(दिनांक: 1 जुलाई, 1980)


विषय: शोक-संवेदना।

श्री कर्पूरी ठाकुर: अध्यक्ष महोदय, यह सचमुच दुःख का विषय है कि हमारी आजादी की लड़ाई के जितने भी चमकते हुए बुंलंद सितारे थे, एक-एक करके उठते जा रहे हैं। मुश्किल से चंद नेता अब बच रहे हैं, जिनके दर्शन-लाभ या जिनका मार्ग दर्शन हमें कुछ दिनों तक प्राप्त हो सकेगा। हमारे भूतपूर्व राष्ट्रपति श्री वी.वी. गिरी के उठ जाने से राष्ट्र के लिए दुःख है। जितना महत्त्वपूर्ण यह नहीं है कि वे अंग्रेजी राज्य के जमाने में सेंट्रल असेंबली के मैंबर रह चुके थे या वह अंग्रेजी राज्य के जमाने में मद्रास एसेंबली के मैंबर रह चुके थे या आजाद भारत के लोकसभा के सदस्य रह चुके थे या दो-दो बार मद्रास सरकार में मंत्री और एक बार केंद्रीय सरकार में मंत्री रह चुके थे, या केरल, मैसूर और उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रह चुके थे या लंका में उच्चायुक्त रह चुके थे। इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण यह है कि वे भारतीय मजदूर आंदोलन के एक जबरदस्त संगठनकर्ता और नेता थे। न केवल भारत के स्वतंत्रता संग्राम में इनका जबरदस्त योगदान था, बल्कि आयरलैंड के स्वतंत्रता संग्राम में भी। जो आंदोलन के संघर्ष में जूझता है, उसकी एक अलग भूमिका होती है, एक अलग विशेषता होती है। वैसी ही भूमिका और विशेषतावाले व्यक्ति हमारे भूतपूर्व राष्ट्रपति श्री वी.वी. गिरी थे।ं मुझे उनसे मिलने का सौभाग्य कई बार प्र्राप्त हुआ था। मगर खासतौर से एक घटना का उल्लेख मैं यहाँ पर करना चाहता हूँ। 1969 ई. में जब उन्होंने राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवारी का समर्थन किया था, जिस समय अखिल भारतीय संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के महासचिव ही हैसियत से जाॅर्ज फर्नांडिस और अध्यक्ष की हैसियत से हम दोनों एक साथ मिलने गए थे। उस समय तक कांग्रेस पार्टी ने यह निर्णय नहीं किया था कि उनको इसका समर्थन प्राप्त होगा, जब हम लोग उनसे मिलने गए तो देखा कि उस बूढ़े आदमी में कितना जोश है। वे जाँच-पड़ताल ठीक कर कहने लगे कि हम दिखला देंगे कि किस तरह हम नहीं जीतते हैं और हम विरोधी दलों के लोगों का शुक्रिया अदा करते हैं और विश्वास उन्हें दिलाते हैं कि हम जाकर रहेंगे! उस समय तक उनको यह नहीं मालूम था कि कांग्रेस पार्टी का समर्थन उन्हें प्राप्त होने वाला है। उन्होंने कांग्रेस के संबंध में भी कुछ कहा था, जिसका उल्लेख मैं यहाँ नहीं करना चाहता हूँ। बहुत बुंलंद आदमी थे, जोशवाले आदमी थे और मरते दम तक रहे।

अध्यक्ष महोदय, वे एक बहुत ही अच्छे वक्ता थे और साथ-साथ एक अच्छे लेखक भी थे और उनके पास एक मानवीय हृदय था। राष्ट्र के लिए बड़ी चिंता करते थे। मरने के 3-4 दिन पहले उन्होंने एक वक्तव्य दिया था। उस वक्तव्य में उन्होंने कहा था कि भारत की समस्या को सुलझाने के लिए एक राष्ट्रीय सरकार का गठन होना चाहिए। अध्यक्ष महोदय, पता नहीं आपका ध्यान इस तरफ गया है या नहीं, ‘स्टेट्समैन’ में एक बहुत ही दिलचस्प समाचार था। जिस समय श्री संजय गांधी का निधन नहीं हुआ था, सवा आठ बजे, उस दिन चार बजे भोर में उन्होंने अपने बड़े लड़के को बुलाया, श्री शंकर गिरी को बुलाकार कहा कि संजय गांधी मर रहे हैं। शंकर गिरी को बहुत आश्चर्य हुआ और उन्होंने कहा कि बाबूजी आप क्या बोल रहे हैं, क्या बक रहे हैं, शायद आप सपना देख रहे हैं। उन्होंने कहा कि मैं सपना नहीं देख रहा हूँ, तुम जाओे, मेरे नजदीक से और सुबह का जो अखबार आता है, उसको जाकर पढ़ना और देखो कि यह खबर अखबार में छपी है या नहीं?

