(दिनांक: 18 अक्तूबर, 1955)
विषय: श्री कृष्ण बल्लभ सहाय द्वारा लाए गए प्रस्ताव ‘बिहार एग्रीकल्चरल लैंडस (सीलिंग एंड मैंनेजमेंट) बिल, 1955’ पर चर्चा के क्रम में
श्री कृष्ण बल्लभ सहाय: मैं प्रस्ताव करता हूँ कि-
बिहार एग्रीकल्चरल लैडंस (सीलिंग एंड मैंनेजमेंट) बिल, 1955 को सलेक्ट कमेटी के सुपुर्द किया जाए।
श्री कर्पूरी ठाकुर: अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय राजस्व मंत्री के बिहार एग्रीकल्चरल लैंडस (सीलिंग एंड मैनेजमेंट) बिल, 1955 को सेलेक्ट कमेटी में जो सुपुर्द करने का प्रस्ताव है, उसका समर्थन करता हूँ। यद्यपि मैं इसका समर्थन करता हूँ, पर मैं यह कह देना चाहता हूँ कि इसके बहुत से सिद्धांतों से मैं सहमत नहीं हूँ। हमारे मित्र श्री बसावन सिंह के बिल पर जब बहस चल रही थी, तो हमारे राजस्व मंत्री ने कहा था कि खोदा पहाड़ निकली चुहिया। जब उन्होंने इस बिल की आलोचना की थी, तब हमने इसे बहुत सही माना था, पर इसे पढ़ने पर पता चला कि जो आलोचना उन्होंने की थी कि खोदा पहाड़ तो निकली चुहिया, वह एक-एक अक्षर करके इसी बिल में लागू होता है। उन्होंने कांग्रेस प्रोग्राम के रिपोर्ट का हवाला दिया और एग्रोरियन रिफाॅम्र्स कमेटी की रिपोर्ट का हवाला दिया है। मैं इकोनाॅमिक प्रोग्राम कमेटी जो बनी थी, उसका हवाला देना चाहता हूँ। राजस्व मंत्री को याद होगा कि 1947 ई. में अखिल भारतीय सभा हुई थी, जिसमें राष्ट्रपति भी शरीक हुए थे। कांगंे्रस आॅब्जेक्टिव पर प्रस्ताव पास हुआ था कि कांग्रेस को क्या करना चाहिए? उसमें श्री जयप्रकाश नारायण, श्री गुलजारीलाल नंदा, श्री शंकरदेव राव, श्री कुमारप्पा जैसे लोग थे। इन्हीें लोगों ने प्रोग्राम बनाया था कि कांग्रेस आॅब्जेक्टिव क्या होना चाहिए।
मैं उसकी पंक्तियों को उद्धृत करना चाहता हूँ और जो कांग्रेस का प्रोग्राम बनाया गया, उसका मैं पूरा सारांश उद्धृत करना चाहता हूँ। थोड़े मेें मैं बता रहा हूँ -
"Political independence having been achieved, the Congress must address itself to the next great task, namely, the establishment of real democracy in the country and a society based on social justice and equality. Such a society must provide every man and woman with equality of opportunity sand freedom to work for the unfettered development of his or her personality. This can only be realized when democracy extends from the political to the social and the economic spheres. Democracy in the modern age necessitates planned control direction as well as decentralization of political and economic power, in so far as this is compatible with the safety of the State, with efficient production and the cultural progress of the community as a whole."
तो उपाध्यक्ष महोदय, कांग्रेस की आॅब्जेक्टिव जो उस समय निर्धारित हुई थी, उसको मैं उद्धृत करना चाहता हूँ। कांग्रेस का जो प्रोग्राम बनाया गया है, उसका मैं थोड़ा सा अंश उद्धृत करना चाहता हूँ। कुछ अंश राजस्व मंत्री ने उद्धृत कर दिया है। मैं थोड़ा सा अंश उद्धृत करना चाहता हूँः-
"All intermediaries between tillers should be replaced by such institution such as co-operatives."
