पहला पत्र
दिनांक 21-12-1975
पूज्य बाबा,
मेरा दुर्भाग्य, लगभग चार वर्षों से आपके दर्शन नहीं हुए। कई बार दर्शनार्थ जाने को सोचा, पर संयोग नहीं बैठा। पुराने खादी-सेवक श्रीरामश्रेष्ठ राय, लक्ष्मीनारायण पुरी (पूसा रोड, बैनी, समस्तीपुर) आपातस्थिति के आरंभ से ही जेल में हैं। कहीं हाल में छूट गए हों तो मुझे पता नहीं। जहाँ तक मेरा सवाल है, मैं शुरू से ही फरार हूँ।
यह सब एक खास मकसद से लिख रहा हूँ। मकसद है -मार्गदर्शन-मेरा ही नहीं, सारे देश का। 25 दिसंबर को जब आप मौन-भंग करेंगे तो क्या मेरे इस पत्र में वर्णित विषयों पर प्रकाश डालने की कृपा करेंगे ? सबसे सुंदर होगा, भूदान-कार्यकर्ताओं के सम्मेलन में ही मेरे प्रश्नों पर प्रकाश डालने का कष्ट करें। युद्ध-कला था, फिर भी वाणी-स्वातंन्न्य की उतनी हत्या अंग्रेजी सरकार ने नहीं की थी, जितनी इंदिरा सरकार आपातस्थिति के नाम पर कर रही है। आज की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक वाग् स्वातंन्न्य के बावजूद महात्मा गांधी को ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध वांछित वाक्-स्वातंन्न्य (पूर्ण या पर्याप्त वाक्-स्वातंन्न्य) के लिए सत्याग्रह-संग्राम की आवश्यकता महसूस हुई। गांधी-विचार-परिवार के एक वरीय सदस्य होने के नाते आपको आज क्या सत्याग्रह की आवश्यकता नहीं महसूस हो रही है? यह उल्लेखनीय है कि ब्रिटिश-शासन की संपूर्ण अवधि में दोनों विश्वयुद्ध काल में असहयोग आंदोलन के समय विभिन्न सत्याग्रहों के दरम्यान, भारत-चीन युद्ध और भारत-पाक युद्ध काल में भी वाणी-स्वातंन्न्य पर उतना व्यापक और कठोर आघात नहीं हुआ था, जितना आज इंदिरा-राज में हुआ है। ऐसी स्थिति में क्या आपको यह नहीं लगता है कि वाणी-स्वातंन्न्य के प्रथम सत्याग्रही को, आज की दमघोंटू परिस्थिति में, सत्याग्रह-संग्राम का प्रथम सेनापति बनाना चाहिए?
देश में जो आपातस्थिति लागू की गई, उसके लिए जो कारण बतलाए गए और संविधान की संबंधित धाराओं का जो उपयोग किया गया, क्या आप उसे उचित मानते हैं? आपातस्थिति संविधानुकूल है या प्रतिकूल, इस पर विचार करने और निर्णय के अधिकार को अध्यादेश द्वारा सर्वोच्च न्यायालय से जो छीन लिया गया, उसे क्या आप सही मानते हैं?
श्रद्धेय जयप्रकाशजी पर सेना और पुलिस में विद्रोह फैलाने, देशव्यापी षड्यंत्र रचने, हिंसा उभारने, संविधान नष्ट करने, जनतंत्र समाप्त करने और अवैधानिक तरीके से सरकार पलटने के जो अनेक अभियोग लगाए गए, क्या आप उन्हें भी सही मानते हैं? विभिन्न अध्यादेशों द्वारा संविधान-प्रदत्त सारे मौलिक अधिकार, जो स्थगित कर दिए गए हैं और अखबार तथा नागरिक आजादी छीन ली गई है, क्या आप उसे सही मानते हैं?
सर्वश्री मोरारजी भाई, नवकृष्ण चैधरी, डाॅ. हरेकृष्ण महताब, चैधरी चरण सिंह, अशोक मेहता, मनमोहन चैधरी, लालकृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी, मामा बालेश्वर दयाल, मधु लिमये, मधु दंडवते, समर गुहा, पीलू मोदी, श्याम चंदन मिश्र, राजनारायण, नानाजी देशमुख, बीजू पटनायक, बैजनाथ चैधरी आदि नेताओं की गिरफ्तारी को क्या आप वैध और उचित मानते हैं?