जब अखबार सुबह में आया और उसमें यह बात छपी हुई नहीं थी तो श्री शंकर गिरी उनके पास गए और कहा कि बाबूजी, यह खबर अखबार में नहीं छपी है, इनका निधन नहीं हुआ है, तो उन्होंने कहा कि मैं अखबार को नहीं मानता हूँ। मैंने जो कुछ कहा है, यह ठीक है और तुम दिल्ली से खबर करो और दिल्ली से टेलाफोन कर पता लगाओ, मैं गलत नहीं कह रहा हूँ। पौने नौ और नौ बजे दुनिया को समाचार मिल गया कि श्री संजय गांधी दुनिया से चल बसे हैं। मैं ‘स्टेट्समैन’ को पढ़कर यह बात कह रहा हूँ, कोई सुनी-सुनाई बात मैं नहीं कह रहा हूँ। पता नहीं, इसमें क्या रहस्य है; लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि श्री गिरी पवित्र आत्मा के व्यक्ति थे और इसलिए उनको पूर्वाभास हुआ था कि श्री संजय गांधी इस संसार से जानेवाले हैं। श्री गिरी लेखक थे, विद्वान थे, भविष्यद्रष्टा थे, स्वतंत्रता संग्राम के नेता थे, सेनापति थे और सबसे बढ़कर वे मजदूर आंदोलन के एक प्रणेता थे तथा वे समाजवादी विचारधारा के थे। मैं अपनी ओर से तथा अपने दल की ओर से उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।

अध्यक्ष महोदय, मार्शल टीटो एक अंतरराष्ट्रीय ख्याति के व्यक्ति थे। यह इसलिए नहीं कि वे केवल युगोस्लाविया के राष्ट्रपति थे, इसलिए दुनिया में उनकी ख्याति थी। युगोस्लाविया तो एक छोटा देश है और एक छोटे देश के नेता की इतनी ख्याति हो, लेकिन ख्याति इसलिए उनको मिली कि वे हिटलरवाद से लड़ रहे थे। जब हिटलर और मुसोलोनी से उनकी लड़ाई चल रही थी और उस समय हिटलर की फौज ने युगोस्लाविया को रौंद दिया था, लेकिन उन्होंने बाद में किस तरह से हिटलरवाद को पराजित किया, इसका जीता-जागता उदाहरण युगोस्लाविया में आज भी मिलता है। वे केवल फासिस्टवाद के ही नहीं, बल्कि सभी तरह के अन्याय के विरुद्ध लड़नेवाले व्यक्ति थे और उनका कलेजा चट्टान की तरह था। उन्होंने फासिस्टवाद के खिलाफ दृढ़ता और मजबूती का परिचय बराबर दिया हैं। हिटलर के साथ जब उनकी लड़ाई हो रही थी तो मार्शल टीटो चट्टान की तरह अड़े रहे और उन्होंने स्वतंत्र रहकर अपने मुल्क की व्यवस्था नए ढंग से की। सबसे बड़ा काम उन्होंने यह किया कि ‘वक्र्स पार्लियामेंट’ चलाया।

अध्यक्ष महोदय, गुट-निरपेक्ष के तीन जनक थे- प्रेसीडेंट नासिर, पंडित जवाहर लाल नेहरू और प्रेसीडेंट मार्शल टीटो। इन तीनों ने गुट-निरपेक्ष आंदोलन चलाया और अध्यक्ष महोदय, आपको पता होगा कि आगे चलकर यह आंदोलन मजबूत हुआ और आज भी फल-फूल रहा है। इसी के बल पर समाज्यवाद के युद्ध को चुनौती दी गई और संसार में शांति स्थापित करने में और विकास करने में इसका योगदान हो सका है। मुझे भी मार्शल टीटो से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। 1952 ई. में प्रोफेसर मधु दंडवते और श्रीमती शांति बंका बिहारी आदि नेताओं के साथ मुझे भी इनसे मिलने का मौका मिला था।ं मैं अपनी ओर से, अपने दल की ओर से उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।

