(दिनांक: 27 जुलाई, 1987)
विषय: श्री लोकेशनाथ झा (मंत्री) द्वारा पटना विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 1987 को प्रवर समिति को सौपे जाने संबंधी प्रस्ताव परर चर्चा्र के क्रम में।
श्री कर्पूरी ठाकुर: अध्यक्ष महोदय, विश्व विख्यात राजनीति शास्त्र के विद्वान् प्रोफेसर हेरोल जी. लाॅस्की ने कहा है कि पाॅलिटिकल पावर का, राजनीतिक शक्ति का, इकोनाॅमिक पावर का, आर्थिक शक्ति का, एजुकेशन पावर का, शैक्षणिक शक्ति का उत्तरोत्तर लोकतांत्रिककरण होना चाहिए, अगर लोकतांत्रिक-करण रुक जाएगा तो फिर लोकतंत्र की गति आगे की ओर नहीं जाएगी, बल्कि पीछे की ओर जाएगी। इसलिए उन्होंने यह लिखा है कि लोकतंत्र का उत्तरोत्तर विस्तार होते रहना चाहिए, लेकिन हम देख रहे हैं अध्यक्ष महोदय, हमारे देश में और हमारे प्रदेश में भी लोकतंत्र का विस्तार करने के बजाय, लोकतंत्र का ह्रास हो रहा है, इसको संकुचित किया जा रहा है।
(इस अवसर पर माननीय सदस्य, मो. हुसैन आजाद कुछ कहने के लिए खड़े हुए)
अध्यक्ष: माननीय सदस्य, आप अभी बैठ जाएँ, कृपया अपना स्थान ग्रहण करें।
श्री कर्पूरी ठाकुर: अभी जो विधेयक लाया गया है, पटना विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 1987 यह विधेयक लोकतंत्र का विस्तार करने के बजाय, लोकतंत्र को संकुचित करने के लिए लाया गया है। जिस व्यक्ति को संसार के लोग मानते हैं, उन्होंने जो कुछ भी लिखा है लोकतंत्र के बारे में, उसको आज खत्म किया जा रहा है, इस विधेयक के द्वारा। हमारे यहाँ विश्वविद्यालय को यह माना जाता है कि विश्वविद्यालय आदर्श है, यूनिवर्सिटी यूनिवर्सलाइजेशन सिखलाता है, यह हमारे यहाँ की मान्यता है और इसमें डेमोक्रेसी को अधिक-से-अधिक प्रश्रय मिलना चाहिए। आज इसकी यही मान्यता है, संसार में जितने विश्वविद्यालय हैं, वहाँ की यही मान्यता है। वहाँ चुनाव की परिपाटी, प्रणाली है; लेकिन आज इस प्रणाली को समाप्त किया जा रहा है।
अध्यक्ष महोदय, इधर हाल के वर्षों में तो विद्यालयों को भी अपना प्रतिनिधि भेजने का अधिकार था, कर्मचारियों को अपना प्रतिनिधि चुनकर वहाँ भेजने का अधिकार था। मगर आज ठीक इसका उल्टा किया जा रहा है, डेमोक्रेसी का विस्तार नहीं किया जा रहा है, इसको संकुचित किया जा रहा है।
अध्यक्ष महोदय, आप भी शिक्षक रहे हैं, प्रोफेसर हैं, बिहार के शिक्षा जगत् में जितने टीचर्स हैं, सबों ने एक स्वर से इस विधेयक का विरोध किया है और कहा है कि इस विधेयक का विरोध करने के लिए हम लोग सड़क तक जाने के लिए बाध्य होंगे। ऐसी स्थिति में आज तमाम शिक्षक इस विधेयक का विरोध कर रहे हैं और कहा है कि इस तरह का विधेयक सरकार न लाए, जो शिक्षकों के अधिकारों को संकुचित करता हो, जो विद्यार्थियों के अधिकारों को मारता हो, उनकी हत्या करता हो, जनतंत्र की हत्या करता हो। लेकिन सरकार आज इस तरह का विधेयक सदन में लाकर, इसे पारित कराने का प्रयास कर रही है। ऐसा कर सरकार लोकतंत्र की हत्या का प्रयास कर रही है। इसलिए अध्यक्ष महोदय, मैं चाहता हूँ कि जो विधेयक लाया गया है, उसे सरकार वापस ले ले, ताकि लोकतंत्र की रक्षा हो सके और लोकतंत्र की हत्या न हो सके। इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपना स्थान ग्रहण करता हूँ।