तो जो कांग्रेस आॅब्जेक्टिव के संबंध में जिन पंक्तियों को उद्धृत किया, उन पंक्तियों को लेकर आगे बताने की कोशिश करूँगा। जो बिल पेश किया गया है, क्या वह कांग्रेस आॅब्जेक्टिव के अनुरूप है? कांग्रेस के कराची अधिवेशन में जो ऐलान हुआ, उसके अनुरूप है? महात्मा गांधी ने जो राउंड टेबल काॅन्फ्रेंस में कहा था, उसके अनुरूप है? क्या यह कांग्रेस की घोषणा के अनुरूप है? अग्रेरियन रिफाॅम्र्स कमेटी अपनी रिपोर्ट में लैंड रिफाॅम्र्स किस प्रकार का हो, उसका आधार क्या बने, उसके विषय में कहा है! इसमें लिखा हुआ है कि इन दि इनटरेस्ट आॅफ प्राॅपर मैंनेजमेंट, लैंड कल्टीवेटेड शुड नाॅट बी मोर दैन थर्टी एकर्स आॅफ इकोनाॅमिक होल्डिंग। उस रिपोर्ट में जो भी बातेें कही गई हैं, मैं आगे चलकर बताऊँगा। मैं राजस्व मंत्री से पूछना चाहता हूँ कि आपने इस बिल में जो प्रौविजन किया है कि हम सीलिंग तीस एकड़ का मानते हैं, बुनियादी तौर पर उसके अंतर्गत तीन सौ एकड़ की सीलिंग गुड हसबैंडरी के नाम पर रख रहे हैं। यह कांग्रेस के किस सिद्धांत के अनुरूप है, किस सोशल जस्टिस, किस इक्वलिटी का तकाजा है कि आप तीन सौ एकड़ का उच्च्तम सीमा निर्धारित कर रहे हैं? अग्रेरियन रिफाॅम्र्स कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में जो बेसिक होल्डिंग के बारे में कहा है कि तीस एकड़ से ज्यादा सीमा नहीं रखी जा सकती है, क्या आपने उसके अनुरूप काम किया है? मैं उनसे साफ जानना चाहता हूँ कि क्या उन्होंने कांग्रेस के सिद्धांत के अनुरूप काम किया है? मैं जानना चाहता हूँ कि प्लानिंग कमीशन ने जो रिपोर्ट दी, उसके अनुसार काम किया? प्लानिंग कमीशन ने लैंड रिफाॅम्र्स के बारे में जो कहा, कांग्रेस ने जो घोषणा की, समाचार-पत्रों के द्वारा उसके देखने से वह प्रगतिशील मालूम होगा, लेकिन कांग्रेस संगठन में ऐसे प्रतिक्रियावादी लोग भरे पड़े हैं कि प्रगतिशील कामों को नहीं होने देते हैं।
श्री कर्पूरी ठाकुर: कांग्रेस की घोषणा के बावजूद, कांग्रेस के इकोनाॅमिक प्लानिंग के बावजूद वे उच्चतम तीन सौ एकड़ की सीमा रख रहे हैं। प्लानिंग कमीशन की ड्राफ्ट रिपोर्ट में सीलिंग आॅफ। लैंड की अपर लीमिट का कोई प्राॅविजन नहीं किया है, अगर आपको इसकी एक पंक्ति पढ़कर सुना दूँ तो आप देखेंगे कि इसमें साफ कहा गया है कि इसमें सीलिंग की जरूरत नहीं है। मैं ज्यादा समय नहीं लेना चाहता हूँ। इसमें नेशनलाइजेशन का और सीलिंग लैंड के बारे में जो कहा गया है, मैं उसको उद्धृत करता हूँ-
"It should be the broad aim of the state policy to establish a system of co-operative village management".
हमारा को-आॅपरेटिव विलेज मैंनेजमेंट का लक्ष्य है। गाँव में अगर पाँच सौ एकड़ जमीन वाले हैं, पाँच एकड़ जमीन वाले हैं, बिना जमीनवाले हैं, वे भी रह जाएँ, भूमिहीनों को लेकर और भूमिपतियों को लेकर को-आॅपरेटिव मैंनेजमेंट किया जाय। प्लानिंग कमीशन ने ऐसा क्यों किया? क्योंकि कांग्रेस संगठन का जबरदस्त असर प्लानिंग कमीशन के मेंबरों पर पड़ा था। जब आर.के. पाटिल, संत विनोबा से मिलने गए, तो पाटिल को विनोबाजी ने कहा, सारी प्रगतिशील पार्टियों ने नारा लगाया, प्रदर्शन हुए कि भूमि वितरण होना चाहिए। जब प्लानिंग कमीशन के मेंबरों पर दबाव पड़ा, तब उन लोगों ने रिपोर्ट दी कि जमीन का अपर लिमिट होना चाहिए। यह जो तीन सौ एकड़ की अपर सीलिंग रखी जा रही है, वह किस इकोनाॅमी और सोशल जस्टिस का तकाजा है? आपने कहा था कि पंद्रह एकड़ का सीलिंग है, वह पंद्रह एकड़ का नहीं है, वह तीस एकड़ का हैे। जिसको आपने तीस एकड़ बताया, वह तो आपका तीन सौ एकड़ होने जा रहा है। आप गुड हसबैंडरी के नाम पर तीन सौ एकड़ रखने जा रहे हैं।
श्री रामचरित्र सिंह: यह एक्सपर्ट का व्यू है, आप एक्सपर्ट को भूल क्यों जाते हैं?
