाता था। कारण कि उनको आम लोग सिर्फ स्वतंत्रता-संग्राम के सेनापति हीं नहीं समझते थे, बल्कि उच्च कोटि के ईमानदार व्यक्ति तथा सज्जन नेता भी मानते थे। उन्होंने 1921 ई. के असहयोग आंदोलन में भाग लेकर साहस का परिचय दिया था जेल-यातना के द्वारा लाखों लोगों को अंग्रेजों ने तबाह किया था, उसका अमिट छाप अभी भी देखा जा सकता है। 1921 के बाद वे स्वतंत्रता संग्राम में वे लगातार भाग लेते रहे और जेल-यात्रा करते रहे। उन्होंने आजादी की लड़ाई में आपना पैर पीछे नहीं रखा। उन दिनों जिस तरह कांग्रेसी वोलिंटीयर गाँव-‘गाँव जाते थे, कांग्रेस का सदस्य बनाते थे, पैदल घूमते थे और स्वतंत्रता का संदेश घर-घर पहुँचाते थे, उस तरह का काम लगातार आदरणीय दीप बाबू करते थे। इसीलिए जब उस समय एक मुजफ्फरपुर जिला था, उसके मिट्टी के कण-कण में दीप बाबू का प्रभाव था। जैसाकि आपने कहा-1926 से ‘28 तक बिहार-उड़ीसा में विधान-परिषद् के वे सदस्य रहे। फिर जब 1937 के शुरू में 1936 ई. के शासन विधान संविधान के आधार पर चुनाव हुआ था तो सीमित मताधिकार पर चुनाव हुआ था, जिसमें 13 प्रतिशत मत था, उसमें भी आदरणीय दीप बाबू को टक्कर उस समय के एक बहुत प्रभावशाली जमींदार परिवार के जमींदार वर्ग के नेता से हुआ था, जिसका नाम बाबू श्याम नंदन सहाय था। कोई विश्वास नहीं करता था कि दीप बाबू, श्याम नंदन सहाय के सामने जीत सकेंगे। लोग यह समझते थे कि दीप बाबाू एक ऐसे मामूली परिवार के उम्मीदवार हैं-कांग्रेस के और दूसरी तरफ बाबू श्यामनंदन सहायजी, जो बहुत ही उच्च कोटि के जमींदार वर्ग के हैं, उम्मीदवार हैं। रुपए-पैसे का खेल चलता है, साथ-साथ सीमित मताधिकार है, दीप बाबू जीत नहीं सकेंगे। लेकिन चुनाव में हम लोगों ने देखा कि किस तरह नारा लग रहा। यह नारा उस समय का है, वैसे ही समय के लिए वह नारा बनाया गया कि ‘‘पूड़ी खिलाएँ तो खा लेना। हलुआ खिलाएँ तो खा लेना, पैसा लुटाएँ तो ले लेना। लेकिन कोठरी मेें जाकर बदल जाना।’’ यह नारा गाँव-गाँव में गूँज रहा था। मैं चूँकि बगल का रहनेवाला था और कांग्रेस का कार्यकर्ता था। मैं अपने विद्यार्थी जीवन से इसमें भांग लेता था। इसीलिए मैं प्रत्यक्षदर्शी ही नहीं था, बल्कि कम उम्र में एवं छोटे से वोलिंटीयर के रूप में कांग्रेस की तरफ से उन दिनों काम करने का सौभाग्य भी मुझे प्राप्त हुआ था।ं यह नारा सुनते थे। लेकिन लोगों में विश्वास नहीं था कि दीप बाबू जीते सकेंगे। परिणाम ठीक उल्टा ही हुआ। दीप बाबू जीत गए और बाबू श्यामनंदन सहाय हार गए। आपको पता है कि फिर युद्ध छिड़ा 1939 ई. में। उस समय शासन विधान की धारा 93 के अंतर्गत राज्यपाल का शासन लद गया।