आंतरिक सुरक्षा-कानून (मीसा) के अंतर्गत मनमाने ढंग से गिरफ्तार कर लेना, गिरफ्तारी का कारण जानने के लिए कानूनी अधिकार से बंदियों को वंचित कर देना, कारण जानने के लिए अधिकृत अदालत को अँगूठा दिखला देना, अभियोग जानने और स्पष्टीकरण देने के बंदियों के कानूनी अधिकार को अपहृत कर लेना तथा समीक्षा करने के अटल अधिकार और शक्ति से न्यायालयों को निरस्त कर देना, क्या आप इन्हें सही मानते हैं?
नेताओं की गिरफ्तारी का समाचार न अखबारों में आने देना और न रेडियो पर, नजरबंदी की जगह (जेल) की जानकारी न देशवासियों को देना और न रिश्तेदारों को, क्या आप इसे ठीक समझते हैं?
जेलों में नेताओं को अकेले रखना तथा उन्हें मरणतुल्य और जिंदगी भर के लिए बेकार बना देना, क्या आप इसे उचित मानते हैं? क्या विदेशाी सरकार भी नेताओं के साथ इस तरह का बरताव करती थीं?
रेडियो और समाचार-पत्रों पर सरकारी पार्टी तथा मंत्रियों का एकाधिपत्य कर लेना, फिर उन्हें न स्वतंत्र रहने देना और न निर्भीक-निष्पक्ष। उन्हें अपने विवेक या विचार या स्वार्थ के अनुसार न सही करने देना और न गलत, क्या इसे आप सही मानते हैं?
रेडियो और समाचार-पत्रों द्वारा सर्वाधिक प्रचार प्रधानमंत्री का करवाना, बचा-खुचा प्रचार मंत्रियों और कांग्रेसी नेताओं का करवाना, किंतु विरोधियों के लिए उनका दरवाजा न सिर्फ सौ फीसदी बंद कर देना-यहाँ तक कि निरंतर लगाए गए एकपक्षीय अभियोगों के स्पष्टीकरण के लिए भी, बल्कि सत्य एवं तथ्य के लिए आग्रह रखनेवाले पत्रकारों (श्री के.आर. मलकानी, श्री कुलदीप नय्यर, श्री गौर किशोर घोष आदि) को जेल में बंद कर देना, क्या आप इसे विशुद्ध फासिस्टी या कम्युनिस्टी तरीका नहीं मानते हैं?
सत्य, न्याय, संविधान एवं जनतंत्र को निरंतर पैरों तले रौंदते रहना, मगर अपने अपराध और पाप पर परदा डालने के लिए कभी आज, तो कभी कल कुछ अधिक कार्यक्रमों की घोषणा करते रहना, क्या आप इसे धोखा-भरा राजनीतिक आधार नहीं मानते हैं?
आपकी देश-व्यापी पद-यात्राओं के बावजूद, आपके हजारों उपदेशों-आग्रहों के बावजूद, आपके सुझावों-सलाहों के बावजूद तथा सर्वसेवा-संघ के संकल्पों-प्रस्तावों के बावजूद देश को गलत कृषि-नीति, गलत भूमि-नीति, गलत अन्न-नीति, गलत दाम-नीति, गलत औद्योगिक-नीति, गलत शिक्षा-नीति, गलत नियोजन और गलत रास्ते पर ढकेलते जाना, मगर परिस्थिति बिगड़ने और काबू से बाहर होने पर अधूरे आर्थिक कार्यक्रमों की घोषणा करते जाना, क्या आप इसे बुद्धि और ईमान का दिवालियापन नहीं मानते हैं?
भूदान, ग्रामदान और जीवनदान द्वारा निर्मित अनुकूल वातावरण के बावजूद, भूदानमूलक ग्रामोद्योग प्रधान अहिंसक क्रांति की घोषणा करने के बावजूद, स्वदेशी, स्वभाषा, नई तालीम, शराबबंदी, सादगी, ग्राम स्वराज्य और विकेंद्रीकरण की माँगों के बावजूद देश को बिल्कुल विपरीत दिशा में ले जाना, दो-तिहाई लोगों को गरीबी की रेखा के नीचे पहुँचा देना, करोड़ों को बेकार और बीमार बना देना, गरीबों को और ज्यादा गरीब तथा अमीरों को और ज्यादा अमीर बना देना, न्याय और नैतिकता के स्थान पर अन्याय और अनैतिकता फैला देना, क्या आप इसे महात्मा गांधी-द्रोह, विनोबा-द्रोह, सर्वोदय-द्रोह तथा भारत-द्रोह नहीं मानते हैं?
