(दिनांक: 25 जुलाई, 1978)


विषय: बिहार विनियोग (सं.-2) विधेयक, 1978 के वाद-विवाद के क्रम में नेता विरोधी दल डाॅ. जगन्नाथ मिश्र द्वारा लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोप पर श्री कर्पूरी ठाकुर का वक्तव्य।

डाॅ. जगन्नाथ मिश्र: पिछले दिन श्री हरिद्वार पांडेय के मामले में प्रश्न उठाया गया था, उनके मामले में क्या हो रहा है, इस पर मैं ज्यादा जिक्र नहीं करना चाहता हूँ, लेकिन माननीय मुख्यमंत्री ने स्पेसिफिक ढंग से कहा था कि उन्होंने श्री हरिद्वार पांडेय को कोई पत्र नहीं लिखा था, लेकिन हमारा उस दिन भी आरोप था और आज भी आरोप है, उसे मैं दोहराना चाहता हूँ कि इन्होंने प्रत्यक्ष ढंग से अनेक पत्र उनको लिखे हैं, जिनमें दो पत्रों की प्रतिलिपि हमारे पास मौजूद है, मैं अभी इसको सदन में नहीं रखना चाहता हूँ, चूँकि इस पर हम प्रिविलेज का केस बनाना चाहते हैं।

हम प्रिविलेज में रखना चाहते हैं कि किस तरह से उन्होंने सदन को हमारे पास दोनों चिट्ठियाँ मौजूद हैं, जो उन्होंने श्री हरिद्वार पांडेय को लिखी थी। इसमें से मैं एकाध चिट्ठी को सदन में पढ़ना चाहता हूँ-

‘‘प्रिय पांडेजी,

अभी तक आधा ही हुआ है। पैसे की जरूरत है। कृपया मदद करें और बाकी भी स्वयं आकर दे जाएँ या महावीर बाबू से भेज दें। जरूरी है सचमुच।

आपका
कर्पूरी ठाकुर

तो मैं बताना चाहता हूँ कि ये सब क्या हो रहा है?

श्री चतुरानन मिश्र: विरोधी दल के नेता ने फोटोस्टेट काॅपी पढ़ी। उन्होंने इसके पहले कहा कि मेरे पास दो लेटर हैं। एक को तो पढ़ा उन्होंने, तो दूसरे को भी पढ़ा दें, ताकि सदन जाने।

डाॅ. जगन्नाथ मिश्र: दूसरा पत्र उन्होंने लिखा-

‘‘आदरणीय पांडेजी,

कैसे कहूँ कि अभी मैं किस तरह से हूँ। बहुत कृपा होगी अगर कुछ रुपए भेजकर मेरी मदद करें।

सस्नेह,

आपका
कर्पूरी ठाकुर

श्री कपिलदेव सिंह: उपाध्यक्ष महोदय, किस तिथि को यह चिट्ठी लिखी गई है, यह बताएँ? श्री कर्पूरी ठाकुर ने मुख्यमंत्री पद ग्रहण के पहले उक्त चिट्ठियाँ लिखी हैं या कब लिखी हैं? आपने तो श्री कर्पूरी ठाकुर की एक चिट्ठी नेपाल की एक औरत के नाम से लिखी, बाँटी थी। आजकल आप बहुत डिटेल्स ऐसा रखते हैं तो मेरे उपाध्यक्ष महोदय, इस मान्यता के ऊपर चुनौती है, एतराज है कि इसको सोच लीजिए कि इस तरह के पत्र की मान्यता सदन में होगी या नहीं?

(सदन में काफी शोरगुल)


उपाध्यक्ष (खड़े होकर): शांति। माननीय श्री चतुरानन मिश्र ने एक व्यवस्था का प्रशन उठाया एवं माननीय संसदीय कार्य मंत्री ने भी एक प्रश्न उठाया। इन्होंने जिस चिट्ठी का रेफरेंस दिया, उसको मैंने अपने पास रख लिया हेै। इस पर तुरंत नियमन नहीं दे सकता हूँ। चूँकि एक बजकर दो मिनट हो गया है। इसलिए सभा की कार्रवाई अब 2 बजकर 3 मिनट तक स्थगित करता हूँ। इस पर नियमन बाद में परामर्श करके दूँगा। अब सभा 2 बजकर 3 मिनट तक स्थगित की जाती है।

