(दिनांक: 24 मार्च, 1981)


विषय: शोक-संवेदना स्वर्गीय दारोगा प्रसाद राय।

श्री कर्पूरी ठाकुर: अध्यक्ष महोदय, आपके द्वारा तथा सभा-नेता द्वारा स्वर्गीय दारोगा प्रसाद राय के संबंध में जो शोक उद्गार व्यक्त किया गया है, मैं उसके साथ हूँ। स्वर्गीय श्री दारोगा प्रसाद रायजी का निधन इस राज्य के लिए एक अत्यंत ही दुःखद एवं दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। हममें से किसी ने सपने में भी यह नहीं सोचा था कि उनका इस तरह से असामयिक एवं आकस्मिक निधन हो जाएगा। जिस किसी ने उनकी मृत्यु का समाचार सुना, वे ही स्तब्ध रह गए, अवाक् रह गए। जैसाकि सब लोग जानते हैं, बिहार विधानसभा में वे उस दिन भी आए थे, सभा तो नहीं थी; लेकिन सभा सचिवालय में आए थे, कई विधायकों से उनकी बातचीत हुई और वे उस दिन सचमुच होली के मूड में थे। इतनी अच्छी भावना के साथ उस दिन उन्होंने लोगों से बातचीत की थी कि बातचीत करनेवाले लोग अभी भी उस बात को याद कर रहे हैं और फिर जब अपराह्न में उनकी मृत्यु उसी दिन हो गई तो उनके मित्रों और समस्त बिहारवासियों को जो धक्का लगा, उसका वर्णन नहीं किया जा सकता है। श्री दारोगा प्रसाद रायजी में अनेक गुण थे, अनेके विशिष्टताएँ थीं। वे स्वतंत्रता सेनानी थे, वे सच्चे समाजवादी थे, वे प्रखर देशभक्त थे। उनके इन सब गुणों से कोई भी इनकार नहीं कर सकता है। लेकिन अध्यक्ष महोदय, इस सदन में 1952 ई. से लेकर मृत्युपर्यंत जो पार्ट उन्होंने अदा किया था, उसको याद करके इस राज्य के पुराने विधायक और नए विधायक आज भी दुःखी हैं। जब स्व. श्रीकृष्ण सिंह इस राज्य के मुख्यमंत्री थे, उस समय स्व. श्री दारोगा प्रसाद रायजी कांग्रेस में रहते हुए भी सरकार के कारनामों पर जबरदस्त प्रहार किया करते थे। यह उस समय के वाद-विवाद को पढ़ने पर किसी को आसानी से पता चल सकता है कि स्व. डाॅ. श्रीकृष्ण सिंह के मंत्रिमंडल के उन सदस्यों, जिसके बारे में उनका खयाल था कि वे गलत काम कर रहे हैं, वे भ्रष्टाचार कर रहे हैं तो उस पर इस प्रकार का तीखा प्रहार इसी सदन में श्री दारोगा प्रसाद रायजी किया करते थे, तब से लेकर हाल-हाल तक जिस कांग्रेस पार्टी में वे थे, उस पार्टी के मंत्रिमंडल में वे तब तक थे, इस सब में वे मंत्रिमंडल के बारे में अपना विचार व्यक्त करने से कभी चूकते नहीं थे।

3जो एक विधायक में, एक सांसद में गुण होना चाहिए निर्भीकता का, इस गुण का परिचय वे पग-पग पर देते थे इस सदन में। इस सदन का दुर्भाग्य है कि अब इसे श्री दारोगा बाबू के भाषण सुनने का अवसर नहीं मिलेगा, उनकी बातों को सुनने का मौका नहीं मिलेगा, उनके भाषणों को, जो भरे हुए होते थे कटाक्ष से, व्यंग्य से, हास्यपूर्ण, विनोदपूर्ण बातों से, देहाती मुहावरों से, गाँव गवैए के किस्से-कहानियों से, भोजपुरी चोट करनेवाले शब्दों से-सदन इस माने में वंचित रहेगा उस महान् सांसद के भाषणों से।

