(दिनांक: 12 फरवरी, 1980)


विषय: श्री रामसुदर दास द्वारा लाए गए प्रस्ताव बिहार यज्ञ (संशोधन) विधेयक 1979 पर वाद-विवाद के क्रम में श्री कर्पूरी ठाकुर का भाषण।

श्री रामसुंदर दास: अध्यक्ष महोदय, मैं प्रस्ताव करता हूँ कि-

‘‘बिहार विधान-परिषद् के उद्भूत तथा उसके द्वारा यथापारित बिहार यज्ञ (संशोधन) विधेयक, 1979 पर विचार हो।’’

श्री कर्पूरी ठाकुर: उपाध्यक्ष महोदय, मैं चाहता हूँ कि संशोधन विधेयक को सदन आज ही पारित कर दें। मैं इसलिए उस प्रस्ताव का विरोध करता हूँ कि जो प्रवर समिति में भेजने के लिए रखा गया है। उपाध्यक्ष महोदय, अभी तक दुनिया में दो तरह से जमीन का बँटवारा हुआ है। एक हुआ है कत्ल के रास्ते से और दूसरा हुआ है कानून के रास्ते। यदि हम यूरोप की भूमि क्रांति के इतिहास का अध्ययन करते हैं, एशिया में भी चीन के इतिहास का अध्ययन करते हैं तो मालूम पड़ेगा कि इन देशों में खूनी क्रांति के जरिए, कत्ल के रास्ते से जमीन का बँटवारा हुआ है। जो बड़े-बड़े भूमिवान रहे हैं, बड़े-बड़े भू-धारी रहे हैं, उनसे जमीन छीन ली गई, जोर-जबरदस्ती के द्वारा उनकी जमीन छीन ली गई, उनकी गरदन उतारकर, खून करकें उनकी जमीन जो छीन ली गई। उसका बँटवारा भूमिहीनों और गरीब किसानों में किया गया है। उसी तरह से जापान के इतिहास का यदि आप अध्ययन करेंगे, विगत महायुद्ध के बाद 1947, 1948, 1949 में जो जमीन का बँटवारा हुआ है, वह खूनी क्रांति के जरिए नहीं, कानून के जरिए हुआ है।

उपाध्यक्ष महोदय, जापान को श्रेय देना पड़ेगा, उनको धन्यवाद देना पड़ेगा कि शांतिपूर्ण ढंग से कानून के रास्ते से, जमीन का आदर्श वितरण उसने कराया। जापान में आज एक भी ऐसा परिवार नहीं है, जिसको आमतौर से दस एकड़ से ज्यादा जमीन हो, दस एकड़ से कम जमीनवाले खेतिहार परिवार के लिए आज जापान में जो व्यवस्था की गई्र है, वह बहुत अच्छी है। वहाँ जमीन का विकास काफी अच्छे ढंग से किया गया है। सिंचाई, खाद और बीज, साथ ही किसानों को पूँजी के साधन काफी अच्छे ढंग से किए गये हैं। जमीन का उत्पादन कितना अच्छा है कि अन्य देशों के बराबर, जो ये दावा करते हैं कि हमारे यहाँ प्रति एकड़ सबसे अधिक पैदावार है, तो वहाँ कानून के जरिए जमीन का बँटवारा हुआ है। भारत में यह प्रयोग चलाया गया कि कानून के जरिए जमीन का बँटवारा होगा तो दान के जरिए, करुणा के जरिए, उनका दिल जीतकर लिया जा सकता है, लोगों को समझा-बुझाकर उनसे जमीन ली जा सकती है और जमीन का बँटवारा किया जा सकता है। श्री सीताराम सिंह आजाद बोल रहे थे, वह बिल्कुल सही बोल रहे थे कि जमींदारों ने गलत ढंग से जमीन दान किया। इसे कोई इनकार नहीं कर सकता है। आँख में धूल झोंककर ठगने का काम किया। श्री सीताराम सिंहजी को मालूम नहीं कि यह उसी के लिए कानून बनाया जा रहा है। बड़े-बड़े जमींदार भूदान का विरोध करेंगे तो क्या वे कानून का विरोध नहीं करेंगे? जमींदारों ने होशियारी की है कि अपने कुत्ते के नाम से, भेड़ के नाम से, बिल्ली के नाम से जमीन का बँटवारा करके बैठे हुए हैं। जमींदार को अपनी जमीन देने वक्त उनकी अंतड़ी निकलने लगती है। वे माननेवाले जीव नहीं हैं। कानून के रहते हुए भी जमीन के मामले में बेईमानी की गई है। सरकार के द्वारा गरीबों में बाँटी गई जमीन को जमींदार ने बेनाम आदमी के नाम से, जानवर के नाम से बँटवारा कर दिया है। इसी तरह से भूदान के समय में भी जमींदारों ने बेईमान की है-उससे इनकार नहीं किया जा सकता है। विधेयक को पारित करने में विलंब करना उन लोगों के लिए शोभनीय नहीं, जो अपने को क्रांतिकारी कहते हैं, समाजवादी कहते हैं, साम्यवादी कहते हैं और जमीन का बँटवारा करना चाहते हैं। अगर शुरू में, जिस समय अंग्रेज गए, उसी समय जमींदारी खत्म होने के साथ जमीन बँटवारा का कानून बना दिया जाता तो उस समय काफी जमीन मिलती। अभी मंत्री के रूप में श्री बसावन सिंह बैठे हैं। उन्होंने एक विधेयक इस सदन में प्रस्तुत किया था। विधेयक श्रद्धेय श्री जयप्रकाश बाबू की सहमति से उपस्थित किया गया था, जिस समय विनोबाजी बीमार थे। हम उनसे मिलने गए थे चांडील में विधेयक का प्रारूप लेकर। उन्होंने देखा और कुछ सवाल भी पूछा। जब वे संतुष्ट हुए तो उन्होंने कहा यह ठीक है, विधानसभा में इस ढंग का कानून बनाना चाहिए। विधेयक सदन में पेश हुआ, लेकिन कांग्रेस की सरकार थी, उस विधेयक का भयंकर विरोध किया गया और विधेयक पारित नहीं हो सका और दूसरा ही विधेयक पारित हुआ। तब तक जमींदारों ने अपनी जमीन फर्जी कर दी दूसरों के हाथ बेच दी, अपने जानवरों के नाम पर, दूसरों के नाम पर फर्जी कर दी। जमींदार हमेशा ऐसा करेंगे ही। रवैया अभी भूस्वामी का है, वे हमेशा अपनी संपत्ति की रक्षा के लिए ऐसा करेंगे ही। इसमें कभी दो राय नहीं हो सकती है। इसलिए अभी जो संशोधन विधेयक सदन में प्रस्तुत किया गया है, उसे पास कर भूदान का जो उद्देश्य है, उसकी पूर्ति होने दें।