(अंतराल)


श्री कर्पूरी ठाकुर: उपाध्यक्ष महोदय, चूँकि मुझे सदन से जाना है एक शिष्टमंडल से मिलने के लिए, इसलिए मैं आपके माध्यम से निवेदन करना चाहता हूँ। मैंने सुना, जब इस सदन में मैं नही था तो विरोधी दल के नेता डाॅ. जगन्नाथ मिश्र ने दो चिट्ठियाँ सदन के सामने रखीं। मैंने यह सुना कि उस समय विवाद हो गया कि चिट्ठियाँ यहाँ रखने की इजाजत आपकी तरफ से मिलती है या नहीं? मैं आपसे प्रार्थना करूँगा कि उन दोनों चिट्ठियों को सदन की जायदाद मानी जाय। मुझे खुषी है, मैं शुक्रिया अदा करता हूँ डाॅ. जगनाथ मिश्रजी का कि वे जो बातें कानोकान फैला रहे थे, उसे उन्होंने सदन के समक्ष रखने की कृपा की। मुझे इस संबंध में इतना ही कहना है कि उन दोनों चिट्ठियों को सदन की जायदाद मानकर निम्न सदस्यों द्वारा जाँच करा ली जाए-

(1) श्री केदार पांडेय, जो मुख्यमंत्री रह चुके हैं (2) श्री अब्दुल गफूर, ये भी मुख्यमंत्री रह चुके हैं, (3) श्री चतुरानन मिश्र, जो भारतीय साम्यवादी दल की तरफ से इस सदन में नेता हैं, (4) प्रोफेसर भोला सिंह, जो कांग्रेस (आई) के सदस्य हैं और (5) श्री भोला प्रसाद सिंह। इन पाँचों व्यक्तियों के द्वारा जाँच करा लें। अगर दोनो चिट्ठियाँ, जो विरोधी दल के नेता ने सदन में पेश की हैं, मेरे हाथों से लिखी हुई साबित हो गईं, यह फैसला 7 रोज में हो जाए, मैं 8वें दिन सदन का सदस्य नहीं रहूँगा। जिस तरह मैंने श्रद्धेय जयप्रकाश बाबू के नेतृत्व में संचालित आंदोलन के समय इस सदन से त्याग-पत्र दे दिया था, हर्षपूर्वक, अभिमानपूर्वक, गर्वपूर्वक, उसी तरह से 8वें दिन इस सदन की सदस्यता से त्याग-पत्र दे दूँगा। लेकिन अगर यह साबित हुआ कि वह चिट्ठी मेरे हाथ की लिखी हुई नहीं है, तो दो बात का मैं आग्रह करता हूँ, वह हो जाए-नंबर एक, 8वें दिन डाॅ. जगन्नाथ मिश्र इस सदन की सदस्यता से त्योग-पत्र दे दें और नबंर दो’’’-

(इस अवसर पर सदन में शोरगुल)


उपाध्यक्ष महोदय, नंबर एक-वे भी त्याग-पत्र दे दें, नंबर-दो, मुझको इजाजत मिले कि डाॅ. जगन्नाथ मिश्र पर 8वें दिन के बाद और श्री हरिद्वार पांडेय पर 420 का मुकदमा दायर कर सकें। यह इजाजत मुझको मिलनी चाहिए। उपाध्यक्ष महोदय, कर्पूरी ठाकुर केवल सदन की सदस्यता से त्याग-पत्र नहीं देगा, जनता पार्टी से भी त्याग-पत्र देगा। मैं जनता पार्टी का मकामूली आदमी हूँ, सिपाही हूँ और जो उच्चत्तम जनता पार्टी का आदर्श है, उसका मैं पालन करूँगा। इसलिए मैं 8वें दिन त्याग-पत्र दूँ, सदन में खुशी के साथ दूँगा, जनता पार्टी से भी त्याग-पत्र दूँगा। मेरे जैसे आदमी को इस पार्टी का भी मैंबर रहने का हकम नहीं है। अगर साबित हुआ कि चिट्ठी गलत है, तो उनको त्याग-पत्र देना पड़ेगा और 420 का मुकदमा उन पर और श्री हरिद्वार पांडेय पर चलाया जाएगा।

