लोकनायक जयप्रकाश नारायण
दिनांक: 24 जनवरी, 1980
विषय-लोकनायक जयप्रकाश नारायण एवं अन्य नेताओं के शोक-संवेदना पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए।
श्री कर्पूरी ठाकुर-अध्यक्ष महोदय, आपने और सदन नेता ने श्रद्धेय जयप्रकाश बाबू के संबंध में और अन्य सांसदों एवं सभासदों के संबंध में जो उद्गार व्यक्त किए हैं, मैं विरोधी दल की ओर से उनके साथ हूँ। श्रद्धेय जयप्रकाश बाबू के ऐतिहासिक एवं त्यागमय जीवन के संबंध में, उनके पौरुष और साहसपूर्ण कार्यों के संबंध में, उनकी बहुमुखी प्रतिभा के संबंध में, उनके खतरे से भरे हुए सैंकड़ों कार्यों के संबंध में जितना भी कहा जाए, थोड़ा ही होगा। मृत्यु का वरण करने के लिए श्रद्धेय जयप्रकाश बाबू हमेशा तैयार रहते थे। जिस समय उन्होंने हजारीबाग जेल की चहारदीवारी को लाँघने का ‘फाँदने का’ काम किया था, स्पष्टतः उन्होंने मृत्यु को वरण करने की तैयारी के साथ किया था। जिस समय उन्होंने नेपाल में ‘आजाद दस्ते’ का संगठन किया था, ब्रिटिश साम्राज्यवाद के हिंसक उपायों को, उनके साधनों को समाप्त करने के लिए उन्होंने जेल को तोड़कर भागने का काम किया। जाहिर है, उन्होंने मृत्यु को वरण करने के लिए तैयार होकर ऐसा किया। जब उन्होंने 4 नबंवर, 1974 को पटना में जुलूस के नेतृत्व का संकल्प लिया, उस समय पटना में फौजें, सी.आर.पी.एफ. के जवान, बी.एस.एफ. के लोग, बहुत से पुलिस बल के जवान खचाखच भरे हुए थे। उनकी बंदूकें आग उगलने के लिए तैयार थीं, सी.आर.पी.एफ. के आई.जी. के अनुसार टैंक एवं मशीनगन गरज-गरजकर आग बरसाने के लिए खड़ी थीं। बगल में उस परिस्थिति में उन्होंने जुलूस का नेतृत्व करने का न केवल फैसला ही लिया, बल्कि जुलूस का नेतृत्व भी किया, तो निस्संदेह मृत्यु को वरण करने की पूरी तैयारी के साथ किया था। दुनिया में ऐसे आदमी कम होते हैं, जो अंगारों से खेलने के लिए तैयार रहते हैं, खतरा मोल लेने के लिए तैयार रहते हैं, जो आपदाओं एवं विपदाओं में मौत से खेलने के लिए तैयार रहते हैं, जो इतिहास का चक्र पलटने को तैयार रहते हैं। हमें गर्व है कि हम ऐसे सूबे में, ऐसे देश में पैदा हुए, जहाँ श्रद्धेय जयप्रकाश सरीखे महापुरुष पैदा हुए। मात्र महापुरुष हीं नहीं पैदा हुए, स्वतंत्रता सेनानी के सिरमौर पैदा हुए। जहाँ तक एक तरफ जयप्रकाश बाबू सादगी, त्याग और बलिदान के प्रतीक थे, जहाँ संघर्षशीलता एवं क्रांतिकारिता की प्रतिमूर्ति थे, वहीं दूसरी ओर निश्च्छलता, निर्भीकता एवं सरलता के प्रतीक थे। वे मात्र भारतीय संस्कृति के ही नहीं, मानव संस्कृति के सर्वोत्कृष्ट गुणों के प्रतीक थे। हमें फर्क है श्रद्धेय जयप्रकाश बाबू पर, जिनके चरणों में वर्षों रहने का मौका मिला, काम करने का मौका मिला, निर्देशन में रहने का मौका मिला। जिनमें अनेक गुणों का समिश्रण था, उनमें अनेक गुण कूट-कूटकर भरे हुए थे।
