(दिनांक: 11 दिसंबर, 1980)


विषय: श्री लालमुनि चैबे, स.वि.स. द्वारा लाए गए कार्य स्थगन प्रस्ताव भागलपुर जेल में बंद कैदियों का पुलिस द्वारा आँख फोड़ दिए जाने से संबंधित विषय पर चर्चा के क्रम में।

श्री लालमुनि चैबे: अध्यक्ष महोदय, मैं प्रस्ताव करता हूँ-‘‘भागलपुर जेल में बंद अनेक हाजती कैदियों की आँखें पुलिस द्वारा फोड़े जाने का मामला देशव्यापी हो चुका है। राष्ट्र की संसद, प्रेस तथा मानवाधिकार संस्थाओं ने इस मामले की कड़ी आलोचना की है। बिहार की सरकार ने इस मामले में छोटे तथा मंझले स्तर के चंद पुलिस कर्मचारियों को निलंबित कर जनाक्रोश शांत करना चाहा है, जबकि प्राप्त तथ्य यह इंगित करते हैं कि वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के अलावा, प्रशासन देकर इस अभूतपूर्व मामले पर विचार करने के लिए सदन का कार्य स्थगित हो।’’

श्री कर्पूरी ठाकुर: अध्यक्ष महोदय, आज जिस विषय पर वाद-विवाद हो रहा है, जो घटनाएँ भागलपुर जेल में घटी हैं और जिन घटनाओं को लेकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय जगत् में आज तहलका मचा हुआ है और इस सदन में कार्य-स्थगन प्रस्ताव पर वाद-विवाद हो रहा है, ये घटनाएँ द्योतक हैं पुलिस प्रशासन के पतन के, इस राज्य के अधःपतन की। हमारे समाज में जिन लोगों द्वारा इस घटना का समर्थन किया जा रहा है, उनके नैतिक पतन के द्योतक हैं। अध्यक्ष महोदय, वे घटनाएँ ऐसी हैं, जिनके बारे में अब तक की रिपोर्ट के अनुसार 35 आदमी अभी अंधे बनाए गए हैं। 3 आदमी बाँका सब-जेल में अंधे बनाए गए हैं।