(इस अवसर पर सदन में शोरगुल)


डाॅ. जगन्नाथ मिश्र: उपाध्यक्ष महोदय, हमारा संवैधानिक अधिकार है। हम सदस्यगण जिम्मेवारी के साथ बात करते है और हमें कंस्टीटृ्यूशनल प्रोटेक्शन मिला हुआ है, मैंने स्पष्टतः आरोप लगाया है कि यह मुख्यमंत्री का लिखा हुआ पत्र है, अगर पत्र उनका नहीं है तो हैंडराइटिंग एक्सपर्ट से दिखाएँ-

(इस अवसर पर सदन में शोरगुल)


श्री रामलखन सिंह यादव: मैं माननीय सदस्यों से निवेदन करूँगा कि सदन में बहुत सीरियस बात हो गई है। मुख्यमंत्री ने अपनी बातों को सफाई से कह दिया, मगर विरोधी दल के नेता क्या कहते हैं, उसको हम लोगों को सुन लेने दिया जाए।

(इस अवसर पर सदन में शोरगुल)


श्री कर्पूरी ठाकुर: इतना गंभीर प्रश्न हैे, मैं जो कुछ भी कह रहा हूँ, एम-एम वाक्य तौलकर कह रहा हूँ। मैं विरोधी दल में रहा हूँ। इतना हल्का नहीं हूँ। इतना सस्ता नहीं हूँ।

डाॅ. जगन्नाथ मिश्र: मैं कह रहा था कि 28 जून को बजट पर वाद-विवाद हो रहा था। बजट भाषण प्रारंभ करते हुए मैंने 2-3 बातें उठाई थीं और मैंने कहा था कि श्री हरिद्वार पांडेय के घर पर जो रेड हुआ है, उस रेड के पीछे यही अभिप्राय था कि कुछ चिट्ठी थीं, उन चिट्ठियों को विभाग की ओर से ले जानेवाला था, इसी आधार पर रेड हुआ था।

श्री कर्पूरी ठाकुर: मैं साफ सवाल उनसे करता हूँ, मेरा इस्तीफा या उनका इस्तीफा?

डाॅ. जगन्नाथ मिश्र: मेरा इस्तीफा क्यों? मेरा इस्तीफा नहीं होगा, हमारा इस्तीफा क्यों होगा? अगर आरोप गलत साबित होगा तो आप निकलिएगा, यह परंपरा कर्पूरीजी मत बनाइए। सदन में आरोप लगाए गए, सरकार का काम है आरोप की जाँच कर सत्य कहना’’

(सदन मंें शोरगुल)


श्री कर्पूरी ठाकुर: आप (श्री चतुरानन मिश्र) बोलिए।

श्री चतुरानन मिश्र: उपाध्यक्ष महोदय, हम भी इस विषय पर बोलना चाहते हैं। मामला इतना गंभीर है। आपने मेरा नाम लिया, नाम लेने के बाद सिचुएशन कैसा हो जाता है, वह आप भी समझते हैं।

श्री कर्पूरी ठाकुर: मैंने अपना गला विरोधी दल के हाथों में दे दिया है, इसलिए एक मिनट भी नहीं रहूँगा, राजनीति में भी नहीं रहूँगा।

श्री चतुरानन मिश्र: अगर विरोधी दल के हाथों में दे दिया है, तो कम-से-कम हमारी हत्यारा नहीं है, कत्ल कर देगी। सारी बातों को जिस ढंग से कहा गया, यह गंभीर बात है। फोर्ज लेटर आया है, तो संगीन बात है। आपने अपनी बातों को स्पष्ट ढंग से कह दिया। इनकी भी बात सुन ली जाए। कमेटी बने, समझ सकते हैं कि हमारा पोजीशन कैसा हो गया। क्या हुआ, नहीं हुआ-यह अभी कैसे कहा जा सकता है, लेकिन इतना जरूर कहूँगा कि जब कभी इस तरह की बातें आएँ, तो इनको गंभीरतापूर्वक लेना चाहिए। उपाध्यक्ष महोदय, आपको याद होगा, कई बार कहा गया कि इसका तरीका निकाला जाय। सम्मान सभी के लिए बराबर है। चाहे आप इधर के हों या उधर के हों, राजनीतिक जीवन में सभी के लिए इज्जत है, लेटर फोर्ज है या नहीं, यह अभी कैसे कह सकते हैं, इसको अभी कैसे डिक्लेयर कर दें?