मैंने जैसा कहा, संस्कृति, मानवीय संस्कृति के सद्गुण उनमें कूट-कूटकर भरे हुए थे। श्रद्धेय जयप्रकाश बाबू की प्रतिभा बहुमुखी थी। वे न केवल मेधावी छात्र थे, बल्कि क्रांतिकारी नेता भी थे और राजनीति केे कार्यों को उसी खूबी के साथ करते थे, जिस खूबी के साथ क्रांतिकारी आंदोलनों का नेतृत्व करते थे। उन्होंने दर्जनों क्रांतिकारी आंदोलनों का नेतृत्व किया था। उन्होंने किसान आंदोलन और मजदूर आंदोलन का नेतृत्व किया था। उन्होंने अखिल भारतीय हिंद पंचायत के सभापति की हैसियत से और उसके पहले अखिल भारतीय किसान सभा के निकट संपर्क में रहते हुए, उनके नेताओं केसाथ काम करते हुए जहाँ दर्जनों किसान आंदोलनों का नेतृत्व किया, वहीं रेलवेमैन फेडरेशन के अध्यक्ष की हैसियत से पोस्ट एवं टेलीग्राफ के अध्यक्ष के निकट रहकर उन्होंने अनेक संस्थाओं का नेतृत्व किया था। आखिर में उन्होंने भारत के युवा संगठन का क्रांतिकारी नेतृत्व किया था और बिहार में ही नहीं, बल्कि भारत के युवा संगठन का नेतृत्व किया था। विदेशी शासन से मुक्त कराने का जितना श्रेय उनको दिया जा सकता है, उतना ही श्रेय तानाशाही से देश को मुक्ति दिलाने के लिए दिया जा सकता है। मैं अधिक नहीं कहना चाहता हूँ। वे बिहार के ही नहीं, भारत के ही नहीं, बल्कि विश्व के एक महापुरुष थे, क्रांतिकारी थे। उनके जीवन में माक्र्सवाद, माओवाद और गांधीवाद का समन्वय था। वे प्रकांड पंडित थे। मानव समाज के विकास का इतिहास, सामंतवाद, पूँजीवाद, माक्र्सवाद, माओवाद और गांधीवाद के इतिहास का गहरा अध्ययन किया था उन्होंने। उन्होंने केवल अध्ययन ही नहीं किया था, अध्ययन तो बहुत लोग करते हैं, लेकिन उन्हें अपच की बीमारी रहती है, वे पचा नहीं पाते हैं। लेकिन श्रद्धेय जयप्रकाश बाबू अध्ययन ही नहीं करते थे, उसे पचा लेते थे, उसे आत्मसात् कर लेते थे और कुछ अपना दर्शन बना लेते थे। ऐसे महामानव के प्रति, ऐसे न्यायी के प्रति, ऐसे गरीबों, मजदूरों, किसानों, छात्रों और युवकों को मार्गदर्शन करनेवाले के प्रति मैं अपनी ओर से और विरोधी दल की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। मैं उनकी आत्मा की शांति के लिए भगवान् से प्रार्थना करता हूँ। उनका परिवार छोटा नहीं है, विशाल है, केवल भारत में ही नहीं, संसार में फैला हुआ है। इस परिवार को उनके निधन से जो दुःख पहुँचा है, इस परिवार के प्रति भी मैं संवेदना प्रकट करता हूँ।
अध्यक्ष महोदय, आपने अन्य कई मित्रों के निधन का उल्लेख किया है, जैसे श्री बाबूलाल किस्कू, श्री पाईका मूरमू, श्री ब्रजेश्वर प्रसाद, श्री मुहम्मद ताहिर, श्री बासुकीनाथ राय, श्री बेचन शर्मा, श्री विभीषण कुमार, श्री रामशरण साव, श्री केशव प्रसाद, श्री कुमार झा एवं साँवलिया प्रसाद वर्मा। उनमें से कई लोग ऐसे रहे हैं, जो इस सदन के सदस्य थे और मुझे फख्र हासिल था उनके साथ पाँच-पाँच साल समय बिताने का, उनके साथ काम करने का। दो सज्जन ऐसे थे, जो इसके नहीं, संसद् के सदस्य थे। लेकिन बिहार के सार्वजनिक जीवन का एक अपना कार्यकर्ता होने के नाते उनको जानता था और अनेक अवसरों पर हमारी उनसे बातचीत भी थी।उनके साथ काम करने का भी मौका मिला था। दो सदस्य ऐसे थे, जो विधान परिषद् के सदस्य थे। उनको भी मैं बहुत नजदीक से जानता था। कई बार उनके साथ भी काम करने का मौका मिला था। इन तमाम मित्रों के प्रति, जो आज इस दुनिया में नहीं है, मैं श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ और अपनी ओर से, विरोधी दल की ओर से उनके परिवार के प्रति संवेदना व्यक्त करता हूँ। साथ ही उनकी आत्मा की शांति के लिए भगवान् से प्रार्थना करता हूँ।