जननायक कर्पूरी ठाकुर द्वारा लोकनायक जयप्रकाश नारायण को लिखा गया पत्र
दिनांक 6-12-1976
श्रद्धेय जयप्रकाश बाबू
सादर प्रणाम!
राष्ट्रीय विकल्प के निर्माण में एक बाधा यह बतलाई जाती है कि चैधरी चरण सिंह प्रतिक्रियावादी तथा समाजवाद के विरोधी हैं। आपके कानों में भी यह बात अवश्य पड़ी होगी। इस संबंध मंे वास्तविकता यह है कि वे प्रतिक्रियावादी नहीं, प्रगतिशील हैं, समाजवादी नहीं, गांधीवादी हैं, महात्मा गांधी के गाँव, कृषि किसान, ग्रामोद्योग, गरीब, दलित, आर्थिक एवं सामाजिक समानता, विकेंद्रीकरण, शांतिमय साधन, सत्याग्रह और आंदोलन, नागरिक आजादी एवं व्यक्ति-स्वातंन्न्य-संबंधी जो विचार हैं, उन्हें वे मानते हैं। यह मैं जिम्मेदारी और यकीन के साथ कह रहा हूँ। आप स्वयं बात करके देखें, आपको भी विश्वास हो जाएगा।
अतः जो लोग उनके विरुद्ध मिथ्या प्रचार करते हैं, उन्हें मैं राष्ट्रीय विकल्प का शत्रु मानता हूँ।
एक प्रचार यह भी चल रहा है कि यदि उन्हें नई पार्टी के अध्यक्ष का आश्वासन नहीं मिलेगा तो उन्हें राष्ट्रीय विकल्प के निर्माण में कोई रस नहीं रह जाएगा। यह प्रचार भी दुष्टतापूर्ण है। इसमें मेरा कहना यह है कि चार विरोधी दलों में आज जितने नेता हैं, उनमें अपेक्षाकृत निर्विवाद रूप से सर्वाधिक व्यापक जनाधार तथा प्रभाव गाँवों और किसानों में चैधरी साहब का है। अतः न्याय की ही दृष्टि से नहीं, नए दल के स्वार्थ और लाभ की भी दृष्टि से उन्हें ही अध्यक्ष बनाना चाहिए। इस प्रस्ताव का विरोध वे ही लोग करते हैं, जो संकीर्ण एवं दुष्ट हैं। मैं कह चुका हूँ कि सं.कां. जनसंघ, संपा तथा विद्रोही कांग्रेस से लेकर चार महासचिव बनाए जाने चाहिए।
जहाँ तक सत्याग्रह का सवाल है, वे नागरिक आजादी और मौलिक अधिकार की प्राप्ति के लिए बड़े-से-बड़ा संघर्ष करने के पक्ष में हैं। उसके लिए वे बुद्धिमानी के साथ आवश्यक और पूरी तैयारी चाहते हैं। इस संबंध में भी उनसे आप बात करके देखें। वे इसके पक्ष में भी हैं कि कांग्रेस के मुकाबले नई पार्टी की छवि और चेहरा अवश्य ही प्रगतिशील होना चाहिए, मगर वह झूठी प्रतिद्वंद्विता के लिए और नकली नहीं होनी चाहिए, बल्कि असली, ठोस और व्यावहारिक होनी चाहिए।
अब बात बस गई संपूर्ण क्रांति की। गांधीवाद और संपूर्ण क्रांति यदि उनकी समझ में एक चीजजँच गई, तो उसे भी मानने में उन्हें कोई आपत्ति नहीं हो सकती है, मगर बिना जाने और समझे वे यों ही ‘हाँ’ कहनेवाले व्यक्ति नहीं हैं। उनके स्वभाव और तौर-तरीके से आप बहुत-कुछ अवगत हैं। मगर क्या आपकी यही कल्पना है कि जो जब तक संपूर्ण क्रांति की शपथ नहीं लेगा, तब तक राष्ट्रीय विकल्प नहीं बनेगा? मैं संपूर्ण क्रांति का प्रबल और कट्टर पक्षधर हूँ। परंतु मेरा खयाल है कि आज नागरिक आजादी और गांधीवाद विकल्प के लिए पहले माना जाना चाहिए, क्योंकि संपूर्ण क्रांति अभी तक संपूर्ण रूप से परिभाषित नहीं हुई है।
सादर,
आपका
कर्पूरी ठाकुर
6.12.1976 ई.