अध्यक्ष महोदय, स्वर्गीय पंडित रामानंद तिवारीजी के बारे में अगर वर्णन किया जाय तो उस पर एक पुस्तक लिखी जा सकती है। उनके साथ इतने दिनों तक रहने का मौका मिला, जेलों में एक बार नहीं, अनेक बार रहने का मौका मिला। सचमुच उनके बारे में व्याख्यान किया जाए तो एक पुस्तक तैयार हो जाएगी। वे स्वतंत्रता संग्राम के सेनापति थे। 1942 ई. में जमशेदपुर में जो क्रांति का झंडा उन्होंने अनेक पुलिस कर्मचारियों के साथ फहराया था, वह स्वर्णाक्षरों में लिखा जा सकता है। हजारीबाग जेल में वे जे.पी. के साथ हो गए और उनसे समाजवाद की शिक्षा-दीक्षा ली और सामाजवादी बने। इसके बाद वे जीवनपर्यंत समाजवादी रहे। 1946 ई. में पुलिस विद्रोह हुआ था, जिसका नेतृत्व श्री तिवारी ने किया था। उस पुलिस विद्रोह को गोरी फौज किस तरह से कुचलने का काम कर रही थी, यह सर्वविदित है। उस समय महात्मा गांधी ने भी कहा था कि विद्रोह को गोरी फौज बुरी तरह से क्रश कर रही है, जिसकी भत्र्सना उन्होंने की थी। हिंदू-मुसलिम दंगे के समय में महात्मा गांधी पटना में ही थे। ऐसे समय में श्री तिवारी ने जो काम किया, वह सराहनीय है। वे मजदूर आंदोलन के नेता थे। सिपाही के नेता थे, वे जुल्म के खिलाफ बराबर संघर्ष करते रहे। वह नेता आज हमारे बीच नहीं रहे, यह दुःख की बात है। मैं अपनी ओर से, अपनी दल की ओर से उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।

अध्यक्ष महोदय, श्री संजय गांधी की मृत्यु अत्यंत दुःखद है। अत्यंत दुःखद इसलिए है कि उनकी मृत्यु करीब 34 वर्ष में हुई, जबकि वे बिल्कुल युवक ही थे। अभी वे पूरे खिले भी नहीं थे कि उनकी मृत्यु हो गई। वे इस संसार से चल बसे। उनमें संगठन की क्षमता थी। उन्होंने भारतीय युवक और छात्रों का संगठन बड़े पैमाने पर किया था और अपने संगठन मेें जान भर दी थी। मैं इतना निश्चित रूप से कहना चाहता हूँ कि वे एक बहादुर आदमी थे। अंग्रेजी में इसे ‘रेकलस’ कहा जाता है। वे लापरवाह थे। अगर उनके द्वारा लापरवाही नहीं की गई होती तो शायद वे इतनी जल्दी इस दुनिया से नहीं जाते! उनकी मृत्यु से श्रीमती इंदिरा गांधी को बहुत बड़ा सदमा पहुँचा है, बहुत बड़ी क्षति हुई है। बेटे की मृत्यु का दर्द कोई माँ ही जान सकती है। एक कवि ने बहुत वर्ष पहले लिखा था कि मूल्य है बने-बेटे का प्यार माँ के हृदय से पूछो। श्रीमती इंदिरा गांधी को बहुत बड़ा सदमा पहुँचा है और इस सदमा में हम लोग भी उनके साथ हमदर्द हैं। मैं अपनी ओर से तथा अपने दल की ओर से उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।

अध्यक्ष महोदय, सदन नेता ने जो पार्टी के बारे में कहा, मुकदमे वगैरह के सिलसिले में वैसे विवादास्पद विषय को उठाने में मैं अभी नहीं पहुँचा, चूँकि यह मर्यादा के अनुकूल नहीं है। मैं दिवंगत आत्मा के प्रति अपनी ओर से और अपने दल की ओर से हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ और श्रीमती इंदिरा गांधी को अपनी संवेदना भेजता हूँ।

