(दिनांक: 20 जून, 1983)


विषय: आय-व्यय का बजट वर्ष 1983-84 के सामान्य वाद-विवाद के क्रम में।

श्री कर्पूरी ठाकुर: अध्यक्ष महोदय, 1981-82 ई. और 1982-83 ई. के बजट पर इस सदन में जो वाद-विवाद हुआ था और वाद-विवाद के क्रम में सरकार की नीतियों, कार्यक्रमों और उनके कार्यान्वयन के संबंध मेें जो आलोचना हुई थी और सरकार पर विरोधी दलों के माननीय सदस्यों के द्वारा जो प्रहार हुए थे, उनका उत्तर देते हुए मुख्यमंत्री ने छाती तानकर कहा था कि बिहार राज्य की जो वित्तीय स्थिति उनके राज्य में हैं, वैसी वित्तीय स्थिति पहले कभी नहंीं थी। लेकिन सच्चाई पर लाख परदा डालने की कोशिश मुख्यमंत्री करें, सच्चाई छिप नहीं सकती है-

सच्चाई छिप नहीं सकती बनावट के उसूलों से,
खुशबू आ नहीं सकती कभी कागज के फूलों से।


आज वित्तीय स्थिति कैसी है? यह तो तमाम लोगों को मालूम है। 1979 ई. के 01 अप्रैल को जब 1979-80 ई. का वित्तीय वर्ष शुरू हुआ था तो प्लस बैलेंस थी 1324 करोड़। 1980 ई. के 01 अप्रैल को राष्ट्रपति शासन था बिहार में, 8 जून, को नया मंत्रिमंडल बना। 1979-80 ई. वित्तीय स्थिति अत्यंत अच्छी थी, उसके परिणामस्वरूप 1980-81 ई. में वित्तीय स्थिति बहुत ज्यादा बिगड़ गई, फिर भी प्लस बैलेंस जहाँ 124 करोड़ का था 1979 ई. के 01 अप्रैल को, वहाँ 1980 ई. के 01 अप्रैल को 33 करोड़ हो गया है, यानी प्लस बैलेंस में बहुत बड़ी कमी आई।

जब 1981-82 ई. का वित्तीय वर्ष आया तो अध्यक्ष महोदय, मालूम है कि 197 करोड़ 39 लाख रुपए का ओवर ड्राफ्ट हो गया, यानी वित्तीय स्थिति अत्यंत जटिल हो गई। माननीय मुख्यमंत्री को भले पता नहीं हो, मगर अर्थशास्त्र के जो विद्यार्थी हैं, ज्ञाता हैं, उनको चिंता हुई बिहार राज्य की वित्तीय स्थिति से। भारत सरकार को भी चिंता हुई। भारत सरकार ने बिहार सरकार के सहायतार्थ मदद दी और भारत सरकार ने बिहार सरकार के सहायतार्थ जो ऋण की बड़ी राशि थी, जो ओवर ड्राफ्ट था, उसको शून्य कर दिया। लेकिन अध्यक्ष महोदय, हालत इतनी बिगड़ती गई और 1982-83 ई. में हालत इतनी खराब हुई कि जो हमारा नया वित्तीय वर्ष इस साल शुरू हुआ तो 265 करोड़ रुपए के घाटे से शुरू हुआ। यह कोई मामूली घाटा नहीं है। बिहार राज्य के इतिहास में इतना बड़ा घाटा पहले कभी नहीं हुआ होगा, जितना बड़ा घाटा इस साल हुआ वित्तीय वर्ष के प्रारंभ में, जो 265 करोड़ रुपए वेज एंड मींस के चलते हुआ। कुल मिलाकार 265 कमरोड़ रुपए का घाटा हुआ। एक समय था, इसी साल जनवरी से मई तक का समय था, जब सारे देश में जितना ओवर ड्राफ्ट हुआ, उसका 60 प्रतिशत केवल बिहार का है, आप इसी से अंदाज कर सकते हैं कि बिहार आज हमारे देश के नक्शे पर कहाँ है? 60 प्रतिशत के ओवर ड्राफ्ट के चलते अर्थतंत्र पर, हमारी इकोनाॅमी पर इतना बड़ा स्ट्रक्चरल इम्बैलेंस आया। हमारे अर्थ तंत्र पर एक असंतुलन आया और वह असंतुलन 230 करोड़ रुपए के और 265 करोड़ रुपए के बीच में है। अगर यह स्ट्रक्चरल इम्बैलेंस जारी रहेगा, अगर यही ढाँचाजनित असंतुलन कायम रहेगा तो कोई भी बिहार का उद्धार नहीं कर सकता है, चाहे कोई कितना ही दावा क्यों न कर ले! हम जिस स्थिति से गुजर रहे हैं, वह स्थिति दिनानुदिन और खराब होगी। खराब इसलिए होगी कि बिहार राज्य में लूट चल रही है, बिहार राज्य में जहाँ खर्च करना चाहिए, वहाँ कम खर्च किया जा रहा है, जहाँ खर्च नहीं करना चाहिए, वहाँ बहुत ज्यादा खर्च किया जा रहा है। जिस राज्य में ऐसी स्थिति होगी, उसका नतीजा होगा कि ओवर ड्राफ्ट होगा, नतीजा होगा कि भयंकर घाटा होगा, जिसका शिकार बिहार राज्य आज बना हुआ है।