जहाँ-जहाँ उस समय कांग्रेस का मंत्रिमंडल था। फिर एक साल के बाद 1940 ई. में कांग्रेस ने फैसला लिया कि हमें लड़ाई लड़नी पड़ेगी ब्रिटिश सरकार से। उस फैसले पर महात्मा गांधी ने निर्णय लिया व्यक्तिगत-सत्याग्रह संग्राम का। फिर दीप बाबू को जेल जाना पड़ा, 1941 ई. में जेल गए। जब महात्मा गांधी ने ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’, आंदोलन शुरू किया, तो फिर दीप बाबू को जेल जाना पड़ा। 1946 ई. में जब चुनाव हुआ तो दीप बाबू खड़े हुए और बहुत भारी बहुमत से जीतकर इस सभा में आए। 1946 ई. से लेकर 1977 ई. के फरवरी तक लगातार वे चुने गए। उनकी लोकप्रियता कितनी थी, इसी से स्पष्ट हो जाता है।

वे सब के साथ समान रूप से अच्छे ढंग से मिलते थे, बातें करते थे। हम लोग उम्र में बहुत छोटे थे, लेकिन वे स्नेह रखते थे। वे राजनीति में काम करते थे, जिस तरह हम लोग करते हैं मगर राजनीति में काम करते हुए जैसे आपस में हम लेागों में कटुता हो जाया करती है, वैसी कटुता की भावना दीप बाबू में पैदा ही नहीं होती थी। लगता था, अजातशत्रु हैं। सब पर प्रेम की वर्षा वे करते थे। जो उनके सहयोगी थे, उनके साथ बरताव विद्वेष का नहीं, घृणा का नहीं, बड़ों का नहीं, बल्कि सम्मान और स्नेह का बरताव वे करते थे। 1946 ई. में वे बयान करते थे, उस कमेटी में मैं भी भाग लेता था, जो शब्द चयन करते थे, उपयुक्त करते थे। अंग्रेजी के उपयुक्त शब्दों का चयन करते थे और जो लोग अंग्रेजी की जानकारी रखते थे, वह कहते थे कि दीप बाबाू का शब्द चयन उपयुक्त होता है। बिहार के सार्वजनिक जीवन की जो क्षति हुई है, उसकी पूर्ति अब वैसे लोग कहाँ हैं कि हो सकेगी? दीप बाबू हमारे प्रदेश के ही नहीं, बल्कि सार्वजनिक जीवन मंें उच्च स्थान रखते थे। 1955-56 ई. की बात है, उस समय जो चीफ जस्टिस, मद्रास हाईकोर्ट के थे, ऐसे लोग कहते थे कि ये दीप बाबू नहीं, बल्कि डीप बाबू हैं, कहीं कोर्ट के ऐसे लोग कहते थे, और जब बोलते थे तो बड़ी गहराई में डीप जाकर, सोच-समझकर बोलते थे। एक कुशल राजनेता, स्वतंत्रंता संग्राम का महान् सेनापति और भिन्न-भिन्न संगठनों से अटूट संबंध रखनेवाले बड़े दर्जे का नेता, भ्रातृ-भाव रखनेवाला, एक उच्च कोटि का सज्जन, सुसंस्कृत पुरुष, आज हमारे बीच से उठ गया है। हम लोग शोक मनाते हैं, क्योंकि किसी-न-किसी दिन हम लोंगों को भी जाना है। 83 वर्ष तक दीप बाबू जिए शांति से और सादगी से, ताकि जनता अनुसारण करेगी। इस अवसर पर मैं दिवंगत आत्मा की शांति के लिए भगवान् से प्रार्थना करता हूँ और आदरणीय दीप बाबू को अपनी ओर से श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए यह कामना करता हूँ कि ईश्वर उनके शोक-संतप्त परिवार को इस शोक, दुःख को सहने की शक्ति प्रदान करें।

श्री मंगल प्रसाद सिंह: 26 प्रतिशत के बारे में क्या हुआ?