जो हमारे अन्य नेतागण इस बीच चल बसे हैं, उनका भी उल्लेख आपने एक-एक करके किया है, यह ठीक ही किया है। श्री हसीबुर रहमान साहब हमारे मंत्रिमंडल में थे। इस प्रांत के सार्वजनिक जीवन में उनका एक महत्त्वपूर्ण स्थान था। वे केवल हमारे मंत्रिमंडल में ही नहीं थे, जब वे प्रजा सोशलिस्ट पार्टी में थे तो वे वहाँ भी एक सक्रिय सदस्य थे। दो बार इस सदन में प्रजा सोसलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनकर आए थे। इधर कुछ साल पहले वे कांग्रेस में चले गए। इस बार वे कांग्रेस के उम्मीदवार भी थे, पर दुर्भाग्यवश वे हार गए। मैं इतना ही कह सकता हूँ कि उनमें भलमनसाहत, सूझ-बूझ, सहृदयता, काबिलियत थी, वे जो भी बात बोलते थे, ठोस ढंग से समझ-बूझ लेने के बाद ही बोलते थे। मैंने उनके कामों को देखा है मंत्रिमंडल में, पार्टी में मैंने उनको बहुत नजदीक से देखा है। दुर्भाग्यवश वे आज हमारे बीच नहीं रहे। मैं अपनी ओर से और अपने दल की ओर से दिवंगत आत्मा के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।

श्री शफीकुल्ला अंसारी दरभंगा जिले के पुराने सदस्य थे। सभी जानते हैं कि वे दरभंगा जिले में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखते थे। खासतौर से बुनकर भाइयों का संगठन उन्होंने दरभंगा जिला में, दरभंगा जिला में नहीं, बल्कि बिहार के पैमाने पर भी बुनकरों का संगठन कायम किया था। और आगे चलकर बुनकर भाइयों का जो अखिल भारतीय संगठन हैं, उसमें उनका एक महत्त्वपूर्ण स्थान था, वे बिहार विधानसभा के सदस्य थे, विधान परिषद् के भी सदस्य थे। दोनों तरह से मैं उनको बहुत नजदीक से, सबसे ज्यादा दोस्त की हैसियत से, कार्यकर्ता की हैसियत से जानता था। हम नहीं समझते थे कि इतनी ही उम्र में वे लोकसभा में निर्वाचित होने के बाद इतनी जल्दी उठ जाएँगे!। मैं दिवंगत आत्मा के प्रति अपनी ओर से और दल की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।

अध्यक्ष महोदय, पंडित गिरीश तिवारी पुराने वयोवृद्ध कांग्रेसी नेताओं में थे। मैंने शुरू में कहा था कि स्वतंत्रता संग्राम के बुलंद सेनानी एक-एक करके उठते चले जा रहे हैं, श्री गिरीश तिवारी भी उन लोगों में से एक थे। उन्होंने आजादी की लड़ाई में 1920-21 ई. से लेकर 1942 ई. तक जबरदस्त रूप से भाग लिया था।

कई बार जेल की यातनाएँ भी उन्होंने सही थीं। कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जो गुण पहले हुआ करते थे, वे केवल आंदोलनकर्ता ही नहीं, रचनात्मक कार्यकर्ता भी थे। यह गुण उनमें भरा हुआ था। संत विनोबा भावे के साथ ‘भूदान आंदोलन’ में और ‘खादी आंदोलन’ में उन्होंने भाग लिया था। बिहार विधानसभा के तो बहुत दिनों तक वे सदस्य थे ही। उनको बहुत नजदीक से देखने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ था। मैं दिवंगत आत्मा के प्रति अपनी ओर से और अपने दल की ओर से हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।

