महामाया प्रसाद


दिनांक: 9 मार्च, 1987

श्री महामाया प्रसाद सिन्हा हमारे प्रदेश के ही नहीं, बल्कि समस्त देश के एक महान् स्वतंत्रता सेनानी थे। जिन लोगोंको उनके संपर्क में आने का सौभाग्य प्राप्त हुआ होगा, वे जानते हैं कि महामाया बाबू एक अत्यंत उदार व्यक्ति थे। वे भावनाओं से भरे हुए रहते थे। भावावेश में वे बहुत काम किया करते थे, जोखिम का काम, अच्छे काम और जनहित का काम।

जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं,
वह हृदय नहीं है, पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।

यह बात महामाया बाबू के जीवन में कूट-कूटकर भरी थी। सचमुच, में सहानुभूति रखनेवाले, हमदर्दी रखनेवाले, सभी के प्रति उदारता का व्यवहार करनेवाले व्यक्ति थे। वे हिंदू-मूसलिम एकता के जबरदस्त पुजारी थे। मुझे मालूम है, जानकारी है कि तमाम लोगों का उनके प्रति सम्मान-भाव था, स्नेह-भाव था, उनके प्रति विश्वास था, वहीं अल्पसंख्यकों का भी बड़ा ही जबरदस्त विश्वास उनके प्रति रहा करता था। वे जोखिम उठाने में बहुत आगे रहते थे। इस सदन के सभी माननीय सदस्यों को जानकारी है कि वे चुनाव लड़ते थे तो साधारण व्यक्ति से नहीं, बल्कि उस व्यक्ति से, जिससे लड़ने के लिए आमतौर पर कोई साहस नहीं कर सकता था, वैसे व्यक्ति के विरुद्ध वे चुनाव लड़ते थे। यह भी उनके जीवन की बड़ी उपलब्धि थी कि जिस बड़े-से-बड़े व्यक्ति के खिलाफ उन्होंने चुनाव लड़ने का साहस दिखलाया, उनसे वे पराजित नहीं हुए, बल्कि उन लोगों को पराजित कर दिया। अध्यक्ष महोदय, मैंने ऐसा पाया कि वे अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाने में बहुत आगे रहते थे। वे जुल्मों और ज्यादतियों को बरदाश्त नहीं कर सकते थे। यही कारण था कि उनका कांग्रेस से संबंध-विच्छेद हो गया। जिस कांग्रेस में बहुत वर्षों तक रहे और जिस कांग्रेस के आह्वान पर उन्होंने आजादी की लड़ाई में भाग लिया और 6 वर्षों तक जेल की यातनाएँ भोगीं, उसी कांग्रेस से उनको संबंध विच्छेद करना पड़ा। जब उन्होंने देखा कि उनके सपनों को साकार करने का काम कांग्रेस के जरिए नहीं होगा तो उन्होंने संबंध-विच्छेद कर लिया। आपने यहाँ तथ्य की दृष्टि से गलती की है। आपने लिखा है कि उन्होंने 1952 में कांग्रेस से संबंध विच्छेद कर लिया और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली, यह गलत है। उन्होंने कांग्रेस से संबंध-विच्छेद किया आचार्य कृपलानी के समय में। वे 1952 का चुनाव लड़े किसान मजदूर प्रजा पार्टी के टिकट पर और उसी टिकट पर विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। 1952 के अक्तूबर में किसान मजदूर प्रजा पार्टी का सोशलिस्ट पार्टी में विलयन हुआ और दोनों पार्टी के विलयन के बाद प्रजा सोशलिस्ट पार्टी में आए। चूँकि वे पहले किसान मजूदर प्रजा पार्टी में थे, फिर 1957 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर विधायक बने और 1962 में भी इस विधानसभा में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर ही आए। उसके बारे में जो लिखा है, वह सही है। तो मैं मानता हूँ कि महामाया बाबू के उठ जाने से हमारे बिहार का ही नहीं, बल्कि देश का एक महान् व्यक्ति उठ गया। मैं मानता हूँ कि हमारे बीच में एक उदारवादी और जनतंत्रवादी चला गया। हम मानते हैं कि सांप्रदायिक सद्भावनाओं को कायम रखनेवालो और सांप्रदायिक एकता के लिए रात-दिन चेष्टा करनेवाले एक बहुत बड़े हिंदुस्तानी हमारे बीच आज नहीं हैं। हम मानते हैं कि दुःखियों के लिए, गरीबों के लिए, शोषितों के लिए सोचने वाले और उनके लिए समय आने पर लड़नेवाले एक महान् योद्धा आज हमारे बीच में नहीं हैं। हम मानते हैं कि सब के साथ भाईचारे का बरताव करनेवाला, प्रेम से, स्नेह से अमल करनेवाला एक बहुत बड़ा आदमी हमारे बीच से चला गया। हम नहीं जानत हैं कि स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों के बीच से आज के भारत में कितने लोग उठ चुके हैं और अब कितने लोग बच रहे हैं। एक-एक करके हमारे बीच से लोग उठते जा रहे हैं और यह कहना नहीं पड़ेगा कि अब बहुत कम संख्या बच रही है, उस पीढ़ी की, उस जेनरेशन की, जिन लोगों ने अपने देश की आजादी के लिए अपना त्याग और बलिदान किया। हमारे महामाया बाबू उन्हीं लोगों में से एक थे। हम सभी लोग उनके जाने से बहुत दुुःखी हैं। हम अपने दल की ओर से और विरोधी दलों की ओर से दिवंगत आत्मा के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनकी आत्मा की चिर शांति के लिए भगवान् से प्रार्थना करते हैं। भगवान् से यह भी प्रार्थना करते हैं कि उनके शोक-संतप्त परिवार को असहाय दुःख को सहने की शक्ति दें।