(दिनांक: 16 सितंबर, 1955)


विषय: श्री कमला राय द्वारा लाए गए आम्र्स ऐक्ट को रद्द करने से संबंधित प्रस्ताव पर परिचर्चा के क्रम में।

Shri Kamla Rai: Sir, I beg to move:-
"That this Assembly recommends to the State Government to move the Government of India to repeal the Arms Act so that people may possess required arms to defend themselves and their property in view of the extensive armed dacoities and murders in the State."

श्री कर्पूरी ठाकुर: मैंने बहस के वाद-विवाद को और जो माननीय राजस्व मंत्रीजी के उत्तर हुए, उसको ध्यान से सुना। उन्होंने जिन सरकारी आदेशों का उल्लेख किया है, उसको भी मैं बहुत गौर से सुनता रहा। मेरी मान्यता है कि अगर सरकारी आदेश ठीक होते और आदेशों पर ठीक से अमल होता तो भी जो प्रस्ताव है, उसकी आवश्यकता के मुताबिक कार्य करने से इनकार नहीं किया जा सकता है। जहाँ तक हिदायत का सवाल है, मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ कह सकता हूँ कि सरकार की किसी भी हिदायत को कार्यान्वित नहीं किया जा सकता है। दरखास्त के बारे में हिदायत है कि दो महीने के अंदर दरखास्त को डिसपोज आॅफ कर दिया जाय। इतना होने पर भी छह-छह महीना, एक-एक साल तक सरकारी दफ्तर में चक्कर खाने पड़ते हैं और काफी पैसे खर्च करने पड़ते हैं। फिर भी उनको लाइसेंस नहीं मिल पाता। कहा गया है कि प्रत्येक ग्राम पंचायत को लाइसेंस देने का निर्देश दे दिया गया है। मैं पूछना चाहता हूँ कि हमारे यहाँ कम्युनिटी प्रोजेक्ट चल रहा है, सकरा, पूसा और वारिसनगर कहीं भी ग्राम पंचायत में लाइसेंस नहीं दिया गया है। शायद दो-चार ग्राम पंचायत में, राज्य के 72,000 गाँवों में जहाँ 36,000 में ग्राम पंचायत की स्थापना हुई है, मिल गई हो, लेकिन और किसी भी ग्राम पंचायत में लाइसेंस नहीं दिया गया है। तीसरा आदेश का उल्लेख किया गया है कि प्रोपर्टी क्वालिफिकेशन का कोई भी ख्याल नहीं रखा जाएगा। अगर आदमी विश्वासपात्र हो तो बंदूक का लाइसेंस दे दिया जाएगा। अभी-अभी करीब दस दिन पहले एक आदमी के बारे में मैंने डिस्ट्रिक्ट मजिस्टेªट से पूछा कि लाइसेंस मिला है कि नहीं? बंगरा के मक्खन महतो (मुरादपुर थाना) में दरखास्त एक साल पहले दी। उनकी दरखास्त को यह कहकर रिजेक्ट कर दिया कि नेसेसरी प्रोपर्टी क्वालिफिकेशन नहीं है। वह सज्जन आदमी है। इसलिए मैं कहता हूँ कि आप के आदेश का कोइ्र्र कदर नहीं होता है, और हो भी नहीं सकता है। थोड़ी देर के लिए मान लीजिए कि आपके आदेश सोलहों आने ठीक हैं, तो मैं पूछता हूँ कि क्या जो प्रस्ताव श्री कमला राय ने रखा है, उसकी कोई अहमियत नहीं है, उनको पास करने की जरूरत नहीं है? मैं मानता हूँ कि वह प्रस्ताव सोलहों आना अपने स्थान पर सही है और उसके मुताबिक काम करने की जरूरत हैे। इस प्रस्ताव को सैद्धांतिक और सामाजिक विचार से भी स्वीकार होना चाहिए। देश अब स्वंतंत्र है, जनतंत्र चल रहा है। हम लोगों का देश ऐसा है, जहाँ तानाशाही नहीं है। इंग्लैंड, फ्रांस या स्कैंडिमेविया कोई भी देश नहीं है, जहाँ आम्र्स ऐक्ट है, जहाँ तानाशाही है, जहाँ कम्युनिस्ट पैटर्न है, वहाँ भले चलता हो, लेकिन जहाँ जनतंत्र हो, मैं पूछता हूँ क्या आम्र्स ऐक्ट लागू किया जा सकता है?