श्री प्रमोद कुमार मिश्र, बहुत दुःख की बात है कि 40 वर्ष की आयु में ही इस दुनिया से चले गए। वे नौजवान थे, आप जानते हैं कि उनमें काफी अच्छी सूझ-बूझ थी, उन्हें काफी जानकारी थी। आप यह भी जानते हैं कि वे आंदोलनकारी जितना थे, उससे ज्यादा रचनात्मक कार्यकर्ता थे। चंपारण जिला में उन्होंने रचनात्मक कार्यक्रमों में काफी भाग लिया था। इतना ही नहीं, वे संत विनोबा भावे और लोकनायक श्री जयप्रकाश नारायण से भी जुड़े हुए थे और उन्होंने रचनात्मक कार्यक्रमों में सारे प्रांत में कई जगहों में भाग लिया था। इतनी कम उम्र में वे हम लोगों से बिछुड़ जाएँगे, ऐसा हम लोगों ने कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा था। मैं दिवंगत आत्मा के प्रति अपनी ओर से और अपने दल की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।

श्री चंद्रिका रामजी को भी मैं बहुत निकट से जानता था। वे विधानसभा के और विधान परिषद् के भी सदस्य थे। सदन की समितियों में या अन्य बैठकों में न मालूम सैकड़ों बार उनके साथ भाग लेने का, बातचीत करने का सुअवसर मुझे प्राप्त हुआ था, परंतु मैं यह नहीं जानता था कि इतनी जल्दी वे हम लोगों को छोड़कर चले जाएँगे। मैं श्री चंद्रिका राम की दिवंगत आत्मा के प्रति अपनी ओर से और अपने दल की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।

सबसे ज्यादा कम उम्र में श्री शालिग्राम सिंह तोमर चल बसे। मेरा खयाल है कि वे 32-33 साल से ज्यादा के नहीं थे। जब छात्र युवा आंदोलन 1974-75 ई. मंे चल रहा था, तो कई बार पूर्णिया में आम लोगों का जो प्रदर्शन हुआ था, उसमें तोमरजी के साथ मुझको भी भाग लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। इसके अतिरिक्त ‘छात्र युवा आंदोलन’ के क्रम में अनेक बार वे हम लोंगों के साथ थे। उसके बाद इस विधानसभा में हम सब लोगों के साथ कई साल थे। श्री शालिग्राम सिंह तोमर जोश वाले नेता थे, वे प्रगतिशील नवयुवक की सूझ-बूझ वाले व्यक्ति थे। वे बहुत अच्छा बोलते थे, अच्छे संगठनकर्ता थे, लेकिन इस तरह इतनी जल्दी हम लोगों के बीच से वे उठ जाएँगे, यह हम लोगों ने स्वप्न भी नहीं सोचा था। मैं श्री शालिग्राम सिंह तोमरजी की दिवंगत आत्मा के प्रति अपनी ओर से और अपने दल की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।

श्री शीतल प्रसाद भगत सदन के अनेक बार सदस्य हुए थे। आपको पता है, जब सदन का वातावरण गरम हो जाया करता था, काफी तनाव की स्थिति आ जाया करती थी तो श्री शीतल प्रसाद भगतजी ही ऐसे व्यक्ति थे, जो ऐसा रोल अदा करते थे कि सब लोग ठहाका मारकर हँसने लगते थे और सदन में तनाव का वातावरण समाप्त हो जाया करता था। आजादी की लड़ाई के वे बहुत बड़े सेनानी थे। भागलपुर कैंप जेल और सेंट्रल जेल में मैं भी उनके साथ था।ं वहाँ पर उनके साथ मुझे रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। वे हम लोगों से बिछुड़ गए, इसका हमें दुःख है। मैं दिवंगत आत्मा के प्रति अपनी ओर से और अपने दल की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।

श्री सनातन समद इस सदन के सदस्य थे। उनको बहुत नजदीक से देखने को मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ था। उन्होंने जीवनपर्यंत आदिवासियों के कल्याण के लिए, आदिवासियों के हित के लिए, उनके संगठन के लिए काम किया था। वे बहुत अच्छे संगठन कार्यकर्ता थे। मुझे अफसोस है, वे भी अब हमारे बीच में नहीं रहे। मैं उनकी दिवंगत आत्मा के प्रति अपनी ओर से और अपने दल की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।

