पं जवाहरलाल नेहरू


दिनांक: 20 जुलाई 1964

विषय-भारत के प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू के निधन पर शोक-संवेदन व्यक्त करते हुए।
श्री कर्पूरी ठाकुर-महोदय, श्री जवाहरलाल नेहरू के निधन पर सभा-नेता ने और विरोधी दल के उप-नेता ने जो उद्गार प्रकट किए हैं, मैं उनके साथ हूँ। सच पूछा जाए तो आधुनिक भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय व्यक्ति पं. जवाहरलाल नेहरू के निधन से बहुत बड़ी क्षति हुई है। महात्मा गांधी के बाद वस्तुतः किसी व्यक्ति के भारत के नव-जागरण में, राष्ट्रीय उत्थानमें, यों कहा जाए कि किसी ने एशिया के राष्ट्रीय उत्थान में सर्वाधिक पार्ट अदा किया, तो वे पं. जवाहरलाल नेहरू थे। केवल भारत की स्वाधीनता के लिए ही नहीं, बल्कि संसार साक्षी है कि जब स्पेन में गृहयुद्ध के समय जनतंत्र को और प्रगतिशीलता को, जनरल फ्रैंको और उनके समर्थकों के हाथों कुचला जा रहा था, जब अबीसीनिया में इटली के साम्यवाद द्वारा पराधीन करने का कुचक्र और पापपूर्ण संग्राम लड़ा जा रहा था, जब चीन को जापानी साम्राज्यवादियों द्वारा परास्त किया जा रहा था, जब एशिया, अफ्रीका और अरब में दूसरे देशों के विदेशी साम्राज्यवाद दासता की बेड़ियों में जकड़ने का प्रयास कर रहा था, तो इस देश से जो सर्वाधिक उच्च आवाज किसी एक व्यक्ति की होती थी तो वह आवाज पं. जवाहरलाल नेहरू की थी। फासिस्टवाद के विरुद्ध, साम्राज्यवाद के विरुद्ध, जातिवाद के विरुद्ध और प्रगतिशील विरोधी शक्तियों के विरुद्ध जीवन भर जिस व्यक्ति ने अपनी आवाज बुलंद की और अपने ढंग से संग्राम में जीवन व्यतीत किया, वह व्यक्ति आज संसार से चला गया है। भारत के ही लोग नहीं, बल्कि संसार के लोग, स्वतंत्रता के प्रति प्रजातंत्र के उत्कर्ष के लिए और संसार में शांति स्थापित हो, इसके लिए जो कुछ उन्होंने योगदान दिया, उसको युग-युग तक याद रखेंगे। केवल एक राजनीतिक की हैसियत से ही नहीं, यदि पं. जवाहरलाल नेहरू को एक लेखक की हैसियत से, कलाकार ही हैसियत से, सत्यं-शिवं-सुंदरम् के पुजारी की हैसियत से देखा जाए तो उनका स्थान सचमुच में बहुत ही ऊँचा माना जाएगा। हममें से और संसार के भिन्न-भिन्न देशों के जितने लोगों को उनकी रचनाओं को पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ है, वे जानते हैं। अंग्रेजी भाषा में जो सरलता देखने को उनमें मिलती है, चाहे उनकी आत्मकथा ‘डिसकवरी आॅफ इंडिया’ को कोई पढ़े या उनकी किसी दूसरी पुस्तक को पढ़े, जहाँ एक तरफ उनका विचार उच्च था, उनकी भाषा उतनी ही सादगी से ओत-प्रोत थी। यदि पं. जवाहरलाल नेहरू ने राजनीति में भाग नहीं लिया होता तो निस्संदेह पं. नेहरू केवल भारत के ही नहीं, बल्कि संसार के एक उच्च कोटि के साहित्यिक होते। ऐसे एक व्यक्ति को, जिसने हिंदुस्तान के लिए अपने जीवन को न्योछावर कर दिया, जिसने मानवता के लिए अपने को बलिपंथी घोषित कर दिया, जिसने संसार में शांति कायम करने के लिए जीवन भर प्रयास किया था, ऐसे व्यक्ति को खोकर आज भारतवर्ष जितना निर्धन है, शायद ही निकट भविष्य में उसकी पूर्ति हो सकेगी। उनके निधन पर अपनी ओर से और अपने दल की ओर से मैं श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ और आपसे प्रार्थना करता हूँ कि इस सदन के शोक प्रस्ताव को उनके शोक-संतप्त परिवार के पास भेजने की कृपा करेंगे।