अध्यक्ष महोदय, वे बहुमुखी प्रतिभा के व्यक्ति थे, जिन्हें राजनीति से अटूट संबंध था। उनका शैक्षणिक एवं सामाजिक संस्थाओं से गहरा ताल्लुक था। इस सदन को मालूम है, राज्य को भी मालूम है कि वे अनेक शैक्षणिक संस्थाओं के जन्मदाता थे, उनके कर्ता-धर्ता थे, सामाजिक परेशानियों को सुलझाने में उनकी गहरी दिलचस्पी थी, आज जो हमारे समाज हजारों वर्षांे से बँटे हुए हैं जाति प्रथा के कारण और इस प्रथा से करोड़ों लोग आज भी अपमानित हैं, निरादृत हैं, लांछित हैं, शोषित हैं, अधिकारविहीन हैं, उनको उठाने के लिए वे व्याकुल रहते थे। बातें करते थे तो सभी से मिलते थे तो दिल खोलकर मिलते थे, मैंने देखा था। वे न केवल एक अत्यंत कुशल और सुयोग्य विधायक थे, बल्कि तेजस्वी तथा निर्भीक वक्ता थे। जहाँ तक सरकार चलाने का सवाल है, जब-जब जिस-जिस पद पर रहे, मंत्री, राज्यमंत्री, मुख्यमंत्री रहे, उन्होंने अपने कार्यों को अत्यंत दक्षता के साथ किया था। इस तरह वे एक सुयोग्य प्रशासक भी थे।

आज वे हमारे बीच नहीं रहे, हमारा प्रांत उनको खोकर सूना हो गया। उनके जाने से जो स्थान रिक्त हो गया है, उसको भरना निकट भविष्य और दूर भविष्य में भी कोई आसान काम नहीं है। उनके जैसा सहृदय व्यक्ति, सुयोग्य व्यक्ति, कुशल व्यक्ति, उनके जैसा सच्चे स्वतंत्रता सेनानी, उनके जैसा सच्चा समाजसेवी खोकर हमारा समाज जो आज दरिद्र बन गया है, इसके लिए हर प्रांतवासी को गहरा दुःख है। मैं अपनी ओर से, अपने दल की ओर से दिवंगत आत्मा के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ और उनके शोक-संतप्त परिवार को संवेदन प्रेषित करने के लिए आपसे अनुरोध करता हूँ।

अध्यक्ष: अब आपका समय समाप्त हो गया।

श्री कर्पूरी ठाकुर: अध्यक्ष महोदय, हमको एक घंटा का समय दिया जाए। अभी तक मैं केवल इंदिरा गांधी पर बोल रहा था, अभी इन पर (डाॅ. जगन्नाथ मिश्र) नहीं आया हूँ कि वस्तुस्थिति से दुनिया को और इस सदन को रू-ब-रू करा सकूँ। मेरा इसके अलावा और कोई उद्देश्य नहंीं है। इसलिए अब मैं कहना चाहता हूँ कि बिहार में क्या हुआ है? 1978-79 ई. में अनाज का उत्पादन हुआ था 1 करोड़ 2 लाख टन। 1980-81 में आपने कहा है कि अनाज का उत्पादन 1 करोड़ 3 लाख टन। 1981-82 ई. में आपने कहा है कि हमने लक्ष्य रखा था 1 करोड़ 16 टन का, मगर 18 लाख टन कम पैदा होगा; क्योंकि फसल को नुकसान पहुँचा है। इस प्रकार अब 1 करोड़ 16 लाख टन के बदले पैदा होगा 98 लाख टन। इस अवधि में बिहार में खानेवाला मर गया, जिस तरह हिंदुस्तान में मर गया और इसलिए आपने अनाज का पैदावार कम कर दिया। आजकल आप अनाज कम खर्च कर रहे हैं और आगे भी कम खर्च करनेवाले हैं, यह मैं बतलाना चाहता हूँ। जब हमारी सरकार थी, तो हम लोगा आदमी पीछे हर रोज कितना अनाज दे रहे थे और आजकल कितना अनाज मिल रहा है, इसके संबंध में मैं कुछ आँकड़ा आपके सामने प्रस्तुत करना चाहता हूँ। इससे असलियत का पता लग जाएगा। 1978 ई. में प्रति दिन, प्रति भारतवासी अनाज की उपलब्धता थी 470 ग्राम। 1979 ई. में 480.3 ग्राम और 1980 ई।. में इंदिरा गांधी के आने के बाद 480 ग्राम से घटकर 416.9 ग्राम और 1981 ई. में 459.5 ग्राम हो गया। हमारे जमाने से 1978 ई. से भी कम और 1979 ई. से भी कम है और कमतर ही जाएगा, यह निश्चित बात है। तो इस सरकार को आखिर किसलिए धन्यवाद दें? ये कह रहे हैं उपलब्धि! अध्यक्ष महोदय, मैं जरा दाम के बारे में कहना चाहता हूँ।