श्री कर्पूरी ठाकुर: इनके सवाल का जवाब इसलिए नहीं दिया जाएगा कि ये भर दिन गैर-हाजिर हैं। अध्यक्ष महोदय, मैं आपसे कह रहा था कि गरीबों के लिए दो काम सरकार करने जा रही है। मैं इसका उल्लेख करना चाहता हूँ। एक काम है कि 587 प्रखंड बिहार में है, उन प्रखंडों में प्रत्येक प्रखंड के 300 परिवार, जो अत्यंत गरीब हैं, उनको 2000 रुपए से 5000 रुपए के बीच सहायता दी जाएगी और वह सहायता उन्हें कर्ज के रूप में नहीं दी जाएगी, बल्कि अनुदान के रूप में दी जाएगी। हमारे मित्रों ने कहा कि बेकारी बढ़ रही है। कितने को काम देंगे, जो काम उनके मन के पसंद के हों, जिससे वे उत्पादन करेंगे, जिससे अपनी संपत्ति को बढ़ावेंगे, गरीबी की रेखा से नीचे नहीं रह पाएँगे, गरीबी रेखा से ऊपर चले जाएँगे। मैंने कहा कि दो हजार रुपए से लेकर पाँच हजार रुपए के बीच प्रति परिवार को उसी वित्तीय वर्ष में दिए जाएँगे। हमारी सरकार ने इसके लिए रुपया मंजूर कर दिया है, मंत्रिपरिषद् का निर्णय हो गया है, सर्कुलर भेजा जा रहा है। तमाम लोगों को सहायता दी जाए, उसके लिए सभी पार्टियों के सदस्यों एवं शैक्षणिक संस्थाओं की मदद चाहिए। अध्यक्ष महोदय, 1 लाख 76 हजार 100 व्यक्तियों को यह सहायता मिलने वाली है। यह प्रोग्राम सिर्फ कागज पर ही नहीं, फैसला हो चुका है, पैसा मंजूरी करके रखा हुआ है, सिर्फ लागू करना है। अध्यक्ष महोदय, इसके अलावे अंत्योदय कार्यक्रम चलाने जा रहे हैं। ये सिर्फ नारा लगाते थे कि गरीबी मिटाओ और उसका समर्थन श्री रामचंद्र पासवान जैसे नासमझ लोग भी करते थे, लेकिन इन्होंने इसी कार्यक्रम को नहीं चलाया। 700 बैंकों के ब्रांच 30-30 गाँव लेने जा रहे हैं और प्रत्येक गाँव में पाँच परिवार को एक हजार से पाँच हजार तक सहायता दी जाएगी। इस तरह 1 लाख पाँच हजार परिवार इससे लाभान्वित होंगे और उनके परिवार के पाँच सदस्य होंगे। इस तरह अंत्योदय कार्यक्रम के अंतर्गत सहायता दी जाएगी। पहली बार बिहार के इतिहास में, हिंदुस्तान के इतिहास में, मोरारजी भाई, हमारे प्रधानमंत्री हैं, उनके नेतृत्व में दिल्ली में जो जनता पार्टी की सरकार है, बिहार में जनता पार्टी की सरकार है, उसके जरिए बेकार और निर्धन परिवार के कल्याण के लिए यह काम हम करने जा रहे हैं।

अध्यक्ष महोदय, यह कहा जाता है कि आपने प्रशासनिक सुधार नहीं किया है। इसके बारे में मैं कहना चाहता हूँ कि इसके लिए हम लोगों ने दो समिति बनाई है और वह अपने-अपने ढंग की है। एक उप-समिति का नाम है पावर डेवैल्यूशन कमेटी, जिसके अध्यक्ष पहले बोर्ड आॅफ रेवेन्यू के श्री करण सिंह थे और अब श्री एन.के प्रसाद हैं। इसमें व्यवस्था है कि सचिवालय से शक्ति नीचे कितनी दी जाए, कैसे दी जाए। मंत्रिपरिषद् से कितना नीचे अधिकारी दिया जाए। इसमें ऐसी व्यवस्था की जा रही है कि नीचे के अधिकारियों को कितनी शक्ति दी जाए। सस्थिक परिवर्तन के पंचायती राज्य की स्थापना की जाए। इस तरह वर्गीकरण की दिशा में, नीचे के लोगों को तैयार किया जा रहा है। ऐसा करके उनको अनुभवी बनाया जाएगा, सक्षम बनाया जाएगा और इस दिशा में वास्तविक रूप से काम किया जाएगा।

