(दिनांक: 9 मार्च, 1987)
विषय: शोक-संवेदना।
श्री कर्पूरी ठाकुर: अध्यक्ष महोदय, आपके द्वारा और सभा-नेता द्वारा स्वर्गीय श्री महामाया प्रसाद सिन्हा, श्रीमती शशांक मंजरी देवी, श्री रामेश्वरदत्त शर्मा, श्री काशीनाथ राय, श्री जगन्नाथ प्रसाद स्वतंत्र, श्री सिहेश्वर प्रसाद वर्मा, श्री ज्ञानी राम, श्री ख्वाजा शाहिद हुसैन, श्री विश्वेश्वर प्रताप नारायण सिंह, श्री इंद्रमणि सिंह, श्री भागवत प्रसाद यादव, श्री देवचंद्र मिश्र, श्री रामलखन पांडेय, श्री आर. एन. राव, श्रीमती अहमदी सत्तार, श्री मुसाय नायक तथा श्री इमत्याजुद्दीन अहमद के पास जो शोकोद्गार व्यक्त किया गया है, मैं उनके साथ सहमति व्यक्त करते हुए यह कहना चाहता हूँ कि श्री महामाया प्रसाद सिन्हा हमारे प्रदेश के ही नहीं, बल्कि समस्त देश के एक महान् स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन लोगों को उनके संपर्क में आने का सौभाग्य प्राप्त हुआ होगा, वे जानते हैं कि महामाया बाबू एक अत्यंत उदार व्यक्ति थे। वे भावनाओं से भरे हुए रहते थे। भावावेश मेें बहुत काम वे किया करते थे, जोखिम का काम, अच्छे काम और जनहित का काम।
जो भरा नहीं भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं,
वह हृदय नहीं है, पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।
यह बात महामाया बाबू के जीवन में कूट-कूटकर लागू होती है। वे सचमुच में सहानुभूति रखनेवाले, हमदर्दी रखनेवाले, सभी के प्रति उदारता का व्यवहार करनेवाले व्यक्ति थे। वे हिंदू-मुसलिम एकता के जबरदस्त पुजारी थे। मुझे मालूम है, जानकारी है कि तमाम लोगों का उनके प्रति सम्मान-भाव था, स्नेह-भाव था, उनके प्रति विश्वास था, वहीं अल्पसंख्यकों का भी बड़ा ही जबरदस्त विश्वास उनके प्रति रहा करता था। वे जोखिम उठाने में बहुत आगे रहते थे। इस सदन के सभी माननीय सदस्यों को जानकारी है कि वे चुनाव लड़ते थे तो साधारण व्यक्ति से नहीं, बल्कि उस व्यक्ति से, जिससे लड़ने के लिए आमतौर पर कोई साहस नहीं कर सकता था, वैसे व्यक्ति के विरुद्ध चुनाव लड़ते थे। यह भी उनके जीवन की बड़ी उपलब्धि थी कि जिस बड़े-से-बड़े व्यक्ति के खिलाफ उन्होंने चुनाव लड़ने का साहस दिखलाया, उनसे वे पराजित नहीं हुए, बल्कि उन लोगों को पराजित कर दिया। अध्यक्ष महोदय, मैंने ऐसा पाया कि मे अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाने में बहुत आगे रहते थे। वे जुल्मों और ज्यादतियों को बरदाश्त नहीं कर सकते थे। यही कारण था कि उनका कांग्रेस से संबंध-विच्छेद हो गया। जिस कांग्रेस में वे बहुत वर्षों तक रहे और जिस कांग्रेस के आह्वान पर उन्होंने आजादी की लड़ाई में बहुत जबरदस्त भाग लिया और 6 वर्षों तक उन्होंने जेल की यातनाएँ भोगीं, उसी कांग्रेस से उनको संबंध-विच्छेद करना पड़ा। जब उन्होंने देखा कि उनके सपनों को साकार करने का काम कांग्रेस के जरिए नहीं होगा तो उन्होंने संबंध-विच्छेद कर लिया। अध्यक्ष महोदय, आपने यहाँ तथ्य की दृष्टि से गलती की है। आपने लिखा है कि उन्होंने 1952 ई. में कांग्रेस से संबंध-विच्छेद कर लिया और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली। यह गलत बात है। उन्होंने कांग्रेस से संबंध-विच्छेद किया आचार्य कृपलानी के समय में। वे 1952 ई. का चुनाव लड़े किसान मजदूर प्रजा पार्टी के टिकट पर और उसी टिकट पर विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। 1952 ई. के अक्तूबर में किसान मजदूर प्रजा पार्टी का सोशलिस्ट पार्टी में विलयन हुआ और दोनों पार्टी के विलयन के बाद वे प्रजा सोशलिस्ट पार्टी में आए, चूँकि वे पहले किसान मजदूर प्रजा पार्टी में थे।ं फिर 1957 ई. में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर विधायक बने और इस विधानसभा में प्रजा सोषलिस्ट पार्टी पर ही 1962 ई. में भी आए। उसके बारे में जो लिखे हैं, वह सही है। तो मैं मानता हूँ कि महामाया बाबू के उठ जाने से हमारे बिहार का ही नहीं, बल्कि देश का एक महान् व्यक्ति उठ गया। मैं मानता हूँ कि हमारे बीच से एक उदारवादी और जनतंत्रवादी चला गया। हम मानते हैं कि सांप्रदायिक सद्भावनाओं को कायम रखनेवाले और सांप्रदायिक एकता के लिए रात-दिन चेष्टा करनेवाले एक बहुत बड़ा हिंदुस्तानी हमारे बीच आज नहीं है। हम मानते हैं कि दुःखियों के लिए, गरीबों के लिए, शोषितों के लिए सोचनेवाले और उनके लिए समय आने पर लड़नेवाला एक महान् योद्धा आज हमारे बीच में नहीं है। हम मानते हैं कि सबों के साथ भाईचारा का बरताव करनेवाला, प्रेम से स्नेह से अमल करनेवाला एक बहुत बड़ा आदमी हमारे बीच से चला गया। हम नहीं जानते हैं कि स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों के बीच से आज के भारत में कितने लोग उठते जा रहे हैं और यह कहना नहीं पड़ेगा कि अब बहुत कम संख्या बच रही है, उन लोगों की, उस जेनरेशन की, जिन लोगों ने अपने देश की आजादी के लिए अपना त्याग और बलिदान किया। हमारे महामाया बाबू उन्हीं लोगों में से एक थे। हम सभी लोग उनके जाने से बहुत दुःखी है। हम अपने दल की ओर से, विरोधी दलों की ओर से दिवंगत आत्मा के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनकी आत्मा की चिर-शांति के लिए भगवान् से प्रार्थना करते हैं। भगवान् से यह भी प्रार्थना करते हैं कि उनके शोक-संतप्प परिवार को असह्य दुःख को सहने की शक्ति दें।
अध्यक्ष महोदय, इस सदन के और विधान-परिषद् के जितने सदस्य दिवंगत हो गए हैं, उनके प्रति भी हम श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, उनकी आत्मा की शांति के लिए भगवान् से प्रार्थना करते हैं और साथ ही यह भी प्रार्थना करते हैं कि उनके शोक-संतप्त परिवारों को असह्य दुःख सहने की शक्ति दें।