जनतंत्रवाद की जगह एकतंत्रवाद, लोकशाही की जगह तानाशाही, आजादी की जगह गुलामी तथा विकेंद्रीकरण की जगह केंद्रीकरण कायम करना, मगर अखबारों में और रेडियो पर दिवा-रात्रि जनतंत्र की दुहाई देना, क्या आप इसे मुख में राम; बगल में छूरी नहीं मानते हैं? स्वयं फासिज्म का नंगा नाच करना, स्वयं असत्य और असहिष्णुता का आश्रय लेना, स्वयं अन्याय और दमन का व्यापक उपयोग करना, मगर फासिस्ट-विरोधी सम्मेलनों के जरिए दूसरों को फासिस्ट, जनतंत्र-द्रोही और विदेशी ताकतों का एजेंट कहना, क्या आप इसे असत्यमेव जयते, अधर्ममेव जयते नहीं मानते हैं? भूमि-वितरण, संपत्ति-वितरण, सत्ता-वितरण, व्यक्ति-स्वातंन्न्य, वाणी-स्वातंन्न्य, लोकतंत्र, ग्राम-स्वराज्य, ग्रामोद्योग, नई तालीम, शांति-संयम जिस तरह आप चाहते हैं, उसी तरह जे.पी. भी चाहते हैं, मगर तब भी जे.पी. को गिरफ्तार करना, उन्हें अकेले बंदी बनाकर रखना, बीमारी का उचित उपचार-इलाज नहीं करना और जेल में तब छोड़ना, जब वे मरणासन्न हो जाएँ, क्या आप इसे घोर अँधेर-अन्याय नहीं मानते हैं?
अन्याय का प्रतिकार, सरकार का विरोध, अहिंसक विद्रोह, अहिंसक क्रांति, सत्याग्रह, शांति आंदोलन, सभा, सम्मेलन, प्रदर्शन, अभिव्यक्ति-स्वातंन्न्य आदि को क्या आप जनता के बुनियादी अधिकार नहीं मानते हैं?
क्या ये सब गांधीवादी विचारधारा के अंतर्गत नहीं आते हैं? यदि ‘हाँ’ तो इन अधिकारों के उपयोग को अपराध करार देकर लगभग एक लाख लोगों को आज भी जेलों में सड़ाया जा रहा है, उसके बारे में आपका क्या कहना है? अदालतों को जो बधिया किया जा रहा है, उसे आप क्या समझते हैं तथा पार्लियामेंट को जो रबर-स्टांप बनाया जा रहा है, उसे आप किस निगाह से देखते हैं?
आखिर में सुप्रीम कोर्ट के सामने अपील की दरखास्त के रहते भी प्रधानमंत्री ने संविधान में और चुनाव-कानून में संशोधन न कराकर पार्लियामेंट में ही पार्लियामेंट द्वारा अपने मामले का जो मनोनुकूल फैसला करा लिया, उसे न्याय, मर्यादा, लोकतंत्र और स्वस्थ परंपरा की दृष्टि से आप क्या मानते हैं? पूज्य बाबा! क्षमा कीजिएगा। बात कुछ लंबी हो गई। संदेह और संशय का निवारण आप नहीं करेंगे तो कौन करेगा?
मार्गदर्शन आप नहीं करेंगे तो कौन करेगा? मैं आपका पुराना कार्यकर्ता हूँ। वर्षों से आपके संपर्क में हूँ। महीनों आपके निकट संपर्क में रहने का सौभाग्य प्राप्त रहा है-विभिन्न स्थानों पर, किंतु सबसे अधिक एक स्थान, पूसा रोड में ही, जो कुछ सेवा बन सकी भूदान, नई तालीम, ग्रामोद्योग के लिए, मैंने भरसक अर्पित की। यह आपकी व्यक्तिगत जानकारी है, सुनी-सुनाई बात नहीं।
आप उच्च कोटि के आध्यात्मिक पुरुष हैं, किंतु आज भारत को पुरुषार्थहीन अध्यात्म नहीं, पुरुषार्थ अध्यात्म चाहिए। द्रोण और भीष्म नहीं चाहिए, जो भारत को-द्रौपदी के चीर-हरण और दुःशासन के अन्याय को निर्लज्ज होकर चुपचाप देखनेवाले थे। आज भारत को महात्मा गंाधी चाहिए, असत्य से लड़नेवाला, अन्याय, से जूझनेवाला, तानाशाही का प्रतिकार करनेवाला, साथ-साथ सत्य और धर्म पर अटल रहनेवाला।
आप सत्य और धर्म पर अटल हैं। आप अध्यात्मवादी तथा विधायक पुरुष हैं। साथ ही, आप अहिंसक क्रांतिकारी हैं, अन्यााय और तानाशाही का प्रतिकारी भी बनिए, यही आपसे मेरी करबद्ध प्रार्थना है। तभी देश बचेगा, गांधी-विनोबा-विचार बचेगा। सादर प्रणाम के साथ।
आपका
कर्पूरी ठाकुर
21.12.1975ई.