श्री कर्पूरी ठाकुर: पूर्णिया के दो बड़े काश्तकार हैं, जिनमें से एक के पास पंद्रह हजार एकड़ है और दूसरे के पास दो हजार है, क्या वे गुड हसबैंडरी करते हैं? क्या वे अपने हाथों से आबाद करते हैं? आपने से देखा होगा कि जिस मजदूर के पास दो बीघा, तीन बीघा खेत हैं, जो अपने खुद खेती करता है, वह ज्यादा खेत रखनेवालों से दुगुना, तिगुना पैदा करता है।
कम जमीन में ज्यादा उपज हो सकती है, यह तो साबित किया जा चुका है। लेकिन मैं आपसे पूछना चाहता हूँ कि जापान का उदाहरण माननीय राजस्व मंत्री ने दिया, मगर शायद इस पर उन्होंने ध्यान नहीं दिया कि जापान में जमीन की सीमा साढ़े सात एकड़ से दस एकड़ तक है। दस एकड़ से अधिकतर सीमा नहीं है। जापान में निन्यानबे प्रतिशत काश्तकार ऐसे हैं, जिनके पास जमीन ज्यादा-से-ज्यादा साढ़े सात एकड़ हैं और एक प्रतिशत ऐसे हैं, जिनके पास आठ या नौ या हद-से-हद दस एकड़ जमीन है। यही जापान की कृषि व्यवस्था हैे। आप यहाँ जापानी ढंग पर खेती करने के लिए सारे बिहार को सिखला रहे हैं और देश को जानकारी करा रहे हैं कि एक एकड़ खेत में तीस, चालीस, पचास, साठ मन तक अन्न पैध्ेदा होता है। जापानी ढंग से जापान में साढ़े सात से दस एकड़ तक सीलिंग करके ज्यादा-से-ज्यादा साठ मन तक पैदावार की जा सकती है, तो फिर आप किस अक्ल से सिखलाते हैं और कहते हैं कि तब तक अच्छी तरह से खेती नहीं हो सकती है, जब तक कि भूमिपतियों को तीस सौ एकड़ या दो सौ एकड़ नहीं छोड़ दिया जाए। जो भूमिपति मिट्टी तक नहीं पहचानते, खेत का हाल तक नहीं जानते, झाड़ और मेड़ नहीं जानते, जो वर्षो नहीं खा सकते और जो शीत नहीं बरदाश्त कर सकते हैं, ऐसे भूमिपतियों को तीन सौ एकड़ या दो सौ एकड़ छोड़ देना इस समस्या के साथ न्याय करना नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय का और आर्थिक न्याय का गला घोंटना है।
उपाध्यक्ष: माननीय सदस्य संक्षेप में अपना भाषण दें।
श्री कर्पूरी ठाकुर: संक्षेप करें, अभी तो मुझे डेढ़ घंटा बोलना है और बिल के प्रोविजन पर हम अभी पहुँचे भी नहीं हैं।
उपाध्यक्ष: माननीय सदस्य नए प्वाॅइंट्स कहना चाहेंगे तो मैं उन्हें नहीं रोकूँगा, लेकिन रिपिटेशन करेंगे तो मैं उन्हें रोक दूँगा।
श्री कर्पूरी ठाकुर: अगर मैं रिपिटेशन करूँगा तो आप फौरन रोक दें। मैं कभी भी रिपिटेशन नहीं करता।
श्री कर्पूरी ठाकुर: मैं बराबर संक्षेप में बोलता हूँ। मैं बाल की खाल नहीं खींचता और न चमड़े को तानना चाहता हूँ। इसलिए मुझे अफसोस है कि आपने कैसे ऐसा कह दिया, मैं कभी भी अनर्गल बात नहीं करता।
श्री कर्पूरी ठाकुर: उपाध्यक्ष महोदय, मैं सीलिंग के संबंध में कहा रहा था। इसके अलावा दूसरे प्राॅविजंस इस बिल में हैं कि जो अंडर रैयत, वह अगर अकुपेंसी रैयत बनना चाहें तो मालगुजारी का पंद्रह गुना देकर अकुपेंसी रैयत बन सकते हैं। यह उन रैेयत के बारे में है, जो तीस एकड़ से फाजिल जमीन में खेती करते हैं। मैं इस संबंध में कहना चाहूँगा कि अभी चार रोज के अंदर माननीय मंत्रीजी ने जो भाषण दिया, उसमें उन्होंने बतलाया कि ह्यूमन रिलेशन क्या है!। सोशल रिलेशन क्या है! बिहार टेनेंसी अमेंडमेंट बिल से बहुत क्रांति होगी, वगैरह-वगैरह। तो क्या यह उसके अनुरूप है कि जो अंडर-रैयत है और वह अपनी जीमन जोत रहा है, तो उसे अधिक जमीन नहीं देंगे और अधिक तब देंगे, जब वह मुआवजा देने को तैयार हो! तो मैं पूछता हूँ कि कानूनी तौर पर बंधन लगा देना यह कौन सी क्रांति में आता है? इस संबंध में महात्मा गांधी और लुई फिशर से जो बात हो रही थी कि भूमि की व्यवस्था क्या होगी और मुआवजा दिया जाएगा या नहीं, उसकी मैं दो-एक लाइन पढ़कर सुना देना चाहता हूँ। लुई फिशर ने महात्मा गांधी से पूछा कि-
"You feel then that it must be confiscation without compensation"
इस पर महात्मा गांधी ने कहा-
"Of course, it would be financially impossible for any body to compensate the landlords."