दो-दो घटनाएँ हैं-दो दफा अलग-अलग लगाए गए, अलग-अलग तारीखों में दोनों को पकड़ा गया। जब यह सवाल उठा तो सरकार की तरफ से जवाब आया कि हम जाँच करा देंगे गृह आयुक्त से और जाँच आज तक नहीं हुई। अध्यक्ष महोदय, जाँच नहीं हुई और जाँच होगी भी नहीं। सरकार ने जवाब दिया था कि अप्रैल के महीने में जाँच करा दिया जाएगा। मार्च में कुछ ही दिनों के बाद एसेंबली खत्म हो गई, मार्च का भी आधा बीता, इतने लंबे अर्से बीत गए; लेकिन सरकार ने जाँच नहीं कराई। सरकार इसकी जाँच नहीं कर सकती है। आज जो पुलिस ज्यादती करती है या करेगी, उसे सरकार पकड़ सकती है? नहीं पकड़ सकती है। अगर कोई बेईमान पुलिस आॅफिसर खराब काम करता है, उस पर यह सरकार एक्शन ले सकती है, नहीं ले सकती है। क्या सरकार नाम की चीज इस सूबे में है, नहीं है। असेंबली क्या करेगी, संसद् क्या करेगी? हमें तो डर लगता है कि इस सरकार ने संसद् को क्या बना दिया है, संसदीय प्रणाली को क्या बना दिया है, इस सरकार ने संसद् या पार्लियामेंट, जो जनतंत्र की थाथी हुआ करती है, इस सरकार के चलते न पार्लियामेंट रहेगा न संसद् रहेगी। मैं इस सिलसिले में श्री हरिहर प्रसाद चैधरी ‘नूतन’ की कविता आप लोगों के सामने रखना चाहता हूँ। उन्होंने ठीक ही लिखा है कि-

क्या खूबसूरत तंत्र है, जिससे पड़ी है मंधुकरी,
मिहनत के हाथों हथकड़ी, कुरसी डटाए तखरी,
थाली सजी तनतंत्र की, धनतंत्र करे नाश्ते।
भगवान् चाहे देखना, जो राष्ट्र का नैतिक पतन
सीधे चलो, सीधे चलो, सीधे चलो, संसद् भवन
हे राम भी झुककर जहाँ दशकंध को आराधते।