35 आदमी में से तीन आदमी को अंधा बनाया गया, बाँका में जेल में ले जाकर। जेल आरक्षी महानिरीक्षक ने इसकी जाँच की और जाँच टिप्पणी जेल के रिकाॅर्ड में दर्ज है, एक आदमी को अंधा बनाया गया समस्तीपुर जेल में और 35 आदमी को अंधा बनाया गया भागलपुर जेल में। जब मैं जेल की बात कहता हूँ तो उसका मानी है कि उन्हें जेल में रखा गया और अंधा बनाया गया। जेल के बाहर नहीं, चाहे वह बाँका जेल हो या समस्तीपुर जेल हो। स्वयं मुख्यमंत्री ने अपने एक बयान में कहा कि अंधा बनाया गया गिरफ्तारी के बाद और जेल में रखने के पहले पुलिस कस्टडी में। ये लोग पुलिस कस्टडी में अंधा बनाए गए। यह कहा जाता है कि भीड़ द्वारा ग्रुप द्वारा ये लोग अंधा बनाए गए। अब तक दो ही बंदियों ने स्वयं बयान दिया है कि उन्हें अंधा भीड़ ने बनाया। एक समस्तीपुर के बंदी हैं और एक भागलपुर के बंदी हैं। बाकी 33 बंदियों ने यही बयान दिया कि उन्हें जेल से बाहर पुलिस कस्टडी में अंधा बनाया गया है। यह कहा जाता है कि भीड़ ने कैदियों को अंधा बनाया, तो मैं कहता हूँ कि अगर भीड़ ने उन्हें अंधा बनाया होता तो आपको भीड़ के कारोबार का पता है, भीड़ अगर अंधा बनाई होती तो पहले उन कैदियों को हाथ-पैर ही तोड़ देती, उनकी देह के अंग-अंग का टुकड़ा-टुकड़ा ही नहीं, बल्कि हड्डी तक को चूर-चूरकर देती और फिर उसके बाद हो सकता है कि अंधा बनाने वाली कार्रवाई भी करती, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। जिन 11 कैदियों ने सेशन जज के यहाँ दरखास्त दी है, उनमें से एक ने भी यह नहीं कहा है कि भीड़ द्वारा उन्हें अंधा बनाया गया है। यह बात अस्पताल के रिकाॅर्ड में भी नहीं है। कहीं जख्म भी नहीं है। यदि भीड़ द्वारा अंधा बनाया गया होता तो जेल में भरती होते समय उन्हें जख्म रहता, लेकिन यह नहीं था, जो अस्पताल के रिकाॅर्ड में तथा जेल के रिकाॅर्ड में है। जखम उनको एक ही जगह था, सिर्फ आँख में इसका मतलब है कि यह कार्रवाई भीड़ द्वारा नहीं की गई। यहाँ जनतंत्र रहते हुए जंगली राज चल रहा है। यह बर्बर राज है। उस तरफ के कोई विधायक या इस तरफ के कोई यदि इन आँख फोड़ कांड का समर्थन करते हैं तो यह कतई उचित नहीं कहा जाएगा। होना तो चाहिए कि दूध-का-दूध, आई फाॅर आई और लाइफ फाॅर लाइफ! यह जंगली राज की परिकल्पना है। जनतांत्रिक राज की कल्पना नहीं है। माननीय सदस्य भोला बाबू ने कहा है कि किसी के साथ उसके भाई के सामने ही इतना बलात्कार किया गया कि उसके प्राण ही छूट गए या किसी ने हत्या की, किसी ने डकैती की, तो मैं कहता हूँ कि उन लोगों को सरकार को पकड़ना चाहिए था और पकड़कर जेल देना चाहिए। उन लोगों पर मुकदमा किया जाता और उ्रन्हें सजा देनी चाहिए थी, मगर इनके विपरीत काम किया गया है। मैं कहना चाहता हूँ कि मुझे भी कांग्रेस पार्टी में रहने का फख्र है, कभी मैं भी उस पार्टी में था। लेकिन इस तरह से जो इस आँख फोड़ का कांड का समर्थन करते हैं, उन्हें उस पार्टी में रहने का हक नहीं है। हम नियम मानते हैं। आँख निकाल लेना क्या किसी नियम में है या किसी जनतांत्रिक पद्धति की सरकार में इस तरह की सजा देने का कानून में प्रावधान है? महान्-से-महान् अपराधी हो, जघन्य से जघन्य कुकर्म करनेवाला ही भला क्यों न हो, लेकिन उसकी भी आँख निकालना कतई उचित नहीं है। इस तरह का काम पुलिस कस्टडी में नहीं किया जा सकता है। आप जंगलराज का समर्थन कर रहे हैं। मैं सरकार पर चार्ज लगाता हूँ कि 35 आदमी की आँखें इन्होंने फोड़वाई है पुलिस द्वारा, लेकिन इस सरकार ने उन लोगों पर कोई कार्रवाई नहीं की इस कांड के बाद।

दो कांड हुए हैं। अक्तूबर-नवंबर 1979 ई. में आँखें फोड़ी गईं। 25 अक्तूबर, 1979 ई. में और दूसरी बार आँख फोड़ी गई नवंबर ‘79 ई. में। दिसंबर में किसी की आँखें नहीं फोड़ी गई। बाकी जो 33 आदमी की आँखें फोड़ी गई हैं, वे जनवरी से लेकर अक्तूबर के बीच में फोड़ी गई हैं और 10 आदमी की आँखें 6 अक्तूबर, 1980 ई. को फोड़ी गई, इसलिए अध्यक्ष महोदय, कोई कार्रवाई नहीं की गई, कार्रवाई करने की कोई बात नहीं की गई, सरकार सोई रही। हमारे मुख्यमंत्री ने अपने बयान में कहा है, माननीय श्री ज्ञानी जैल सिंह ने जब इनसे टेलीफोन पर पूछा कि अखबारों में फोटो छपा है कि लोगों की आँखें फोड़ दी गई हैं, अंधे बना दिए गए हैं, तो माननीय श्री ज्ञानी जैल सिंह को कहा गया कि अखबारों में जो रिपोर्ट छपी है, बे-बुनियाद हैं, इस रिपोर्ट का कोई आधार नहीं है। इन्होंने यह भी कहा कि सरकार के पास किसी ने कोई आवेदन-पत्र इस संबंध में नहीं भेजा है, किसी अंधे आदमी ने भी कोई आवेदन-पत्र नहीं भेजा है कि उनके साथ पुलिसवाले ने अन्याय किया है।