श्री कर्पूरी ठाकुर: हमरा सुझाव है, कमेटी बने, विरोधी दल के पाँच सदस्य रहें, वे लोग जाँच कर 7वें दिन हमारी प्रार्थना है कि उपाध्यक्ष महोदय, कमेटी फैसला दे दे।

श्री चतुरानन मिश्र: मैंने इसको बिल्कुल स्वीकार किया। आपने बहुत साफ ढंग से, स्पष्ट ढंग से इन बातों को रखा है, लेकिन अभी मैंने देखा नहीं है। चिट्ठी कैसी है, कहाँ से ये (श्री जगन्नाथ मिश्र) लाए हैं, ये बोलेंगे कि कहाँ तक जायज है, नाजायज है? जैसाकि मुख्यमंत्री ने कहा है, यह कमेटी बनेगी तो मैं दल की ओर से कहँूगा कि पूरी ईमानदारी के साथ मैं इसकी जाँच कर रिपोर्ट दूँगा। मैं आपसे बायस्ड नहीं हूँ। सरकारी गलती के बारे में दूसरी राय रहती है और श्री कर्पूरी ठाकुर के बारे में दूसरी राय रहती है। जाँच में सारी बातें सामने आएँगी।

श्री अब्दुल गफूर: माननीय उपाध्यक्ष महोदय, आरोप लगाना तो आमतौर पर अपोजीशन का काम है-जस्ट लाइक वाच डाॅग कि गवर्नमेंट की खामियों को गवर्नमेंट के सामने रखें और उसके जरिए पब्लिक भी उस चीज को जाने। लेकिन आरोप भी कई किस्म के होते हैं-यह हमेशा याद रखना चाहिए। दूसरी चीज यह है कि एक सूबे के चीफ मिनिस्टर यहाँ बैठे हुए हैं और आरोप भी किस्म-किस्म का? जिसको सुनकर के यहीं ही नहीं, बल्कि बाहर भी शर्म से गरदन नीचे झुक जाती है। यह कह देना कि काम है, सरकार का इस आरोप पर कहे कि नहीं, यह गलत है। मैं समझता हूँ कि यह ईमानदारी का तकाजा नहीं है। जैसे वह चीफ मिनिस्टर हैं, उनकी भी इज्जत है, वैसी मेरी भी इज्जत है, वैसी ही हर एक सदस्य की इज्जत है। कोई आदमी उठकर कह दें कि फलाँें के साथ फलाँें को हमने देखा और इस हाउस में अटेस्टेड काॅपी रखकर आरोप लगाए, इन दोनों मंे जमीन- आसमान का फर्क है। मैं श्री कर्पूरी ठाकुर को दाद देता हूँ। इसलिए नहीं कि वे अभी तो मुजरिम नहीं हो सकते हैं, मुजरिम भी होंगे तो आज से आठवें रोज। इतने बड़े ओहदे पर बैठे हुए हैं, वे नहीं कह सकते हैं। वे जानते हैं कि नहीं रह सकते हैं। यह आॅडिनरी चीज है। आज जो हमारे दोस्त यहाँ बैठे हुए हैं, वह उठकर कह दें कि वे तो आठ रोज के बाद, अगर आप लोग कहिए तो सातवें रोज हम हट जाऐंगे। यह तो एक ऐसी चीज है, ऐसी परंपरा हो इस हाउस के अंदर मैं समझता हूँ कि इस इंसीडेंस से जितने माननीय मैंबर हैं, जो नए हैं और पुराने हैं, एक ऐसी चीज पैदा होगी, जो सारे हिंदुस्तान के लिए मिसाल के तौर पर होगी। मैं इसलिए कह रहा हूँ कि मैं खुद इसका भुक्तभोगी हूँ और मैं भी चीफ मिनिस्टर रह चुका हूँ। अगर मैं उस चीज को कह दूँ कि मेरे साथ क्या हुआ? आज तक मैं नहीं जानता था। उस चीज को किसने करवाया और किस तरीके से हुआ? दो माननीय मैंबर को यहाँ से भेजा गया। श्रीमती इंदिरा गांधी के नजदीक और क्या कह गया? पहले तो वह नहीं आए थे, कहा गया इससे ये हटेंगे नहीं, जाइए। श्रीमती इंदिरा गांधी इन्हें हटाएँगी नहीं, सभी जानते हैं। मैं उस चीज को कहूँ तो समझता हूँ कि इस हाउस के अंदर बजाय ताली बजाने के लोग रोने लगेंगे। हर आदमी की इज्जत के साथ खिलवाड़ किया गया। मैं दाद देता हूँ श्री कर्पूरी ठाकुरजी को कि उन्होंने भी चीफ मिनिस्टर पद से हट जाने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि अगर फोटोस्टेट काॅपी सही है तो मैं नहीं रहूँगा। उन्होंने श्री केदार पांडेय, श्री चतुरानन मिश्र एवं श्री भोला सिंह रहें, यह कोई कम हिम्मत की बात नहीं है कि जिस आदमी पर इल्जाम लगाया, उसी के हाथ में गरदन दे दी जाए। क्या हम लोग हाउस के अंदर ईमान बेचने के लिए आए हैं, वे चीज को मामूली तरीके से समझते हैं। कीचड़ उछाल दिया, सारे हिंदुस्तान के पेपर्स में छप गया और अब बिल्ली की तरह पीछे भाग रहे हैं। यह आॅर्डनरी चीज नहीं है।