आज यह स्थिति संसदीय भवन की है, उन्होंने इसे कहाँ पहुँचा दिया है, विधान-मंडल को उन्होंने कहाँ पहुँचा दिया है, उसे नहीं कहा जा सकता है। अध्यक्ष महोदय, इस सदन के माननीय सदस्य साहे इधर बैठे हुए हों या उधर बैठे हुए हों, जब ये प्रश्न पूछते हैं, जब ध्यानाकर्षण के द्वारा जनता के सवालों को उठाते हैें, तो सरकार की तरफ से जवाब आता है, और क्या सरकार के जवाब पर विश्वास किया जा सकता है, नहीं किया जा सकता है। क्योंकि मैं मानता हूँ कि सरकार नाम की चीज ही यहाँ पर नहीं है, सरकार नाम की चीज इस सूबे में नहीं हंै। अध्यक्ष महोदय, समस्तीपुर जेल में गोली कांड हुआ था, उस समय मैं जेल में जाकर कैदियों को देखना चाहता था, श्रीमती उमा पांडेयजी सदन में अभी मौजूद नहीं हैं, समस्तीपुर जिला के लिए प्रभारी हैं, बीस सूत्री कार्यक्रम की प्रभारी हैं, उस दिन वहाँ मौजूद थीं, मैंने उनसे निहोरा किया, यह मेरा क्षेत्र है, मैं यहाँ का सभा सदस्य हूँ, मैं उस क्षेत्र का विधायक हूँ, मेरा घर यहाँ पड़ता है, घर के नाते तो नहीं; लेकिन कम-से-कम मेरा क्षेत्र होने के नाते मुझे जेल के अंदर जाने दीजिए, देखने दीजिए। मैंने कलक्टर से कहा, मैंने एस.पी. से कहा, आई.जी. प्रीजंस से कहा, जो बाद में 4-5 घंटे बाद में आए थे, उनसे कहा, श्रीमती उमा पंाडेय से कहा; लेकिन मेरी बात नहीं मानी गई। उस समय स्वर्गीय श्री जगदीश प्रसाद चैधरी भी मौजूद थे, उन्होंने कहा, शायद कलक्टर ने मुख्यमंत्री से पूछा होगा, मैं नहीं जानता, आपने मना किया या नहीं किया; लेकिन एक कलक्टर की इतनी हिमाकत नहीं हो सकती है कि एक माननीय सदस्य को, जो जेल के अंदर जाकर देखना चाहे और उसे नहीं जाने दे। कलक्टर की यह हिमाकत कि वह मुझे नहीं जाने दे! कलक्टर ने आपसे पूछा होगा, आपने मना कर दिया कि कर्पूरीजी को जाने नहीं दिया जाए। अगर आपने नहीं कहा तो मैं मान लेता हूँ, जैसाकि मैंने पहले ही कहा कि मेरी शंका है; क्योंकि कलक्टर इतना साहस नहीं कर सकता है कि मुझे जेल के अंदर जाने नहीं दे।

उपाध्यक्ष महोदय, उस समय आंध्र प्रदेश का प्रश्न नहीं था। उन्होंने आंध्र प्रदेश की घटना के सवाल में कहा है कि जो घटना आंध्र प्रदेश में घटी, वह हम सोच नहीं सकते थे, उन्होंने लिखा है 20 तारीख के ‘टाइम्स आॅफ इंडिया’ में-

The Governor of Andhra Pradesh reached his proposed conclusion without even allowing Mr. Rama Rao to present his case to the Governor. One would have thought such grossly partisan behavior and such disregard have decency and ealing with the Chief Minister to be impossible until yesterday.

कल तक हम यह नहीं समझते थे कि कोई गवर्नर इतना बदमाश होगा, बेशर्म होगा, हरामी होगा।

श्री हेमंत कुमार झा: इन्होंने ‘बदमाश’ शब्द का प्रयोग किया, जो अनपार्लियामेंटरी है।

श्री कर्पूरी ठाकुरजी: मैं ‘बदमाश’ शब्द को वापस लेता हूँ। उपाध्यक्ष महोदय, गर्वनर ने जो कुछ किया है, वह गैर-कानूनी काम है, अनैतिक काम है, जनतंत्र की हत्या करनेवाला है।