अध्यक्ष महोदय, उसी तरह से दूसरी समिति मुख्यमंत्री के स्तर पर प्रशासनिक सुधार के लिए बनाई गई है, जिसकी बैठक दस जुलाई को हुई थी और हमारे मंत्रिपरिषद् के द्वारा एक संलेख तैयार किया गया है, इस संलेख को स्वीकृति दी जाएगी और सदन के सामने जो हमारा फैसला होगा प्रशासनिक सुधार के लिए, हम उसको रखेंगे।

अध्यक्ष महोदय, यहाँ हर सदस्य लाॅँ एंड आॅर्डर के बारे में भाषण देते हैं, और इस बात का जिक्र किया करते हैं कि अपराधों की संख्या में वृद्धि हो रही है। मैं इस बात को मानता हूँ, आपराध हो रहे हैं, डकैतियाँ हो रही हैं, लूट हो रही है, गृहभेदन हो रहा है, इससे मैं इनकार नहीं करता हूँ। लेकिन मैं कहना चाहता हूँ और दावे के साथ कहना चाहता हूँ कि पहले भी चोरी होती थीं, डकैती होती थीं हत्याएँ होती थीं, लूट होते थे, उसके मुकाबले में हमारे समय में उक्त घटअनाएँ ज्यादा नहीं हो रही हैं। इसलिए मैं कहना चाहता हूँ कि इसके लिए हमने समिति बनाई है कि क्या उपाय किया जाए कि अपराध नहीं हों, अपराध पर नियंत्रण हो। मैं चाहता हूँ कि जनता से जो शिकायत खून और अपराध के बारे में है, वह नहीं रहनी चाहिए। लेकिन अध्यक्ष महोदय, मैं कहना चाहता हूँ कि श्री नागेंद्र झाजी से, श्री रघुनाथ झाजी से और श्री चतुरानन मिश्रजी से कि हमारे मंत्रियों के ऊपर आप आरोप निराधार नहीं लगाएँ। मैं आपसे अनुरोध करना चाहता हूँ, मैं बोलना नहीं चाहता हूँ, लेकिन आप बोलने के लिए मजबूर करते हैं, तो आपके बारे में हाईकोर्ट में जो जजमेंट लिखे हैं, उसको पढ़कर सुना देता हूँ:-

This is an application is for grant for bail in anticipation of arrest. The petitioner, Ex-Chief Minister of the State, has been show is one of the Principal accused in the case. The case was instituted on 01.02.1978. Other accused in the case are Nawal Kishore Sinha, Ex-Chairman of Urban, Co-operative Bank.

अध्यक्ष महोदय, मैं हाईकोर्ट के आॅडर की काॅपी आपको दे रहा हूँ।

(हाई कोर्ट के आदेश की काॅपी अध्यक्ष महोदय को दी गई)

श्री कर्पूरी ठाकुर: अध्यक्ष महोदय, सुप्रीम कोर्ट्र की काॅपी भी उसमें लगी हुई है। अगर कोई चीफ मिनिस्टर घूस लेता है तो कौन आॅफिसर नहीं लेगा, कौन आदमी नहीं लेगा? अगर मुख्यमंत्री घूस लेता है तो दूसरा क्यों नहीं लेगा? हमको बोलने के लिए आपने मजबूर किया, इसलिए हाईकोर्ट के जजमेंट को पढ़ना पड़ा और सदन के समक्ष रखना पड़ा। यह जजमेंट बोलता है। इन्हीं शब्दों के साथ मैं श्री नागेंद्र झा से अनुरोध करता हूँ कि उन्होंने जो कटौती का प्रस्ताव रखा है, उसे वे वापस ले लें और सर्वसम्मति से सामान्य प्रशासन की जो माँग है, उसे पारित किया जाए। मैं सदन को विश्वास दिलाता हूँ कि प्रशासनिक सुधार के लिए, नया बिहार बनाने के लिए, नया समाज बनाने के लिए मंत्रिपरिषद् की बैठक में हम लोगों ने तय किया है।

श्री कर्पूरी ठाकुर: अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय सदस्य श्री राजेंद्र प्रताप के सामने नतमस्तक हूँ। साथ ही यह कहना चाहता हूँ कि हाईकोर्ट का जो जजमेंट हुआ और सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा है, वह भी उस पेपर में लिखा हुआ है, उसको भी आप देख लें।