(दिनांक: 30 मार्च, 1955)


विषय: माननीय मंत्री डाॅ. अनुग्रह नारायण सिंह द्वारा दिनांक 29.03.55 ई. को लाए गए प्रस्ताव ‘बिहार एप्रोएशन बिल, 1955’ पर परिचर्चा के क्रम में।

डाॅ. अनुग्रह नारायण सिंह: मैं प्रस्ताव करता हूँ कि- ‘‘बिहार एप्रोप्रिएशन बिल, 1955 स्वीकृत हो।’’

श्री कर्पूरी ठाकुर: सभापति महोदय, मुझे याद है कि बजट के वाद-विवाद का उत्तर देते हुए वित्त मंत्री ने कहा था कि समाजवादी बंधुओं की कल्पना-दृष्टि इतनी व्यापक है कि वे वास्तविक से और व्यावहारिकता से बहुत दूर चले जाते हैं। उन्होंने कहा था कि हमको व्यावहारिक होना चाहिए। हम तो एक-एक कदम सोच-समझकर उठाते हैं, व्यावहारिक दृष्टि से उठाते हैं, यही हमारे काम करने का फायदा और तरीका है।ं समाजवादी बंधुओं को आमंत्रित करते हुए उन्होंने कहा था कि समाजवादी बंधु जरा किताबी दुनिया से बाहर निकल आएँ और सरकार के लिए जो सिंचाई, ग्राम, पंचायत और दूसरे राष्ट्रीय निर्माण के कार्य हैं, उनमें सहयोग दें। उन्होंने बसावन बाबू की उक्ति देते हुए कहा था कि लेनिन ने कहा था कि ‘‘सोवियत प्लस बिजली, पंचायत और बिजली और सहकारिता समिति हमारा सोशलिज्म है और उसी तरह सिंचाई, ग्राम पंचायत और राष्ट्र निर्माण के दूसरे कार्य हमारे लिए समाजवाद है।’’ मैं माननीय वित्त मंत्री से कहना चाहता हूँ कि हम लोगों की कल्पना दृष्टि व्यापक है, विजन वाइड है। आपके शब्दों में तो हम इसे गलत नहीं मानते हैं, हम जानते हैं कि 1917 ई. में जब महात्मा गांधी ने अहिंसा शांतिमय सत्याग्रह और चरखे की बात की थी, तो लोग उनको पागल कहते थे, लोग कहते थे कि वे अव्यावहारिक आदमी हैं। लेकिन हमारे आदरणीय वित्त मंत्री ने उन्हीं का साथ दिया था, जिसने 1917 ई. में हिंसा के विरुद्ध अहिंसा को, मशीन के विरुद्ध चरखे की तथा हिंसात्मक हथियारों के विरुद्ध शांतिमय अहिंसा की कल्पना की थी।


(इस समय अध्यक्ष ने पुनः आसन ग्रहण किया)