अध्यक्ष महोदय, 30 जुलाई को कैदियों ने सेशन जज को दरखास्त भेजी कि हमारी आँखें पुलिस द्वारा फोड़ दी गई हैं। लोगांें ने सेशन जज के पास ही दरखास्त सिर्फ नहीं भेजी, उस दरखास्त की काॅपी, 11 दरखास्त की काॅपी आरक्षी महा-निरीक्षक, कारा विभाग के पास भी भेजी गई। अगस्त के प्रथम सप्ताह में कारा विभाग के महानिरीक्षक के पास काॅपी पहुँल गई। कारा महानिरीक्षक शायद उस दिन सचिवालय में नहीं थे, सहायक कारा महानिरीक्षक को रिपोर्ट मिली, कारा विभाग श्री जगन्नाथ मिश्र का विभाग है, फिर गृह विभाग के विशेष सचिव के पास यह रिपोर्ट भेजी गई कि इस तरह की घटना की सूचना भागलपुर से प्राप्त हुई, इस पर सख्त-से-सख्त एवं जल्द-से-जल्द कार्रवाई होनी चाहिए। मैं मुख्यमंत्री से जानना चाहता हूँ, यह आपका विभाग है। आपके विभाग ने इस संबंध में क्या किया आज तक? कौन सी कार्रवाई की गई आज तक? इसलिए यह कहना कि सरकार को पता नहीं है, वह झूठ है। यह कहना कि सरकार को जानकारी नहीं थी, यह झूठ है, सत्य छिपाने वाली बात है। अगर सरकार को खबर नहीं है, यह बेखबर है, अगर सरकार को जानकारी है तो यह सरकार निकम्मी है और नालायक सरकार है। मैं नहीं मानता हूँ कि आपको खबर नहीं थी। माननीय सदस्य श्री लालमुनि चैबे ने कहा, आपको खबर थी, आपके मंत्रिमंडल के एक, दो, तीन, चार, पाँच सदस्यों को खबर थी, उनको पूरी जानकारी थी, लेकिन आपने जानकारी के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की। इसलिए मैं कहना चाहता हूँ कि सरकार को जानकारी थी और सरकार ने आँख फोड़ने में रुकावट वाला जो काम हो सकता था, नियंत्रण वाला जो काम हो सकता था,, मनाही वाला जो काम हो सकता था, वे काम आपने नहीं किए। यह आपकी विफलता है, आपकी असफलता है। यह जो कार्य-स्थगन प्रस्ताव होता है, वह प्रस्ताव अविश्वास का प्रस्ताव होता है, जब सरकार विफल रही, आपने कर्तव्य को पूरा नहीं किया तो इस सरकार को बने रहने का कोई औचित्य नहीं है, कोई अधिकार नहीं हैे। अध्यक्ष महोदय, मैं यह कहना चाहता हूँ कि मुख्यमंत्री का बयान रोज-ब-रोज बदलता रहता है। ऐसा मालूम पड़ता है कि जब से भागलपुर की घटना के बारे में ‘इंडियन एक्सप्रेस’, ‘टाइम्स आॅफ इंडिया’, ‘स्टेट्समैन’ और दूसरे आखबारों में खबरें छपती रहीं, इससे हमारे मुख्यमंत्री बदहवास हो गए, रोज-रोज अपने बयान बदलते रहते हैं। 4 दिसंबर को चंडीगढ़ में बयान दिए। केंद्रीय सरकार ने जो 15 हजार रुपए देने का ऐलान किया है, यह उन लोगों को दिए जाएँगे, जिनकी आँखें फोड़ दी गई है। केंद्रीय सरकार का यह काम गलत है, केंद्रीय सरकार ने ठीक नहीं किया। 4 दिसंबर को इनका बयान होता है कुछ और 5 दिसंबर को इनका बयान होता है दिल्ली में।