(दिनांक: 20 सिंतंबर, 1955)
विषय: लघु सिंचाई योजना पर जनता के रुपए की बरबादी’ के संबंध में श्री पाॅल दयाल द्वारा लाए गए कटौती प्रस्ताव के समर्थन पर कर्पूरी ठाकुर का भाषण।
Shri Paul Dayal : Sir, I beg to move;
"That the provision of Rs. 20,00,00000 for "Irrigation wroks-Project under the private Irrigation works Act" be reduced by Rs. 1.
श्री कर्पूरी ठाकुर: उपाध्यक्ष महोदय, श्री पाॅल दयाल को जो कट मोशन है, उसका मैं समर्थन करता हूँ। ऐसा करते हुए मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि मैं लघु सिंचाई योजना का विरोध नहीं करता हूँ, बल्कि इसके नाम पर जो रुपयों की बरबादी हो रही है, उसका विरोध कर रहा हूँ। हमारे सूबे में भिन्न-भिन्न प्रकार की जमीन है। उत्तर बिहार की बनावट एक तरह की है, तो दक्षिण बिहार की बनावट दूसरी तरह की, और लघु सिंचाई योजना की स्कीम अभी भी करने की जरूरत है और आगे भी इसकी जरूरत होगी। उपाध्यक्ष महोदय, आपको मालूम होगा कि केंन्द्रीय सरकार की ओर से ‘अधिक अन्न उपजाओं जाँच कमेटी’ बैठी। उसकी सिफारिश है कि अगर अन्न के उत्पादन को तेजी से बढ़ाना है और अन्न के अभाव को दूर करना है, तो बड़ी-बड़ी योजनाओं के साथ-ही-साथ लघु सिंचाई की योजनाओं को भी बड़े पैमाने पर करने की आवश्यकता होगी। ऐसी हालत में लघु सिंचाई योजनाओं का विरोध नहीं हो सकता है। इसकी उपयोगिता है, इससे लाभ हैं, जिसको सब लोग अच्छी तरह से महसूस करते हैं और मैं इसका समर्थन पूरी तरह से करता हूँ और चाहता हूँ कि नए-नए पोखरे, आहर, पइन बनाए जाएँ और पुराने पोखरे, आहर और पइन की मरम्मत हो।
विषय: बिहार टेनेंसी (अमेंडमेंट) बिल, 1954 पर परिचर्चा के क्र म में श्री रमेश झा के संशोधन प्रस्ताव पर सहमति जताने के क्रम में।
Shri Ramesh Jha : Sir, I beg to move;
That to sub. Section (1) of the porposed section 48E of the Act, the following provision be added, namely-
"Provided that not withstanding anything contained in any order law for the time being in force, all applications or proceedings pending before the collector or in any other court of law regarding the restoration of prossession to the under-raiyat on the date of commencement of this Act shall be disposed of under the provisions of the said Act as amended by Act."
श्री कर्पूरी ठाकुर:अध्यक्ष महोदय, मैं श्री रमेश झा के संशोधन प्रस्ताव का समर्थन करता हूँ। अभी माननीय राजस्व मंत्री ने श्री रमेश झा के उत्तर में कहा कि वे 1953 ई. के बदले में 1947 ई. को नहीं मानने को तैयार हैं। उन्होंने कहा कि 1947 ई. से लेकर 1953 ई. तक बेदखली बड़े पैमाने पर नहीं हुई है। यह सुनकर मुझे बड़ा आश्चर्य ुआ। वे जानते हैं कि 1946 ई. से लगातार इस प्रांत में बेदखली हो रही है।
बहुत किसानों का आंदोलन हुआ है और जहाँ कहीं भी आंदोलन हुआ है, बेदखली के प्रशन को लेकर, चाहे बकाशत जमीन का हो, रैयतों की जमीन का हो, चाहे दर रैयतों की जमीन का हो, यह बेदखली सारे प्रांत में 1946 ई. से होती रही है। बहुत जगहों में मार-पीट और खूनखराबी भी हुई है। 1953 ई. में जब बिहार मेटेनेंस आॅफ पब्लिक आर्डर बिल पर बहस चल रही थी, तो मैंने राजस्व मंत्री से बताया था कि बेदखली को लेकर इस राज्य में बावन खून हुआ है। जितना खून हुआ था, उसकी एक तालिका महात्मा गांधी के पास श्री रामानंद मिश्र ने भेजी थी और एक तालिका सरकार के पास भी भेजी गई थी। मेरे कहने का मतलब यह है कि इस राज्य में बेदखली बड़े पैमाने पर हुइ्र्र है। मैं मानता हूँ कि जब से यह नारा लगने लगा कि जमींदारी प्रथा खत्म होनी चाहिए और जल्द-से-जल्द खत्म होनी चाहिए, उसी समय श्री पुरुषोत्तम चैहान का जमींदारी प्रथा नष्ट होने के संबंध में एक प्रस्ताव पास हुआ। पहले-पहले 1947 ई. मंे यह बिल पेश हुआ कि जमींदारी प्रथा खत्म की जाए, तब से बड़े पैमाने पर बेदखली शुरू हुई। अगर आप 1953 ई. के बदले 1947 ई. रखते हैं, तो कोई नुकसान नहीं होता है। लेकिन बँटाईदारों को बहुत लाभ हो जाएगा। माननीय राजस्व मंत्री का कहना है कि इस बिल में जमीन कई हाथों में चली गई है। मुमकिन है कि यह बात सही हो। लेकिन साथ ही यह भी सही है कि मालिकों ने जमीन लेकर अपने कब्जे में कर लिया है और जोता तथा आबाद करना शुरू कर दिया है। मैं जानता हूँ कि बहुत से ऐसे सदस्य हैं, जो इस तरह के बिल को पसंद नहीं करते हैं और कहते हैं कि इसको लागू करने में बड़ी दिक्कतें हैं। दिक्कतें तो अवश्य है, लेकिन हमको उनका मुकाबला करना चाहिए। जब पंजाब ने अगस्त, 1947 ई. से बेदखली कानून को लागू किया है, तो मुझे कोई कारण मालूम नहीं पड़ता कि बिहार क्यों नहीं ऐसा कर सकता है? इसलिए, मैं श्री रमेश झा के संेशोंधन का समर्थन करता हूँ।