भूदान आंदोलन तथा संपत्ति दान की बात करते हैं, हमारे जैसे साधारण लोगों के लिए विजनरी की कल्पना मालूम पड़ती है। लेकिन हमारे वित्त मंत्री महोदय उनका साथ देते थे। वह यह नहीं मानते हैं कि विनोबाजी विजनरी हैं, उनकी जो योजना तथा आंदोलन है, वे अव्यावहारिक हैं और वे सफलता प्राप्त नहीं करनेवाले हैं। बल्कि हमारे वित्त मंत्री और उनके अलगल-बगल में बैठनेवाले जो संत विनोबाजी का साथ देते हैं और महात्मा गांधीजी का साथ दिया करते थे, वे इसको नहीं मानते हैं। अध्यक्ष महोदय, हमारी ऐसी मान्यता है कि समाजवाद कोई काल्पनिक वस्तु नहीं है, समाजवाद कोई किताबी दुनिया की चीज नहीं हैे। रंगून के एशियन समाजवाद काँफ्रेंस हो रहा था, तो श्री जयप्रकाश नारायण ने कहा था कि समाजवाद नब्बे प्रतिशत व्यावहारिक है और दस प्रतिशत सिद्धांत (थ्योरी) है। हम मानते हैं कि समाजवाद का एक-एक सिद्धांत व्यवहार में उतारने के लिए बनाया गया है, अमल में लाने के लिए बनाया गया है। वह किताबी दुनिया के सफल बनाने के लिए सिद्धांत की सार्थकता बढ़ोने के लिए नहीं बनाई गई है। आखिर हम कौन सी बात करते हैं, जिसको वे अव्यावहारिक मानते हैं? अगर हम कहते हैं कि आप सिंचाई की ज्यादा-से-ज्यादा व्यवस्था करें, आप ज्यादा-से-ज्यादा खेत को सींचने का प्रबंध करें, तो क्या हम अव्यावहारिक बात करते हैं। जब हम कहते हैं इरीगेशन फंड की जो सिफारिश प्लानिंग कमीशन ने की थी कि डेवलपमेंट फंड ननलैप्सेबुल फंड होगा, जिसमें ननलैप्सेबुल फंड से सेंट्रल गवर्नमेंट से लोन मिलेगा, वह डाल दिया जाएगा, जो बेटरमेंट लेवी टैक्स आएगा, वह डाल दिया जाएगा और जब एनहांसड इरीगेशन रेट से पैसे वसूल करते हैं, वे डाल दिए जाएँगे, स्टेट गवर्नमेंट के एक्सचेकर का कोई निश्चित रकम लेकर आप फंड में डाल देंगे, जिनसे कि सिंचाई का काम हो सकेगा और हम ज्यादा-से-ज्यादा जमीन पटा सकेंगे और ज्यादा अन्न का फायदा कर सकेंगे तो क्या हम अव्यावहारिक बात करते हैं? जब हम कहते हैं कि सरकार की आरे से रूरल क्रेडिट की व्यवस्था अधिक-से-अधिक होनी चाहिए, तो क्या हम अव्यावहारिक बात करते हैं? जब हम सरकार से माँग करते हैं कि दूसरे राष्ट्र निर्माण के जो काम हो रहे हैं, उनकी प्रगति, उनकी रफ्तार तेज होनी चाहिए, तो क्या अव्यावहारिक बात की माँग करते हैं? आज सरकार इस बात पर गौरव करती है ं कि जहाँ 1937-39 ई. में हमारा बजट 4 करोड़ का था, वहाँ आज 75 करोड़ की आमदनी हो रही है और हम बहुत आगे बढ़ रहे हैं, हम कितना आगे बढ़ गए हैं, हम किस तरफ जा रहे हैं, आप लोग देखिए, ऐसा सरकार का कहना है। अध्यक्ष महोदय, हम मानते हैं कि 75 करोड़ का बजट है, आज बहुत सारा रुपया विकास के कार्यों पर खर्च किया जा रहा है और उसके लिए हम और आप जरूर गौरव करते हैं और खुशी मानते हैं, लेकिन हम ऐसा नहीं मानते हैं कि जिस अनुपात में आप राष्ट्र निर्माण पर व्यय कर रहे हैं, आपका काम उतना ही आसानी से चल रहा है, अच्छी तरह से चल रहा है। अध्यक्ष महोदय, टैक्सेशन इन्क्वायरी कमेटी ने जो अपनी रिपोर्ट अभी-अभी उपस्थित की है, उसमें लिखा है कि-

"The public expenditure in India has been moving increasingly towards beneficient expenditure, but it cannot be said with equal certainty that it is also moving towards economy and efficiency."

पब्लिक एक्सपेंडीचर हमारा बढ़ता जा रहा है, हम ज्यादा-से-ज्यादा रुपया आज विकास के कार्यों पर खर्च कर रहे हैं, यह ठीक बात हैे; लेकिन हम एफीशिएंसी और इकोनाॅमी की ओर बढ़ रहे हों, ऐसा हम नहीं मानते हैं और यह हमारा ही नहीं, टैक्सेशन इन्क्वायरी कमेटी का भी कहना है कि हम एफाशिएंसी और इकोनाॅमी की तरफ कुछ नहीं बढ़ रहे हैं। अध्यक्ष महोदय, कभी-कभी आपने भी अनुभव किया होगा, एक-एक सदस्य को इसका अनुभव है कि 31 मार्च निकट आता है, जो रुपया डिपार्टमेंट को एलाॅट किया गया था, किसी आइटम पर खर्च करने के लिए, वह खर्च नहीं होने से लैप्स कर जाएगा और वह रुपया जल्द-से-जल्द खर्च होना शुरू हो जाता है। अभी-अभी हमने जाकर अपने जिले में देखा, अपने सबडिवीजन में और अपने क्षेत्र में देखा कि एक-दो महीने के अंदर अनेके सड़कों की स्कीम मंजूर कर ली गई है, ताकि एलाॅटमेंट का रुपया खर्च हो जाए। हमने तमाशा देखा, मिट्टी डाली गई है, ज्यों-त्यों डाल दी गई है, जैसे बिना पैसे का काम हुआ। ठेकेदारों द्वारा काम कराया जाता है और वे भी इतनी तेजी से कार्य खत्म कर देते हैं कि पता ही नहीं चलता कि कैसे काम खत्म हो गया! वे लोग ज्यादा-से-ज्यादा पैसा अपने पाॅकेट में रखते हैं और कम-से-कम करने की कोशिश करते हैं। हमारा रुपया बरबाद होता है। जिन रुपयों से समय रहते अच्छे ढंग से काम किया जा सकता था, योजनापूर्ण काम किया जा सकता था, उन्हें व्यर्थ में बरबाद किया जाता है। इस तरह हम देखते हैं कि आप इकोनाॅमी की तरफ नहीं बढ़ रहे हैं।