अध्यक्ष: अब आपका समय हो गया।

श्री कर्पूरी ठाकुर: एक घंटा समय दिया जाए।

अध्यक्ष: 50 मिनट बोल गए हैं।

श्री कर्पूरी ठाकुर: मैं एक घंटा बोलना चाहता हूँ। अध्यक्ष महोदय, इस सरकार ने कहा है कि कल रामाश्रय रायजी और यासीन साहब ने कहा था, वे दोनों अभी नहीं हैं, कृषि का विकास कर रहे हैं। खादी ग्रामोद्योग का विकास कर रहे हैं। लेकिन मैं बतलाना चाहता हूँ कि ये किस-किस मद में कटौती कर रहे हैं। 560 करोड़ की इनकी योजना है। योजना में ये काट रहे हैं केवल कृषि में, ग्रामीण विकास में, छोटे और ग्रामीण उद्योग में, सामाजिक शिक्षा में, यानी जिसमें कटौती नहीं करनी चाहिए, उसी में कटौती करने का बीड़ा इन्होंने उठाया है। इन्होंने भारत सरकार को लिख दिया है कि हम इसमें कटौती करेंगे। ये आपको थोड़े में बतलाना चाहता हूँ क्राॅप हस्बेंडरी में इन्होंने रखा था 6 करोड़ 66 लाख। इसको बदलकर अब रखेंगे 5 करोड़ 66 लाख। 1 करोड़ इन्होंने स्वाहा कर दिया। एग्रीकल्चर फाइनेसिंग इन्स्टीट्यूशन के लिए पहले रखा था 1 करोड़ 22 लाख।ं उसको काटकर अब इन्होंने रखा है 54 लाख। कम्युनिटी डेवलपमेंट और पंचायत के लिए पहले रखा था 4 करोड़ 30 लाख, अब उसमें कटौती करके रखे हैं 3 करोड़ 87 लाख।

स्पेशल प्रोग्राम्स फाॅर रूरल डेवलपमेंट में पहले था 37 करोड़ 50 लाख, उसको घटाकर कर दिया 33 करोड़ 21 लाख। एग्रीकल्चर एंड एलांयड सर्विसेज के लिए रखा था 1 अरब 3 करोड़ 37 लाख, उसको घटाकर कर दिया 1 अरब, 2 करोड़ 69 लाख। सिंचाई विभाग के बारे में मैं कहना चाहता हूँ-सिंचाई विभाग के साथ बराबर डाॅ. जगन्नाथ मिश्र चिपके रहे हैं। मैंने कभी सिंचाई विभाग अपने हाथ में नहीं रखा, पी.डब्लू.डी. विभाग अपने हाथ में कभी नहीं रखा, लेकिन इनको अध्यक्ष महोदय, सिंचाई विभाग से काफी लगाव रहा है, उसके बारे में कहना चाहता हूँ कि सिंचाई के लिए पहले रखा था 1 अरब 39 करोड़ 76 लाख, उसको घटाकर 1 अरब 24 करोड़ 95 लाख कर दिया। उसके बाद विलेज एंड स्माॅल इंडस्ट्रीज के संबंध में कहना चाहता हूँ-बहुत से भाई आए हुए हैं हथकरघा वाले, लघु उद्योग वालेा और खादी वाले आए हुए हैं, आप जरा देखें कि विलेज स्माॅल इंडस्ट्रीज में पहले रखा गया था 8 करोड़ रुरूपया, उसको घटाकर 7 करोड़ 81 लाख 22 हजार कर दिया। जनरल एजुकेशन, सामान्य शिक्षा में 30 करोड़ से घटाकर अब 29 करोड़ कर दिया है। सोषल एंड कम्युनिटी सर्विसेज के लिए पहले रखा था 81 करोड़ 13 लाख, उसको घटाकर 80 करोड़ 94 लाख 33 हजार कर दिया। एक चीज में इन्होंने वृद्धि की है, वह है इनफाॅरमेशन एंड पब्लिसिटी। इसमें इन्होंने पहले 10 लाख रखा था, अब उसको बढ़ाकर 11 लाख 83 हजार कर दिया। इसलिए अध्यक्ष महोदय, मैं इस सरकार को किसानों का दुश्मन मानता हूँ, ग्रामीण उद्योग का शत्रु मानता हूँ, शिक्षा का दुश्मान इनको मैं मानता हूँ। इस सरकार ने कृषि के क्षेत्र में कुछ भी करने का निर्णय नहीं लिया है। अध्यक्ष महोदय, अफसोस के साथ मैं कहना चाहता हूँ कि समय नहीं है-बजट वाले भाषण पर मैं इनका थुर्री-थुर्री उड़ा दूँगा।

