लाल बहादुर शास्त्री
दिनांक: 1 फरवरी, 1966
विषय-भारत के पूर्व प्रधानमंत्री, श्री लाल बहादुर शास्त्री के निधन पर शोक-संवेदना।
श्री कर्पूरी ठाकुर-महोदय, अपनी ओर से श्रद्धांजलि अर्पित करने के सिलसिले में आपने स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री के बारे में साहित्यिक एवं प्रांजल भाषा में जिन उच्च भावों को व्यक्त किया है और सभा-नेता ने उनके प्रति जो शब्द कहे हैं, मैं उनके साथ हूँ। अध्यक्ष महोदय, शास्त्रीजी का निधन अत्यंत ही दुःखद और दुर्भाग्यपूर्ण है। साधारणतः सारा संसार, विशेषकर भारत, उनके निधन से विपन्न हो गया है। हम और आप सभी उनकी मृत्यु से दुःखी हैं, लेकिन उनकी मृत्यु बड़ी शानदार रही। हमारे देहात में एक कहावत है ‘करनी देखली मरनी के बेर’। बहुत से लोग कुहर-कुहरकर मरते हैं, बड़ी तकलीफउठाकर मरते हैं। जन-उक्ति है कि सचमुच अच्छा जीवन उन्हीं का होता है, जो अच्छा काम करते हैं और अपने जीवन में किसी को अकारण कुछ बिगाड़ते नहीं है, किसी के प्रति अन्याय और अत्याचार नहीं करते हैं, ऐसे लोगों की मृत्यु चंद मिनटों में हुआ करती है। शास्त्रीजी 10 मिनट में अंदर इस असार संसार से चल बसे और उनकी मृत्यु जन-उक्ति को चरितार्थ करती है। अध्यक्ष महोदय, शास्त्रीजी का शासनकाल अल्पकालीन रहा, केवल 19 महीने; और इन 19 महीने के अंदर उन्होंने जो कुछ किया है, आमतौर पर अपने देश के लोगों के हित में किया है, जिसकी आज सभी लोग सराहना करते हैं। शास्त्रीजी ने यह प्रमाणित कर दिया है कि प्रधानमंत्री होने के लिए या मुख्यमंत्री होने के लिए हैरो, आॅक्सफोर्ड, लंदन तथा मास्को आदि या किसी विश्वविद्यालय की उच्च उपाधि प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है। हमारे देश में जो विद्यापीठ है, चाहे काशी विद्यापीठ हो या देवघर विद्यापीठ हो या अन्य विद्यापीठ हो, वहाँ से उपाधि प्राप्त कर अपने आपको देश का काम करने के लिए शामिल कर सकते हैं। अध्यक्ष महोदय, आपने अभी इस सदन में कई उक्तियाँ उपनिषद्, वेद तथा और धार्मिक पुस्तकों से दी हैं। हमारे सामने भी महात्मा बुद्ध की अपरिग्रह की बात आती है, जिसका निग्रह करना कठिन है, लेकिन किसी संघ के चालक को कामयाब होने के लिए अपरिग्रह करना आवश्यक होता है। हमारे शास्त्रीजी ने अपने जीवन में अपरिग्रह व्रत को खूब अच्छी तरह से निभाया। जिन्होंने काशी में उनको देखा है, उनका कहना है कि शास्त्रीजी एक सीधे-सादे तथा देश का काम करने में कर्मठ व्यक्ति थे। वे स्वर्गीय गोविंद वल्लभ पंतजी के संसदीय सचिव थे एवं पंतजी की भावना उनके प्रति बड़ी अच्छी थी। पंतजी के प्रति उनका व्यवहार जैसा था, ठीक वैसा ही व्यवहार आचार्य नरेंद्र देव के प्रति भी उनका था। यद्यपि वे आचार्य नरेंद्र देव से बिछुड़ चुके थे। वे अपना सोलह आना समय कांग्रेस पार्टी, उत्तर प्रदेश की सरकार और बाद में लोकसभा में मंत्री की हैसियत से लगाते रहे। उनमें बहुत से उच्च प्रकार के मानवी गुण थे। यही कारण था कि एक साधारण परिवार में पैदा होनेवाला आदमी इतना ऊँचा उठ सका। उन्होंने 1921 के आंदोलन में देश की सेवा में भाग लिया और देश की सेवा करते-करते ही दस मिनटों के अंदर उसका देहावसान हुआ। उनकी मृत्यु महज हृदय की गति रुक जाने से हुई या जिस जनता की मनोवांछित आकांक्षाओं को मूर्तरूप वे देना चाहते थे, वह नहीं हुआ, इसलिए हुई, यह एक रहस्य है। हम नहीं जानते हैं। जो भी हो, हमारे देश का एक महान् आदर्शवादी पुरुष उठ गया। मैं ऐसे महानात्मा को अपनी ओर से और अपनी पार्टी की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ तथा यह प्रार्थना करता हूँ कि भगवान् उनके शोक-संतप्त परिवार को धैर्य प्रदान करें।