इसमें क्या है, आप जानते हैं कि जमीन से जिनको बेदखल किया जा रहा है, जिनको भूदान से मिली जमीन मिली है, उसी पर रोक लगाने के लिए यह विधेयक है। आप देखेंगे कि धारा 14 ‘क’ में उन किसानों को, जिनको भूदान की जमीन मिली है और उससे उनको बेदखल किया जा रहा है, इन संशोधन के जरिए उनको बचाया जा रहा है। 23 ‘क’ में कहा गया है कि 14 ‘क’ या 22 ‘क’ के अधीन प्राप्त जमीन वाले किसानों को यदि कोई व्यक्ति बेदखल कराने की कोशिश करेंगे या उसमें बाधा डालेंगे तो उनके विपरीत कानूनी कार्रवाई की जाएगी, उनको एक साल तक का कारावास या दो हजार रुपए तक का जुरमाना या दोनों से दंडित किया जाएगा।

इसलिए कोई भी प्रगतिशील विचार रखनेवाला व्यक्ति या कोई भी समाजवादी, साम्यवादी सदस्य सदन में इस विधेयक का विरोध नहीं कर सकता है। इनको प्रवर समिति में भेजने की जरूरत नहीं है। इसमें लिखा हुआ है कि जो बेदखल करेगा, उस आदेश का विरोध करेगा, उसको एक साल का कारावास या दो हजार रुपए तक का जुरमाना या दोनों से दंडित किया जाएगा। विनोबाजी ने कहा कि भूदान आंदोलन को जो चला, उससे भूदान के उद्देश्यों की पूर्ति पूर्णरूपेण नहीं हुई है, लेकिन आंशिक रूप में भूदान के उद्देश्यों की पूूर्ति हुई है, सफलता मिली है। जमीन बाप-दादा के नाम से है और जो पहलवान आदमी है, बदमाश आदमी है, वह गरीबों की, कमजोर लोगों से जमीन छीन लेते हैं और इससे चरितार्थ होता है कि ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ की चलती बनती है। वह तो हमारे राज्य में और समाज में होता रहेगा। जहाँ तक भूदान के आंशिक उद्देश्यों की पूत्र्रि के सफल होने का सवाल है, 16 आना नहीं तो कम-से-कम पाँच आना सही सफल हुआ हैं। मैं इस सदन के सदस्यों से अनुरोध करूँगा कि बिना एक क्षण विलंब किए आज ही इसको पारित करें। इन्हीं शब्दों के साथ मैं बैठता हूँ।