डाॅ. जगन्नाथ मिश्र: ये राजनीति से प्रेरित होकर भाषण दे रहे हैं।

श्री अब्दुल गफूर: मैं समझता हूँ कि मैंने अपने पार्लियामेंटरी लाइफ में 1952 ई. से लेकर आज तक जितना पढ़ा-लिखा है, मैंने कभी भी ऐसा नहीं देखा है कि कोई भी चीफ मिनिस्टर और प्राइम मिनिस्टर अपोजीशन के हाथों में अपनी गरदन दे दें। लेकिन आज ये अपोजीशन के हाथों में अपनी गरदन दे रहे हैं। यह कमेटी उसी वक्त बैठेगी, जब दोनों को जाना पड़ेगा। दोनों का मतलब, जिसका कसूर होगा, उनको जाना पड़ेगा।

(थपथपी)

डाॅ. जगन्नाथ मिश्र: हम कैसे जाएँगे?

श्री अब्दुल गफूर: हमें हाउस के अंदर इससे भी ज्यादा गंभीर कदम उठाना पड़ेगा और इसके लिए रिजोल्यूशन लाना पड़ेगा। अगर कोई भी माननीय सदस्य किसी के कैरेक्टर के ऊपर गंभीर आरोप लगाते हैं, तो गलत होने पर उस सदस्य को सदन से हटा देना पड़ेगा।

श्री भोला प्रसाद सिंह: उपाध्यक्ष महोदय, यह विषय जो सदन में एकाएक उठ खड़ा हुआ है, जिसमें सदन-नेता ने मेरा नाम लिया है कि इस जाँच में मैं भी रहूँगा, तो मेरा कहना है और मैं इस बात को मानता हूँ कि वे पुराने दोस्त हैं। हमने भी बड़ी-बड़ी लड़ाई लड़ी है राजनीति की। जब श्री कृष्ण बल्लभ साहब यहाँ के मुख्यमंत्री थे, तो हम भी पटना, दिल्ली एक किए हुए रहते थे उनके विरोध में। उस समय मैं कौंसिल का मेंबर था। लेकिन जिस स्तर की बात अभी चल रही है, इस तरह की बात पहले नहीं चलती थी। 1963 ई. से लेकर 1967 ई. तक श्री कृष्ण बल्लभ सहाय के विरोध में बहुत कुछ करना पड़ा था। अभी चिट्ठी को लेकर जो प्रश्न उठ खड़ा हुआ है और कहा जाता है कि उस पर श्री कर्पूरी ठाकुर का दस्तखत है।

