शोक-संवेदना


दिनांक: 8 फरवरी, 1965

विषय-पंजाब के मुख्यमंत्री श्री प्रताप सिंह कैरों के निधन के पश्चात् शोक-संवेदना व्यक्त करने के क्रम में।

श्री कर्पूरी ठाकुर-अध्यक्ष महोदय, सरदार प्रताप सिंह कैरों की नृशंस हत्या के संबंध में आपने और माननीय सभा-नेता ने जो दुःख प्रकट किया है, मैं भी उसके साथ हूँ। सचमुच आज सारा देश और शांतिपूर्ण जीवन में विश्वास करनेवाले सभी लोग इस हत्या से न केवल दुःखी हैं, बल्कि अशांतिपूर्ण हैं, भयभीत हैं। सभी की जुबान पर कल से यह बात सुनी जा रही है कि पता नहीं कि किसी का जीवन कब और कैसे सुरक्षित रह सकता है? विरोध, जनतांत्रिक जीवन में अनिवार्य माना गया है। किसी के काम से संतुष्ट रहना या नहीं रहना, यह भी जनतंत्र है, किसी के राजनैतिक कार्यों से कोई अप्रसन्न हो या असंतुष्ट हो, तो इस तरह का अमानुषिक बरताव और इस प्रकार की हत्या किसी ऐसे आदमी की कोई कर डाले, जो सचमुच एक मर्दाना आदमी रहा हो, जिसने आजादी की लड़ाई में हाथ बँटाया हो, जिसने टूटे हुए जर्मनी और जापान की तरह, टूटे हुए पंजाब को निर्माण का पथ प्रशस्त किया, तो स्वभावतः सारे लोगों के लिए भयभीत हो जाना और यह सोचना कि किसी का जीवन सुरक्षित रह सकता है या नहीं, ऐसे विचार का पैदा हो जाना सब लोगों के लिए स्वाभाविक है। अध्यक्ष महोदय, इस अवसर पर मैं कुछ विशेष नहीं कह सकता। जो दिवंगत आत्माएँ हैं, चार आत्माएँ हैं, उनकी शांति के लिए भगवान् से प्रार्थना करता हूँ और उनके शोक-संतप्त परिवार के लिए अपनी ओर से और अपने दल की ओर से आपके माध्यम से संवेदना भेजना चाहता हूँ। साथ ही, मैं यह भी कहना चाहता हूँ कि इस देश में सब लोग मिलकर, हम लोग एक ऐसा वातावरण पैदा करें, ऐसा प्रशासन बनाने का प्रयास करें, जिसमें इस प्रकार की निर्मम हत्याएँ अतीत की बात बन जाएँ। इन्हें शब्दों के साथ उस दिवंगत आत्मा को फिर से एक बार श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहता हूँ।