रघुनाथ झा
(जनता पार्टी)
अध्यक्ष महोदय, एक ऐसे ही शख्सियत इस राज्य के नहीं, इस देश के जाने-माने नेता स्व. कर्पूरी ठाकुरजी थे। स्व. कर्पूरी ठाकुरजी की वाणी पिछले 17 वर्षों से उनके साथ इस विधानसभा में बैठकर हम लोगों ने राज्य की समस्याओं के बारे में, छोटी समस्या हो या बड़ी समस्या हों, चाहे राज्य के मुख्यमंत्री रहे हों या उप-मुख्यमंत्री रहे हों, विरोधी दल के नेता रहे हो या साधारण सदस्य के रूप में, जो उन्होंने भूमिका निभाई, जो इस प्रदेश की सेवा की, यह चिरस्मरणीय रहेगा। सभी नेताओं ने ठीक ही कहा हैकि उस कद के व्यक्ति इस राज्य में मौजूद नहीं है। जब किसी सवाल पर कर्पूरी ठाकुरजी इस सदन में बोलते थे, जब वे अपनी बात तर्कपूर्ण ढंग से ओजस्वी भाषा में रखते थे तो ऐसा लगता था कि उस समय कोई ऐसा आदमी उनके उस कद से ऊपर उठने के लायक नहीं था। आज ऐसे व्यक्ति के निधन से सारा राष्ट्र मर्माहत है, पूरे राष्ट्र के लोग मर्माहत हैं और पूरे समाजवादी आंदोलन के लोग मर्माहत हैं। इस सूबे का जिस तरह से उन्होंने कार्य किया, उसके बारे में हमको आज भी याद है-‘‘जियो तो ऐसे जियो कि जिंदगी कदम चूमे, मरो तो ऐसे मरो कि मौत भी कफन चूमे।’’ कर्पूरी ठाकुरजी, ऐसी शख्सियत थें आज हमारे लोकदल के नेता ने इस सदन में इन बातों की चर्चा की कि जिस तरह की सेवा कर्पूरी ठाकुरजी ने इस राज्य की, की है, लगातार इतने दिनों तक इस सदन के सदस्य रहे, इसलिए उनके भाषणों का, उनके विचारों का संकलन होना चाहिए। आज इस राज्य में स्व. श्रीकृष्ण सिंह और बाबू अनुग्रह नारायण सिंह के बाद किसी बड़े व्यक्ति का देहावसान हुआ है तो वे हैं-श्री कर्पूरी ठाकुर। उनका स्मारक इस राज्य में बनना चाहिए। सरकार की तरफ से मुख्यमंत्री को घोषणा करनी चाहिए। समाचार-पत्रों में भिन्न-भिन्न दलों के लोगों द्वारा कर्पूरी ठाकुरजी का स्मारक बनाने और विधानसभा परिसर में उनकी मूर्ति लगाने की माँग होती रही है। यह अवसर वैसा नहीं है, लेकिन ऐसे व्यक्ति, जिसने इतने दिनों तक संसदीय जीवन में लगातार विधानसभा के माध्यम से इस राज्य और देश की सेवा की, आज इस बात की आवश्यकता है कि कर्पूरीजी की कोई प्रतिमा इस विधानसभा के अहाते में निश्चित रूप से लगाई जाए। यह हम विनम्रतापूर्वक माननीय मुख्यमंत्रीजी से आग्रह और निवेदन करना चाहते हैं। स्व. कर्पूरी ठाकुरजी कितने संवेदनशील थे, उस पर एक कहानी हमें याद आती है। 1975-1976 में इमरजेंसी का जमाना था। पटना बाढ़ से पूरी तरह से आक्रांत था। इस तरह की बाढ़ पटना में कभी नहीं आई थी। इस तरह की बरबादी कभी नहीं हुई थी।
इमरजेंसी के दौरान कर्पूरी ठाकुरजी इस राज्य से बाहर नेपाल में रहा करते थे। उसी समय हम और हमारे मित्र श्री राजो सिंहजी रामेश्वरम् जा रहे थे। एकाएक हम लोगों की मुलाकात स्व. कर्पूरीजी से कलकत्ता हवाई अड्डे पर हुई। हमें याद है, उन्होंने चाहे सरकारी पक्ष के हों या विरोधी पक्ष के, बाढ़ से जो बरबादी हुई, किस परिस्थिति में बाढ़ में बिहार के लोग रहे, एक-एक व्यक्ति के बारे में उन्होंने जानकारी ली और हम लोगों के साथ ही मद्रास तक गए, फिर वहाँ से हम लोग दूसरे-दूसरे कार्यों में लग गए। उनका यह बड़प्पन था।
माननीय मुख्यमंत्री आज आप जिस आसन पर बैठे हैं, उसी आसन पर बैठकर उन्होंने 1977 में इसी सदन में बातें कही थीं, जो इमरजेंसी के दौरान बातें हुई थीं। ऐसी शख्सियत बिरले ही पैदा होते हैं और ऐसी ही शख्सियत श्री कर्पूरी ठाकुरजी थे। आज वे इस राज्य को उस तरह रख छोड़े हैं, जैसे दास कबीर ‘जतन से ओढ़े, जस-के-तस रख दीन्हीं चदरिया।’ आज इस राज्य में कोई भी आदमी ऐसा नहीं मिलेगा, जो इतने बड़े पद पर रहकर निकल जाए और जिसकी चुनरी में दाग नहीं लग जाता, पर ऐसे थे श्री कर्पूरी ठाकुरजी; जो इतने बड़े पद पर रहकर भी निदाग रहे। वैसी दिवंगत आत्मा के प्रति मैं अपनी ओर से और अपने दल की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ तथा ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि उनकी दिवंगत आत्मा को चिर शांति दें। उनके पुत्र रामनाथ ठाकुर तथा इस राज्य के हजारों लोगों को इस दुःख को सहन करने के लिए धैर्य प्रदान करें।