(दिनांक: 8 जनवरी, 1979)
विषय: श्री चतुरानन मिश्र, श्री अंबिका प्रसाद, श्री भोला प्रसाद सिंह, श्री कृपाशंकर चटर्जी, श्री हरदेव प्रसाद एवं श्री रामलखन सिंह यादव द्वारा लाए गए मंत्रिमंडल में अविश्वास के प्रस्ताव पर वाद-विवाद के क्रम में।
श्री कर्पूरी ठाकुर: अविश्वास प्रस्ताव पर जो बहस हुई, उसके विश्लेषण के बाद मुझे ऐसा लगा, जैसाकि एक शायर ने कहा था-
‘‘बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का,
चीरा तो एक कतरा खून निकला।’’
हम समझते थे इन लोगों के पास कुछ मसाला ऐसा होगा, कुछ सामग्री ऐसी होगी, कुछ दबाव ऐसा होगा, जिनका वर्णन कर, यह हम लोगों को इस सदन में नाकों दम कर देंगे, परेशान कर देंगे। लेकिन मालूम हो गया कि इनके पास कोई मसाला नहीं है। हम लोगों ने ऐसा काम किया ही नहीं है, जिससे कि आपको मसाला मिले। इसलिए जो आपने भाषण दिया, वहीं भाषण दिया, जो पिछले डेढ़ साल से दे रहे हैं। अगर आप वाद-विवाद की पोथियों को उलट जाते हैं, जो आपके काया्र्रलय में रखी हुई है, उससे आपको पता चल जाएगा कि भाषण में इन्होंने कोई नई बात का जिक्र नहीं किया है, दो दिनों के वाद-विवाद में कोई नई बात उठाने का जिक्र नहीं किया है। अविश्वास का प्रस्ताव आपने पेश किया है और दो दिनों की बहस में सदन में यही सुना गया है ािक प्रस्ताव की कहानी और भाषणों की जुबानी। सरकार की तरफ से मैं कहना चाहता हूँ कि जवाब तथ्यों की कहानी है।
विरोधी दल के सदस्य: आप बदल गए?
श्री कर्पूरी ठाकुर: मैं बदल नहीं गया हूँं जैसा पत्र का हवाला डाॅ. जगन्नाथ मिश्र ने दिया है, अगर मैंने अपने पद का दुरुपयोग किया है और आप कमेटी बनाना चाहते हैं, तो बना लें।
आप कमेटी के बारे में विचार कर रहे हैं, तो आप कमेटी बना लीजिए, इसमें मुझे कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन जब कोई मौका आए तो आप पत्र का जिक्र करते हैं तो आप जिक्र करें; लेकिन जवाबदेही के साथ जिक्र करें। मैं किसी बात का जिक्र करता हूँ, तो जवाबदेही के साथ जिक्र करता हूँ। आप जिक्र करते हैं तो इसकी जवाबदेही नहीं रहती है। मेरे पास एक थीसिस है श्री आर.एन. त्रिपाठी की और थीेसिस है आपकी (नेता, विरोधी दल की ओर इशारा करते हुए), ये दोनों थीेसिस जो हैं, इन दोनों किताबों का निचोड़ हमने मिलाया है, एक से नौ पेज तक हमने दोनों किताब को मिलाया है, वाक्य के बाद वाक्य, पैरा के बाद पैरा, एक-सा मिलते जुलते हैं।
(इस अवसर पर नेता, विरोधी दल ने व्यवस्था का प्रश्न उठाना चाहा)
मैं अभी नहीं बैठूँगा, जब आप लोग बोल रहे थे तो मैं बिल्कुल चुपचाप था। जब आप हमारे ऊपर हमला कर रहे थे तो मैं चुपचाप आपकी बातों को सुन रहा था।
अध्यक्ष: माननीय नेता विरोधी दल, व्यवस्था के प्रश्न पर खड़े हैं, इसलिए आप उनके पद की गरिमा का खयाल कर आसन ग्रहण करें।