श्री रामजन्म महतो वृद्धावस्था में लगभग 80 वर्ष की उम्र में हम लोगों से बिछुड़ गए। वे इस सदन के सदस्य थे। जो पुराने सदस्य हैं, उनको स्मरण होगा, जब भूमि सुधार का बिल आता था तो बड़ी गहराई से, बड़ी दिलचस्पी से वे भाग लेते थे। हम दोनों में कभी-कभी नोंक-झोंक भी हो जाया करती थी। मैं भी भूमि सुधार में दिलचस्पी लेता था और वे भी भूमि सुधार में दिलचस्पी लिया करते थे, लेकिन फर्क यह था कि वे इसमें दिलचस्पी लेते थे कि किस तरह कम-से-कम परिवर्तन हो भूमि व्यवस्था में, भूमि सुधार में, और मैं जोर लगाता था कि किस तरह ज्यादा-से-ज्यादा परिवर्तन हो, सुधार हो, भूमि सुधार में। हम दोनों में तो नोंक-झोंक हुआ करती थी, लेकिन हमारे प्रति उनका प्यार बना रहता था। वे अपने को समझते थे कि वे बड़े भाई हैं और हम लोगों को वे डाँट भी दिया करते थे। वे कहते थे कि आप लोग ज्यादा प्रगतिशील बनने की कोशिश करते हैं। यह तो उनका प्यार था, वह आज भी नहीं भुलाया जा सकता है। मैं उनकी दिवंगत आत्मा के प्रति आपनी ओर से और अपने दल की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। श्री तारा प्रसाद बख्शी, इस सदन में कई बार सदस्य होकर आए थे। राजा रामगढ़ की पार्टी, जिसे उस वक्त लोग जनता पार्टी कहते थे, बाद में स्वतंत्र पार्टी कहने लगे, दोनों पार्टियों से वे चुनकर यहाँ आए थे। मैंने उनको बहुत नजदीक से देखा था।ं वे बहुत सहनशील और गंभीर व्यक्ति थे। वे काफी काबिल एवं दक्ष आदमी हजारीबाग में माने जाते थे। इस सदन में उनके साथ हिस्सा लेने का मौका मिला था, वे हम लोगों के साथ बहुत अच्छा व्यवहार करते थे। जब सदन में कोई कानूनी बात आती थी तो वे खास रूप से हिस्सा लिया करते थे। मैं उनकी दिवंगत आत्मा के प्रति अपनी ओर से और अपने दल की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।

स्व. श्री जागेश्वर प्रसद खलिश के प्रति मैं श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ, तो मुझे उनके शेर एवं उनकी कविताएँ स्मरण हो आती हैं। जब वे सदन में भाषण करते थे, उस समय डाॅ. श्रीकृष्ण सिंह मुख्यमंत्री थे और डाॅ. अनुग्रह नारायण सिंह वित्त मंत्री थे। जब कभी अपनी पार्टी की ओर से आलोचना किया करते थे तो उनके कार्यकलाप का लक्ष्य हुआ करता था, उसमें दो-चार शेर या कविताएँ वे जरूर सुनाते थे, और उनको हम लोग काफी दाद दिया करते थे। हम लोग उनको नेता मानते थे। उनमें मानवीय भावनाएँ थीं, अनेक गुण थे, वे साहित्यकार थे, केवल राजनैतिक कार्यकर्ता नहीं थे। वे भी हम लोगों से बिछुड़ गए। मैं उनकी दिवंगत आत्मा के प्रति अपनी ओर से और अपने दल की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।

अध्यक्ष महोदय, बहुत दुःख के साथ कहना पड़ता है कि इस सत्र में अपने नेताओं के प्रति, अपने मित्रों के प्रति इस सदन के अपने साथियों के प्रति भी श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं और एक अंतरराष्ट्रीय ख्याति के व्यक्ति के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं। हम नहीं जानते थे कि इतने सारे मित्रों के प्रति एवं एक अंतरराष्ट्रीय ख्याति के व्यक्ति के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करना पड़ेगा। लेकिन जहाँ काल का बस चलता है, वहाँ किसी का बस नहीं चल सकता है। अंत में फिर मैं उन तमाम दिवंगतात्माओं के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ और उनके परिवार के प्रति संवेदना प्रकट करता हूँ और भगवान् से प्रार्थना करता हूँ कि इनको धैर्य्र प्रदान करें और दिवंगतात्माओं को चिर-शांति प्रदान करें।