(दिनांक: 24 नवंबर, 1955)


विषय: माननीय राजस्व मंत्री श्री कृष्ण बल्लभ सहाय द्वारा दिनांक 20 अक्तूबर, 1955 ई. को ‘बिहार मैंटिनेंस आॅफ पब्लिक आर्डर बिल पर जनमत जानने के लिए पेश किए प्रस्ताव पर चर्चा के क्रम में दिया गया भाषण -

श्री कर्पूरी ठाकुर: अध्यक्ष महोदय, बिहार मैंटिनेंस आॅफ पब्लिक आॅर्डर बिल को जनता जानने के लिए प्रचारित करने का जो प्रस्ताव है, मैं उसका समर्थन करने के लिए खड़ा हुआ हूँ। अध्यक्ष महोदय, जब 20 अक्तूबर को हमारे माननीय राजस्व मंत्री, श्री कृष्ण बल्लभ सहाय ने इस बिल को सदन के सामने पेश किया था और पेश करते हुए उन्होंने जो भाषण दिया था, मैंने ध्यानपूर्वक सुनने की कोशिश की थी। मैंने यह देखा कि उन्होंने बताया था कि यद्यपि यह कानून हमारे प्रांत में, हमारे राज्य में बहुत दिनों से चला आ रहा है; लेकिन इसका इस्तेमाल बहुत कम किया गया है। उन्होंने बतया था कि 1953-54 के वर्ष में केवल छह जगहों में सामूहिक जुरमाना सांप्रदायिक दंगे के सिलसिले में लगाए गए। 1955 ई. में आठ जगहों में सामूहिक जुरमाने लगाए गए। उन्होंने यह भी बताया था कि कोई आदमी बिहार के अंदर कानून के द्वारा नजरबंद नहीं किया गया। उन्होंने जो दलीलें दीं, जो आरगुमेंट पेश किए और जो फैक्ट का निर्देश किया, उनसे साफ पता चलता है कि इस कानून की कोई’’

अध्यक्ष: बहुत हल्ला होता है। आपस में आप लोग बातचीत कर रहे हैं।
Maintenance of order in the Assembly is not less important than the maintenance of public order.

श्री कर्पूरी ठाकुर: अध्यक्ष महोदय, जो दलीलें उन्होंने दी थीं और सदन के सामने प्रस्तुत की थीं, उनसे किसी को यह विश्वास नहीं हो पाया कि इस विधेयक की आज कोई आवश्यकता है। हम नहीं समझ सकते कि ऐसे कारणों को लेकर, ऐसे फ्लिमजी और हौलों ग्राउंड्स को लेकर माननीय राजस्व मंत्री ने साहस किया, इस विधेयक को सदन में पेश करने का। अध्यक्ष महोदय, कहना नहीं होगा कि यह विधेयक एक विशेष परिस्थिति को लेकर 1946 ई. में इस सदन के सामने लाया गया था। आपने अभी तुरंत ही पूछा है कि यह विधेयक, जो बहुत दिनों से चला आ रहा है, आपको याद दिलाना चाहता हूँै कि आप ही की अध्यक्षता में यह कानून दूसरे रूप में पेश हुआ था।ं 1946 का साल, जबकि कलकत्ते में मुसलिम लीग ने डाइरेक्ट एक्शन शुरू किया, जब कलकत्ते में हिंदू-मुसलिम दंगे का सूत्रपात हुआ, नवाखाली में दंगा हुआ तो उसकी प्रतिक्रया सारे बिहार राज्य में हुई, सारे हिंदुस्तान के दूसरे-दूसरे हिस्सों में हुई। जब बिहार के मुसलिम भाई निरपराध औरत-मर्द खत्म किए जाने लगे तो बिहार के मुख्यमंत्री ने इस विधेयक को पेश किया था और कहा था कि इसे इसलिए मैं पेश करना चाहता हूँ कि जो निहत्थे मुसलिम भाई, उनके बच्चे, उनकी औरतें, जो बेकसूर लोग मारे जा रहे हैं, सताए जा रहे हैं, हम उन बेकसूर लोगों को बचाना चाहते हैं। उन्होंने इसी उद्देश्य से यह कानून इस सदन से पास कराया था। अध्यक्ष महोदय, आपको याद होगा कि सरदार वल्लभ भाई पटेल ने लोकसभा में इस विधेयक को पेश किया था तो हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बँटवारे के बाद इस देश में खूँरेजी हुई है, इस देश में हत्याएँ हुई हैं, मार-काट हुए है, इनसानियत की, मानवता की इस देश से पाताल में भेजने की कोशिश की गई है, इसलिए आवश्यकता पड़ी है कि ऐसा कानून पेश किया जाए। हिंदुस्तान में, एक विशेष परिस्थिति थी, तमाम दंगे थे, झंझट था, झगड़े चल रहे थे, सारा हिंदुस्तान इसी का शिकार हो रहा था, वैसी परिस्थिति में वहाँ इस विधेयक को पेश किया गया था और तब बिहार विधानसभा ने और देश के लोक सभा ने कानून का रूप दिया था। लेकिन मैं जानना चाहता हूँ कि आज बिहार में कौन सी ऐसी विशेष परिस्थिति है, आपके द्वारा मैं सरकार से पूछना चाहता हूँ कि 1946 ई. की तरह, 1947 ई. की तरह अपने देश में हिंदू-मुसलिम के बीच क्या दंगे हो रहे हैं?