उपाध्यक्ष: आप कृपया बैठ जाएँ।

श्री भोला प्रसाद सिंह: उपाध्यक्ष महोदय, आप मेरी पूरी बात सुन लें।

उपाध्यक्ष: नहीं, आप बैठ जाएँ।

श्री भोला प्रसाद सिंह: मैं ऐसी स्थिति में इस कमेटी में जाँच करने के लिए तैयार नहीं हूँ। इसके लिए मैं श्री कर्पूरी ठाकुर से क्षमा माँगता हूँ।

उपाध्यक्ष: श्री रामलखन सिंह यादव और श्री चतुरानन मिश्र ने बड़े ही गंभीर प्रश्न उठाए हैं। इस मामले को हल्के-फुल्के ढंग से नहीं लेना चाहिए। जब बहस चल रही थी, तो दो प्वाॅइं्रट आॅफ आॅर्डर हुए थे। एक श्री चतुरानन मिश्र ने कहा था कि पत्र को सदन के टेबल पर रखा जाए। दूसरा प्वाॅइ्रंट आॅफ आर्डर श्री कपिलदेव सिंह ने उठाया था और कहा था कि यह चिट्ठी सच्ची है या नहीं, इसकी क्या गारंटी है? मैंने उस समय तत्काल नियमन नहीं दिया था और कहा था कि इस पर बाद में नियम न दिया जाएगा। मैंने उस समय सदन की बैठक स्थगित कर दी थी 2 बजकर 3 मिनट तक के लिए। अभी मुख्यमंत्री ने अपना स्पष्टीकरण दिया है, जिससे स्थिति और भी गंभीर हो गई है। पार्लियामेंटरी प्रैक्टिस में आप देखेंगे कि इस तरह के मामले जब उठ खड़े होते हैं, तो इस पर सोच-विचारकर नियमन देना होता है। इन सारी बातों को मैं अध्यक्ष महोदय के समक्ष रखूँगा। मुख्यमंत्री ने जो जवाब दिया है, वह कोई हल्का-फुल्का नहीं है। इन सारी चीजों को देखकर मूल्यांकन किया जाएगा और तब इस पर कोई निर्णय लिया जाएगा, जो सभी सदस्यों के लिए मान्य होगा।

श्री रामलखन सिंह यादव: हुजूर, यह तो गंभीर से गंभीरतर होता जा रहा है। मैं निवेदन करूँगा माननीय विरोधी दल के नेता से कि इस तरह से गंभीर प्रश्न इस सदन में इसके पहले कभी नहीं उठाया गया था। जो आरोप विरोधी दल के नेता ने लगाया है और उस पत्र को सदन में रखा है, तो मैं उनसे अनुरोध करूँगा कि पुनः वे स्वयं इसकी सच्चाई की जाँच कर तें और स्वयं क्लरीफिकेशन सदन को दे दें। अभी जो चुनौती आ पड़ी है, मैं समझता हूँ कि अभी इसको आगे बढ़ाने की आवश्यकता नहीं है। पुनः विरोधी दल के नेता द्वारा संतुष्ट हो लेने के बाद यदि वे सचमुच समझें कि यह सही है, तो इस पर आगे की कार्रवाई हो और इसकी सत्यता के बारे में विचार-विमर्श हो।

श्री कर्पूरी ठाकुर: मैं अभी भी अपने वक्तव्य पर कायम हूँ। मैं अनुरोध करूँगा कि मैं अपने लिए उतना व्यग्र नहीं हूँ, जितना कि जनता पार्टी के लिए, जिस जनता पार्टी ने आदर्श उपस्थित किया है, उसके लिए। जो भी पत्र रखा गया है और हमारी तरफ से कृषि मंत्री ने जो आपत्ति की थी, मैं उस आपत्ति को सदन नेता होने के नाते वापस लेता हूँ। दोनों चिट्ठियाँ सदन की जायदाद हो गई हैं। मैंने अपने दल से किसी सदस्य का नाम नहीं लिया है, केवल विरोधी दल के माननीय सदस्यों का नाम लिया है। कृपया आप जाँच करा लीजिए। अगर यह पत्र मेेरे हाथ से लिखकर दिया गया है तो मैं आठवें दिन इस सदन में मुँह दिखलाने के लिए नहीं रहूँगा। मैं इसको फिर दुहराता हूँ।