श्री रामचरित्र सिंह: दूसरी बात जो ट्रस्टीशिप के बारे में है, उसे आप क्यों भूल जाते हैं?
श्री कर्पूरी ठाकुर: उपाध्यक्ष महोदय, ट्रस्टीशिप की बात माननीय मंत्री ने कही। इसमें भी यह चीज आती है कि अपने वेल्थ पर या अपनी जमीन पर किसी व्यक्ति विशेष का अधिकार नहीं रह जाता है। माननीय मंत्री जानते हैं कि उतना ही इस्तेमाल करना है, जितना जरूरी हो और जरूरत से जो अधिक है, वह सबसे पहले समाज के लिए है। इसलिए दोनों में विरोध नहीं होता।
मैं कह रहा था कि अंडर-रैयत को वे अधिकार देना चाहते हैं और कहते हैं कि क्रांतिकारी कदम उठाकर उन्हें जमीन का मालिक बना देंगे, उनसे कोई जमीन छीन नहीं सकेगा। छह आदमी का परिवार मानकर तीस एकड़ देते हैं और उसके बाद हर एडिशनल आदमी के लिए पाँच एकड़ और देते हैं। इस तरह हम यह कहते हैं कि भूमिहीन लोगों के लिए राजस्व मंत्री ने कोई भूमि सुधार नहीं किया है और जो भी किया है, इस बिल में वह उनके खिलाफ ही है। हमें अफसोस है कि हमारे राजस्व मंत्री ऐसे परिश्रमी और योग्य आदमी होते हुए भी, दूसरे प्रांत का नेतृत्व करने को कौन कहे, बल्कि उसके पीछे चलने के लिए भी तैयार नहीं हैं। जापान में जहाँ का एरिया 1,41,529 वर्ग मील है और वहाँ की आबादी 8,31,99,637 है और बिहार का एरिया 70,000 वर्ग मील है और यहाँ की आबादी 4,02,00,000 है, हो सकता है, सवा चार करोड़ हो गया हो, फिर भी वहाँ इतना देना संभव नहीं है।
The area of Japan is 1,41,529 square miles with a population of 83,199,637 with a density of 587,88 per square mile.