"If this Act had not been on the Stature Book there would have been violence, there would have been mischief."
यह सुनकर मैं हक्का-बक्का हो गया और मुझे बहुत आश्चर्य हुआ कि सरकार समझती है कि बिना इस कानून का सहारा लिये सरकार राज-काज नहीं चला सकती है तथा शांति बनाए नहीं रख सकती है। मैं तो कहूँगा कि सरकार इस कानून के द्वारा लोगों में आतंक फैलाकर, लोगों को भयभीत कर अपन सत्ता जमाए रखना चाहती है। मैं सरकार से यह जानना चाहता हूँ कि क्या यह एक डेमोक्रेट का लैंग्वेज है अथवा हिटलर, चंगेज खाँ, नीरो तथा डायर और ओडायर का लैंग्वेज है? महात्मा गांधी ने जनतंत्र का पाठ लोगों को पढ़ाया, जनता को निर्भीक बनाया। लेकिन आज यह सरकार फिर जनता को कायर बना रही है। महात्मा गांधी ने लोगों को बम और पिस्तौल का इस्तेमाल करने को नहीं सिखलाया, लेकिन भगत सिंह, चंद्रशेखर सिंह इत्यादि क्रांतिकारियों की उन्होंने शिकायत नहीं की, बल्कि प्रशंसा की है। राजस्व मंत्री को मालूम होगा कि 1917 में गांधीजी चंपारण गए थे। उस समय वहाँ के निलहे, लोगों पर बड़ा ही अत्याचार करते थे और गाँव वालों को लूटते थे। उस गाँव के लोग निलहे गोरों के उपद्रव से केवल सामान नहीं नहीं, बल्कि औरतों को भी छोड़कर भाग गए। महात्माजी उस गाँव में गए और लोगों से कहा कि तुम क्यों इतने कायर हो और तुम क्यों अपने सामान के साथ-साथ औरतों को भी छोड़कर भाग आए? यदि तुम नन-वोएलेंट तरीके से उनका मुकाबला करने से असमर्थ थे तो तुमने वोएलेंट तरीके क्यों नहीं उनका मुकाबला किया? इस प्रकार गांधीजी ने ‘करो या मरो’ की प्रेरणा लोगों को दी। लोगों को निर्भीक बनाया। मंत्रीगण जेल से डरते थे, लेकिन उन्होंने जेल जाने की हिम्मत दिलाई, गोली खाने को सिखाया और इस तरह मिट्टी से कंचन बनाया। ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लड़ने को उनहोंने जनता को ललकारा और प्राणों की होली खेलना सिखाया, लेकिन आज राजस्व मंत्री कहते हैं कि यदि यह कानून नहीं रहेगा तो वे लोग खुराफात करेंगे। यानी जनता को ये डराना चाहते हैं, जनता पर रिप्रेशन करना चाहते हैं और डेमोक्रेसी का दम भरते हैं! शायद क्या उन्हें मालूम नहीं है कि-

In democracy the Government does not depend on the Police, but on the consent and co-operation of the people.