मैं यह जानता हूँ कि मुख्यमंत्रीजी कहेंगे और कांग्रेस पार्टी के लोग हैं, वे कहेंगे कि जो हो रहा है, वह ठीक हो रहा है। लेकिन मैं आपको कह देना चाहता हूँ कि इसका मजा आपको मिला जाएगा। जो जन-प्रतिनिधि बैठे हुए हैं, इधर के अथवा उधर के, उनको कहना चाहता हूँ, जिस तरफ प्रधानमंत्री जा रही हैं, देश को ले जा रही हैं, कोई भी विधानसभा या सांसद् का मुँह नहीं देखेगा। इस देश में कुछ और ही होगा, यह संकेत है सबके लिए, यह किसी पार्टी का सवाल नहीं है; इसलिए मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि जनतंत्र को बचाने का काम आपको और हमको करना है। यहाँ श्री चंद्रशेखर सिंह बैठे हुए हैं, लहटन चैधरी बैठे हुए हैं, उनको याद होगा कि जिस समय श्री रामचरित्र सिंह मंत्री थे, मंत्री रहते हुए भी जब यह देखते थे कि विधानसभा में नियम का हनन हो रहा है तो वे उठ खड़े होते थे और कहने लगते थे कि यह गलत हो रहा है। लेकिन अभी एक आदमी नहीं मिल रहा है, जो इसको गलत कहे। एक श्री कमलनाथ झा लोकसभा में हैं, जिन्होंने इस प्रकार के अन्याय का प्रतिकार किया है। इन्होंने कहा कि आंध्र प्रदेष में इस पार्टी के द्वारा अन्याय हुआ है, इसलिए मैं इस पार्टी का सदस्य नहीं रह सकता हूँ, लेकिन यहाँ विधानसभा में कोई इनकी पार्टी में ऐसा नहीं, जो अन्याय का प्रतिकार करें। इसलिए जो हो रहा है, यह अत्यंत ही खतरनामक है। आप देखें कि इस प्रांत में कितना गोली कांड हुए हैं, सबको मालूम है, भरहरिया में गोलीकांड हुआ है। भरहरिया में जो गोलीकांड हुआ, उसका क्या औचित्य था? लेकिन आप जवाब देंगे कि गोलीकांड सही है, हम कह रहे हैं कि गलत हुआ है, इसका फैसला कौन करेगा? इसका फैसला करनेवाला कोई निष्पक्ष आदमी होना चाहिए। मैंने कहा कि सदन की कमेटी आप बना दीजिए, लेकिन आप तैयार नहीं हैं। मैं भरहरिया गया था, जिस ग्राम रक्षा दल की आपने प्रशंसा की है, उन दोनों का कहना है कि ये लोग अपराधकर्मी को पकड़ने के लिए गए थे। पुलिस लोग अपराधकर्मी्र से मिले रहते हैं। उनसका कहना था कि हमें न पुलिस से लड़ाई है और न सरकार से, ये लोग तो अपराधकर्मियों को पकड़ने के लिए आए थे।ं इसके चलते बिना किसी उत्तेजना और कारण के दस लोग इकट्ठा रहे होंगे, उन पर 8 बजे सुबह में गोली चलाई गई। सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक 6 आदमी मारे गए, लेकिन गैर-सरकारी रिपोर्ट है कि 20 आदमी मारे गए हैं। आंध्र प्रदेश में जो कांड हुआ है, ‘स्टेट्समैन’ ने लिखा है कि 27 आदमी मारे गए हैं। आजादी के बाद एक घटना के चलते इतने लोग कभी नहीं मारे गए थे।

उपाध्यक्ष महोदय, आंध्र प्रदेश में मारे गए 27 आदमी। यही इनका राज है? अगर यह राज इनका इसी ढंग से चलेगा कि जो बेकसूर लोग हैं, उनको मारो, हरिजन, आदिवासी को अगर ये लोग तंग करेंगे-मारेंगे, तो मैं कहना चाहता हूँ कि यह रामराज नहीं है, रावण राज है, कृष्ण राज्य नहीं है-कंस राज्य है। उपाध्यक्ष महोदय, हमको और आपको अब चुपन बैठने से काम चलने वाला नहीं है।