वी.वी. गिरी


दिनांक: 1 जुलाई, 1980

विषय-शोक-संवेदना।
श्री कर्पूरी ठाकुर-अध्यक्ष महोदय, यह सचमुच दुःख का विषय है कि हमारी आजादी की लड़ाई के जितने भी चमकते हुए बुलंद सितारे हैं, एक-एक करके उठते जा रहे हैं। मुश्किल से चंद नेता अब बच रहे हैं, जिनके दर्शन लाभ या जिनका मार्गदर्शन हमें कुछ दिनों तक प्राप्त हो सकेगा। हमारे भूतपूर्व राष्ट्रपति श्री वी.वी. गिरी का उठ जाना राष्ट्र के लिए दुःखद है। जितना महत्वपूर्ण यह नहीं है कि वे अंग्रेजी राज्य के जमाने में सेंट्रल एसेंबली के मेंबर रह चुके थे या वे अंग्रेजी राज्य के जमाने में मद्रास एसेंबली के मेंबर रह चुके थे या आजाद भारत के लोकसभा के सदस्य रह चुके थे या दो-दो बार मद्रास सरकार में मंत्री और एक बार केन्द्रीय सरकार में मंत्री रह चुके थे, या केरल, मैसूर और उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रह चुके थे या लंका में उच्चायुक्त रह चुके थे, इससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह है कि वे भारतीय मजदूर आंदोलन के एक जबरदस्त संगठनकर्ता और नेता थे। न केवल भारत के स्वतंत्रता संग्राम में इनका जबरदस्त योगदान था, बल्कि आयरलैंड के स्वतंत्रता संग्राम में भी। जो आंदोलन के संघर्ष में जूझता है, उसकी एक अलग भूमिका होती है। एक अलग विशेषता होती है। वैसी ही भूमिका और विशेषतावाले व्यक्ति हमारे भूतपूर्व राष्ट्रपति श्री वी.वी. गिरी थे। मुझे उनसे मिलने का सौभाग्य कई बार प्राप्त हुआ था। मगर खासतौर से एक घटना का उल्लेख मैं यहाँ पर करना चाहता हूँ। 1969 में जब वे राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार हुए थे तो तमाम विरोधी दलों ने, एक आध को छोड़कर सबों ने, उनकी उम्मीदवारी का समर्थन किया था। जिस समय अखिल भारतीय संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के महासचिव की हैसियत से जाॅर्ज फर्नांडिस और अध्यक्ष की हैसियत से हम दोनों एक साथ मिलने गए थे। उस समय तक कांग्रेस पार्टी ने यह निर्णय नहीं किया था कि उनको इसका समर्थन प्राप्त होगा। जब हम लोग उनसे मिलने गए तो देखा कि उस बूढ़े आदमी में कितना जोश है। वे जाँच-पड़ताल ठीक कर कहने लगे कि हम दिखला देंगे कि किस तरह हम नहीं जीतते हैं और हम विरोधी दलों के लोगों का शुक्रिया अदा करते हैं और विश्वास उन्हें दिलाते हैं कि हम जाकर रहेंगे। उस समय तक उनको यह नहीं मालूम था कि कांग्रेस पार्टी का समर्थन उन्हें प्राप्त होनेवाला है। उन्होंने कांग्रेस के संबंध में भी कुछ कहा था, जिसका उल्लेख मैं यहाँ नहीं करना चाहता हूँ। बहुत बुलंद आदमी थे, जोशवाले आदमी थे, मरते दम तक रहे। अध्यक्षमहोदय, वे एक बहुत ही अच्छे वक्ता थे और साथ-साथ एक अच्छे लेखक भी थे। उनके पास एक मानवीय हृदय था, राष्ट्र के लिए बड़ी चिंता करते थे। मरने के 3-4 दिन पहले उन्होंने एक वक्तव्य दिया था, उस वक्तव्य में उन्होंने कहा था कि भारत की समस्या को सुलझाने के लिए एक राष्ट्रीय सरकार का गठन होना चाहिए। पता नहीं आपका ध्यान इस तरफ गया है या नहीं, ‘स्टेट्समैन’ में एक बहुत ही दिलचस्प समाचार था। जिस समय श्री संजय गांधी का निधन नहीं हुआ था, सवा आठ बजे, उस दिन चार बजे भोर में उन्होंने अपने बड़े लड़के को बुलाया, श्री शंकर गिरी को बुलाकर कहा कि संजय गांधी मर रहे हैं, संजय गांधी मर रहे हैं। शंकर गिरी को बहुत आश्चर्य हुआ और उन्होंने कहा कि बाबूजी आप क्या बोल रहे हैं, क्या बक रहे हैं, शायद आप सपना देख रहे हैं। उन्होंने कहा कि मैं सपना नहींदेख रहा हूँ, तुम जाओ मेरे नजदीक से और सुबह का अखबार पढ़ो और देखो कि यह खबर अखबार में छपी है या नहीं। जब अखबार सुबह में आया और उसमें यह बात छपी हुई नहीं थी तो श्री शंकर गिरी उनके पास गए और कहा कि बाबूजी, यह खबर अखबार में नहीं छपी है, उनका निधन नहीं हुआ है तो उन्होंने कहा कि मैं अखबार को नहीं मानता हूँ। मैंने जो कुछ कहा है, वह ठीक है और तुम दिल्ली में खबर करो और दिल्ली से टेलीफोन कर पता लगाओ, मैं गलत नहीं कह रहा हूँ। पौने नौ और नौ बजे दुनिया को समाचार मिल गया कि श्री संजय गांधी दुनिया से चल बसे। मैं ‘स्टेट्समैन’ को पढ़कर यह बात कह रहा हूँ, कोई सुनी-सुनाई बात मैं नहीं कह रहा हूँ। पता नहीं, इसमें क्या रहस्य है, लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि श्री गिरी पवित्र आत्मा के व्यक्ति थे, इसलिए उनको पूर्वाभास हुआ था कि श्री संजय गांधी इस संसार से जानेवाले हैं। श्री गिरी लेखक थे, विद्वान् थे, भविष्य द्रष्टा थे, स्वतंत्रता संग्राम के नेता थे, सेनापति थे और सबसे बढ़कर वे मजदूर आंदोलन के एक प्रणेता थे तथा समाजवादी विचारधारा के थे। मैं अपनी ओर से तथा अपने दल की ओर से उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।