इस तरह का लाॅलैस लाॅ रखना डेमोक्रेसी के विरुद्ध है और यह जनता और देश के प्रति इनसाफ और न्याय की बात नहीं है। अध्यक्ष महोदय, उस दिन जब हमारे राजस्व मंत्री प्रस्तुत विधेयक पर भाषण कर रहे थे तो उन्होंने कहा था-‘‘इफ देयर इज नो पीस, देयर कैन बी नो प्रोग्रेस।’

यह जुमला ऐसा है, जिसको वह बार-बार इस सदन में दुहराते हैं और शांति-शांति चिल्लाते हैं। एक शांति, अध्यक्ष महोदय, हम लोग आप से सुनुते हैं। वह जरूरी है। अगर हम लोग इस सदन में शांति नहीं रखें तो फिर काम नहीं चले। एक शांति का नारा हम लोग आजकल अंतरराष्ट्रीय जगत् में सुन रहे हैं। चाहे वह आइजनहावर का हो या और किसी का, जो शांति की जड़ पर कुठाराघात करते हैं। जो पूँजीवाद का पोषक हो, वह शांति पोषक हो नहीं सकता। लेकिन हम शांति का एक नारा आइजनहावर से भी सुनते हैं, चाहे वह भले ही अशांति और हिंसा द्वारा राज्य पर अधिकार जमाने का हो, तो वह भी हम सुनते हैं। और एक शांति का नारा हम अपने माननीय राजस्व मंत्री से भी सुनते हैं कि शांति के बिना प्रगति नहीं हो सकती। अध्यक्ष महोदय, मैं आप से पूछना चाहता हूँ कि आप इसको जानते हैं कि कांग्रेस मंत्री बराबर मौके-बेमौके आजकल यह कहते पाए जाते हैं कि हम बहुत प्रोग्रेस कर रहे हैं, हिंदुस्तान में प्रोस्परिटी हो रही है। आज जिस प्लेटफार्म से देखिए, कांग्रेस के वजीर भाषण देते हैं कि हमने इतनी तरक्की की है, हमने जमींदारी प्रथा खत्म कर दी, अब हम लोग पूँजीवाद पर हमला बोलने जा रहे हैं। अभी हमारे सिंचाई मंत्रीजी ने कहा, हर गाँव में आज बिजली की रोशनी कर देंगे, और नदी और घाटी की योजनाएँ कार्यान्वित कर रहे हैं। कांग्रेस का एक-एक वजीर आजकल खड़ा होकर यह कहने की हिम्मत करता है कि हम प्रगति कर रहे हैं, हमारे देश में प्राॅस्पेरिटी हो रही है। तो अगर प्रोगे्रस बिना पीस के नहीं हो सकता है तो राजस्व मंत्री इसका जबाव दें कि आप प्रोग्रेस कर रहे हैं, पीस की स्थिति में या पीस के डिस्टर्बेंस में? अगर आपका दावा है कि आप प्राॅस्परेटी कर रहे हैं तो आपको मानना पड़ेगा कि हिंदुस्तान में अशांति नहीं है, लेकिन हमारे राजस्व मंत्री शायद यह भूल जाते हैं कि पीस का नारा वह अकसर लगाते हैं, जो कुरसियों पर बैठे रहते हैं, जो गद्दी पर बैठे रहते हैं। गद्दी पर बैठनेवाले शांति का नारा आए, दिन बराबर लगाते रहते हैं।

एक कांग्रेस दल का सदस्य: आपका शांति का नारा कैसा है?

श्री कर्पूरी ठाकुर: हमारा नारा सच्ची शांति का नारा हैं संसार के प्रसिद्ध व्यक्ति प्रोफेसर लास्की का कहना है-

"Every State contains innumerable stupid men who see in unconventional thought the imminent destruction of social peace. They become Ministers, and they are quite capable of thinking that a society of Tolstoy, an anarchist is about to attempt a new gun-power plot. If you think of men like Lord Eldon, like Sir William Joynson-Hicks, like Attorney-General Palmer, you will realise how natural it is for them to believe that the proper place for Thoreau or Tolstoy, for William Morris or Mr. Bernard Shaw, is a prison. I am unable to take that view."