अध्यक्ष महोदय, एफीशिएंसी की बात आप करते हैं। मैं दो-तीन उदाहरण आपके सामने परेश करना चाहता हूँ, जिनसे पता चलेगा कि एफीशिएंसी में आप कितना आगे बढ़े हैं। श्री झरीलाल साह को पाॅलिटिकल डिपार्टमेंट से 45 सौ रुपए सैंक्शन हुआ। रुपए की मंजूरी हुई 1949 ई. के अप्रैल माह में, लेकिन आज 1955 ई. है और श्री झरीलाल साह नवजादीपुर, पोस्ट दलसिंहसराय, जिला समस्तीपुर को 45 सौ रुपए क्या, 45 पैसा भी अभी तक नहीं मिला। हमारे माननीय मंत्री ने उस दिन कहा था कि अब सोशलिस्ट वाइडर विजन की दृष्टि से आलोचना करते हैं। मैं नहीं कसमझता हूँ कि वे ट्रीब्यूट पेश कर रहे थे, या क्या मतलब था? मैं व्यावहारिक दृष्टि से यह कहता हूँ कि आपको इसकी तरफ सोंच-समझकर कदम उठाना पड़ेगा, वरना आप समाजवाद की तरफ नहीं जा सकते हैं। मैं आपके सामने एक उदाहरण देता हूँ। लोचन नामक एक चमार किसान खेतिहर मजूदर है और दो बीघा जमीन जोतने वाला है, वारिसनगर थाना में उसका मालिक चँूकि बलवान और ताकतवार आदमी है, वह हर साल इस खेत की फसल काट लेता है। लेकिन इसको देखनेवाला कोई नहीं है। हम लोग यदि जाए तो क्या करें? लाठी से अगर रोकें तो आप कहेंगे कि सोशलिस्ट लोग हल्ला करते हैं, झगड़ा करते हैं, बलवा करते हैं। क्या सरकार के लिए यह लज्जा की बात नहीं है कि लोचन जैसे एक मामूली किसान की फसल जमींदार काट ले और कुछ नहीं हो? पचास वर्षों सें जो किसान जमीन जोतता है, उसकी फसल इस तरह लूट ली जाए, क्या यह सरकार के लिए लज्जा की बात नहीं है? अफसोस है कि इन बातों की सुनवाई सरकार के घर में नहीं होती।

अध्यक्ष महोदय, कोशी योजना जो चल रही है’’’

अध्यक्ष: आप संक्षेप करें, बहुत कह चुके, नहीं तो घंटों लग जाएँगे।

श्री कर्पूरी ठाकुर: अध्यक्ष महोदय, मैं कोशी योजना की बात कहे बगैर नहीं रह सकता। कोशी में बाँध का बनना, इस सदन के सभी सदस्य चाहते थे, बाहर के लोग भी चाहते थे, हम लोग आंदोलन भी करते थे कि काम शुरू किया जाए काम शुरू हुआ, लेकिन आज वहाँ क्या हो रहा है? योजना मंत्री श्री गुलजारी लाल नंदा ने कहा है कि ‘भारत सेवक समाज’ पर जो आरोप लगाया गया है, वह निराधार है। लेकिन मैं निवेदन करना चाहता हूँ ँ और आपकी इज्जत के लिए चाहता हूँ और उनकी प्रतिष्ठा के लिए निवेदन करना चाहता हूँ, जो ‘भारत सेवक समाज’ के पदाधिकारी बनकर काम कर रहे हैं कि क्या वहाँ ऐसी बात नहीं है कि ‘भारत सेवक समाज’ के पदाधिकारी के सगे भाई ठेकेदार हैं, उनके रिश्तेदार ठेकेदार हैं, उनके नौकर ठेकेदार हैं? टेªड को-आॅपरेटिव के नाम पर जो फिक्टिशस कंपनी है, वह ठेकेदार है? आप पता लगाकर देखें। आखिर हम लोग भी कुछ जानकारी की ही बात कहते हैं। उस इलाके के लोगों को भी जानकारी है। कोशी योजना में जो ‘भारत सेवक समाज’ के पदाधिकारी अपने भाई वगैरह के नाम पर ठेकेदारी कर रहे हैं और कहा जाता है कि वे बाँध बनाने में मदद कर रहे हैं। कोशी बाँध बन जाने से लोगों की भलाई तो बाद में होगी, परंतु आज इन लोगों की भलाई हो रही है और वे फायदा उठा रहे हैं। सरकार इसका पता लगाकर देखे कि ये चीजें हो रही हैं या नहीं? आप समझते हैं कि मैं शिकायत की बातें कर रहा हूँ। लेकिन मैं शिकायत नहीं करता। गवर्नर साहब के अभिभाषण पर वाद-विवाद हुआ, मैंने जबान नहीं खोली, बजट पर बहस हुई, मैं बोला। परंतु आज जो वहाँ की हालत हो रही है, उसकी जानकारी करा देना मैं जरूरी समझता हूँ। आप कहते हैं कि जनता आप पर विश्वास करती है, आपके काम में जनता का सहयोग मिल रहा है, लेकिन हालत तो दूसरी है। लोग गुलछर्रें उड़ा रहे हैं और सरकार उन्हें नहीं रोकती।