डाॅ. जगन्नाथ मिश्र: थीसिस लिखने की प्रक्रिया होती है, सभी विश्वविद्यालयों में यह प्रक्रिया लागू है। मेरी किताब में श्री आर.एन. त्रिपाठी का एकनाॅलेज किया हुआ है।
श्री कर्पूरी ठाकुर: नहीं है।
डाॅ. जगन्नाथ मिश्र: वीडियोग्राफी में है। मेरे थीसिस के वीडियोग्राफी में श्री आर.एन. त्रिपाठी की किताब की चर्चा है। थीसिस लिखने की प्रक्रिया के न तो मुख्यमंत्री एक्सपर्ट हैं और न मैं। सारे विश्वविद्यालयों में थीसिस लिखने की जो प्रक्रिया है, उसकी आप जाँच करवा लें। माननीय मुख्यमंत्री जो बोल रहे हैं, वह निराधार है, हम किसी के थीसिस से उदाहरण दे सकते हैं। मुख्यमंत्री गलत-बयानी कर रहे हैं, आप हमारी बात सुन लीजिए, उसके बाद उनको बोलने दीजिए।
( इस अवसर पर सदन में दोनों तरफ से काफी हल्ला हो रहा था और एक ही साथ अनेक माननीय सदस्य खड़े होकर बोल रहे थे)
श्री कर्पूरी ठाकुर: मुझकों किसी से झगड़ा नहीं है, मेरी कोई शिकायत नहीं है, मैं तो जो तथ्य हैं, उसे रख रहा हूँ और साथ-साथ जो प्रमाण है, उस किताब को भी बतला रहा हूँ।
अध्यक्ष: शांति, रघुनाथ झाजी, आप बैठ जाएँ। विरोधी दल के माननीय नेता डाॅ. जगन्नाथ मिश्रजी व्यवस्था के प्रश्न पर खड़े हैं आप जानते हैं कि जब कोई माननीय सदस्य व्यवस्था के प्रश्न पर खड़े होते हैं, तो दूसरे माननीय सदस्य, जो बोलते रहते हैं, उनको बैठ जाना पड़ता है। इस व्यवस्था का पालन होना चाहिए। अगर कोई नए माननीय सदस्य उठ जाएँ, तो अनदेखी की जा सकती है, लेकिन आप पुराने माननीय सदस्य हैं। डाॅ. जगन्नाथ मिश्रजी गरिमा के पद पर हैं, वे विरोधी दल के नेता हैं, आपकी गाड़ी के फोर ह्वील (Forwheel) हैं। जब वे व्यवस्था के प्रशन पर उठेंगे तो माननीय मुख्यमंत्रीजी बोलते हैं या आप जो बोलते हैं, दोनों की बात छोड़ दी जाती है और विरोधी दल के माननीय नेता को व्यवस्था का प्रश्न उठाने का मौका दिया जाता है।
(इस अवसर भी श्री रघुनाथ झा बार-बार बोलने के लिए खड़े हो रहे थे)
आप इतना परेशान क्यों हैं?
श्री कर्पूरी ठाकुर: मेरी कोई शिकायत नहीं है, मेरी कोई आलोचना नहीं है। मैंने दो किताबों की चर्चा की, जिसमें पैरा-वाइज-पैरा मिला हुआ है, इतना ही कहना है कि कोटेशन में नहीं हैं।
श्री अरूण कुमार सिंह: मेरी व्यवस्था का प्रश्न है। डाॅ. जगन्नाथ मिश्रजी, नेता विरोधी दल मंे जो बातें कहीं हैं, उसमें ऐसी कोई बात नहीं, जो व्यवस्था का प्रश्न हो और दूसरा मेरा यह व्यवस्था का प्रश्न है कि उनको अपने थीसिस की जानकारी ही नहंीं है, उनकी थीसिस तो एम.एस. काॅलेज, मुजफ्फरपुर के प्राध्यापक डाॅ. वंशीधर की लिखी हुई है।
अध्यक्ष: दो में एक भी व्यवस्था का प्रश्न नहीं है। माननीय सदस्य, श्री अरूण कुमार सिंहजी, जब सदन के माननीय नेता बोल रहे हों, तो दल के माननीय सदस्यों को तो कम-से-कम संयम रखना ही चाहिए।