तो ये जितने लोग प्रगति चाहते हैं, शांति का नारा लगाते हैं। अगर यह सही है कि शांति के बिना प्रगति नहीं हो सकती तो उससे सौ गुना यह भी सही है कि प्रगति के बिना शांति नहीं हो सकती। इस देश के इतिहास को उठाकर देखिए। चंद्रगुप्त मौर्य के समय का इतिहासकार, जो यहाँ आया, उसने क्या लिखा? उसका कहना है कि हिंदुस्तान एक ऐसा देश था, जहाँ हर क्षेत्र में प्रगति हुई थी, हर क्षेत्र में विकास हुआ था और इसलिए अशांति का नाम और निशान तक नहीं था। समुद्रगुप्त के समय का इतिहास देखिए। आप देखेंगे कि गुप्ता पीरियड को गोल्डेन एज कहा गया है और इसलिए कि हमारी उन्नति हर क्षेत्र में दुनिया के सभी देशों से बढ़ी-चढ़ी थी और हमारे देश में शांति थी। इंग्लैंड का इतिहास देखिए! एलिजाबेथ के जमाने में आप देखें कि इंग्लैंड ने काफी तरक्की की और उस समय कोई लड़ाई-झगड़ा नहीं था, लेकिन उसके पहले बराबर अंशांति थी, जब इंग्लैंड तरक्की पर नहीं था। स्विट्जरलैंड, नाॅर्वे, यूरोप के किसी भी देश के इतिहास को देखिए, आप देखेंगे कि जब देश ने तरक्की की तो बराबर शांति रही और जब अंशांति थी, लड़ाई-झगड़ा था, तो देश तरक्की पर नहीं था। उन देखों के इतिहास में आप पाएँगे कि जहाँ लोगों ने काफी तरक्की की, जहाँ सुख और ऐश्वर्य्र रहा, खाने-पहनने की सुविधा रही, एजुकेशन, दवा-दारू, सड़क, अस्पताल की सुविधा रही, वहाँ कोई अशांति नहीं रही, कोई उपद्रव नहीं हुआ। अमेरिका में भयंकर पूँजीवाद रहने पर भी काफी प्रगति की वजह से किसी की हिम्मत अशांति पैदा करने की नहीं होती। तो हम कहते हैं, अगर आप सच्ची शांति चाहते हैं तो देश में प्रगति लाइए। जनतंत्र के वेु दुश्मन हैं, जो बेकारी और भूमिहीनता को कायम रखना चाहते हैं, जो विषमता कायम रखना चाहते हैं। जिस देश में 45 लाख आदमी हर साल पैदा होते हैं और देशमुख के अनुसार इसमें से 40 प्रतिशत यानी 18 लाख ऐसे हैं, जो नया काम चाहनेवाले हैं और जहाँ आप पंचवर्षीय योजना में भी 50 लाख को काम दे सके, लेकिन 90 लाख फिर काम करनेवाले पैदा हो गए और जहाँ आज 911 करोड़ की संख्या में बेकार और अर्ध बेकार भरे पड़े हैं और जहाँ हर साल 18 लाख की तादाद में नए काम चाहने वाले पैदा हाते हैं, वहाँ आप शांति की आशा रखते हैं? आप डेमोक्रेसी चलाते हैं। एक तरफ प्रोग्रेस और दूसरी तरफ मानस्ट्रिसिटी को रखना चाहते हैं। डेमोक्रेसी में ये दोनों चीज साथ-साथ नहीं चल सकती। एक आदमी साढ़े तीन हाथ का और दूसरा 49 हाथ का, एक तरफ भयंकर दरिद्रता, भूमिहीनता, बेकारी और दूसरी तरफ ऐश्वर्य और संपत्ति! यह डेमोक्रेसी में नहीं चलने का।