(सदन मंे थपथपी)


अध्यक्ष महोदय, मैं कहना चाहता हूँ कि इस सरकार में अराजकता है, अनुशासनहीनता है, मर्यादाहीनता है, लूट-पाट, हत्या-डकैती की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है। जिस सरकार में भयंकर भ्रष्टाचार हो, उस सरकार को धन्यवाद देना मैं पहले दरजे का अपराध मानता हूँ। इसलिए मैं सरकार को धन्यवाद देने का काम नहीं कर सकता हूँ। अध्यक्ष महोदय, मैं एक कविता सूनाना चाहता हूँ।

अध्यक्ष महोदय, अफसोस है कि वह कविता मिल नहीं रही है, लेकिन मैं जानता हूँ कि बाट-बाट पर, घाट-घाट पर इस मंत्रिमंडल के लोग घात लगाए बैठे हुए हैं, ये बिहार का नाश करेंगे, बिहार का कल्याण नहीं कर सकते हैं।

अध्यक्ष महोदय, कविता मिल गई, इसलिए मुझे आधा मिनट समय दे दिया जाएः-

यह गहन प्रश्न, कैसे सहस्य समझाएँ?
दस-बीस बधिक हों तो हम नाम गिनाएँ।
पर, कदम-कदम पर यहाँ खड़ा पातक है,
हर तरफ लगाए घात खड़ा घातक है।
घातक है, जो देवता-सदृश्य दिखता है,
लेकिन कमरे में गलत हुक्म लिखता है।

इन्हीें शब्दों के साथ मैं अपना संशोधन का प्रस्ताव पेश करता हूँ।

विषय: विधानसभा के पूर्व सदस्य श्री पांडव राज के निधन पर शोक-संवेदना।

श्री कर्पूरी ठाकुर: अध्यक्ष महोदय, मैं चाथे दिन दरभंगा अस्पताल में श्री पांडव रायजी को देखने गया था।ं डाॅक्टरों ने मुझे यह बतलाया था कि हालत खराब है, लेकिन फिर भी ऐसी हालत नहीं थी, यह अत्यंत दुःखद है कि आज प्रातः काल उनकी मृत्यु दरभंगा अस्पताल में हो गई। अध्यक्ष महोदय, आप भी और सदन के जितने पुराने सदस्य हैं, वे भी पांडव रायजी को अच्छी तरह से जानते थे। इस सदन में वे भाग लेते थे कार्रवाई में, लेकिन आवश्यकता पड़ने पर ही वे बोलते थे, अपनी आवाज उठाते थे, वे असल कार्यकर्ता थे-देहाती क्षेत्रों के। वे गाँव में घूमते थे, काफी कार्यशील रहते थे और जो गाँवों के असहाय किसान हैं, गरीब किसान हैं, उनकी मदद के लिए वे कार्य करते थे।ं इस सदन में उनका विषय वही रहता था, गाँवों की तरक्की, किसानों की तरक्की, खेतिहर मजदूरों की तरक्की आदि। जैसा आपने कहा, वे दो बार सदन के सदस्य के रूप में निर्वाचित होकर यहाँ आए थे। आजकल उनके सुपुत्र श्री गणेश प्रसाद यादवजी इस सदन के सदस्य हैं। वे ‘जौंडिस’ के शिकार हो गए और सुदूर देहात से वे दरभंगा अस्सपताल लाए गए। लाने में विलंब हो गया। उनकी बीमारी काफी बढ़ गई, फलस्वरूप बहुत परिश्रम और प्रयास करके भी डाॅक्टर लोग उन्हें बचा नहीं सके। एक अत्यंत निष्ठावान्!, प्रभावशाली और लोकप्रिय कार्यकर्ता, जो समाज के लिए रात-दिन खटता रहता था, आज हमारे बीच से उठ गए। यह दुर्भाग्य का विषय है। मैं अपनी ओर से और सदन की ओर से उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ और भगवान् से प्रार्थना करता हूँ कि उनकी आत्मा को शांति एवं सद्गति प्रदान करे, साथ ही उनके परिवार के लोगों को र्धैर्य प्रदान करें, ताकि वे इस असहाय दुःख का सहन कर सके।