रामानंद तिवारी


अध्यक्ष महोदय, स्वर्गीय पं. रामानंद तिवारी के बारे में अगर वर्णन किया जाए तो उस पर एक पुस्तक लिखी जा सकती है। इतने दिनों तक उनके साथ रहने का मौका मिला, जेलों में एक बार नहीं, अनेक बार रहने का मौका मिला। सचमुच उनके बारे में व्याख्यान किया जाए तो एक पुस्तक तैयार हो जाएगी। वे स्वतंत्रता संग्राम के सेनापति थे। 1942 में जमशेदपुर में जो क्रांति का झंडा उन्होंने फहराया था और अनेक पुलिस कर्मचारियों के साथ जो झंडा फहराया था, वह स्वर्णाक्षरों में लिखा जा सकता है। हजारीबाग जेल में वे जे.पी. के साथ हो गए और उनसे समाजवाद की शिक्षा-दीक्षा ली और फिर समाजवादी बने। इसके बाद वे जीवनपर्यंत समाजवादी रहे। 1946 में पुलिस विद्रोह हुआ था, जिसका नेतृत्व श्री तिवारी ने किया था। उस पुलिस विद्रोह को गोरी फौज किस तरह से कुचलने का काम कर रही थी, यह सर्वविदित है। उस समय महात्मा गांधी ने भी कहा था कि विद्रोह को गोरी फौज बुरी तरह से कुचल रही है, जिसकी भत्र्सना उन्होंने की थी। हिंदू-मुसलिम दंगे के समय महात्मा गांधी पटना में ही थे। ऐसे समय में श्री तिवारी ने जो काम किया, वह सराहनीय है। वे मजूदर आंदोलन के नेता थे। सिपाहियों के नेता थे, वे जुल्म के खिलाफ बराबर संघर्ष करते रहे। ऐसे नेता आज हमारे बीच नहीं रहे, यह दुःख की बात है। मैं अपनी ओर से और अपने दल की ओर से उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।