आम्र्स ऐक्ट हमारे देश के लिए एक कलंक है। उपाध्यक्ष महोदय, यदि आप नहीं भूलते हों, तो आपको याद है कि आपने वर्षों से कांग्रेस की सेवा की है।ं हमारे राजस्व मंत्री वर्षों सें क्या सीखते आए हैं? क्या प्रस्ताव पास करते आए हैं? क्या यही कि अपने देश में आम्र्स ऐक्ट रहना चाहिए? नहीं। महात्मा गांधी ने कहा है कि आम्र्स एैेक्ट हमारे लिए कलंक है, यह हमारे देश को नपुंसक और शस्त्रहीन बना देगा। अगर यह बात सही है, तो यह साफ-साफ साबित हो जाता है कि हमको इस ऐक्ट की जरूरत नहीं है।ं अगर हमारे ऊपर भरोसा नहीं है, तो जनतंत्र को खत्म कर दीजिए। आपको मालूम होगा कि कुछ लोगों ने यह कहा था कि इस देश में बालिग मताधिकार नहीं दिया जाए, क्योंकि हमारे देश के लोग पढ़े-लिखे नहीं हैं। लेकिन देश मे ऐसे लोगों की संख्या बहुत बड़ी थी, जिन्होंने कहा कि ऐसा करना जनतंत्र को इनकार करना होगा और हम लोगों ने जो कुछ भी पिछले वर्षो में प्रस्ताव पास किया है, उसको छोड़ना होगा। इसी तरह से इस ऐक्ट का रहना जनतंत्र के नैतिक सिद्धांत के खिलाफ होगा। हम जानते हैं कि कुछ लोग समाज के विरोधी हैं, मगर फिर भी जनता पर विश्वास तो करना ही होगा, जनता की समझदारी पर विश्वास करना होगा। अगर ऐसी बात है तो इस ऐक्ट को रिपील करना होगा। हम अहिंसा के सिद्धांत को मानते हैं, अहिंसात्मक समाज चाहते हैं, तो क्या वैसा समाज इस ऐक्ट के रहने से होगा? हम कहते हैं कि वैसा तभी होगा, जब यह ऐक्ट रिपील होगा। अहिंसात्मक समाज की जो परिस्थिति है, उसको आम्र्स ऐक्ट नहीं ला सकते हैं। समाज में जो संघर्ष है, भूमि और धन का जो असमान वितरण है, उसको हटाना होगा। अहिंसा का नाम लेकर इस ऐक्ट को नहीं रखना चाहिए और इसलिए महात्मा गांधी ने बारंबार कहा है कि अनैतिक उपायों के द्वारा अहिंसात्मक समाज की स्थापना हम नहीं कर सकते हंै। ऐसा तो हम वैधानिक तरीकों से ही कर सकते हैं। यह आम्र्स ऐक्ट तो एक अनैतिक कदम हंै। व्यावहारिक दृष्टि से हम देखते हैं, तो हमको यही मालूम होता है कि अपने देश में इस ऐक्ट की जरूरत नहीं है। कुछ लोगों का कहना है कि इस ऐक्ट के रिपील होने से अमीर लोगों को लाइसेंस की छूट मिल जाएगी। वे लाइसेंस लेकर गरीबों को सतावेंगे। मुझे दुःख है कि श्री चेतू राम और श्री शक्ति कुमार ने कहा है कि इस ऐक्ट को रिपील करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इससे अमीर लोग गरीबों पर अत्याचार करेंगे। मैं तो आज दावे के साथ कहता हूँ कि आज भी उनके पास दो-दो बंदूक हैं और रिवाल्वर भी हैं। अगर श्री चेतू राम और श्री शक्ति कुमार यह कहते हैं कि गरीबों को अमीरों से बचाना है तो अमीरों को लाइसेंस नहीं मिलना चाहिए, तो यह बात मेरी समझ में नहीं आती।

मैं जानता हूँ कि पूर्णिया जिले में बँटाईदारी के सिलसिले में एक अमीर ने गरीबों पर बंदूक चलाई है। मैं जानता हूँ कि बीहपुर और रामपुर में 15 दिन पहले अमीरों ने छह व्यक्तियों का खूना बंदूक से किया है। इसलिए हमारे दोस्तों का यह कहना कि इससे अमीरों को छूट मिल जाएगी, हास्यास्पद है। यदि एह ऐक्ट रिपील हो जाए, तो गरीब लोग को-आॅपरेटिव बना सकते हैं और आज ग्राम पंचायतों की स्थापना भी हो रही है। इसलिए कई आदमी मिलकर एक बंदूक ले सकते हैं। लेबर यूनियन के द्वारा लोग रुपया इकट्ठा करके बंदूक ले सकते हैं और उनमें से एक जवाबदेह आदमी बंदूक खरीद सकता है। जिससे सभी लोगों को फायदा होगा। अगर लोगों की जान और माल की रक्षा करनी है, तो व्यावहारिक दृष्टि से यह जरूरी हो जाता है कि यह ऐक्ट जल्द रिपील कर दिया जाए। यह तो स्लेवरी की लिगेसी है, क्या हम इस लिगेसी को चालू रखना चाहते हैं? वर्षों पहले हमारे राजस्व मंत्री कहते थे कि इस ऐक्ट को रिपील किया जाए; तो आज हम नहीं समझते हैं कि वे क्यों यह नहीं करना चाहते हैं कि इस ऐक्ट को रिपील किया जाए? इस प्रस्ताव पर दो राय नहीं हो सकती है। जिन लोगों ने इस बात को सिद्धांत की दृष्टि से माना, अपनी संस्था की तरफ से माना, तो आज सिद्धांत पर अमल करने की जरूरत है। अगर इस प्रस्ताव का विरोध सरकारी तरफ से होता है, तो गलत काम होता है। आज इस सरकार को चाहिए कि वह केंद्रीय सरकार को रिकाॅमेंड करें कि आम्र्स ऐक्ट को रिपील कर दिया जाए।

जब 1924-25 ई. में और 1926-27 ई. में मदन मोहन मालवीय, मोती लाल नेहरू, विट्ठल भाई पटेल पार्लियामेंट के रंगमंच से यह कहते थे कि आम्र्स ऐक्ट नहीं रहना चाहिए, तो आज इसकी क्या जरूरत है? इसलिए, अमीर और गरीब का सवाल न उठाकर, पाॅलिटिकल सवाल न उठाकरव्यावहारिक दृष्टि से इस ऐक्ट को रिपील करने की जरूरत है और इस प्रस्ताव को पास किया जाए। इन्हीं शब्दों के साथ में उस प्रस्ताव का समर्थन करता हूँ।