अध्यक्ष महोदय, अब श्रमदान की बात है। आप चाहते हैं कि ज्यादा काम हो और अच्छा हो, हम भी यही चाहते हैं। हम लोगों की कल्पना थी कि जल्द यह काम बरसात के पूर्व समाप्त हो जाएगा। लेकिन आप देंखें कि डाॅ. राजेंद्र प्रसादजी को कहना पड़ा कि जो टारगेट था, उससे हम बहुत पीछे हैं। राजेद्र बाबू के टूर में ‘इंडियन नेशनल’ के स्पेशल रिपोर्टर भी साथ में घूम रहे थे। उन्होंने लिखा है कि-

"When the President visited the place on the 23rd March along with Bihar leaders, there was hardly anything to shout about except the enthusiasm with which 1, 600 N.C.C. Cadets were working under the guidance of Four Officers drawn from the regular Army. Earth Work there had not reached even half of the total height which varies from 16 to 18ft. with the base measuring 118 ft. The general impression was that of luke-warmness on the part of the public leaders and failure to mobilise adequate support and co-operation."

तो अध्यक्ष महोदय, आज को-आॅपरेशन नहीं मिल रहा है। लोगों में उत्साह नहीं है, उमंग नहीं है। एन.सी.सी के 1,600 लड़कों के सिवाय वहाँ कोई नहीं था, जो बाँध, बाँध रहे हों। इसके अलावे आप देंखें कि श्री गुलजारी लाल नंदा ने करप्शन के संबंध में क्या कहा? रिपोर्ट यह है कि-

"Coming to the contractors Mr. Nanda regretted that corruption among engineers at lower levels, had not been eliminated completely and naturally in the absence of contractors, "there was not much attraction for them resulting in their being dissatisfied."

अध्यक्ष महोदय, इंजीनियर के लोंअर रैंक में घूसखोरी चले, ठेकेदार ठीक से काम नहीं करें, यह ऐसी बातें हैं, जिनके तरफ आपका ध्यान बहुत पहले जाना चाहिए था।ं बरसात के पहले आपको काम समाप्त करना है, तो आप यह नहीं कह सकते हैं कि श्रमदान मिलेगा तो पूरा करेंगे और नहीं तो नहीं कर सकेंगे। आपाको सोचना पड़ेगा कि ठेकेदारों के द्वारा हो या ग्राम पंचायत के द्वारा हो, लेबर के द्वारा हो, आपको बरसात के पहले वेस्टर्न और ईस्टर्न दोनों भाग में बाँध तैयार कर देना है।ं अगर यह नहीं होता है, तो लाखों आदमी बाढ़ के चपेट में फिर पड़ जाएँगे। अध्यक्ष महोदय, और भी विषयों की चर्चा करनी थी, लेकिन अब समय नहीं है, इसलिए मैं सरकार से इतना ही कहूँगा कि सरकार योजनापूर्वक काम करना चाहती है, तो जल्द-से-जल्द कदम उठाए। लेकिन अगर सरकार टटोलना चाहती है, तो इससे सोशलिस्टिक पैटर्न बनने वाला नहीं हैें आप जो कोएक्जिसटेंस की बात कहते हैं तो यह आपके घर में नहीं चल सकता, भेड़िए और भेड़, बाघ और बकरी का कोएक्जिसटेंस यहाँ नहीं चल सकता है।ं सोशलिस्टिक पैटर्न आप तब कायम कर सकते हैं, जब भेड़िए के राक्षस को आप जल्द-से-जल्द निकालें। विषमता मिटाकर समानता की समाज में स्थापना करें। अगर सरकार की नीति यही रही और यही कार्यक्रम रहा, तो हमारा विरोध और भी तीव्र गति से चलेगा। इन्हीं शब्दों के साथ मैं बैठ जाता हूँ।