आपको इससे पता चलेगा कि वहाँ की आबादी में और यहाँ की आबादी में, और वहाँ के एरिया या यहाँ के एरिया में अनुपाततः बहुत कम अंतर है, फिर भी वहाँ चाढ़े सात एकड़ का सीलिंग है और यहाँ तीन सौ एकड़ है। वहाँ एक एकड़ में पचास मन, साठ मन धान पैदा होता है। जमीन का एरिया 3,50,458 एस. किलोवाट है और पाॅपुलेशन 64,909,406 है। 1 एस. किलोवाट 113 एस. माइल के है। फिनलैंड का पाॅपुलेशन है, 4,032,538 और वहाँ का एरिया है, 305,396 एस. किलोवाट।
अध्यक्ष महोदय बर्मा का क्षेत्रफल 261,610 एस. माइल्स है और वहाँ की आबादी 16,823,798 है। हमारे यहाँ से वहाँ की आबादी बहुत है, फिर भी वहाँ उत्तर बर्मा में पचास एकड़ और दक्षिण बर्मा में तीस एकड़ अधिकतम भूमि की निर्धारित सीमा हैे। इससे अधिक वहाँ एक परिवार को जमीन नहीं दी जाती हैं। दूसरा उदाहरण मैें यूगोस्लविया का देता हूँै, जिसका क्षेत्रफल 1,00,000 वर्गमील है और 18,000,000 करोड़ की आबादी हैें। वहाँ भी अधिकतम भूमि की सीमा सिर्फ छह एकड़ ही है। पोलैंड का क्षेत्रफल 121,131 वर्गमील है और अबादी 24,976,926 है, इसी तरह और जगहों की, जैसे-
फ्रफ्रांस का क्षेत्रफल | 550,986 | एस.किलोमीटर | आबादी | 42,400,000 |
मिस्र का क्षेत्रफल | 386,198 | एस. माई | " | 19,087,300 |
ग्रीस का क्षेत्रफल | 51,246 | एस. माई. | " | 7,603,328 |
चेकोस्लोवाकिया | 127,827 | एस. किलोमीटर | " | 12,513,000 |
अध्यक्ष महोदय, अगर इन सब जगहों की आबादी और क्षेत्रफल पर विचार किया जाए, और हमारे यहाँ के 70 हजार वर्गमील के क्षेत्रफल और चार करोड़ दो लाख की आबादी पर विचार किया जाए, तो हम इस परिणाम पर पहुँच सकते हैं कि तीन सौ एकड़ जमीन की अधिकतम सीमा निर्धारित कर लैंड रिफाॅम्र्स के लक्ष्य तक नहीं पहुँच सकते हैं।
अध्यक्ष: एक परिवार में कितने लोग हैं, यानी फैमिली का डिफिनिशन देखा है?
श्री कर्पूरी ठाकुर: फैमिली का क्या डिफिनेशन है? इसके बारे में मैं यह कहना चाहता हूँ कि जहाँ तक मुझे स्मरण है, वहाँ नेशनलाइजेशन ऐक्ट और काश्मीर लैंड रिफाॅम्र्स ऐक्ट, जिसकी प्रतियाँ हमारे पास हैं, के अनुसार पाँच या छह आदमियों का एक परिवार माना गया है। युगोस्लाविया में तो एक परिवार तीन या साढ़े तीन आदमियों का ही माना जाता है।
अध्यक्ष: अगर किसी परिवार के दो-चार लड़कों की शादी हो गई हो और उनके बच्चे भी हुए हों, तो क्या आप उनकी फैमिली के अंदर नहीं मानेंगे?
श्री कर्पूरी ठाकुर: अध्यक्ष महोदय, मैं यह जरूर कहँगा कि जो मुनासिब हो सकता है, उचित हो सकता है या व्यावहारिक हो सकता है, उसे हमें अवश्य मानना चाहिए। मैं यह नहीं चाहता हूँ कि किसी परिवार के लोग भूखे रहें या नंगे रहें या उनके बाल-बच्चे पढ़-लिख न सकें। साथ-ही-साथ मैं ऐसा नहीं मान लेना चाहता कि एक परिवार को इतनी दूर तक बढ़ाया जाए कि सौ व्यक्तियों तक का मान लें। किसी भी हालत में आमतौर पर ऐसे अनेक परिवार नहीं हो सकते। अगर सौभाग्यशाली परिवार में ऐसा हो भी, तो उसके लिए हम आम परिवार की संख्या के लिए यह परिभाषा नहीं मान सकते। किसी ऐसे परिवार के लिए अगर सरकार जरूरत समझे तो उसके लिए अलग कुछ व्यवस्था कर सकती है। हमारा कहना है कि साधारण अवस्था को सामने में रखकर किस तरह का समाज बनाना चाहिए, इसको देखें। इस बिल को इस दृष्टिकोण से सोचें कि जिस उद्देश्य से आपने कल्पना की है, उसकी पूर्ति होती है कि नहीं? इस बिल में जो-जो प्राॅविजन हैं, हम उनके खिलाफ हैं और हम चाहते हैं कि इसके प्राॅविजन को बदल दिया जाए। इस तरह बदल दिया जाए कि वह प्राॅविजन दूसरे रूप में हमारे सामने आवें। हमारे राजस्व मंत्री ने श्री त्रिवेणी कुमार के उत्तर में कहा था कि हमारे यहाँ लैंड कमीशन चार-पाँच वर्षों से है, क्या आपका वही लैंड कमीशन हैे, जिसको ऐग्रेरियन लैंड रिफाॅम्र्स कमेटी ने बनाने को कहा था? हमने अपने बिल में लैंड कमीशन को निर्धारित किया है, जैसे ऐग्रेरियन रिफाॅम्र्स कमेटी ने बनाने को कहा था। मैं उसको बता देना चाहता हूँ।